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क्‍या यौन प्रताड़ना का कानून चुभने लगा है ?

    • सरवत फातिमा
    • Updated: 18 मई, 2017 02:39 PM
  • 18 मई, 2017 02:39 PM
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महिलाओं को वस्तु समझने का अपना अधिकार खोना और महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न होने का डर, दो डरों की लड़ाई में कौन जीतना चाहिए ये आप ही तय करें?

महिलाओं के लिए हमारा देश बहुत सुरक्षित नहीं है ये बात किसी से छुपी नहीं है. इंसानों के भेष में भेड़िए खुलेआम सड़कों पर लड़कियों का शिकार करने की चाह में घूमते रहते हैं. रोज रेप और मर्डर की खबरों से अटे पड़े टीवी और अखबारों की सुर्खियों को देखने के बाद ये बात भी स्पष्ट है कि हाल के वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में बेहिसाब बढ़ोतरी हुई है. लेकिन सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ये सच है कि किसी भी प्रकार की यौन हिंसा को रोकने के लिए जो भी कड़े कानून बने हैं वो भी नाकाफी साबित हो रहे हैं.

2012 में हुए भयानक निर्भया गैंगरेप की घटना के बाद से देश भर में ऐसे मामलों को रोकने के लिए कठिन कानूनों की मांग में तेजी आई थी. जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जे एस वर्मा की अगुवाई में एक न्यायिक समिति के गठन किया गया था, जिसे देश के मौजूदा आपराधिक कानूनों में संशोधन करने का सुझाव देने का जिम्मा दिया गया था.

एक साल बाद, 2013 में, यौन उत्पीड़न कानूनों में संशोधन किया गया. ये और बात है कि ज्यादातर लोगों को अभी भी संशोधित कानूनों तो क्या पुराने वाले कानूनों की भी ज्यादा जानकारी नहीं है. और अगर ऐसे लोगों में से एक आप भी हैं तो घबराइए मत. हम आपको इन कानूनों के बारे में बताते हैं.

इसका कोई उपाय नहीं

आईपीसी धारा 354 ए में किसी भी व्यक्ति को दंडित करने का प्रावधान है जो निम्न अपराधों में से कोई भी काम करता है:

शारीरिक संपर्क, अवांछित और अश्लील सेक्शुअल डिमांड रखना, यौन संबंधों की मांग करना, महिला की इच्छा के खिलाफ उसे पोर्न वीडियो दिखाना, और अश्लील, यौन संबंधी टिप्पणी करना, ये सभी यौन उत्पीड़न के अपराध के दायरे में आते हैं और इनमें से कोई भी काम करने वाला यौन उत्पीड़न का दोषी...

महिलाओं के लिए हमारा देश बहुत सुरक्षित नहीं है ये बात किसी से छुपी नहीं है. इंसानों के भेष में भेड़िए खुलेआम सड़कों पर लड़कियों का शिकार करने की चाह में घूमते रहते हैं. रोज रेप और मर्डर की खबरों से अटे पड़े टीवी और अखबारों की सुर्खियों को देखने के बाद ये बात भी स्पष्ट है कि हाल के वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में बेहिसाब बढ़ोतरी हुई है. लेकिन सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ये सच है कि किसी भी प्रकार की यौन हिंसा को रोकने के लिए जो भी कड़े कानून बने हैं वो भी नाकाफी साबित हो रहे हैं.

2012 में हुए भयानक निर्भया गैंगरेप की घटना के बाद से देश भर में ऐसे मामलों को रोकने के लिए कठिन कानूनों की मांग में तेजी आई थी. जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जे एस वर्मा की अगुवाई में एक न्यायिक समिति के गठन किया गया था, जिसे देश के मौजूदा आपराधिक कानूनों में संशोधन करने का सुझाव देने का जिम्मा दिया गया था.

एक साल बाद, 2013 में, यौन उत्पीड़न कानूनों में संशोधन किया गया. ये और बात है कि ज्यादातर लोगों को अभी भी संशोधित कानूनों तो क्या पुराने वाले कानूनों की भी ज्यादा जानकारी नहीं है. और अगर ऐसे लोगों में से एक आप भी हैं तो घबराइए मत. हम आपको इन कानूनों के बारे में बताते हैं.

