• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

दार्जिलिंग बार-बार हिंसा की चपेट में क्यों??

    • राहुल लाल
    • Updated: 20 जून, 2017 01:18 PM
  • 20 जून, 2017 01:18 PM
offline
पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में भाषायी आधार पर अलग राज्य की मांग काफी पुरानी है. इंदिरा गांधी एवं मोरारजी देसाई के समय भी दार्जिलिंग में नेपाली भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने हेतु हिंसक झड़पें खूब हुई थीं.

पश्चिम बंगाल का अद्भभुत प्राकृतिक सौदर्य से परिपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग एक बार पुन: जबरदस्त हिंसा की आग में झुलस रहा है. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के दार्जिलिंग बंद के आह्वान ने इस पूरे क्षेत्र को युद्ध के अखाड़े में बदल दिया है. प्रदर्शनकारियों ने काफी संख्या में सरकारी कार्यालयों एवं गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया है. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच भीडंत खतरनाक रुप लेती जा रही है. यह संपूर्ण मामला तब घटित हो रहा है जब दार्जिलिंग का पर्यटन उद्योग चरम पर था. परंतु इस घटना के बाद दार्जिलिंग से पर्यटकों को जबरन बाहर निकाला गया है, अब स्थिति यह है कि अधिकांश होटलों पर ताला लगा हुआ है.

शनिवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और दूसरे संगठनों ने "डेस्टिनेशन पाटलेबास" नाम से विरोध मार्च निकाला था. पाटलेबास में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा प्रमुख विमल गुरुंग का घर व कार्यालय है. फलत: कर्सियांग, कलिम्पोंग, घूस, मिरिक और दूसरी जगहों से भारी संख्या में प्रदर्शनकारी "डेस्टिनेशन पाटलेबास"में भाग लेने पहुंचे थे. इन प्रदर्शनकारियों एवं पुलिस के झड़प में एक प्रदर्शनकारी मारा गया तथा 36 से ज्यादा पुलिस के जवान घायल हुए. अंतत: स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना का प्रयोग करना पड़ा, फिर भी स्थिति लगातार तनावपूर्ण बनी हुई है. अशांति के इस आग को बुझने में लंबा समय लगेगा. अब प्रश्न उठता है कि प्राकृतिक सौदर्य से परिपूर्ण दार्जिलिंग हिंसा की चपेटे में क्यों है?? क्यों बार-बार दार्जिलिंग के रमणीयता को नाकेबंदी, हड़ताल और अन्य हिंसक गतिविधियों से संबद्ध होना पड़ता है??

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भाषा संबंधी एक निर्णय से पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में शीतल बयारों के स्थान पर हिंसा ने स्थान ग्रहण कर लिया. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरे राज्य में...

पश्चिम बंगाल का अद्भभुत प्राकृतिक सौदर्य से परिपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग एक बार पुन: जबरदस्त हिंसा की आग में झुलस रहा है. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के दार्जिलिंग बंद के आह्वान ने इस पूरे क्षेत्र को युद्ध के अखाड़े में बदल दिया है. प्रदर्शनकारियों ने काफी संख्या में सरकारी कार्यालयों एवं गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया है. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच भीडंत खतरनाक रुप लेती जा रही है. यह संपूर्ण मामला तब घटित हो रहा है जब दार्जिलिंग का पर्यटन उद्योग चरम पर था. परंतु इस घटना के बाद दार्जिलिंग से पर्यटकों को जबरन बाहर निकाला गया है, अब स्थिति यह है कि अधिकांश होटलों पर ताला लगा हुआ है.

शनिवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और दूसरे संगठनों ने "डेस्टिनेशन पाटलेबास" नाम से विरोध मार्च निकाला था. पाटलेबास में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा प्रमुख विमल गुरुंग का घर व कार्यालय है. फलत: कर्सियांग, कलिम्पोंग, घूस, मिरिक और दूसरी जगहों से भारी संख्या में प्रदर्शनकारी "डेस्टिनेशन पाटलेबास"में भाग लेने पहुंचे थे. इन प्रदर्शनकारियों एवं पुलिस के झड़प में एक प्रदर्शनकारी मारा गया तथा 36 से ज्यादा पुलिस के जवान घायल हुए. अंतत: स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना का प्रयोग करना पड़ा, फिर भी स्थिति लगातार तनावपूर्ण बनी हुई है. अशांति के इस आग को बुझने में लंबा समय लगेगा. अब प्रश्न उठता है कि प्राकृतिक सौदर्य से परिपूर्ण दार्जिलिंग हिंसा की चपेटे में क्यों है?? क्यों बार-बार दार्जिलिंग के रमणीयता को नाकेबंदी, हड़ताल और अन्य हिंसक गतिविधियों से संबद्ध होना पड़ता है??

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भाषा संबंधी एक निर्णय से पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में शीतल बयारों के स्थान पर हिंसा ने स्थान ग्रहण कर लिया. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरे राज्य में बंगाली शिक्षा को अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया. राज्य सरकार के इसी भाषायी निर्णय को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने भाषाई मुद्दे का स्वरुप देकर पृथक गोरखालैंड पृथक राज्य की मांग को फिर से पुनर्जीवित कर दिया. हालांकि बाद में ममता बनर्जी ने स्पष्ट किया कि पहाड़ी क्षेत्र के लिए अनिवार्य बंगला का नियम आवश्यक नहीं है. परंतु उनके इस स्पष्टीकरण में विलंब हो चुका था और दार्जिलिंग हिंसा की चपेट में आ चुका था. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा इस स्पष्टीकरण को मानने के लिए तैयार नहीं है.

