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श्रद्धा मर्डर केस के बाद 'लिव-इन रिलेशनशिप' का विरोध क्यों हो रहा है?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 19 नवम्बर, 2022 02:15 PM
  • 19 नवम्बर, 2022 02:15 PM
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) कह चुका है कि 'लिव-इन रिलेशनशिप (Live-In Relationship) कोई अपराध नहीं है. किसी के साथ लिव-इन में रहने का फैसला पूरी तरह से निजी है.' और, लिव-इन में रहने वाली युवतियों, महिलाओं (Woman) को एक शादीशुदा महिला की तरह ही घरेलू हिंसा से लेकर संपत्ति तक के अधिकार मिलते है. लेकिन, लिव-इन रिलेशनशिप पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है.

आफताब अमीन पूनावाला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली श्रद्धा वाल्कर की हत्या से पूरा देश सन्न है. सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहों तक पर अब 'लिव-इन रिलेशनशिप' के खिलाफ लोगों का गुस्सा साफ महसूस किया जा सकता है. लेकिन, इस बीच केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर का श्रद्धा मर्डर केस पर लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर दिया गया बयान सुर्खियों में आ गया है. दरअसल, कौशल किशोर का कहना था कि 'लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.' बहुत से लोग कौशल किशोर के समर्थन में हैं. तो, शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने इस बयान को शर्मनाक बताया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि श्रद्धा मर्डर केस के बाद 'लिव-इन रिलेशनशिप' का विरोध क्यों हो रहा है?

समाज की कथित दकियानूसी लव जिहाद जैसी बातों को धता बताते हुए श्रद्धा एक मुस्लिम लड़के के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहती थी.

क्यों श्रद्धा वाल्कर की गलती बना 'लिव-इन रिलेशनशिप'?

श्रद्धा वाल्कर ने अपने माता-पिता से असहमति जताते हुए आफताब अमीन पूनावाला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया था. दरअसल, श्रद्धा वाल्कर खुद को आजाद ख्यालों वाली लड़की मानती थी. और, फेमिनिज्म से भरी महिला सशक्तिकरण की बातें उसे भाती थीं. समाज की कथित दकियानूसी लव जिहाद जैसी बातों को धता बताते हुए श्रद्धा एक मुस्लिम लड़के के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहती थी. एक इंडिपेंडेंट लड़की जो नौकरी कर अपना खर्च खुद उठा रही थी. उसे किसी की सुनने की क्यों फिक्र होगी? वैसे भी लिव-इन रिलेशनशिप में मिलने वाली आजादी को कोई शादीशुदा शख्स थोड़े ही जान सकता है. जब तक इच्छा हो साथ रहो. नहीं, तो 'मूव ऑन' करते हुए आगे बढ़ जाओ.

लेकिन, श्रद्धा वाल्कर इस मामले में अपवाद बन गई. खुद को नारीवादी कहने...

आफताब अमीन पूनावाला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली श्रद्धा वाल्कर की हत्या से पूरा देश सन्न है. सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहों तक पर अब 'लिव-इन रिलेशनशिप' के खिलाफ लोगों का गुस्सा साफ महसूस किया जा सकता है. लेकिन, इस बीच केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर का श्रद्धा मर्डर केस पर लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर दिया गया बयान सुर्खियों में आ गया है. दरअसल, कौशल किशोर का कहना था कि 'लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.' बहुत से लोग कौशल किशोर के समर्थन में हैं. तो, शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने इस बयान को शर्मनाक बताया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि श्रद्धा मर्डर केस के बाद 'लिव-इन रिलेशनशिप' का विरोध क्यों हो रहा है?

समाज की कथित दकियानूसी लव जिहाद जैसी बातों को धता बताते हुए श्रद्धा एक मुस्लिम लड़के के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहती थी.

क्यों श्रद्धा वाल्कर की गलती बना 'लिव-इन रिलेशनशिप'?

श्रद्धा वाल्कर ने अपने माता-पिता से असहमति जताते हुए आफताब अमीन पूनावाला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया था. दरअसल, श्रद्धा वाल्कर खुद को आजाद ख्यालों वाली लड़की मानती थी. और, फेमिनिज्म से भरी महिला सशक्तिकरण की बातें उसे भाती थीं. समाज की कथित दकियानूसी लव जिहाद जैसी बातों को धता बताते हुए श्रद्धा एक मुस्लिम लड़के के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहती थी. एक इंडिपेंडेंट लड़की जो नौकरी कर अपना खर्च खुद उठा रही थी. उसे किसी की सुनने की क्यों फिक्र होगी? वैसे भी लिव-इन रिलेशनशिप में मिलने वाली आजादी को कोई शादीशुदा शख्स थोड़े ही जान सकता है. जब तक इच्छा हो साथ रहो. नहीं, तो 'मूव ऑन' करते हुए आगे बढ़ जाओ.

