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किडनैपिंग, मौत... फिर भी मिडिल ईस्ट में ही जाएंगे हम!

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 22 मार्च, 2018 07:36 PM
  • 22 मार्च, 2018 07:36 PM
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इराक में 39 भारतीयों की मौत की पुष्टी के बाद अब एक और बड़ी खबर आपको चौंका सकती है. तिकरित में किडनैप की गईं 46 नर्सें वापस अरब देशों का रुख कर चुकी हैं.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इराक में अगवा हुए 39 भारतीयों की मौत की खबर की पुष्टी हाल ही में कर दी है. इस खबर ने तीन साल से चली आ रही 39 भारतीयों के मिलने की आस को खत्म कर दिया है. मृतकों की लाशों की पहचान के लिए डीएनए सैंपल का सहारा भी लिया गया. इतने झंझट और तीन साल की मेहनत के बाद ही आखिर उनका कुछ पता चल पाया.

इन सबके बीच एक ऐसी खबर आई है जो सोचने के लिए मजबूर कर देगी कि आखिर भारतीय किस हद तक मिडिल ईस्ट में नौकरियों के लिए मजबूर हैं. 4 साल पहले इराक के तिकरित में जिन 46 भारतीय नर्सों को IS ने किडनैप किया था उसमें से करीब 22 वापस मिडिल ईस्ट के किसी अन्य देश में चली गई हैं. जो बची हैं उनमें से भी कई ऐसी हैं जो वापस जाने की कोशिश में हैं.

2014 जून में तिकरित के एक अस्पताल में इन नर्सों को इस्लामिक स्टेट ने किडनैप करके रखा था और जुलाई में इन्हें वापस लाया गया था.

केरला सरकार ने मिडिल ईस्ट के अस्पतालों में ही इन्हें वापस रिक्रूट करने की कोशिश की. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इन 39 नर्सों में दो जुड़वां बहने सोना और वीना जोसफ भी थीं जो अब साउदी अरेबिया में हैं.

सोचने वाली बात ये है कि इन नर्सों की तरह ही ऐसे कई भारतीय हैं जो मिडिल ईस्ट को अपना घर बनाने में जुटे हुए हैं, लेकिन कारण क्या है?

सबसे ज्यादा पैसा मिडिल ईस्ट से...

माइग्रेशन और रेमिटेंस भारत का यूएई में सबसे ज्यादा है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भले ही 2016 में रेमिटेंस (वापस भेजा हुआ धन) का आंकड़ा 9% गिर गया हो फिर भी $65,592 बिलियन डॉलर (4,27,1 करोड़ रुपए)...

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इराक में अगवा हुए 39 भारतीयों की मौत की खबर की पुष्टी हाल ही में कर दी है. इस खबर ने तीन साल से चली आ रही 39 भारतीयों के मिलने की आस को खत्म कर दिया है. मृतकों की लाशों की पहचान के लिए डीएनए सैंपल का सहारा भी लिया गया. इतने झंझट और तीन साल की मेहनत के बाद ही आखिर उनका कुछ पता चल पाया.

इन सबके बीच एक ऐसी खबर आई है जो सोचने के लिए मजबूर कर देगी कि आखिर भारतीय किस हद तक मिडिल ईस्ट में नौकरियों के लिए मजबूर हैं. 4 साल पहले इराक के तिकरित में जिन 46 भारतीय नर्सों को IS ने किडनैप किया था उसमें से करीब 22 वापस मिडिल ईस्ट के किसी अन्य देश में चली गई हैं. जो बची हैं उनमें से भी कई ऐसी हैं जो वापस जाने की कोशिश में हैं.

2014 जून में तिकरित के एक अस्पताल में इन नर्सों को इस्लामिक स्टेट ने किडनैप करके रखा था और जुलाई में इन्हें वापस लाया गया था.

केरला सरकार ने मिडिल ईस्ट के अस्पतालों में ही इन्हें वापस रिक्रूट करने की कोशिश की. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इन 39 नर्सों में दो जुड़वां बहने सोना और वीना जोसफ भी थीं जो अब साउदी अरेबिया में हैं.

सोचने वाली बात ये है कि इन नर्सों की तरह ही ऐसे कई भारतीय हैं जो मिडिल ईस्ट को अपना घर बनाने में जुटे हुए हैं, लेकिन कारण क्या है?

सबसे ज्यादा पैसा मिडिल ईस्ट से...

