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महिलाओं के लिए उमंग का सिर्फ एक दिन क्यों

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 03 अगस्त, 2019 11:27 AM
  • 03 अगस्त, 2019 11:16 AM
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महिलाओं के हिस्से में उमंग से भरा सिर्फ एक दिन क्यों. इस एक दिन के लिए साल के 364 दिन का इंतजार क्यों. खुश रहना, तनाव भूल जाना, खुद को समय देना तो हर महिला का अधिकार है.

बचपन के दिन याद करूं तो, मुझे तीज इसीलिए पसंद थी क्योंकि इसमें मेरी मां मुझे बाकी दिनों से अलग दिखाई देती थीं. सावन में जो रौनक बाहर दिखाई देती थी वही घर में भी दिखती थी. चूंकि तीज पर हरे रंग का श्रृंगार किया जाता है तो मां भी एक दिन पहले से इस त्योहार की तैयारी शुरू कर देती थीं. एक दिन पहले घर के सारे काम काज जल्दी निबटा लिए जाते थे जिससे रात को हाथों पर मेहंदी लगाई जाए. कभी-कभी तो मां को फुर्सत नहीं मिलती थी तो ढेर सारी मेहंदी दोनों हाथों की हथेलियों पर रखकर मुट्ठी बांध लेती थीं. वो मेहंदी रचती तो बहुत थी, लेकिन उसमें कोई डिजाइन नहीं होता था. लेकिन जब मां के पास समय होता तो वो मेहंदी के सुंदर डिजाइनों के रूप में मां के हाथों पर रचा हुआ दिखाई देता था.

अगले दिन हरियाली तीज (Hariyali Teej) पर मां सुबह-सुबह नहा धोकर तैयार हो जाती थीं. गीले बालों से कुछ छींटे हम पर भी मार दिया करती थीं. हरी साड़ी, हरी चूड़ियां, हाथों में मेहंदी और थोड़ा सा श्रृंगार मां के चेहरे की रंगत ही बदल देता था. वो जल्दी-जल्दी बागीचे से मिट्टी लातीं और मिट्टी से शिव और पार्वती गढ़तीं. फिर मूर्तियों को नए कपड़े पहनाकर उनका श्रृंगार करतीं. शिव और पार्वती से अपने पति की लंबी आयु का वरदान मांगतीं.

महिलाओं से जुड़े हर त्योहार में मेहंदी खास होती है

इसके बाद दिन के बाकी काम शुरू होते. पूजा के बाद नाश्ता, दोपहर का खाना भी जल्दी-जल्दी निपटा लिया जाता था, क्योंकि दोपहर को पाकड़ के पेड़ पर झूला डाला जाता था. मां की तरह ही पास पड़ोस की औरतें भी अपने घरों से सजी धजी बाहर निकलतीं और पेड़ के नीचे आकर हिरायाली गीत गातीं और बारी-बारी झूला झूलतीं. वो कुछ घंटे मानो उनकी जिंदगियों के सबसे खूबसूरत पल होते थे. हर महिला अपने घर के झंझटों को भूलकर थोड़ी देर खुद को देती....

बचपन के दिन याद करूं तो, मुझे तीज इसीलिए पसंद थी क्योंकि इसमें मेरी मां मुझे बाकी दिनों से अलग दिखाई देती थीं. सावन में जो रौनक बाहर दिखाई देती थी वही घर में भी दिखती थी. चूंकि तीज पर हरे रंग का श्रृंगार किया जाता है तो मां भी एक दिन पहले से इस त्योहार की तैयारी शुरू कर देती थीं. एक दिन पहले घर के सारे काम काज जल्दी निबटा लिए जाते थे जिससे रात को हाथों पर मेहंदी लगाई जाए. कभी-कभी तो मां को फुर्सत नहीं मिलती थी तो ढेर सारी मेहंदी दोनों हाथों की हथेलियों पर रखकर मुट्ठी बांध लेती थीं. वो मेहंदी रचती तो बहुत थी, लेकिन उसमें कोई डिजाइन नहीं होता था. लेकिन जब मां के पास समय होता तो वो मेहंदी के सुंदर डिजाइनों के रूप में मां के हाथों पर रचा हुआ दिखाई देता था.

अगले दिन हरियाली तीज (Hariyali Teej) पर मां सुबह-सुबह नहा धोकर तैयार हो जाती थीं. गीले बालों से कुछ छींटे हम पर भी मार दिया करती थीं. हरी साड़ी, हरी चूड़ियां, हाथों में मेहंदी और थोड़ा सा श्रृंगार मां के चेहरे की रंगत ही बदल देता था. वो जल्दी-जल्दी बागीचे से मिट्टी लातीं और मिट्टी से शिव और पार्वती गढ़तीं. फिर मूर्तियों को नए कपड़े पहनाकर उनका श्रृंगार करतीं. शिव और पार्वती से अपने पति की लंबी आयु का वरदान मांगतीं.

