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भारतीय बाघों का प्रधानमंत्री मोदी के नाम पत्र ज़रूर पढ़ना चाहिए

    • आईचौक
    • Updated: 29 जुलाई, 2019 10:32 PM
  • 29 जुलाई, 2019 10:32 PM
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देश में बाघों की संख्या में हुए सुधार के मद्देनजर भले ही जश्न मनाया जा रहा हो. मगर ऐसी तमाम समस्याएं हैं जिनका सामना बाघ कर रहे हैं. एक ऐसे समय में जब सभी अपनी समस्‍याओं को बताने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख रहे हैं, तो एक कोशिश बाघों की ओर से भी हुई है.

फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं, इतिहासकारों और अन्य दो पैरों वाले भारतीयों के खुले पत्रों से प्रेरित होकर, देश के 2,600 से अधिक बाघों ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर भावुक अपील की है और उनसे कहा है कि यदि वन बचे तभी बाघ बचेंगे.

प्रिय प्रधान मंत्री जी और पर्यावरण मंत्री जी, हम सभी की तरफ से ग्लोबल टाइगर डे की हार्दिक बधाई.

हम समझते हैं कि आज, जब हमारी जनगणना की संख्या की घोषणा होगी. भारत, दुनिया में बाघों की संख्या के मामले में सभी रिकॉर्ड तोड़ेगा जो एक गर्व की बात होगी. इस बात को लेकर उत्साह है कि वर्गविहीन समाज में हमारी संख्या काफी बढ़ गई है. हमें यकीन है कि देश खुशी मनाएगा. यह निश्चित रूप से एक ऐसी उपलब्धि है जिसे लेकर हमें गर्व करना चाहिए. लेकिन हमारे साथ, आपके साथी मनुष्यों द्वारा जिस तरह से व्यवहार किया जा रहा है, उसने हमें बहुत हैरत में डाला हुआ है. सच कहा जाए तो यह अमानवीय है.

बाघों की प्रधानमंत्री को लिखी ये चिट्ठी वाकई इमोशनल करने वाली है

पिछले सप्ताह ही हमें देश के दो हिस्सों से बहुत ही भयावह खबरें मिलीं. पीलीभीत में, हम में से एक को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया, कर्नाटक के बांदीपुर में, हमारे एक साथी को हिट-एंड-रन का शिकार होना पड़ा. कुछ हफ़्ते पहले, मध्य भारत के पेंच के पास हमारे एक युवा साथ ही ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने की हिम्मत जुटाई - और वो अपनी दर्दनाक कहानी बताने लायक ही बचा है.

सिर्फ इसलिए कि हम केवल एक ऐसी भाषा में बात करते हैं जो मनुष्यों की समझ से परे हैं, हमारे साथ दोयम दर्जे का व्‍यवहार किया जा रहा है. हां, हमारे बीच भी चंद बदमाश लोग हैं, और हम उनके दुष्ट मंसूबों को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं....

फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं, इतिहासकारों और अन्य दो पैरों वाले भारतीयों के खुले पत्रों से प्रेरित होकर, देश के 2,600 से अधिक बाघों ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर भावुक अपील की है और उनसे कहा है कि यदि वन बचे तभी बाघ बचेंगे.

प्रिय प्रधान मंत्री जी और पर्यावरण मंत्री जी, हम सभी की तरफ से ग्लोबल टाइगर डे की हार्दिक बधाई.

हम समझते हैं कि आज, जब हमारी जनगणना की संख्या की घोषणा होगी. भारत, दुनिया में बाघों की संख्या के मामले में सभी रिकॉर्ड तोड़ेगा जो एक गर्व की बात होगी. इस बात को लेकर उत्साह है कि वर्गविहीन समाज में हमारी संख्या काफी बढ़ गई है. हमें यकीन है कि देश खुशी मनाएगा. यह निश्चित रूप से एक ऐसी उपलब्धि है जिसे लेकर हमें गर्व करना चाहिए. लेकिन हमारे साथ, आपके साथी मनुष्यों द्वारा जिस तरह से व्यवहार किया जा रहा है, उसने हमें बहुत हैरत में डाला हुआ है. सच कहा जाए तो यह अमानवीय है.

बाघों की प्रधानमंत्री को लिखी ये चिट्ठी वाकई इमोशनल करने वाली है

पिछले सप्ताह ही हमें देश के दो हिस्सों से बहुत ही भयावह खबरें मिलीं. पीलीभीत में, हम में से एक को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया, कर्नाटक के बांदीपुर में, हमारे एक साथी को हिट-एंड-रन का शिकार होना पड़ा. कुछ हफ़्ते पहले, मध्य भारत के पेंच के पास हमारे एक युवा साथ ही ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने की हिम्मत जुटाई - और वो अपनी दर्दनाक कहानी बताने लायक ही बचा है.

