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जरा याद इन वीरांगनाओं को भी कर लो....

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 08 मार्च, 2019 11:29 AM
  • 08 मार्च, 2019 10:50 AM
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जितना मजबूत एक फौजी का सीना होता है उतना ही मजबूत दिल उनकी पत्नियों के भीतर धड़कता है. पिछले कुछ दिनों में देश के सामने शक्ति की वो मिसाल पेश करने वाली शहीदों की पत्नियों का जितना वंदन किया जाए, कम है.

देश की सेवा में तैनात रहने वाले जवानों का जीवन कितना लंबा होता है कोई नहीं जानता. लेकिन उनके अपनों का जीवन उनके बिना कैसा होता है वो आम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते. खासकर शहीदों की पत्नियां, जिनके ऊपर न सिर्फ परिवार को संभालने की जिम्मेदारी होती है बल्कि अपने बच्चों को अपने पिता की वीरता के किस्से सुनाने की भी. मजबूत इतनी कि शहादत पर सिर गर्व से उठा रहे, और आंखों में आंसू नहीं फख्र दिखे. उनकी मुस्कुराहटें छिन गईं. उम्र भर का गम मिला. वो देश पर मिटने वालों की पत्नियां हैं. कम तो वो भी नहीं. उन्‍होंने हार नहीं मानी है...

सेना के जवान तो अपना फर्ज निभाते हुए देश पर कुर्बान हो गए. लेकिन अपने पीछे बहुत कुछ ऐसा छोड़ गए जिन्हें देखकर देश हमेशा उनपर गर्व करेगा. और इस गर्व का आधा हिस्सा उनकी पत्नियों के नाम जो आज भी हम सबके साथ हैं. शहीदों की पत्नियों ने पिछले कुछ दिनों में देश के सामने शक्ति की मिसाल पेश की है. जिस वक्त लोग बिखर जाते हैं, ये महिलाएं उस वक्त न बिखरीं, न लड़खड़ाईं, बल्कि सशक्त खड़ी रहीं जिससे शहीद के माता-पिता को संभाल सकें. इस महिला दिवस पर हमारा इन वीरांगनाओं को नमन.

निकिता कौल- वीर विभूति मरा नहीं है, ये सबको बताऊंगी

देहरादून के मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल पुलवामा में आतंकियों के साथ होने वाले ऑपरेशन में शहीद हुए 5 जवानों में से एक थे. 10 महीने पहले ही उनकी शादी हुई थी. अंतिम विदाई के मौके पर मेजर के पास खड़े होकर जिस हिम्मत से उन्होंने अपनी बात कही वो बताता है कि एक मजबूत इंसान कैसा होता है.

पति की शहादत पर निकिता ने अपने आंसुओं को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन...

निकिता ने कहा- 'मुझे आप पर गर्व है. हम सब आपको प्यार करते हैं. मगर आपका सबको प्यार करने का ढ़ंग बिलकुल...

देश की सेवा में तैनात रहने वाले जवानों का जीवन कितना लंबा होता है कोई नहीं जानता. लेकिन उनके अपनों का जीवन उनके बिना कैसा होता है वो आम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते. खासकर शहीदों की पत्नियां, जिनके ऊपर न सिर्फ परिवार को संभालने की जिम्मेदारी होती है बल्कि अपने बच्चों को अपने पिता की वीरता के किस्से सुनाने की भी. मजबूत इतनी कि शहादत पर सिर गर्व से उठा रहे, और आंखों में आंसू नहीं फख्र दिखे. उनकी मुस्कुराहटें छिन गईं. उम्र भर का गम मिला. वो देश पर मिटने वालों की पत्नियां हैं. कम तो वो भी नहीं. उन्‍होंने हार नहीं मानी है...

