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5 महिलाएं, जो सालभर में क्रांति की मशाल बन गईं

    • आईचौक
    • Updated: 09 मार्च, 2019 02:10 PM
  • 09 मार्च, 2019 01:26 PM
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आज बात करते हैं उन्हीं अद्भुत नायिकाओं के बारे में जिन्होंने औरों से हटकर वो काम किया जिसने उन्हें एक अलग पहचान दी. जिनका जज्बा ये बताता है की अगर हम चाहें तो हर नामुमकिन चीज़ को मुमकिन कर सकते हैं

महिला सशक्तिकरण की परिभाषा वो महिलाएं हैं जो साहसी हैं, जो निडर हैं जिनमें वो बात है कि वो कुछ अलग कर गुजरने की चाह रखती हैं. आज बात करते हैं उन्हीं अद्भुत नायिकाओं के बारे में जिन्होंने औरों से हटकर वो काम किया जिसने उन्हें एक अलग पहचान दी. जिनका जज्बा ये बताता है कि अगर हम चाहें तो हर नामुमकिन चीज़ को मुमकिन कर सकते हैं. ये वो महिलाएं हैं जिन्हें बदलाव कहा जा सकता है. आइए जानते हैं 2018 की उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने लोग क्या सोचेंगे की परिभाषा ही बदल कर रख दी.

इबादत में हो रहे भेदभाव को तोड़ा जामिदा ने

केरल के मल्लपुरम की रहने वाली जामिदा बीबी वो पहली महिला हैं जिन्होंने मुस्लिम महिलाओं को जुम्मे की नमाज़ पढ़ाई. मुस्लिम धर्म में महिलाओं का इमामत करना मना होता है. जिसका विरोध करते हुए जामिदा ने नमाज से पहले खुतबा पढ़ा और फिर कुरान. और सुन्नत सोसायटी के मुख्यालय चेरूकोड में जुम्मे की नमाज भी अदा करवाई. जामिदा का कहना है- 'कुरान अगर मर्द और औरत में भेद नहीं करता तो फिर क्यों सिर्फ पुरुष ही नमाज पढ़ाएं, महिलाएं नहीं. ऐसा कोई नियम नहीं है कि जुम्मे की नमाज की इमामत केवल मर्द ही कर सकते हैं.'

जामिदा बनी पहली महिला ईमाम

हालांकि एक ऐसा वर्ग भी है, जो जामिदा को पसंद नहीं करता. जामिदा काफी समय से बच्चों को कुरान और हदीस पढ़ा रही हैं. लोकिन जिस महल कमेटी में वो पढ़ाती थीं, वहां उन्हें रोकने की भी कोशिश की गई. उन्हें परेशान किया गया, यहां तक कि जान से मारने की धमकी भी मिलीं पर जामिदा कभी रूकी नहीं.

गिलु जोसफ ने बताया कि स्तनपान अश्लील नहीं

मलयालम एक्ट्रेस गिलु जोसफ ब्रेस्ट फीडिंग फोटोशूट की वजह से पिछले साल चर्चा में थीं. क्योंकि उन्होनें ब्रेस्टफीड करवाते हुए एक...

महिला सशक्तिकरण की परिभाषा वो महिलाएं हैं जो साहसी हैं, जो निडर हैं जिनमें वो बात है कि वो कुछ अलग कर गुजरने की चाह रखती हैं. आज बात करते हैं उन्हीं अद्भुत नायिकाओं के बारे में जिन्होंने औरों से हटकर वो काम किया जिसने उन्हें एक अलग पहचान दी. जिनका जज्बा ये बताता है कि अगर हम चाहें तो हर नामुमकिन चीज़ को मुमकिन कर सकते हैं. ये वो महिलाएं हैं जिन्हें बदलाव कहा जा सकता है. आइए जानते हैं 2018 की उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने लोग क्या सोचेंगे की परिभाषा ही बदल कर रख दी.

इबादत में हो रहे भेदभाव को तोड़ा जामिदा ने

केरल के मल्लपुरम की रहने वाली जामिदा बीबी वो पहली महिला हैं जिन्होंने मुस्लिम महिलाओं को जुम्मे की नमाज़ पढ़ाई. मुस्लिम धर्म में महिलाओं का इमामत करना मना होता है. जिसका विरोध करते हुए जामिदा ने नमाज से पहले खुतबा पढ़ा और फिर कुरान. और सुन्नत सोसायटी के मुख्यालय चेरूकोड में जुम्मे की नमाज भी अदा करवाई. जामिदा का कहना है- 'कुरान अगर मर्द और औरत में भेद नहीं करता तो फिर क्यों सिर्फ पुरुष ही नमाज पढ़ाएं, महिलाएं नहीं. ऐसा कोई नियम नहीं है कि जुम्मे की नमाज की इमामत केवल मर्द ही कर सकते हैं.'

