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जिंदा रहते हुए भी दूसरी महिला को दे दिया जाता है ‘मां’ होने का अधिकार!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 21 जनवरी, 2021 07:02 PM
  • 21 जनवरी, 2021 06:15 PM
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चारों तरफ रोशनी जगमगा रही है. बैकग्राउंड में संगीत की धुनें सुनाई दे रही हैं. आस-पास लोगों की चहलकदमी हो रही है. दोनों तरफ खाने के स्टॉल लगे हैं. इन सबसे दूर एक कोने में खड़ी कमला आंटी चुपचाप सामने स्टेज की तरफ देख रही हैं. जहां उनकी बेटी राधिका जयमाल होने के बाद अपने दूल्हे के बगल वाली कुर्सी पर बैठी है.

चारों तरफ रोशनी जगमगा रही है. बैकग्राउंड में संगीत की धुनें सुनाई दे रही हैं. आस-पास लोगों की चहलकदमी हो रही है. दोनों तरफ खाने के स्टॉल लगे हैं. इन सबसे दूर एक कोने में खड़ी कमला आंटी चुपचाप सामने स्टेज की तरफ देख रही हैं. जहां उनकी बेटी राधिका जयमाल होने के बाद अपने दूल्हे के बगल वाली कुर्सी पर बैठी है.

मैंने पूछा आंटी कॉफी लेंगी तब उन्होंने बिना मेरी देखे ही बोला हां. सर्दी के सीजन में शादी हो रही थी. इसलिए आंटी ने कॉफी के साथ-साथ वो सभी इंतजाम करवाए थे जिससे लोग कहें कि, शादी के इंतजाम में कोई कमी नहीं हैं. 

जब मैं कॉफी लेकर आई तो देखा उनकी आंखें भर आईं थीं. शायद वो खुशी के आंसू थे कि बेटी की शादी हो रही है. सभी लोग इस बात की चर्चा कर रहे थे कि भाई साहब के ना होते हुए भी कमला जी ने बेटी के लिए अच्छा परिवार खोज लिया और अब इतने धूम-धाम से शादी करवा रही हैं.

विधवा मां कन्या दान क्यों नहीं कर सकती

दरअसल,12 साल पहले हार्टअटैक की वजह से कमला आंटी के पति अजीत जी का निधन हो गया था. उसके बाद से कमला आंटी ने ना सिर्फ उनका बिजनेस संभाला बल्कि अपनी चार बेटियों और एक बेटे के पिता होने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई.

जयमाल होने के बाद शादी की रस्में शुरू हुईं. सभी महिलाएं एक-एक करके दुल्हन के पास बैठ गईं. मैंने देखा कि कमला आंटी इस समय भी कुछ दूरी पर ही बैठी हुईं थीं. इसके बाद एक-एक करके सभी रस्मों के बाद कन्यादान का भी समय आया. पास में बैठी महिलाएं आपस में धीरे-धीरे बातें करनी लगीं. आंटी ने कन्यादान भी नहीं किया. मैंने देखा कि दुल्हन की तरफ से किए जाने वाले सभी रस्मों को चाचा-चाची ने ही पूरा किया.

मैं जानती हूं कि, राधिका की शादी के लिए आंटी ने कितने जतन किए हैं. राधिका को पसंद...

चारों तरफ रोशनी जगमगा रही है. बैकग्राउंड में संगीत की धुनें सुनाई दे रही हैं. आस-पास लोगों की चहलकदमी हो रही है. दोनों तरफ खाने के स्टॉल लगे हैं. इन सबसे दूर एक कोने में खड़ी कमला आंटी चुपचाप सामने स्टेज की तरफ देख रही हैं. जहां उनकी बेटी राधिका जयमाल होने के बाद अपने दूल्हे के बगल वाली कुर्सी पर बैठी है.

मैंने पूछा आंटी कॉफी लेंगी तब उन्होंने बिना मेरी देखे ही बोला हां. सर्दी के सीजन में शादी हो रही थी. इसलिए आंटी ने कॉफी के साथ-साथ वो सभी इंतजाम करवाए थे जिससे लोग कहें कि, शादी के इंतजाम में कोई कमी नहीं हैं. 

जब मैं कॉफी लेकर आई तो देखा उनकी आंखें भर आईं थीं. शायद वो खुशी के आंसू थे कि बेटी की शादी हो रही है. सभी लोग इस बात की चर्चा कर रहे थे कि भाई साहब के ना होते हुए भी कमला जी ने बेटी के लिए अच्छा परिवार खोज लिया और अब इतने धूम-धाम से शादी करवा रही हैं.

विधवा मां कन्या दान क्यों नहीं कर सकती

दरअसल,12 साल पहले हार्टअटैक की वजह से कमला आंटी के पति अजीत जी का निधन हो गया था. उसके बाद से कमला आंटी ने ना सिर्फ उनका बिजनेस संभाला बल्कि अपनी चार बेटियों और एक बेटे के पिता होने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई.

