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नियति के आगे दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन भी फेल है!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 03 अगस्त, 2021 04:27 PM
  • 03 अगस्त, 2021 04:19 PM
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नियति जैसे शब्द के आगे दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन भी फेल हो जाता है. भाग्य और प्रारब्ध जैसे सवालों के सामने विज्ञान आज भी बहुत बौना नजर आता है. विज्ञान के पास तकरीबन हर सवाल का जवाब है. लेकिन, इंसान की चलती हुई सांस कब रुक जाएगी, इस रहस्य के सामने विज्ञान भी हथियार डाल देता है.

विज्ञान के बलबूते पर हमने गॉड पार्टिकल की खोज से लेकर ब्रह्मांड की विशालता तक को नाप लिया है. बहुत मुश्किल सा दिखने वाला काम भी एक मशीन के सहारे चुटकियों में हो जाता है. विज्ञान के बदौलत ही कैंसर से लेकर कोरोना महामारी तक का इलाज अब दुनियाभर में संभव है. लेकिन, इस इलाज के जरिये सौ फीसदी मरीजों को फायदा होगा, इसकी गारंटी आज भी विज्ञान नहीं देता है. दरअसल, महाराष्ट्र के पुणे से सटे पिंपरी-चिंचवड की रहने वाली एक वर्षीय मासूम वेदिका शिंदे, जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी यानी SMA नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थी, का निधन हो गया. इस बच्ची को बचाने के लिए दुनिया का सबसे महंगा 16 करोड़ रुपये का इंजेक्शन लगाया गया था. इसके बावजूद बच्ची को बचाया नहीं जा सका. यही वो जगह है, जहां नियति जैसे शब्द के आगे दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन भी फेल हो जाता है. भाग्य और प्रारब्ध जैसे सवालों के सामने विज्ञान आज भी घुटने टेक देता है. विज्ञान के पास तकरीबन हर सवाल का जवाब है. लेकिन, इंसान की चलती हुई सांस कब रुक जाएगी, इस रहस्य के बारे में विज्ञान आज भी निरुत्तर हो जाता है.

 मासूम वेदिका शिंदे के माता-पिता ने भी अपनी बच्ची को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की.

अगर किसी बच्चे को मामूली सा सर्दी-जुकाम भी हो जाता है, तो उसके माता-पिता किस कदर परेशान हो जाते हैं, ये शायद बताने की जरूरत नहीं होगी. बच्चे को ठीक करने के लिए अगर मां-बाप को किसी के आगे हाथ भी फैलाने पड़ें, वो संकोच नहीं करते हैं. अच्छे से अच्छा डॉक्टर और महंगे से महंगी दवा के लिए मां-बाप हर वो प्रयास करते हैं, जो किया जा सकता है. मासूम वेदिका शिंदे के माता-पिता ने भी अपनी बच्ची को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की. एक साधारण से परिवार के लिए 16 करोड़ रुपये की रकम का इंतजाम करना पहाड़ को तोड़ने से कम...

विज्ञान के बलबूते पर हमने गॉड पार्टिकल की खोज से लेकर ब्रह्मांड की विशालता तक को नाप लिया है. बहुत मुश्किल सा दिखने वाला काम भी एक मशीन के सहारे चुटकियों में हो जाता है. विज्ञान के बदौलत ही कैंसर से लेकर कोरोना महामारी तक का इलाज अब दुनियाभर में संभव है. लेकिन, इस इलाज के जरिये सौ फीसदी मरीजों को फायदा होगा, इसकी गारंटी आज भी विज्ञान नहीं देता है. दरअसल, महाराष्ट्र के पुणे से सटे पिंपरी-चिंचवड की रहने वाली एक वर्षीय मासूम वेदिका शिंदे, जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी यानी SMA नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थी, का निधन हो गया. इस बच्ची को बचाने के लिए दुनिया का सबसे महंगा 16 करोड़ रुपये का इंजेक्शन लगाया गया था. इसके बावजूद बच्ची को बचाया नहीं जा सका. यही वो जगह है, जहां नियति जैसे शब्द के आगे दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन भी फेल हो जाता है. भाग्य और प्रारब्ध जैसे सवालों के सामने विज्ञान आज भी घुटने टेक देता है. विज्ञान के पास तकरीबन हर सवाल का जवाब है. लेकिन, इंसान की चलती हुई सांस कब रुक जाएगी, इस रहस्य के बारे में विज्ञान आज भी निरुत्तर हो जाता है.

