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मछली जल की रानी है लेकिन ये तो करंट का पानी है!

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 03 अगस्त, 2019 06:33 PM
  • 03 अगस्त, 2019 06:33 PM
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पानी में से सैकड़ों मछलियों के उछलकर बाहर आने वाला वीडियो वायरल तो हो गया, लेकिन इंसान के अमानवीय व्यवहार का सच सामने ले आया. जिस तकनीक का इस्तेमाल मछलियों को बचाने के लिए था वही उनकी जान ले रहा है.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो देखा जिसमें अचानक पानी में से सैकड़ों मछलियां उछलकर बाहर आती दिख रही हैं. एक नजर देखते ही ये नजारा बहुत रोमांचक लगता है और दिल कहता है वाह!! लेकिन वीडियो के खत्म होते तक सारा रोमांच खो गया. और दिल में गुस्सा भर गया.

मछलियों का पानी से उछलकर बाहर आना नॉर्मल नहीं होता. डॉल्फिन को जरूर आपने पानी के बाहर उछलते देखा होगा लेकिन छोटी मछलियां ऐसा नहीं करतीं. लेकिन ये मछलियां बाहर इसलिए कूदीं क्योंकि इन्हें पानी में करंट दिया जा रहा है. यानी electric shock. मछलियों को जैसे ही शॉक लगता है वो उछलकर पानी की सतह पर आ जाती हैं. जिससे उन्हें बहुत आसानी से पकड़ा जा सकता है. ये वीडियो असमान्य तो था क्योंकि इस तरह की फिशिंग अमूमन नहीं का जाती है.

इस वीडियों में फिशिंग करने का जो तरीका दिखाई दे रहा है वो अमानवीय लगता है. क्योंकि मछली को करेंट लगाया जा रहा है. लेकिन वीडियो में पानी के ऊपर आईं ये मछलियां मरी हुई नहीं हैं. शॉक लगने के बाद ये कुछ समय के लिए अचेत हो जाती हैं, लेकिन मरती नहीं हैं. वो इसलिए क्योंकि इन्हें उतना ही करंट दिया जाता है जिससे ये बेहोश हो सकें, मरें नहीं. इसे electrofishing कहा जाता है, इस तकनीक का इस्तेमाल सामान्य मछली पकड़ने के लिए नहीं किया जाता बल्कि मछलियों के संरक्षण के लिए होता है.

अमेरिका के केंटकी राज्य के मछली और वन्यजीव संसाधन विभाग ने ये वीडियो शेयर किया था. जिसमें उन्होंने electrofishing तकनीक का इस्तेमाल वहां पाई जाने वाली मछलियों की एक आक्रामक प्रजाति एशियाई कार्प पर किया. एशियाई कार्प की आबादी के बारे में जानना काफी मुश्किल है क्योंकि पानी के भीतर मछली को देखना असंभव होता है. इसलिए डिपार्टमेंट ने इलेक्ट्रोफिशिंग का फैसला किया.

ये मछलियां कुछ ही सेकंड्स के लिए इस अवस्था में रहती हैं और इतने वक्त में इन्हें जाल से निकालकर दूसरी जगह इकट्ठा कर लिया जाता है. ऐसा करने के बाद विशेषज्ञ इनपर काम करते हैं और अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां इन आक्रामक प्रजाति की आबादी...

सोशल मीडिया पर एक वीडियो देखा जिसमें अचानक पानी में से सैकड़ों मछलियां उछलकर बाहर आती दिख रही हैं. एक नजर देखते ही ये नजारा बहुत रोमांचक लगता है और दिल कहता है वाह!! लेकिन वीडियो के खत्म होते तक सारा रोमांच खो गया. और दिल में गुस्सा भर गया.

मछलियों का पानी से उछलकर बाहर आना नॉर्मल नहीं होता. डॉल्फिन को जरूर आपने पानी के बाहर उछलते देखा होगा लेकिन छोटी मछलियां ऐसा नहीं करतीं. लेकिन ये मछलियां बाहर इसलिए कूदीं क्योंकि इन्हें पानी में करंट दिया जा रहा है. यानी electric shock. मछलियों को जैसे ही शॉक लगता है वो उछलकर पानी की सतह पर आ जाती हैं. जिससे उन्हें बहुत आसानी से पकड़ा जा सकता है. ये वीडियो असमान्य तो था क्योंकि इस तरह की फिशिंग अमूमन नहीं का जाती है.

इस वीडियों में फिशिंग करने का जो तरीका दिखाई दे रहा है वो अमानवीय लगता है. क्योंकि मछली को करेंट लगाया जा रहा है. लेकिन वीडियो में पानी के ऊपर आईं ये मछलियां मरी हुई नहीं हैं. शॉक लगने के बाद ये कुछ समय के लिए अचेत हो जाती हैं, लेकिन मरती नहीं हैं. वो इसलिए क्योंकि इन्हें उतना ही करंट दिया जाता है जिससे ये बेहोश हो सकें, मरें नहीं. इसे electrofishing कहा जाता है, इस तकनीक का इस्तेमाल सामान्य मछली पकड़ने के लिए नहीं किया जाता बल्कि मछलियों के संरक्षण के लिए होता है.