सेना के जवान तो अपना फर्ज निभाते हुए देश पर कुर्बान हो गए. लेकिन अपने पीछे बहुत कुछ ऐसा छोड़ गए जिन्हें देखकर देश हमेशा उनपर गर्व करेगा. और इस गर्व का आधा हिस्सा उनकी पत्नियों के नाम जो आज भी हम सबके साथ हैं. शहीदों की पत्नियों ने पिछले कुछ दिनों में देश के सामने शक्ति की मिसाल पेश की है. जिस वक्त लोग बिखर जाते हैं, ये महिलाएं उस वक्त न बिखरीं, न लड़खड़ाईं, बल्कि सशक्त खड़ी रहीं जिससे शहीद के माता-पिता को संभाल सकें. इस महिला दिवस पर हमारा इन वीरांगनाओं को नमन.

निकिता कौल- वीर विभूति मरा नहीं है, ये सबको बताऊंगी

देहरादून के मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल पुलवामा में आतंकियों के साथ होने वाले ऑपरेशन में शहीद हुए 5 जवानों में से एक थे. 10 महीने पहले ही उनकी शादी हुई थी. अंतिम विदाई के मौके पर मेजर के पास खड़े होकर जिस हिम्मत से उन्होंने अपनी बात कही वो बताता है कि एक मजबूत इंसान कैसा होता है.

पति की शहादत पर निकिता ने अपने आंसुओं को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन...

निकिता ने कहा- 'मुझे आप पर गर्व है. हम सब आपको प्यार करते हैं. मगर आपका सबको प्यार करने का ढ़ंग बिलकुल अलग है, क्योंकि आपने उन लोगों के लिए बलिदान देने का निर्णय लिया जिनसे आप कभी मिले भी नहीं होंगे. आप बहुत बहादुर व्यक्ति हो. आपकी पत्नी होना मेरे लिए सम्मान की बात है. मैं आपको अपनी आखिरी सांस तक प्यार करूंगी. मैं अपना जीवन आप पर अर्पित करती हूं. हां, यह दुख की बात है कि आप जा रहे हैं, लेकिन मुझे पता है कि आप हमेशा आसपास ही होंगे. मैं अपने परिवार और हमसे जुड़े लोगों को टूटने नहीं दूंगी. मैं सभी को हिम्मत दूंगी और कहुंगी कि यह आदमी यहां मौजूद किसी भी व्यक्ति की तुलना में बड़ा और सम्मान लायक है. चलो इस आदमी को सलाम करते हैं. जय हिन्द.'

निकिता कौल बहुत देर तक पति के पार्थिव शरीर के सामने खड़े होकर मेजर को निहारती रहीं. फिर आखिरी बार वो तीन शब्द I love you उनके कानों में कहकर अंतिम विदाई दी.

गौरी महादिक: कंपनी सेक्रेटरी की नौकरी छोड़ी, सेना में शामिल होने चल पड़ीं 

31 साल के मेजर प्रसाद महादिक दिसंबर 2017 में अरुणाचल सीमा के चीन बॉर्डर पर शहीद हो गए थे. उनकी पत्नी गौरी महादिक भी पति को खोने से टूट सकती थीं, लेकिन उन्होंने इस दर्द को ही अपना हौसला बनाया. वैसे तो गौरी महादिक एक योग्य कंपनी सेक्रेटरी और वकील थीं लेकिन लेकिन पति की मृत्यु के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सशस्त्र बलों की तैयारी शुरू की.

गौरी महादिक सेना में भर्जी होकर देना चाहती हैं पति को श्रद्धांजलि

पति को श्रद्धांजलि देने के लिए अब वो आर्मी ज्वाइन करना चाहती हैं. वो अपने पति की वर्दी और उनके स्टार पहनना चाहती हैं. गौरी चेन्नई में ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी (ओटीए) में प्रशिक्षण के बाद बतौर लेफ्टिनेंट के रूप में अगले साल सेना में शामिल हो जाएंगी. गौरी महादिक को वॉर विडोज के लिए गैर-तकनीकी श्रेणी में लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया जाएगा.