जामिदा बनी पहली महिला ईमाम

हालांकि एक ऐसा वर्ग भी है, जो जामिदा को पसंद नहीं करता. जामिदा काफी समय से बच्चों को कुरान और हदीस पढ़ा रही हैं. लोकिन जिस महल कमेटी में वो पढ़ाती थीं, वहां उन्हें रोकने की भी कोशिश की गई. उन्हें परेशान किया गया, यहां तक कि जान से मारने की धमकी भी मिलीं पर जामिदा कभी रूकी नहीं.

गिलु जोसफ ने बताया कि स्तनपान अश्लील नहीं

मलयालम एक्ट्रेस गिलु जोसफ ब्रेस्ट फीडिंग फोटोशूट की वजह से पिछले साल चर्चा में थीं. क्योंकि उन्होनें ब्रेस्टफीड करवाते हुए एक फोटोशुट करवाया था. इसपर लोगों ने आपत्ति जताई और इसे अश्लील कहा. सोशल मीडिया पर गिलु जोसफ को काफी ट्रोल भी किया गया था. जिस मामले के खिलाफ केरल हाईकोट में याचिका भी दाखिल हुई. याचिका मलयालम पत्रिका गृहलक्ष्मी के मुखपृष्ठ पर बच्च को स्तनपान कराती गिलु जोसफ पर कार्रवाई की मांग करते हुए लगाई गई थी.

इस तस्वीर में एक मां अपने बच्चे को दूध पिला रही है, लेकिन कुछ लोगों को ये अश्लील लगी

लेकिन अदालत ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि 'हम अपने श्रेष्ठ प्रयास के बावजूद इस तस्वीर में अश्लीलता नहीं देख पा रहे हैं. और उन्होनें ये भी कहा कि किसी के लिए जो अश्लीलता है, दूसरे के लिए कलाकारी हो सकती है. वो देखने वाले के नज़रिए पर भी निर्भर करता है.' गिलू मे दुनिया को ये बता दिया था कि बच्चे को स्तनपान कराना अश्लील नहीं, बल्कि अश्लीलता तो लोगों की आंखों में होती है.

अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई जीत आईं बिंदू और कनक दूर्गा

केरल के सबरीमाला स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला महिलाओं के हित में था लेकिन तब भी वो प्रवेश नहीं कर पा रही थीं. फैसले के कुछ महीने बाद दो महिलाएं मंदिर में प्रवेश पाने में सफल हुईं. इसे महिलाओं की ऐतिहासिक जीत माना जा रहा था. बिंदू और कनक दूर्गा 1 जनवरी की रात को मंदीर पहुंची और दर्शन करने में सफल रहीं. 42 वर्षीय बिंदू असिस्टेंट लेक्चरर के साथ-साथ सीपीआई (माले) की कार्यकर्ता भी हैं. जबकि मलापुरम की रहने वाली कनकदुर्गा सरकारी नौकरी में हैं और चेन्रई स्थित उस संगठन की सदस्य भी हैं, जो सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश कराने की मुहिम में लगा हुआ था.

बिंदू और कनक दुर्गा का परिवार भी मंदिर में प्रवेश के पक्ष में नहीं था

दोनों महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के बाद पुजारियों ने मंदिर बंद करवाकर मंदिर का शुद्धिकरण भी किया. मंदिर में प्रवेश करने वाली ये दोनों महिलाएं उन तमाम महिलाओं के लिए उदाहरण बनीं जो इस लड़ाई में शामिल रहीं. इनके प्रवेश के बाद लगातार मंदिर में महिलाओं के भेजकर दर्शन करवाए गए. भले ही लोग माने या न माने पर अंधविश्वास के खिलाफ इन दोनों महिलाओं ने जो साहस दिखाया वो सराहनीय है.

असली फाइटर है भारत की पहली महिला फायरफाइटर तान्या सान्याल

कुछ नया औरों से अलग करने का जज्बा ही इंसान को भीड़ में अलग पहचान दिलाता है. इस कथन को सच कर दिखाया भारत की पहली महिला फायर फाइटर तान्या सन्याल ने. पहली बार एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने किसी महिला फायर फाइटर की नियुक्ति की है.

आखिर क्यों एक महिला फायर फाइटर नहीं हो सकती?

इससे पहले इस क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व कायम था. बेशक ये काम बेहद चुनौतीपूर्ण था लेकिन अपनी मेहनत और काबीलियत के दम पर उन्होंने वो कर दिखाया जो उन्होनें चाहा.

ये महिलाएं हम में से ही हैं, लेकिन निडर होकर उन्होंने अपनी वो पहचान बनाई जो लोगों के लिए प्रेरणा है. इन्होंने क्रांति की शुरुआत की जिसने दुनिया को अहसास करवाया कि अगर ठान लो, तो कुछ भी संभव है. और ये वो भी हैं जिन्होंने समाज को महिलाओं के बारे में नई सोच के साथ सोचने पर मजबूर किया है.

कंटेंट- दीक्षा प्रियदर्शी (इंटर्न- आईचौक)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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