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सेल्फी लेना सेहत के लिए क्यों अच्छा है

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 21 जून, 2018 04:16 PM
  • 21 जून, 2018 04:16 PM
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सेल्फी लेना यानी खुद पर मोहित और ये मोहित होना अगर लत बन जाए तो मनोविज्ञानिक इसे एक मेंटल डिसऑर्डर भी कहते हैं. लेकिन सेल्फी की दीवानगी ऐसी कि इन बातों की ऐसी-तैसी. बता दीजिए सबको कि सेल्फी लेना स्वास्थ्य के लिए अच्छा क्यों है.

आज सेल्फी डे है. भले ही ये अमेरिका में मन रहा हो, लेकिन मनाया तो पूरी दुनिया में जाता है. और रोज मनाया जाता है. इसलिए आज तो इसपर बात होनी ही चाहिए.

सेल्फी लेना यानी खुद पर मोहित होना...नारसिज्म. और ये मोहित होना अगर लत बन जाए तो मनोविज्ञानिक इसे एक मेंटल डिसऑर्डर भी कहते हैं. लेकिन सेल्फी की दीवानगी ऐसी कि इन बातों की ऐसी-तैसी.

सेल्फी लेना सेहत के लिए अच्छा है

'यकीन मानो बड़ी खुशी होती है सेल्फी लेकर. खुद को देखकर. चेहरे की एक-एक बनावट को इतने गौर से तो हम शीशे में भी नहीं देखते जितना सेल्फी में गौर कर लेते हैं. और पहली बार भला कौन सी सेल्फी अच्छी आई है. फिर जरा गर्दन टेढ़ी कर, मोबाइल थोड़ा ऊपर कर जब डबल चिन छुप जाती है, उसपर तो कसम से प्यार आ जाता है. फिर उसे सजाना, फोटो एडिटर से संवारना, फिल्टर लगाना, और फिर उसे सोशल मीडिया पर डालना... इतना ही नहीं... फिर इंतजार करना लाइक्स और कमेंट्स का. और तब जाकर मुकम्मल होती है एक अदद सेल्फी की जिंदगी. अब अगर मनोवैज्ञानिकों की मेंटल डिसऑडर वाली बात मानकर ये भी न करें तो जीवन में क्या रह जाएगा.'

जी हां, यही है सेल्फी की कहानी, जो आजकल घर-घर की कहानी है. और इसे लेकर लोगों का एटिट्यूड भी ऐसा ही है. बहुत ही कम लोग होते हैं जिन्हें खुद पर प्यार नहीं आता यानी जो सेल्फी नहीं लेते. पर ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके लिए सेल्फी लेना रोजाना खाना खाने जैसा जरूरी हो गया है, जिसके बिना वो रह नहीं सकते.

हम अबतक सेल्फी से होने वाले नुकसानों के बारे में बात करते और सुनते आए हैं, कि ये एक तरह की बीमारी है, मानसिक बीमारी. लेकिन देखा जाए...

आज सेल्फी डे है. भले ही ये अमेरिका में मन रहा हो, लेकिन मनाया तो पूरी दुनिया में जाता है. और रोज मनाया जाता है. इसलिए आज तो इसपर बात होनी ही चाहिए.

सेल्फी लेना यानी खुद पर मोहित होना...नारसिज्म. और ये मोहित होना अगर लत बन जाए तो मनोविज्ञानिक इसे एक मेंटल डिसऑर्डर भी कहते हैं. लेकिन सेल्फी की दीवानगी ऐसी कि इन बातों की ऐसी-तैसी.

सेल्फी लेना सेहत के लिए अच्छा है

'यकीन मानो बड़ी खुशी होती है सेल्फी लेकर. खुद को देखकर. चेहरे की एक-एक बनावट को इतने गौर से तो हम शीशे में भी नहीं देखते जितना सेल्फी में गौर कर लेते हैं. और पहली बार भला कौन सी सेल्फी अच्छी आई है. फिर जरा गर्दन टेढ़ी कर, मोबाइल थोड़ा ऊपर कर जब डबल चिन छुप जाती है, उसपर तो कसम से प्यार आ जाता है. फिर उसे सजाना, फोटो एडिटर से संवारना, फिल्टर लगाना, और फिर उसे सोशल मीडिया पर डालना... इतना ही नहीं... फिर इंतजार करना लाइक्स और कमेंट्स का. और तब जाकर मुकम्मल होती है एक अदद सेल्फी की जिंदगी. अब अगर मनोवैज्ञानिकों की मेंटल डिसऑडर वाली बात मानकर ये भी न करें तो जीवन में क्या रह जाएगा.'

जी हां, यही है सेल्फी की कहानी, जो आजकल घर-घर की कहानी है. और इसे लेकर लोगों का एटिट्यूड भी ऐसा ही है. बहुत ही कम लोग होते हैं जिन्हें खुद पर प्यार नहीं आता यानी जो सेल्फी नहीं लेते. पर ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके लिए सेल्फी लेना रोजाना खाना खाने जैसा जरूरी हो गया है, जिसके बिना वो रह नहीं सकते.

