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जब पेड़ बन जाएं कैनवस, तो किस्मत बदलेगी शहरों की

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 15 अप्रिल, 2016 04:56 PM
  • 15 अप्रिल, 2016 04:56 PM
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मुंबई की कुछ महिलाएं सूख चुके पेड़ों पर पेंटिंग करके कुछ बताना चाहती हैं. कहने को 'रास्ता छाप' हैं लेकिन छाप हमारे दिलों पर छोड़ रही हैं.

हर किसी को पेड़ों की अहमियत पता होती है, लेकिन पेड़ कोई नहीं लगाता. खासकर बड़े शहरों में तो पेड़ दूर-दूर तक नजर नहीं आते. और जो हैं उनके रख रखाव के लिए भला कोई परेशानी क्यों मोल ले? लेकिन नहीं, ऐसे बहुत से लोग मौजूद हैं, जिनके काम हमें कहीं न कहीं इंस्पायर कर देते हैं. हम उनसे सीखते हैं और अच्छी सोच आगे बढ़ती जाती है.

जूहू में आस पड़ोस में रहने वाली ये सारी महिलाएं अब एकजुट हैं

यहां इंस्पिरेशन दे रही हैं मुंबई के जूहू की कुछ महिलाएं. ये बहुत खास नहीं, बल्कि हम जैसी ही हैं. प्रकृति से प्यार करने वाली इन महिलाओं के लिए एक-एक पेड़ कीमती है, भले ही पेड़ सूखा ही क्यूं न हो.

 पेड़ों पर छोड़ती हैं कला की छाप

2015 में बने महिलाओं के इस ग्रुप का नाम है 'रास्ता छाप'. जैसा नाम, वैसा ही इनका काम भी है. 'रास्ता छाप' अपने क्षेत्र में पेड़ों के संरक्षण और रोपण का काम करता है और जो पेड़ सूख गए हैं उनका मेकओवर, यानी सूखे पेड़ों को बेहद आकर्षक तरीके से रंग देता है. इसके लिए बकायदा इजाज़त ली जाती है.

हर किसी को पेड़ों की अहमियत पता होती है, लेकिन पेड़ कोई नहीं लगाता. खासकर बड़े शहरों में तो पेड़ दूर-दूर तक नजर नहीं आते. और जो हैं उनके रख रखाव के लिए भला कोई परेशानी क्यों मोल ले? लेकिन नहीं, ऐसे बहुत से लोग मौजूद हैं, जिनके काम हमें कहीं न कहीं इंस्पायर कर देते हैं. हम उनसे सीखते हैं और अच्छी सोच आगे बढ़ती जाती है.

जूहू में आस पड़ोस में रहने वाली ये सारी महिलाएं अब एकजुट हैं

यहां इंस्पिरेशन दे रही हैं मुंबई के जूहू की कुछ महिलाएं. ये बहुत खास नहीं, बल्कि हम जैसी ही हैं. प्रकृति से प्यार करने वाली इन महिलाओं के लिए एक-एक पेड़ कीमती है, भले ही पेड़ सूखा ही क्यूं न हो.

 पेड़ों पर छोड़ती हैं कला की छाप

2015 में बने महिलाओं के इस ग्रुप का नाम है 'रास्ता छाप'. जैसा नाम, वैसा ही इनका काम भी है. 'रास्ता छाप' अपने क्षेत्र में पेड़ों के संरक्षण और रोपण का काम करता है और जो पेड़ सूख गए हैं उनका मेकओवर, यानी सूखे पेड़ों को बेहद आकर्षक तरीके से रंग देता है. इसके लिए बकायदा इजाज़त ली जाती है.

 
बच्चों को भी खूब भाता है पेंट करना

इनका कहना है कि 'हर रंगा हुआ सूखा पेड़ याद दिलाता है कि हमारे शहर ने छांव और ऑक्सीजन देने वाला एक पेड़ खो दिया, जो कि एक बड़ा नुक्सान है.' 

 
 
 ये दोनों मां-बेटी एक साथ 'रास्ता छाप' के साथ काम कर रही हैं

पेड़ों पर की गई ये चित्रकारी सिर्फ रास्तों की खूबसूरती नहीं बढ़ाती बल्कि एक सूखे पेड़ की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करती है, और वही इस पहल का असली मकसद भी है. 

ये भी पढ़ें- जापानी और भारतीय चित्रकारों ने देखिए बिहार के स्कूल का क्या किया..

पेड़ को कैनवस मानकर मन के सारे भाव उड़ेल देती हैं

इस टीम के 14 लोगों में से एक नाम ट्विंकल खन्ना का भी है. ट्विंकल खन्ना को ये प्रयास इतना अच्छा लगा कि वो खुद भी पेड़ों को रंगने में जुट गईं.

 ट्विंकल खन्ना भी अब इस टीम का हिस्सा हैं
पेड़ लगा रही हैं ट्विंकल

'रास्ता छाप' का काम सिर्फ पेड़ रंगना ही नहीं है बल्कि जब ये महिलाएं एक साथ निकलती हैं तो इलाके के सारे पेड़ों को पानी देती हैं, नए पौधे लगाती हैं और उन्हें पोषित भी करती हैं. पेड़ों को पोषण देने के लिए ये टीम छास का इस्तेमाल करती है.

ये भी पढ़ें- भारतीय नारी की ये तस्वीरें क्या पचा पाएगा हमारा समाज?

 ये छास है जिसे ये महिलाएं पहले से तैयार करके रखती हैं, फिर पेड़ों की जड़ों में इसे डाला जाता है, कहा जाता है कि इससे पेड़ जल्दी बढ़ते हैं
पेंड़ों पर अपने हाथ से बने ये संदेश भी लगाए जाते हैं, जिससे बाकी लोग पेड़ों को पानी देने के लिए प्रेरित हों

इतना ही नहीं, 'रास्ता छाप' लोगों से अपील भी करता है कि वो आगे आएं और शुरुआत एक पेड़ को गोद लेकर करें, और उस पेड़ की जिम्मेदारी उठाएं.

 
 
 अलग अलग रंगों और डिजाइनों में रंगे ये पेड़ सबका ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं

यहां एक सोच ने बहुतों को प्रेरित किया, एक ग्रुप बनाया गया और ये ग्रुप अब तैयार है शहर बदलने को. ये महिलाएं हम जैसी ही हैं..लेकिन परिवार के साथ साथ पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी समझती हैं. और इसीलिए हर रस्ते पर अपनी छाप छोड़ रही हैं. इनका काम देखकर कहना गलत नहीं होगा कि मुंबई की किस्मत जल्द बदलेगी. और इनकी छोड़ी हुई छाप बाकी शहरों में भी बदलाव लाएगी.. ब्रावो गर्ल्स !!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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