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भारत को बदलना है तो लड़ना सीखिए, उस गरीबी से लड़िये जो गांव में स्थिर है!

    • कौशलेंद्र प्रताप सिंह
    • Updated: 25 अक्टूबर, 2022 02:15 PM
  • 25 अक्टूबर, 2022 02:15 PM
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देश बदलता है तो लड़ना होगा. इसलिए उस पूंजी के खिलाफ लड़िये जो प्रतिभाओं के हक़ और हक़ूक़ को मार रही है, उस बहन-बेटियों के सुहाग के लिए लड़िये जो भारत मां की कोख से पैदा होने के पहले ही मार दी जा रही है, उस भ्र्ष्टाचार से लड़िये जो रुपये में कम आचरण में ज्यादा हो.

हम सभ्य हैं, क्योंकि हमारे पीछे हजारों साल की तपस्या है. संस्कृति है. जो गाय-गोबर में उलझती जा रही है. अगर हमारे आचरण में कही असभ्यता दिखती है, तो उसके पीछे हमारा वर्तमान है. क्योंकि वर्तमान में हमारे पास संसद, संविधान और सरकार है.जिसके पास अविश्सनीय जैसे शब्द हैं. कभी कहते हैं कि गरीबी हटाएंगे. कभी कहते है कि भ्र्ष्टाचार हटाएंगे. कभी कहते है कि जातिवाद हटाएंगे. सनद रहे साथियों, ये तमाम चीजें सन 47 से हटने के बजाय दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गयी. अतीत में पिता प्रदेश का अध्यक्ष था, तो वर्तमान में बेटा है. चंदे में मिली धन-राशि को नही बताएंगे. पर हम ईमानदार है. गांव में गाड़ी नहीं, पर हाईवे चाहिए. यही विकास है, जाति तोडो का नारा देंगे, पर दूरबीन से जाति खोंजेगे.

विकास को अग्रसर भारतीय जनता को गरीबी समेत तमाम अहम चीजों से लड़ना ही होगा

धर्म की आड़ में आडम्बर है, पर वोट बैंक सुरक्षित है तो वंदेमातरम् बोलेंगे. वंदेमातरम् का विरोध करना हमारा नैतिक कर्तव्य है, कहने वाला मौलाना भी मादरे-वतन के माथे को काटना चाह रहा है. अतीत के भारत मे शास्त्रार्थ था, तो वर्तमान के हिन्दोस्तान में बहस करने पर बलात्कार के फ़र्ज़ी जुर्म में जेल भी जाना पड़ सकता है.'

जहां से हमने लोकतंत्र को लिया, वहां के नेताओं ने सन्यासी बनकर, सायकिल चलाकर, अपने को संचय से दूर रखा. वहीं नकलची भारत सन्यासी से सम्भोग की तरफ बढ़ा. संचय को अपनाया. सत्य-नारायण की कथा कहते-कहते, असत्य को अपना धर्म मान लिया. अक्षर ज्ञान के आभाव में पशु-पक्षी तक अपनी आबादीको कंट्रोल में रखे हुए हैं, पर ज्ञान से परिपूर्ण आदमी अपनी आबादी को निरन्तर बढ़ाता जा रहा है. क्यों न बढ़ाये एक का सपना इस्लामिक राष्ट्र का है, तो दूसरे को हिंदू राष्ट्र बनाना है.

गजब के देश मे अजब का खेल है. पढ़ा-लिखा...

हम सभ्य हैं, क्योंकि हमारे पीछे हजारों साल की तपस्या है. संस्कृति है. जो गाय-गोबर में उलझती जा रही है. अगर हमारे आचरण में कही असभ्यता दिखती है, तो उसके पीछे हमारा वर्तमान है. क्योंकि वर्तमान में हमारे पास संसद, संविधान और सरकार है.जिसके पास अविश्सनीय जैसे शब्द हैं. कभी कहते हैं कि गरीबी हटाएंगे. कभी कहते है कि भ्र्ष्टाचार हटाएंगे. कभी कहते है कि जातिवाद हटाएंगे. सनद रहे साथियों, ये तमाम चीजें सन 47 से हटने के बजाय दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गयी. अतीत में पिता प्रदेश का अध्यक्ष था, तो वर्तमान में बेटा है. चंदे में मिली धन-राशि को नही बताएंगे. पर हम ईमानदार है. गांव में गाड़ी नहीं, पर हाईवे चाहिए. यही विकास है, जाति तोडो का नारा देंगे, पर दूरबीन से जाति खोंजेगे.