महिलाओं से जुड़े हर त्योहार में मेहंदी खास होती है

इसके बाद दिन के बाकी काम शुरू होते. पूजा के बाद नाश्ता, दोपहर का खाना भी जल्दी-जल्दी निपटा लिया जाता था, क्योंकि दोपहर को पाकड़ के पेड़ पर झूला डाला जाता था. मां की तरह ही पास पड़ोस की औरतें भी अपने घरों से सजी धजी बाहर निकलतीं और पेड़ के नीचे आकर हिरायाली गीत गातीं और बारी-बारी झूला झूलतीं. वो कुछ घंटे मानो उनकी जिंदगियों के सबसे खूबसूरत पल होते थे. हर महिला अपने घर के झंझटों को भूलकर थोड़ी देर खुद को देती. तब यही उनके लिए मनोरंजन होता था, जब वो खुद को रिलैक्स करतीं. खुश तो जाहिर तौर पर होंगी क्योंकि जब इंसान बाहर से अच्छा लगता है तो वो अंदर से भी अच्छा महसूस करता है. वरना तो हर दिन दोपहर को काम निपटाने के बाद मां पसीने से लथ-पथ और बिखरे बाल लिए होतीं.

हरियाली तीज पर महिलाएं सब भूलकर खुशियां मनाती हैं

मुझे हरियाली तीज की बस यही खूबसूरत बातें याद आती हैं. आज बड़े शहरों की तीज बहुत बदल गई है. जिन महिलाओं को ये त्योहार अच्छी तरह मनाने का मौका मिल रहा है उन्हें तो मैं खुशकिस्मत ही कहूंगी क्योंकि नौकरी करने वाली महिलाओं को तो तीज की छुट्टी भी नहीं मिलती इसलिए उनकी तीज सिर्फ सुबह की पूजा और हरे कपड़ों तक ही सीमित रह गई है. बड़े शहर हैं तो ऐसा भी नहीं कि बड़े पेड़ हर किसी को नसीब हों. इसलिए झूला झूलना तो अब खत्म सा हो गया है. लेकिन खुश रहने के लिए तीज क्वीन जैसी प्रतियोगिताएं खूब होने लगी हैं. श्रृंगार महत्वपूर्ण है और इसलिए संज संवरकर महिलाएं खुद को खुश कर रही हैं. रोजाना के रुटीनी जीवन से एक दिन चुराकर महिलाएं खुद को समय दे रही हैं. और आजकल की तीज की यही बात अच्छी लगती है.

लेकिन सवाल ये उठता है कि महिलाओं के हिस्से में उमंग से भरा सिर्फ एक दिन क्यों. इस एक दिन के लिए साल के 364 दिन का इंतजार क्यों. खुश रहना, तनाव भूल जाना, खुद को समय देना तो हर महिला का अधिकार है. फिर सिर्फ एक दिन के लिए क्यों. और बहुतों को को ये एक दिन भी नहीं मिलता.

इसे परंपरा कहें या फिर इसके वैज्ञानिक कारण खोजें लेकिन सार ये है कि तीज में महिलाएं खुश रहती हैं और उनकी खुशहाली परिवार की खुशहाली से जुड़ी मानी जाती है. शास्त्रों में भी स्त्री को प्रकृति के समतुल्य माना गया है. हरियाली की तरह महिलाओं से भी जीवन में उमंग बनी रहती है. वो खिली रहती हैं तो पूरा परिवार खिला रहता है. और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महिला सुहागन है या नहीं. कोई शक नहीं कि श्रृंगार, मेहंदी, कपड़े, झूले वो सामान है जिसमें महिलाओं की खुशी बसती है. लेकिन महिलाओं को खुश रहने के लिए पैसों की जरूरत नहीं है. सिर्फ उस वक्त की है जिसमें वो खुशी महसूस कर सकें. तीज त्योहार की रस्में भी इसी बात को ध्यान में रखकर बनाई गईं थीं कि महिलाएं खुद को थोड़ी प्राथमिकता दें. हरियाली तीज भी उन कुछ खास त्योहारों में से एक है.

तीज तो बस बहाना है..असल में तो खुश रहना है

आप भले ही तीज पर मेहंदी न लगा पाएं, झूला न झूल पाएं, लेकिन जब भी बारिश हो तो उसकी बूदों को चेहरे पर महसूस जरूर करें. रोजाना के काम जल्दी-जल्दी समेटने की कोशिश करें जिससे खुद के लिए थोड़ा सा समय निकाल सकें. और उस वक्त चाहे मेहंदी लगाएं या गीत गाएं या फिर किसी कैनवस को रंग डालें. और कुछ न करें तो एक कमरे में अंधेरा कर थोड़ी देर संगीत सुनें. मेकअप भले ही न करें, लेकिन खुद को खूबसूरत महसूस करें. यकीन मानें हर रोज वैसा ही महसूस होगा जैसा महिलाओं को तीज पर होता है. दिन का एक घंटा सिर्फ अपने लिए दें तो हर दिन तीज मनाएंगी. क्योंकि खुश रहने के लिए महिलाओं को पैसा नहीं खुद के लिए वक्त चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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