अमेरिका के केंटकी राज्य के मछली और वन्यजीव संसाधन विभाग ने ये वीडियो शेयर किया था. जिसमें उन्होंने electrofishing तकनीक का इस्तेमाल वहां पाई जाने वाली मछलियों की एक आक्रामक प्रजाति एशियाई कार्प पर किया. एशियाई कार्प की आबादी के बारे में जानना काफी मुश्किल है क्योंकि पानी के भीतर मछली को देखना असंभव होता है. इसलिए डिपार्टमेंट ने इलेक्ट्रोफिशिंग का फैसला किया.

ये मछलियां कुछ ही सेकंड्स के लिए इस अवस्था में रहती हैं और इतने वक्त में इन्हें जाल से निकालकर दूसरी जगह इकट्ठा कर लिया जाता है. ऐसा करने के बाद विशेषज्ञ इनपर काम करते हैं और अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां इन आक्रामक प्रजाति की आबादी कितनी होगी. यानी इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ शोध, सर्वे फिश टैगिंग के लिए किया जाता है और तुरंत ही उन्हें उनकी अपनी जगह पर बिना नुक्सान पहुंचाए छोड़ दिया जाता है. मछली पालन विभागों के लिए इलेक्ट्रोफिशिंग सामान्य प्रक्रीया है.

इस तरीके से मछलियों को नुक्सान नहीं पहुंचाया जाता

एशियाई कार्प मछलियों की वो प्रजाति है जो बहुत तेजी से अपनी संख्या बढ़ाती है. इनका ज्यादा होना भी बाकी मछलियों के लिए अच्छा हीं होता. क्योंकि ज्यादा संख्या में होने की वजह से ये जितना खाती हैं उससे ईकोसिस्टम यानी पारिस्थितिकी तंत्र में बाकी मछलियों के भोजन की कमी हो जाती है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि इन्हें सिर्फ शोध के लिए रखा जाता है, इन्हें पाला जाता है और बाहर बेचा भी जाता है. फिरभी इनपर निगाह रखना जरूरी है.

बहरहाल वीडियो में मछली पकड़ने का जो तरीका अमानवीय लग रहा था वे असल में मछलियों को नुक्सान पहुंचाने वाला नहीं था. इसलिए electrofishing तकनीक सिर्फ वहीं लोग इस्तेमाल कर सकते हैं जिनके पास इसका लाइसेंस हो. विदोशों में तो ये है ही भारत में भी ये तरीका मछलियों के अध्ययन आदि के लिए उपयोग में लाया जाता है. लेकिन जिस तरीके से मछलियां आसानी से जाल में फंसने के लिए खुद ब खुद पानी की सतह पर आ जाती हों वो तरीका भला मछुआरों की पकड़ से कैसे दूर रह सकता था.

आज जहां जहां मछलियां पाई जाती हैं ये तरीका भी पाया जाता है

लोग अब ज्यादा मछलियां पकड़ने के लिए इस तरीके को अपना रहे हैं. कौन जाल और कांटा डालकर इंतजार करे. उन्हें बस ये समझ आता है कि बिजली का करंट लगाकर मछली ऊपर आ जाती है. बस मछली पकड़ने वालों ने भी जुगाड़ लगाया और कार की बैटरी आदि से छड़ें बना लीं जो जिसके जरिए वो पानी में करंट देकर मछली पकड़ सकें. बैटरी को बैग में रखकर पीठ पर टांग लिया जाता है. लेकिन ऐसा करने वाले ये नहीं जानते कि मछलियों के लिए कितने करंट की जरूरत होती है. ज्यादा करंट से मछलियां मर जाती हैं. कभी कभी तो शिकारी खुद ही शिकार हो गए. लेकिन ये अनोखा तरीका चल निकला. फर्क सिर्फ इतना है कि इस तरीके से मछली पानी के बाहर तो आईं लेकिन वापस अंदर नहीं जा पाईं. अमानवीय व्यवहार तो इसे कहा जाएगा. और भारत में लोग इसी तरह मछली पकड़ने को एडवेंचर का नाम दे रहे हैं.

हालांकि मछलियों का किसी न किसी का भोजन बनना तो नियति है. वो पानी से बाहर आकर मरेंगी और उन्हें पकड़कर खाया ही जाएगा ये भी तय है. लेकिन उन्हें पकड़ने का तरीका कैसा है वो दिखाता है कि आप के अंदर इंसानियत कितनी है. और अफसोस ये अमानवीय है. इसे फिशिंग नहीं क्रूरता ही कहा जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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