सिर्फ इसलिए कि हम केवल एक ऐसी भाषा में बात करते हैं जो मनुष्यों की समझ से परे हैं, हमारे साथ दोयम दर्जे का व्‍यवहार किया जा रहा है. हां, हमारे बीच भी चंद बदमाश लोग हैं, और हम उनके दुष्ट मंसूबों को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, हम सबके बीच एक भावना ये भी है कि इसके लिए स्वयं मनुष्य जिम्मेदार है. जो 'क्लासी सोसाइटी' के तहत हमें साफ तौर पर नुकसान पहुंचा रहा है.

आप हमारा विश्वास करिए. हममें से किसी के अन्दर भी इंसानों के प्रति नफरत नहीं है. हम सदियों से एकसाथ रह रहे हैं. मेरे पूर्वजों को आपके पूर्वजों द्वारा पूजा जाता था. शुक्र हैं कि हम भगवान अय्यपा और देवी दुर्गा के वाहन हैं. आज हम हाथ जोड़े मज़बूरी से आपकी तरफ देख रहे हैं. अब हम आपकी शरण में हैं.

हम एक शांत प्रार्थना कर रहे हैं. सड़कों को पार करते हुए. जो हमारे आवासों से गुजरती हैं, हमारे कई भाई-बहन बड़े ही दर्दनाक ढंग से हमसे अलग हो गए हैं. हम जंगलों से बाहर केवल इसलिए निकलते हैं ताकि हमें पानी या भोजन मिल सके और ये सब हम शौक से नहीं करते बल्कि ये हमारी मज़बूरी है. हम मानव बस्ती के 3 किमी के भीतर भी आते हैं, मगर हमने उन्हें कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. हम इलेक्ट्रोक्यूटेड होने के डर से आपके चारागाहों के पास नहीं आ रहे. हमें बस ऐसी हरी-भरी भूमि की तलाश है जहां हमें प्रचुर मात्रा में भोजन मिल सके.

तेजी से बच्चे पैदा करना हमारा स्वाभाव है. तीन महीने की गर्भावस्‍था के बाद आमतौर पर जुड़वां. ट्रिपल और कभी कभी उससे भी ज्यादा बच्‍चे पैदा होते हैं. हमें उनके भविष्य की चिंता है. जैसे-जैसे मानव अपने आधार कार्ड से हमारे क्षेत्रों में स्थापित हो रहा है और हमें हमारे घर से बेदखल कर रहा है, उससे हमारे युवा बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. बाघों ने हमेशा से ही न्यूक्लियर परिवारों का गठन किया है और जैसे ही हमारा बच्चा दो साल की उम्र का होता है उसे अपने पेरेंट्स से अलग होना पड़ता है.

हमारे हालिया कॉन्क्लेव में, एक बाघिन का सुझाव था कि अब वो समय आ गया है जब हमें भी परिवार नियोजन के उपायों को इस्तेमाल में लाना चाहिए. प्रस्ताव को ज्यादातर लोगों ने अपना समर्थन नहीं दिया और वो खारिज हो गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हम इसे लेकर इंसान से मुकाबला कर पाएं ये हमारे बस की बात नहीं है. फिर भी आप सहमत होंगे, कि यह हमारी समस्याओं का समाधान नहीं हो सका है.

हम विभिन्न हरियाली कार्यक्रमों से भी उत्साहित नहीं हैं जो हमेशा विलंबित मानसून से पहले किए जाते हैं. हम जानते हैं कि हमारे क्षेत्र प्रतिबंधित हैं. हम आपसे हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि कम से कम मौजूदा जंगलों को नष्ट न किया जाए. हम अब तक बचे हुए हैं, और भविष्य में भी ऐसा करने का रास्ता खोज लेंगे. लेकिन, कहने की जरूरत नहीं है, हमें आपकी निष्पक्ष मदद की दरकार है.

हम भविष्य में होने वाले जल युद्ध को देख सकते हैं. जिससे इंसानों के अलावा जानवर भी प्रभावित होंगे. आपका एकमात्र उपाय हमें बचाना है. ऐसा करने पर, आप अनजाने में वन क्षेत्रों में वृद्धि करेंगे, जिसका सीधा असर जल संसाधनों पर पड़ता है. सोचने का समय बहुत लंबा होने के अलावा बीत चुका है, अब यह कार्य करने का समय है.

आपकी सद्भावना में, माया, कंकट्टा, बिट्टू, T1, T12, 3, T16, छोटी तारा, मटकासुर, छोटा मटका सुर और 2,600 से अधिक बाघों की ओर से हस्ताक्षरित पत्र.

(सुनील वारियर का लिखा गया यह पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा है. बाघों की चिंता और उनकी सुरक्षा को रेखांकित करता यह पत्र हम भारतीयों को वन्‍यप्रजाति के प्रति संवेदनशील होने की प्रेरणा देता है.) 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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