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यौन शोषण के शिकार तो पुरुष भी खूब हुए लेकिन एक भी #Metoo नहीं आया !

    • प्रियंका ओम
    • Updated: 09 नवम्बर, 2017 03:48 PM
  • 09 नवम्बर, 2017 03:48 PM
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आज हम केवल महिलाओं के यौन शोषण की बात करते हैं मगर कभी हमारा ध्यान पुरुष के यौन शोषण पर नहीं जाता. आखिर #MeToo अभियान में पुरुष अपनी आपबीती क्‍यों नहीं शेयर करते.

दस साल पहले social activist तराना बुरक़े ने sexual abuse की शिकार एक तेरह साल की बच्ची के मामले से आहात होकर MeToo फ़्रेज़ बनाया था. और दस साल बाद अमेरिकन ऐक्ट्रेस अलिसा मिलानो ने पिछले महीने ट्विटर पर हार्वी वाइन्स्टीन पर ऐसे ही आरोप लगाते हुए #MeToo हैश टैग चलाया. और फिर दुनिया भर की औरतें खुल कर सामने आईं और अपने abuse/exploitation की कहानी #MeToo के साथ शेयर की. लेकिन मुझे हैरत इस बात से हुई कि एक भी #MeToo पुरुषों की तरफ़ से नहीं आया. जबकि जब भी मैं इस तरह के विषय पर लिखती हूँ, चाहे वो व्यवहारिक जीवन से जुड़ा हुआ हो या सोशल मीडिया से, कई पुरुष विरोध करने आ जाते है कि आप एकतरफ़ा लिख रही हैं.

मेरा कहानी संग्रह 'वो अजीब लड़की' से लाल बाबू पढ़कर एक दोस्त ने कहा अगले संग्रह में लाल बबुआइन लिखना. पूछने पर उसने बताया कि जब वह बारह-तेरह साल का था, तो उसके पड़ोस में रहने वाली एक आंटी ने उसे sexually abuse किया था. multinational company में काम कर रहे एक लड़के ने तो अपनी महिला बॉस से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी. एक दोस्त ने बताया था उसकी सगी मौसी, जो उससे उम्र में लगभग दस साल बड़ी थी, अक्सर उसे पढ़ाते हुए कमरे का दरवाज़ा बंद कर लेती थी. शुरू-शुरू में ये सब उसे अच्छा नहीं लगता था, लेकिन बाद में उसे भी अच्छा लगने लगा था.

आखिर समाज ये क्यों नहीं मानता कि एक पुरुष का भी शोषण हो सकता है

Facebook पर इक्के-दुक्के ऐसे पोस्ट पढ़ने को मिल जाते हैं, जिसमें लड़के inbox में लड़कियों द्वारा मोबाइल रीचार्ज करवाने या अकाउंट में पैसा मंगवाने की बात होती है. लेकिन वो गंभीर पोस्ट ना होकर हल्के फुल्के ढंग से मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई होती है और ये भी स्पष्ट होता है कि ऐसा करने वाला एक लड़की की फ़ेक ID चला रहा होता है. लेकिन कभी किसी की लिखी कोई गम्भीर...

दस साल पहले social activist तराना बुरक़े ने sexual abuse की शिकार एक तेरह साल की बच्ची के मामले से आहात होकर MeToo फ़्रेज़ बनाया था. और दस साल बाद अमेरिकन ऐक्ट्रेस अलिसा मिलानो ने पिछले महीने ट्विटर पर हार्वी वाइन्स्टीन पर ऐसे ही आरोप लगाते हुए #MeToo हैश टैग चलाया. और फिर दुनिया भर की औरतें खुल कर सामने आईं और अपने abuse/exploitation की कहानी #MeToo के साथ शेयर की. लेकिन मुझे हैरत इस बात से हुई कि एक भी #MeToo पुरुषों की तरफ़ से नहीं आया. जबकि जब भी मैं इस तरह के विषय पर लिखती हूँ, चाहे वो व्यवहारिक जीवन से जुड़ा हुआ हो या सोशल मीडिया से, कई पुरुष विरोध करने आ जाते है कि आप एकतरफ़ा लिख रही हैं.

मेरा कहानी संग्रह 'वो अजीब लड़की' से लाल बाबू पढ़कर एक दोस्त ने कहा अगले संग्रह में लाल बबुआइन लिखना. पूछने पर उसने बताया कि जब वह बारह-तेरह साल का था, तो उसके पड़ोस में रहने वाली एक आंटी ने उसे sexually abuse किया था. multinational company में काम कर रहे एक लड़के ने तो अपनी महिला बॉस से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी. एक दोस्त ने बताया था उसकी सगी मौसी, जो उससे उम्र में लगभग दस साल बड़ी थी, अक्सर उसे पढ़ाते हुए कमरे का दरवाज़ा बंद कर लेती थी. शुरू-शुरू में ये सब उसे अच्छा नहीं लगता था, लेकिन बाद में उसे भी अच्छा लगने लगा था.