जयमाल होने के बाद शादी की रस्में शुरू हुईं. सभी महिलाएं एक-एक करके दुल्हन के पास बैठ गईं. मैंने देखा कि कमला आंटी इस समय भी कुछ दूरी पर ही बैठी हुईं थीं. इसके बाद एक-एक करके सभी रस्मों के बाद कन्यादान का भी समय आया. पास में बैठी महिलाएं आपस में धीरे-धीरे बातें करनी लगीं. आंटी ने कन्यादान भी नहीं किया. मैंने देखा कि दुल्हन की तरफ से किए जाने वाले सभी रस्मों को चाचा-चाची ने ही पूरा किया.

मैं जानती हूं कि, राधिका की शादी के लिए आंटी ने कितने जतन किए हैं. राधिका को पसंद करने के बाद ही लड़के वाले जल्दी शादी करने का दबाव बनाने लगे. बड़ी मुश्किल से आंटी को तीन महीने का वक्त मिला था. आंटी ने दिन-रात एक करके शादी की सारी तैयारियां खुद ही पूरी की थी. चाहे वह राधिका के पसंद का लहंगा हो या शादी के लिए ग्राउंड. 

ऐसा भी नहीं है कि अंकल के गुजर जाने के बाद वह सफेद साड़ी पहनती हैं, लेकिन लाल रंग भी तो नहीं पहनती हैं. साड़ियों का रंग सफेद न होकर थोड़ा बदल गया. जैसे गुलाबी, नीला और हल्के रंग जो शायद सुहाग के दायरे में नहीं आते. ये सब देखकर इतना तो समझ में आ गया कि, साड़ियों का रंग भले ही बदला हो लेकिन रिवाज आज भी वही है. 

बस कुछ लोग खुद को मॉडर्न दिखाते हैं कि विधवाओं को लेकर उनकी सोच बड़ी है, वे भेद-भाव नहीं करते. ऐसा करके वे खुद को बड़े उदार दिलवाला समझते हैं. उनका मानना है कि वे तो विधवाओं को सामान्य जीवन जीने और घर में रहने का अधिकार देते हैं. जैसे विधवा की जिंदगी पर उसका नहीं इन लोगों का हक है. जब बात सच में हक देने की आती है तो ऐसे लोग तुरंत अपना दोहरा चेहरा दिखा देते हैं. ये कहते हुए कि माफ करना हम इन मामलों में कोई समझौता नहीं कर सकते.

खैर, सबको लगेगा कि विधवाओं को शुभ कार्यों से दूर रखना तो पुरानी बात हो गई है. सभी को पता है कि ऐसा क्यों किया जाता है. सवाल यह है कि, ऐसे रिवाज़ खत्म क्यों नहीं होते. एक मां से ज्यादा उसकी बेटी का भला कौन चाह सकता है. वह पहले मेहनत करके बेटी को पढ़ाती है फिर उसकी शादी के सपने देखती है. शादी की पूरी तैयारियां भी करती है लेकिन वह कन्यादान नहीं कर सकती क्योंकि वह विधवा है.

जब किसी पुरूष की पत्नी गुजर जाती है तो वह विधुर हो जाता है फिर उसके साथ इस तरह का भेदभाव क्यों नहीं किया जाता. किसी शुभ अवसर पर उसके होने से अपशगुन क्यों नहीं होता. कमला आंटी ने इसलिए हल्दी और शगुन वाले दिन भी कोई रस्म पूरी नहीं की. उनका चेहरा एकदम शांत था. जैसे उन्हें इस बात से परेशानी भी नहीं थी. जो बाकी महिलाएं बोल रही थीं वो बस चुपचाप किए जा रही थीं. एक गिल्ट सा महसूस हो रहा था शायद उन्हें अपने विधवा होने का. जो शायद पहले कभी नहीं हुआ था, क्योंकि पति के गुजर जाने के बाद बड़ी हिम्मत से उन्होंने अपनी और बच्चों की दुनिया बनाई थी. समाज ने इन रस्मों के नाम पर इतना डर फैलाया है कि कोई चाहकर भी इसके खिलाफ नहीं जाता या कोशिश भी नहीं करता.

विधवा मां शायद यही सोचती रहती है कि, कहीं मेरी वजह से मेरी बेटी को सुहाग न उजड़ जाए. इस मामले में पहला दखल महिलाएं की करती हैं. उन्हें इन सारी रस्मों की खूब जानकारी होती है. उन्हें लगता है बस वे जो सोच रही हैं बिल्कुल सही है. किसी के बेटे की शादी होने वाली होती है तो महिलाएं पहले ही घर के पुरूषों को बोल देती हैं, देखिएगा वहां लड़की के घर में कुछ ऐसा-वैसा अपशगुन न हो. यह हमारे घर के बेटे की जिंदगी का सवाल है.

अब कमला आंटी की दूसरी बेटी की शादी होने वाली है. जिसकी तैयारी में वे अभी से जुट गईं हैं. इस बार भी कोई आर्थिक मदद तो नहीं करेगा लेकिन होगा वही जो राधिका की शादी में हुआ है. अपनापन सिर्फ रस्मों को निभाने में दिखाया जाएगा. हो सकता है बड़े शहरों में शायद कुछ परिवर्तन आ गया हो, लेकिन गांवों- कस्बों और छोटे शहरों के पढ़े-लिखे घरों में आज भी अपशगुन जैसी बातें लोगों के उपर हावी हैं. आखिर ये कब खत्म होंगा...क्या कमला जैसी माएं बस फर्ज ही निभाती रहेंगी मां होने का अधिकार नहीं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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