 मासूम वेदिका शिंदे के माता-पिता ने भी अपनी बच्ची को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की.

अगर किसी बच्चे को मामूली सा सर्दी-जुकाम भी हो जाता है, तो उसके माता-पिता किस कदर परेशान हो जाते हैं, ये शायद बताने की जरूरत नहीं होगी. बच्चे को ठीक करने के लिए अगर मां-बाप को किसी के आगे हाथ भी फैलाने पड़ें, वो संकोच नहीं करते हैं. अच्छे से अच्छा डॉक्टर और महंगे से महंगी दवा के लिए मां-बाप हर वो प्रयास करते हैं, जो किया जा सकता है. मासूम वेदिका शिंदे के माता-पिता ने भी अपनी बच्ची को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की. एक साधारण से परिवार के लिए 16 करोड़ रुपये की रकम का इंतजाम करना पहाड़ को तोड़ने से कम नहीं था. लेकिन, वेदिका के माता-पिता ने उम्मीद नहीं हारी और क्राउड फंडिंग समेत कई प्लेटफॉर्मों के सहारे लोगों से दान की अपील कर इस बीमारी के इलाज में जरूरी जोलगेन्स्मा (Zolgensma) के इंजेक्शन के लिए 16 करोड़ रुपये जुटाए. शिरूर के सांसद अमोल कोल्हे ने लोकसभा में केंद्र सरकार से अमेरिका से आयात किए जाने वाले इस इंजेक्शन पर लगने वाले आयात शुल्क को माफ करने की मांग की. बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम ने भी दान के जरिये इस रकम को जुटाने के लिए लोगों से अपील की थी. लेकिन, ये तमाम कोशिशें व्यर्थ साबित हुईं.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, वेदिका को जून में जोलगेन्स्मा का इंजेक्शन दिया गया था. परिवार को उम्मीद थी कि इंजेक्शन लगने के बाद वेदिका बच जाएगी. लेकिन, नियति को कुछ और ही मंजूर था. किसी मां-बाप के लिए इससे दर्दनाक शायद ही कुछ हो सकता हो कि उन्हें अपनी आंखों के सामने अपने बच्चे को दम तोड़ते देखना पड़े. 1 अगस्त को बच्ची को सांस लेने में तकलीफ हुई और अस्पताल में इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया. दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल के डॉ. संदीप पाटिल के अनुसार, डेढ़ साल पहले जोलगेन्स्मा का इंजेक्शन एक और बच्ची को भी दिया गया था, जो अभी भी जीवित है. डॉ. पाटिल ने इंजेक्शन के बारे में कहा कि ये इंजेक्शन अमेरिका से पिछले दो-तीन सालों से बन रहे हैं. इसी वजह से इनके बारे में बहुत ज्यादा स्टडी नहीं की जा सकी है. इस दवा के सहारे बीमारी को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है. लेकिन, इससे बच्चे की स्थिति में काफी हद तक सुधार आ जाता है.

क्या है ये दुर्लभ बीमारी

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी एक आनुवांशिक बीमारी है, जो बहुत ही दुर्लभ और जानलेवा है. स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी से ग्रस्त बच्चों में तंत्रिका तंत्र को ठीक से काम करने के लिए जरूरी प्रोटीन का निर्माण करने वाला जीन नहीं होता है. इस बीमारी की वजह से मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं, जिसकी वजह से बच्चों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. शरीर का तंत्रिका तंत्र धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है और बच्चे की मौत हो जाती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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