 

आखिर पृथक गोरखालैंड के मांग का संपूर्ण मामला क्या है??

पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में भाषायी आधार पर अलग राज्य की मांग काफी पुरानी है. इंदिरा गांधी एवं मोरारजी देसाई के समय भी दार्जिलिंग में नेपाली भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने हेतु हिंसक झड़पें खूब हुई थीं. ज्ञात हो आज नेपाली भाषा भी भारतीय संविधान के उस 8वीं अनुसूची का हिस्सा है, जिसमें अभी कुल 22 भारतीय भाषाएं हैं.

गोरखालैंड की मांग को अस्वीकार करने के कारण 1987 में दार्जिलिंग में राजीव गांधी की सभा में केवल 150 लोग आए थे. आज जिस पृथक गोरखालैंड आंदोलन की मांग हो रही है, इसकी नींव सुभाष घीसिंग ने रखी थी. 5 अप्रैल 1980 को सुभाष घीसिंग ने ही गोरखालैंड नाम का प्रयोग किया. जिसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल बनाने पर राजी हुई.

वर्ष 2008 में सुभाष घीसिंग पर जब नेपाली अस्मिता में धार्मिक आधार पर फूट डालने के आरोप लगे तो उन्हें दार्जिलिंग छोड़ना पड़ गया. अब इस आंदोलन का नेतृत्व बिमल गुरुंग कर रहे हैं. गुरुंग के नेतृत्व संभालने के बाद पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में फिर से आंदोलन की आंच काफी तेज हो गई है तथा स्थिति बिगड़ गई है.

बिमल गुरुंग ने गोरखा लिबरेशन फ्रंट से अलग होकर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का निर्माण किया. स्पष्ट है कि सुभाष घीसिंग के लिबरेशन फ्रंट की तुलना में बिमल गुरुंग के गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने पृथक राज्य गोरखालैंड के आंदोलन को न केवल पुनर्जीवित किया अपितु आंदोलन की धार को भी काफी तीखा कर दिया है. फलत: पृथक गोरखालैंड की मांग दोबारा काफी तेज हो गई है. गोरखालैंड में जो क्षेत्र आते हैं, वे हैं- बनारहाट,भक्तिनगर, बिरपारा,चाल्सा, दार्जिलिंग, जयगांव, कालचीनी, कलिम्पोंग, कुमारग्राम, कार्सेंग, मदारीहाट, मालबाजार, मिरिक और नगरकाटा.

स्थानीय चुनाव का भी प्रमुख मुद्दा-

पृथक गोरखालैंड का मुद्दा वहां के क्षेत्रीय चुनाव में भी काफी गर्म रहा है. यही कारण है कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बार-बार इस मुद्दे को गर्म कर रही है. वर्ष 2011 में गोरखालैंड एडमिनिस्ट्रेशन की स्थापना की गई, जिसके बाद बिमल गुरुंग को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया. क्षेत्रीय अस्मिता एवं अलग राज्य के मुद्दे को ही गर्म कर स्थानीय निकाय चुनावों में 4 में से 3 सीटें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने ही जीता.

गोरखालैंड के मुद्दे को ममता बनर्जी ने समर्थन दिया था, फिर यह टकराव क्यों??

यह संपूर्ण मामला भी काफी जटिल है. ममता बनर्जी ने सत्ता में आते ही गोरखालैंड एग्रीमेंट पारित किया था. इसके बाद भी वे लगातार पहाड़ों में भी मीटिंग करती रही. उन्होंने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के अंतर्गत आने वाली सभी जनजातियों के लिए अलग-अलग विकास बोर्डों का गठन कर दिया, जिससे इन जनजातियों को राज्य सरकार से प्रत्यक्षत: आर्थिक सहयोग दिया जा सके. इस संपूर्ण प्रक्रिया से गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का महत्व कम हो गया. वहीं बिमल गुरंग ने अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए इस आंदोलन को फिर से मजबूत गति और दिशा प्रदान की है.

कंचनजंघा की चोटियों की बेहतरीन दृश्यों से परिपूर्ण दार्जिलिंग में अब कोई पर्यटक नहीं रहा और न ही इन दृश्यों को कैमरे में कैद करने वाले फोटोग्राफर. बचपन से मैं दार्जिलिंग की इस सुंदरता को ग्रीष्मावकाश में देखा करता था. दार्जिलिंग के हिंसा के जो दृश्य टीवी पर दिख रहे हैं, उसने मेरे स्वर्णिम बाल अतीत को भी हिला दिया है.

चाहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा हो या राज्य सरकार और केन्द्र सरकार, इन सभी पक्षों को बिना किसी राजनीतिक लाभ के इस मामले पर मिलकर वार्ता करनी चाहिए. सबकी प्राथमिकता में जलते दार्जिलिंग को बचाना सर्वप्रथम होना चाहिए, तभी इस खूबसूरत पर्यटन स्थल पर हिंसा के स्थान पर खुशी की किलकारियों और पर्यटकों की गूंज फिर सुनाई देंगी. पर्यटन ही इस छोटे से पर्वतीय स्थल की मुख्य आजीविका का साधन है. लहुलुहान दार्जिलिंग को अभी शांति का इंतजार है.

ये भी पढ़ें-

दार्जिलिंग हिंसा: भाषा तो एक बहाना है

मकसद सिर्फ बीजेपी को रोकना नहीं, ममता भी विपक्ष मुक्त सत्ता चाहती हैं

जीत के जोश से भरपूर ममता बनर्जी का अब नया रूप देखने को मिलेगा

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