लेकिन, श्रद्धा वाल्कर इस मामले में अपवाद बन गई. खुद को नारीवादी कहने वाले आफताब जब उसको मारता था. तो, श्रद्धा इसका दर्द भी किसी से बयां नहीं कर पाई. क्योंकि, आफताब तो सबकी नजरों में बड़ा फेमिनिस्ट था. उसकी श्रद्धा से दोस्ती इसी वजह से लिव-इन रिलेशनशिप तक पहुंची थी. दरअसल, खुद को आजाद ख्यालों का कहने वाली तमाम लड़कियों, युवतियों और महिलाओं का नारीवाद अपने लिव-इन पार्टनर के सामने फुस्स हो जाता है. वैसे, श्रद्धा चाहती, तो जिस दिन आफताब ने पहली बार उस पर हाथ उठाया था. उसी दिन वह इस रिश्ते से बाहर आ सकती थी. लेकिन, हाय रे नारीवाद और उसका चमक... श्रद्धा मजबूर होती चली गई, एक के बाद एक मौके देने के लिए. और, आखिर में उसके शव के 35 टुकड़े एक फेमिनिस्ट युवक ने ही कर दिए.

क्योंकि, श्रद्धा को अपने माता-पिता से लड़कर लिव-इन रिलेशनशिप में आफताब के साथ जाना तो आता था. लेकिन, आफताब की आक्रामकता का जवाब देने के समय उसके अंदर की नारी जाग जाती थी. और, इसकी वजह से मानसिक और शारीरिक शोषण के साथ आफताब की मार भी सहती रही. यहां उसका हौसला चरमरा जाता था. क्योंकि, लिव-इन रिलेशनशिप के इस तरह के मामलों में श्रद्धा अगर आफताब के खिलाफ जाती. तो, उस पर इस्लामोफोबिक से लेकर हिंदुत्ववादी घोषित होने का खतरा बढ़ जाता. क्योंकि, फेमिनिज्म का चोला ओढ़ने वालों में ज्यादातर वही लोग हैं. जो लंबे समय से किसी भी आपराधिक घटना को जाति, धर्म, वर्ग से जोड़ते चले आ रहे हैं. और, शायद एक आजाद ख्यालों वाली लड़की श्रद्धा खुद को हिंदुत्ववादी और इस्लामोफोबिक सुनने का साहस नहीं जुटा पा रही थी.

लिव-इन रिलेशनशिप सवाल करना क्यों जरूरी है?

भले ही महानगरों में बड़ी हो रही नई पीढ़ी के युवक-युवतियों में लिव-इन रिलेशनशिप का चलन तेजी से बढ़ा हो. लेकिन, भारत में आज भी लिव-इन रिलेशनशिप को खराब नजरों से देखा जाता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि 'लिव-इन रिलेशनशिप कोई अपराध नहीं है. किसी के साथ लिव-इन में रहने का फैसला पूरी तरह से निजी है.' और, लिव-इन में रहने वाली युवतियों, महिलाओं को एक शादीशुदा महिला की तरह ही घरेलू हिंसा से लेकर संपत्ति तक के अधिकार मिलते है. लेकिन, लिव-इन रिलेशनशिप पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है.

लिव-इन पार्टनर्स में कोई भी और कभी भी इस रिश्ते से बाहर जा सकता है. और, इसका दूसरे पर क्या असर होगा, इसकी भी चिंता नहीं की जाती है. जबकि, कई बार लड़कियां लिव-इन रिलेशनशिप के लिए इसी वजह से आगे बढ़ती हैं कि उन्हें अपने पार्टनर को समझने में आसानी होगी. और, जब सही समय आएगा, तो उससे शादी की बात की जा सकती है. लेकिन, लिव-इन रिलेशनशिप में किसी का पार्टनर भी यही सोच रखता हो. इसकी कोई गारंटी नहीं है. मूव ऑन करना लड़कियों के लिए आसान नहीं होता है. और, बड़ी संख्या में ऐसे रिश्तों का हश्र श्रद्धा मर्डर केस की तरह ही होता है.

कहना गलत नहीं होगा कि लिव-इन रिलेशनशिप में शादी से पहले समझने की नीयत से जाने वालों के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए. जिसमें वो कानूनी तरीके से इसका रजिस्ट्रेशन करा सकें. ताकि, कुछ ही समय में अलग होने पर लिए लड़की को कानूनी तरीके से उसका हक मिल सके.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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