माइग्रेशन और रेमिटेंस भारत का यूएई में सबसे ज्यादा है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भले ही 2016 में रेमिटेंस (वापस भेजा हुआ धन) का आंकड़ा 9% गिर गया हो फिर भी $65,592 बिलियन डॉलर (4,27,1 करोड़ रुपए) 2016 में रहा जो 2014-15 में लगभग 68 बिलियन डॉलर (4,53,1 करोड़ रुपए) रहा. कम रेमिटेंस का कारण तेल की गिरती कीमतें और कम नौकरियां रहीं, लेकिन फिर भी भारत इस आंकड़े में सबसे ऊपर है. भारत की ग्लोबल रेमिटेंस की बात करें तो कुल 10.9% हिस्सा पर्सनल रेमिटेंस के रूप में दूसरे देशों से भारत में आता है. इसके बाद चीन दूसरे नंबर पर है जो 10.6% हिस्सा लेता है.

क्यों मिडिल ईस्ट है जरूरी..

जहां एक ओर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में वीजा प्रोसेस काफी मुश्किल है वहीं मिडिल ईस्ट में भारतीयों का जाना काफी आसान है. मिडिल ईस्ट की इकोनॉमी कई तरह के कामों पर निर्भर करती है जैसे तेल, रिटेल, बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विस, इंफ्रास्ट्रक्चर, टूरिज्म आदि इन सेक्टर में अलग-अलग तरह की नौकरियां होती हैं जहां पढ़े-लिखे से लेकर अनपढ़ मजदूरों तक सभी के लिए कोई न कोई जॉब होती है. अगर बाकी देशों में देखें तो ऐसा सिर्फ IT इंडस्ट्री के साथ होता है.

खास बात ये भी है कि मिडिल ईस्ट में टैक्स जरूरी नहीं है. जैसे अगर दुबई की बात करें तो वहां बिलकुल टैक्स नहीं लगता. ऐसे में बचत ज्यादा हो पाती है.

घर से दूर लेकिन घर जैसा...

मान लीजिए कोई दुबई में रहता है. वहां से दिल्ली की फ्लाइट 3-4 घंटे की है. ये कुछ ऐसा ही है कि दिल्ली से वीकएंड मनाने के लिए रिशिकेश जाना. हां, पैसा काफी ज्यादा लगता है इसमें, लेकिन आराम से तीन-चार महीने में एक बार घर आया जा सकता है. इसके अलावा, अगर मिडिल ईस्ट की बात करें तो वहां सबसे ज्यादा भारतीय इमिग्रेंट्स हैं. खाने-पीने से लेकर आस-पास रहने तक अपने जैसे लोग दिखते हैं.

इतना आसान भी नहीं वहां रहना...

लोग अच्छी जिंदगी, लाइफस्टाइल, पैसे के लिए मिडिल ईस्ट जाते तो हैं, लेकिन वहां रहना और बिना किसी तकलीफ के काम करना आसान नहीं. यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट की बात करें तो 2016 के मुताबिक करीब 16.5 मिलियन इमिग्रेंट्स विदेशों में हैं. इसमें से लगभग 65,20,300 लोग मिडिल ईस्ट में हैं यानी करीब 40% के आस-पास. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक इसमें से 87% लोग साउदी अरेबिया को लेकर शिकायत करते हैं. इसमें मोलेस्टेशन, हैरेस्मेंट, फ्रॉड आदि सभी तरह की शिकायतें शामिल हैं.

कुल 55,119 शिकायतें 9 देशों से आएं जिसमें से कतर से सबसे ज्यादा 13,624 हैं. इसके बाद साउदी अरेबिया से 11,195 शिकायतें. 24% भारतीय अरब देशों में जेल गए. इस लिस्ट में सबसे ऊपर साउदी अरेबिया है और उसके बाद यूनाइटेड अरब अमिरात. 27 अप्रैल 2016 को सरकार द्वारा जारी किए गए बयान के अनुसार साउदी अरेबिया में 1,697 भारतीय जेल में थे और यूएई में 1,143.

मरने की गुंजाइश सबसे ज्यादा..

हफिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में रह रहे अप्रवासी भारतीय की तुलना में अरब देशों में रह रहे भारतीय के मरने की गुंजाइश 10 गुना ज्यादा रहती है. इसके अलावा, अगर ग्लोबल एवरेज देखा जाए तो 1 लाख में से 26.5 भारतीय हर साल मारे जाते हैं, लेकिन यही आंकड़ा अरब देशों में 69.2 प्रति 1 लाख है. यानी मरने की गुंजाइश अरब देशों में सबसे ज्यादा है.

वजह चाहें जो भी हो, लेकिन अधिकतर भारतीय अरब देशों में जाना ही पसंद करते हैं. दो उदाहरण सामने हैं जहां एक में वो नर्सें जो खुद मौत के मुंह से बचकर आई हैं वो दोबारा अरब देशों में जाना चाहती हैं, हां थोड़ी सुरक्षित जगहों पर, लेकिन अरब देशों में ही और एक तरफ 39 भारतीयों की जान चली गई है. मसला चाहें जो भी हो, एक बात तो साफ है कि भारतीयों के लिए अरब देश कमाई का एक आसान जरिया हैं जो शायद हमेशा ऐसा ही रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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