विकास को अग्रसर भारतीय जनता को गरीबी समेत तमाम अहम चीजों से लड़ना ही होगा

धर्म की आड़ में आडम्बर है, पर वोट बैंक सुरक्षित है तो वंदेमातरम् बोलेंगे. वंदेमातरम् का विरोध करना हमारा नैतिक कर्तव्य है, कहने वाला मौलाना भी मादरे-वतन के माथे को काटना चाह रहा है. अतीत के भारत मे शास्त्रार्थ था, तो वर्तमान के हिन्दोस्तान में बहस करने पर बलात्कार के फ़र्ज़ी जुर्म में जेल भी जाना पड़ सकता है.'

जहां से हमने लोकतंत्र को लिया, वहां के नेताओं ने सन्यासी बनकर, सायकिल चलाकर, अपने को संचय से दूर रखा. वहीं नकलची भारत सन्यासी से सम्भोग की तरफ बढ़ा. संचय को अपनाया. सत्य-नारायण की कथा कहते-कहते, असत्य को अपना धर्म मान लिया. अक्षर ज्ञान के आभाव में पशु-पक्षी तक अपनी आबादीको कंट्रोल में रखे हुए हैं, पर ज्ञान से परिपूर्ण आदमी अपनी आबादी को निरन्तर बढ़ाता जा रहा है. क्यों न बढ़ाये एक का सपना इस्लामिक राष्ट्र का है, तो दूसरे को हिंदू राष्ट्र बनाना है.

गजब के देश मे अजब का खेल है. पढ़ा-लिखा आदमी पढ़ाता नहीं, वहीं अनपढ़ पढ़ाने को मज़बूर है. नौजवान एक अदद नौकरी की तलाश में कहीं कांग्रेस तो कहीं भाजपा खेल रहा है. सक्षम लोग समानान्तर संस्थाएं खड़ी कर अपना इलाज मेदांता और बच्चे को मॉडर्न स्कूल में पढ़ा रहे हैं.

वहीं सरकारी संस्थाओं का हाल बद से बत्तर होता गया, अस्पतालों में ऑपरेशन होता नहीं, पाठशालाओं में बंधे हैं. गरीबों के देश में  सिर्फ अमीर ही चुनाव लड़ता है. भूखे-नंगे देश मे रोटी की कीमत सरकार तय करती है और नहाने के पानी की कीमत व्यापारी.

प्रिय दोस्तों भारत को बदलना है तो लड़ना सीखो. उस गरीबी से लड़ो जो गांव में स्थिर हो गयी है. उस शिक्षा से लड़ो जो कोरे कागज पर तो है, पर जिसने मन-मिज़ाज़ में मैला भर दिया. उस पूंजी के खिलाफ लड़ो जो प्रतिभाओं के हक़ और हक़ूक़ को मार रही है.

उस बहन-बेटियों के सुहाग के लिए लड़ो जो भारत मां की कोख से पैदा होने के पहले ही मार दी जा रही है. उस भ्र्ष्टाचार से लड़ो जो रुपये में कम आचरण में ज्यादा हो, उस बच्चे के भविष्य के लिए लड़ो, जिसके पैदा होते ही मुंह में मिलावटी दूध दिया जा रहा हो, उस नैतिकता के लिए लड़ो जिसको स्थापित करने में हमारे पूर्वजों की पीढ़िया दर पीढ़िया चली गयी. भारत बदल रहा है कहने से अच्छा है. मानवता मनुष्य का धर्म है. इसे सबको कहना चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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