आखिर समाज ये क्यों नहीं मानता कि एक पुरुष का भी शोषण हो सकता है

Facebook पर इक्के-दुक्के ऐसे पोस्ट पढ़ने को मिल जाते हैं, जिसमें लड़के inbox में लड़कियों द्वारा मोबाइल रीचार्ज करवाने या अकाउंट में पैसा मंगवाने की बात होती है. लेकिन वो गंभीर पोस्ट ना होकर हल्के फुल्के ढंग से मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई होती है और ये भी स्पष्ट होता है कि ऐसा करने वाला एक लड़की की फ़ेक ID चला रहा होता है. लेकिन कभी किसी की लिखी कोई गम्भीर पोस्ट शायद ही नज़र में आई हो.

कम उम्र वाली लड़कियों के inbox में अधेड़ पुरुष के आने के बाबत मैंने एक पोस्ट लिखी थी. तब कई विरोधी कॉमेंट आये थे, कि इसका उल्टा भी होता है. मतलब कम उम्र के लड़के के इन्बाक्स में अधेड़ महिला आती है.  दो तीन लड़कों ने तो सीधे इन्बाक्स में आकर आप बीती बताई. नंदन नाम के एक लड़के ने बताया कि एक महिला जिन्हें वो दीदी कहकर पुकारता है हालाँकि दीदी का बेटा उसकी उम्र का ही है लेकिन फिर भी वो कहती हैं मुझे न दीदी कहो. और तो और दीदी उससे कहती हैं मेरी कल्पना करते हुए एक romatic poem लिखो ! मैंने पूछा- तो क्या तुम लिखते हो, तो उसने कहा हाँ लिखता हूँ.

लेकिन क्या कोई लड़की ऐसा करती? उसका कोई फेसबुकिया भैया उसे romantic कविता लिखने को कहता तो क्या वो लिखती है? इस सवाल का जवाब दिमाग़ तुरंत ही ना में देता है. मुझे याद है एक बार facebook पर एक लड़के से जुड़ी थी. वो दी पुकारता था. लेकिन inbox से कभी नहीं निकलता था. जवाब नहीं देने पर नाराज़गी व्यक्त करता था. तंग आकर मैंने उसके खिलाफ पोस्ट लिखा और उसे ब्लाक किया.

प्रशांत नाम के एक लड़के ने कहा एक हमशहर अधेड़ महिला से इन्बाक्स में शुरू शुरू में लेखन को लेकर बात चीत शुरू हुई थी जो बाद में बहुत पर्सनल हो गई. फिर मोबाइल नम्बर का आदान-प्रदान हुआ और फिर उसके बाद एकांत में मिलना-जुलना और अब जब वो तंग आ चुका है और दूर जाना चाहता है तो वो महिला उसे जाने नहीं देना चाहती है, वो बुरी तरह से फँस चुका है.

तीसरे लड़के ने, जो एक कोचिंग इंस्टीैट्यूट में पढ़ाता है, कहा कि वहाँ पढ़ने आने वाली एक लड़की ने उसे कई love लेटर लिखे. कभी स्याही से तो कभी ख़ून से. एक बार वो उसे समझाने के ख़याल से उससे एकांत में मिला, तो भावना के बहाव में वो हो गया जो नहीं होना चाहिए था. लेकिन अब वो लड़की उसकी ज़िंदगी बर्बाद करने पर तुली है, उसकी पत्नी को बताने की धमकी देकर फिर से सम्बंध बनाने पर ज़ोर डाल रही है. इन सब हालातों से वो इतना तंग आ चुका है कि कई बार उसके दिमाग़ में आत्महत्या करने का ख्याल आता है.

एक बार child abuse पर किसी और की लिखी एक कहानी share की थी. जिसमें पुरुष समाज पर ऊँगली उठाई गई थी. तब एक फ़ॉलोअर ने आकर उस कहानी का विरोध करते हुए कहा था ये एकतरफ़ा दृश्य है ! समाज में सिर्फ़ लड़कियाँ ही sexual abuse की शिकार नहीं हो रहीं हैं बल्कि लड़के भी हो रहे है. और पहले भी होते थे. मैं ख़ुद इसका उदाहरण हूँ. आज भी वो सब याद करके रो देता हूँ.

लेकिन इन्बाक्स में इतनी कहानियों के बावजूद एक भी #MeToo पुरुषों की तरफ़ से नहीं आया. महिलाओं की तरह वो भी अपने exploitation की कहानी क्यूँ नहीं लिखते? क्या कारण हो सकता है? क्या उनके पुरुष होने का दंभ या या कहीं ना कहीं ख़ुद भी दोषी होने का अहसास ? क्यूँकि ज़्यादातर क़िस्सों में शुरू में लड़कों को कोई प्रॉब्लम नहीं थी, बाद में वो तंग होने लगे. क्यूँकि शायद उन्हें ये महसूस हो गया था कि वो इस्तेमाल हो रहे हैं. या शायद उन्हें लगता है अगर वो लिखेंगे तो उनपर कोई यक़ीन नहीं करेगा. क्यूँकि अभी तक समाज इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाया है कि एक पुरुष भी sexually exploit हो सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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