प्रियंका: ढाई साल के बेटे को सेना में भेेेेजने का प्रण 

पुलवामा एनकाउंटर में शहीद हुए मेरठ के अजय कुमार की पत्नी प्रियंका पति की शहादत पर बुरी तरह टूट गई थीं. अजय के एक ढाई साल के बेटा है और प्रियंका 5 महीने की गर्भवती. वो उम्मीद कर रही थीं कि बच्चे के जन्म तक अजय वापस आ जाएंगे. लेकिन वो हमेशा के लिए चले गए. पति के बिना पूरा जीवन और अपने बच्चों का भविष्य प्रियंका की चिंताएं बढ़ा रहा था, लेकिन फिर भी प्रियंका ने बड़ी मजबूती से कहा कि अब तो अजय के सपने को पूरा करना ही उनका मकसद है.

बच्चों को भी सेना में भेजना चाहती है शहीद अजय की पत्नी

अजय कहा करते थे कि बेटे को अपनी तरह सिपाही नहीं बनाऊंगा, बल्कि बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाकर सेना में अफसर बनाऊंगा. प्रियंका अब बेटे को बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाकर उसे भी सेना में भर्ती करने का दम रखती हैं. सेना में रहते हुए जिस महिला ने अपने पति को खो दिया वो अपने बेटे को भी सेना में ही भेजना चाहती है. वो एक आम महिला होती तो शायद ऐसा कभी नहीं कर पाती.

गट्टू देवी: शहादत के बाद 57 साल से सुहागन हैं 

1962 के भारत-चीन युद्ध में जोधपुर के भीकाराम ताडा शहीद हो गए थे. लेकिन उनकी पत्नी गट्टू देवी ने अपने पति को कभी शहीद नहीं माना. पति को जिंदा मानते हुए गट्टू देवी 57 सालों तक सुहागन बनी रहीं. वो इसलिए कि शहीद मरते नहीं, अमर रहते हैं और दूसरी वजह ये भी थी कि उस वक्त शहीद हुए भीकाराम की पार्थिव देह घर तक नहीं पहुंची थी. न पत्नी ने देह देखी और न ही उन्हें शहीद माना. उन्होंने अपना सुहाग उतारने से मना कर दिया ये कहते हुए कि मेरे पति जिंदा हैं और एक दिन जरूर आएंगे.

57 सालों तक शहीद की सुहागन बनी रहीं गट्टू देवी

लेकिन 57 साल लंबे इंतजार के बाद 75 साल की हो चुकीं गट्टू देवी ने अपने पति का शहीद होना स्वीकारा. उन्होंने 27 फरवरी 2019 को अपने सुहाग के प्रतीक त्याग दिए और शहीद पति की मूर्ति का अनावरण भी किया. लेकिन शहीद की सुहागन बनकर गट्टू देवी ने अपने दोनों बेटों को इस लायक बनाया कि वो पिता की ही तरह देश की सेवा कर सकें. आज उका एक बेटा आर्मी में और दूसरा नेवी में है. पोता भी सेना में देश सेवा कर रहा है.

ये तो चंद उदाहरण हैं जो शहीदों की पत्नियों के जज्बे को दिखाते हैं, जो साबित करते हैं कि जितना मजबूत एक फौजी का सीना होता है उतना ही मजबूत दिल उनकी पत्नियों के भीतर धड़कता है. अगर फौजी मैदान की चुनौतियां से लड़ता है तो उनकी पत्नियां पति के बिना अकेले दम पर वो सब कुछ करती हैं जिसे सामान्य घरों में पति-पत्नी आधा-आधा बांट लेते है. और अगर पति शहीद हो जाए तो...फिर भी चुनौतियां कम नहीं होतीं. वो जान लगा देती हैं अपने ही बच्चों को फिर उसी मैदान में भेजने के लिए जिसकी मिट्टी में उनके पतियों ने अपना खून बहाया था. ये करना किसी भी मां के लिए बहुत मुश्किल होता है. लेकिन इसे केवल वही कर पाती है जो एक शहीद की पत्नी कहलाती है.

ऐसी वीरांगनाओं को देश सलाम करता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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