हम अबतक सेल्फी से होने वाले नुकसानों के बारे में बात करते और सुनते आए हैं, कि ये एक तरह की बीमारी है, मानसिक बीमारी. लेकिन देखा जाए तो सेल्फी लेने में बीमारी जैसा कुछ भी नजर नहीं आता. कम से कम सेल्फी लेने वालों को तो नहीं.

आपने सेल्फी लेने की पूरी प्रक्रीया ऊपर पढ़ी. इस पूरी प्रक्रीया में कई बातें गौर करने वाली हैं-

* सेल्फी वो चीज है जो बिना किसी खर्चे के लोगों को खुशी देती है. और इसीलिए वो इसके आदी भी हैं.

* जितना वक्त हम सेल्फी लेने, उसे सजाने और उसे सोशल मीडिया पर डालने में खर्च करते हैं, कम से कम उतने वक्त हमारे दिमाग में कोई और चीज नहीं होती. उस वक्त हम अपनी परेशानियां भूल गए होते हैं, यानी तनाव मुक्त रहते हैं.

* सेल्फी कोई अच्छा दिखने के लिए ही लेता है, इसलिए सेल्फी के लिए आप अपना ख्याल रखने लगते हैं. अपने बालों का, चेहरे का, अपने कपड़ों का.. हर चीज का जो सेल्फी में दिखाई देती है. सेल्फी आपको खुद के लिए सोचने का भी वक्त देती है.

* जब सेल्फी पर लाइक्स और अच्छे कमेंट्स आते हैं तो आपकी खुशी शब्दों में बयां करने वाली नहीं होती. आपका आत्मविश्वास दुगना हो जाता है. और अगर सेल्फी को सोशल मीडिया पर न भी डालें तो भी खुद को अच्छा देखकर आप अंदर से खुश होते हैं.

* सेल्फी अगर सोशल मीडिया पर डाली जाती है तो आप खुद को अकेला महसूस नहीं करते. आप लोगों से जुड़े रहते हैं. और ये अकेलापन दूर करने का भी एक अच्छा माध्यम है.

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हाल ही में इंग्‍लैंड में एक शोध किया गया जिसमें कहा गया है कि- रोजाना एक फोटो लेने और उसे सोशल मीडिया पर डालना आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. यहां शोधकर्ताओं ने सेल्फी पर ही फोकस किया था, लेकिन उनका कहना था कि ऐसा किसी भी फोटो के साथ है. शोध में उन्होंने पाया कि 'जब आप कोई काम छोड़कर फोटो लेते हैं तो यह आपको प्रेरित करता है, आपको तेज बनाता है और अपने दोस्तों के साथ जोड़े रखता है. इससे आप कम अकेला महसूस करते हैं.'

Psychology of Well-Being में प्रकाशित हुई एक स्टडी में ये कहा गया कि 'सेल्फी आपके मूड को बूस्ट देती है'. कैलीफोर्निया के शोधकर्ताओं ने कॉलेज के छात्रों के साथ काम किया, ये पता करने के लिए कि दिन भर में किस तरह की तस्वीरें लोगों के मूड़ पर प्रभाव डालती हैं. इसके लिए छात्रों को रोज तीन अलग अलग तरह की तस्वीरें लेने के लिए कहा गया था- जैसे हंसते हुए सेल्फी, उन चीजों की तस्वीरें जो उन्हें खुशी देती हैं, और वो तस्वीरें जो उनके जीवन में किसी और शख्स को खुशी देती हों. बाद में उनके मूड को रिकॉर्ड किया गया. तीन सप्ताह के बाद हर तरह की तस्वीर के लिए अलग-अलग प्रभाव देखने को मिले. लोग खुद को खुश करने के लिए तस्वीर लेते समय विचारात्मक और सचेत नजर आए, जबकि सेल्फी लेते समय वे काफी सहज और आत्मविश्वास से भरपूर नजर आए. जो तस्वीर दूसरों को खुश करने के लिए ली गई थीं उसका रिस्पॉन्स पाकर उनका मूड बहुत अच्छा हो गया. इस शोध में ये कहा गया कि हम अपने स्मार्ट फोन को 'व्यक्तिगत अलगाव का उपकरण' बनाने के बजाए उसके कैमरे का इस्तेमाल इस तरह कर सकते हैं कि आप खुद के लिए अच्छा महसूस कर सकें और लोगों से जुड़े रह सकें क्योंकि लोगों से जुड़े रहकर भी तनाव कम होता है.

तो चाहे दिल की मानो या फिर शोधकर्ताओं की, एक बात तो मानने वाली है ही कि सेल्फी आपको खुशी तो देती ही है. और दिल की करो तो मन तो खुश होगा ही. इसलिए सेल्फी लेते रहो और खुशियां दुगनी करते रहो, लेकिन 'डेयरिंग सेल्फी' से बचो क्योंकि वो सेहत के लिए सच में हानिकारक हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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