इसका कोई उपाय नहीं

आईपीसी धारा 354 ए में किसी भी व्यक्ति को दंडित करने का प्रावधान है जो निम्न अपराधों में से कोई भी काम करता है:

शारीरिक संपर्क, अवांछित और अश्लील सेक्शुअल डिमांड रखना, यौन संबंधों की मांग करना, महिला की इच्छा के खिलाफ उसे पोर्न वीडियो दिखाना, और अश्लील, यौन संबंधी टिप्पणी करना, ये सभी यौन उत्पीड़न के अपराध के दायरे में आते हैं और इनमें से कोई भी काम करने वाला यौन उत्पीड़न का दोषी होगा.

यह एक पाराग्राफ खुद में ही सारे कानून की व्याख्या करने के लिए काफी है, लेकिन फिर भी हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के वकील दिव्यदीप चतुर्वेदी ने एक जनहित याचिका दायर की है. याचिका में आईपीसी की धारा 354 ए (यौन उत्पीड़न) के तहत कानूनी प्रावधानों को कम करने की मांग की गई है. 'अश्लील, यौन संबंधी टिप्पणी करने पर भी व्यक्ति को यौन उत्पीड़न का दोषी माना जाएगा' इस पार्ट को भी हटाने की मांग की गई है.

डेक्कन क्रॉनिकल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की एक बेंच ने गृह मंत्रालय के सचिव से इस बाबत जवाब मांगा है और याचिका की सुनवाई के लिए 30 अगस्त की तारीख तय की है.'

याचिका में कहा गया है कि 'इस पार्ट में बहुत भिन्नता है और अस्पष्ट है जिससे किसी सामान्य बुद्धि के व्यक्ति के लिए ये जानना लगभग असंभव है कि क्या करना है और क्या नहीं.'

याचिका में आगे कहा गया है- 'केवल एक महिला के कहने पर दोषी बना देना ये एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है. क्योंकि वो महिला सोचती है कि उसकी तरफ किया गया इशारा भद्दा था तो वो आदमी दोषी घोषित हो जाए ये गलत है. यह असंवैधानिक, मनमानी और अनुचित बात है'

एक प्रावधान की तथाकथित अस्पष्टता को कम करने के नाम पर उसे हटा देना ठीक नहीं है. क्योंकि ये इस कानून को बनाने का मकसद ही महिलाओं की गरिमा और जीवन की रक्षा था तब ये मांग और भी बेतुका हो जाता है. अगर आप हमसे पूछते हैं, तो हम नहीं चाहेंगे कि 354 ए को हटा दिया जाए.

इसलिए हम इस प्रावधान को आपके लिए एक बार फिर से विस्तार में बता देते हैं.

कानून में स्पष्ट रूप से कह गया है कि- 'कोई भी व्यक्ति अगर अश्लील और भद्दी टिप्पणी करता है तो उसे जेल की सजा दी जाएगी जिसे 1 साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं.

यौन संबंधित टिप्पणी, या सरल भाषा में कहें कोई भी कमेंट जो एक महिला की कामुकता को दर्शाती है.

अगर आप किसी महिला के शरीर पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, 'आपके पैर इस ड्रेस में सेक्सी लग रहे हैं', तो थोड़ा रूक जाइए. इसे सेक्शुअली कर्लर्ड रिमार्क या कमेंट कहेंगे. या फिर आप किसी महिला को ऑफिस में सेक्सी कह रहे हैं, जैसे टीवीएफ के सीईओ अरुणाभ कुमार ने अपनी सहकर्मी को कहा था तो ये यौन उत्पीड़न में आता है. एक महिला को असहज महसूस कराना या सेक्स के लिए इशारे करना आपको परेशानी में डाल सकता है. इसलिए, हमारा सुझाव है कि आप इससे बचें.

सच कहूं तो ये जनहित याचिका और इस पर होनी वाली बहस पूरी तरह से सेक्सिस्ट हैं. पुरुषों को अपनी उस आदत के लिए जेल में जाने से डर लग रहा है जिसे कल तक वो नॉर्मल समझते थे. कुछ ऐसी आदतें जैसे महिलाओं को अपने मनोरंजन की वस्तु समझना जो उन्हें खुश करने के लिए बनाई गई है. वहीं दूसरी तरफ औरतें, स्कर्ट पहने, ऑफिस जाने और अंधेरा होने के बाद बाहर निकलने में डरती हैं.

अब इन दो डरों की लड़ाई में- महिलाओं को वस्तु समझने का अपना अधिकार खोना और महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न होने का डर, इन दोनों में से कौन जीतना चाहिए ये आप ही तय करें?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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