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मकसद सिर्फ बीजेपी को रोकना नहीं, ममता भी विपक्ष मुक्त सत्ता चाहती हैं

    • आईचौक
    • Updated: 25 मई, 2017 08:37 PM
  • 25 मई, 2017 08:37 PM
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ममता बनर्जी तो लगता है बीजेपी से दो कदम आगे ही चल रही हैं - ममता के इरादे तो बता रहे हैं कि बीजेपी से बहुत पहले वो विपक्ष मुक्त बंगाल बना लेना चाहती हैं.

बीजेपी अभी तक कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में जुटी हुई है. बीजेपी के चाल, चरित्र और चेहरे को देखकर माना जाने लगा है कि अब वो विपक्ष मुक्त भारत की इच्छा रखने लगी है. उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश से लेकर जिस तरह दिल्ली में कपिल मिश्रा के पीछे बीजेपी का नाम उछला - उसका इरादा साफ होता चला गया.

मगर ख्वाहिश वाली बीजेपी अकेली नहीं है. ममता बनर्जी तो लगता है बीजेपी से दो कदम आगे ही चल रही हैं - ममता के इरादे तो बता रहे हैं कि बीजेपी से बहुत पहले वो विपक्ष मुक्त बंगाल बना लेना चाहती हैं.

येन केन प्रकारेण...

बात इसी 25 अप्रैल की है. अमित शाह नक्सलबाड़ी के एक आदिवासी परिवार के मेहमान थे. अमित शाह के आदिवासी दंपती के साथ लंच की चर्चा भी खूब हुई. फिर पता चला वो दंपती अचानक गायब हो गया.

बाद में गीता और राजू महाली सामने आये तो फिर सुर्खियों का हिस्सा बने - शाह की मेजबानी करने वाला महाली दंपती कांग्रेस में शामिल हो गया. कुछ दिनों बाद महाली दंपती को लेकर एक और खबर आयी. खबर भी वही थी जो बीजेपी का इल्जाम था. बीजेपी ने इसे बदले की राजनीति का मामला बताया था.

इकनॉमिक टाइम्स में छपी खबर के अनुसार दोनों को उनके गांव नक्सलबाड़ी से उठाया गया था - और उनके तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की सहमति जताने के बाद ही छोड़ा गया.

बीजेपी से दो कदम आगे ममता

बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष का आरोप है, 'बंगाल को विपक्ष-मुक्त बनाने का मिशन इस कदर चल रहा है कि सत्ताधारी पार्टी ने हाल में संपन्न हुए स्थानीय निकाय चके चुनावों में विपक्षी काउंसलर्स को लुभाने या डराने धमकाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.'

आखिर क्यों

कुल सात नगर निगमों के लिए चुनाव...

बीजेपी अभी तक कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में जुटी हुई है. बीजेपी के चाल, चरित्र और चेहरे को देखकर माना जाने लगा है कि अब वो विपक्ष मुक्त भारत की इच्छा रखने लगी है. उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश से लेकर जिस तरह दिल्ली में कपिल मिश्रा के पीछे बीजेपी का नाम उछला - उसका इरादा साफ होता चला गया.

मगर ख्वाहिश वाली बीजेपी अकेली नहीं है. ममता बनर्जी तो लगता है बीजेपी से दो कदम आगे ही चल रही हैं - ममता के इरादे तो बता रहे हैं कि बीजेपी से बहुत पहले वो विपक्ष मुक्त बंगाल बना लेना चाहती हैं.

येन केन प्रकारेण...

बात इसी 25 अप्रैल की है. अमित शाह नक्सलबाड़ी के एक आदिवासी परिवार के मेहमान थे. अमित शाह के आदिवासी दंपती के साथ लंच की चर्चा भी खूब हुई. फिर पता चला वो दंपती अचानक गायब हो गया.

बाद में गीता और राजू महाली सामने आये तो फिर सुर्खियों का हिस्सा बने - शाह की मेजबानी करने वाला महाली दंपती कांग्रेस में शामिल हो गया. कुछ दिनों बाद महाली दंपती को लेकर एक और खबर आयी. खबर भी वही थी जो बीजेपी का इल्जाम था. बीजेपी ने इसे बदले की राजनीति का मामला बताया था.

इकनॉमिक टाइम्स में छपी खबर के अनुसार दोनों को उनके गांव नक्सलबाड़ी से उठाया गया था - और उनके तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की सहमति जताने के बाद ही छोड़ा गया.

बीजेपी से दो कदम आगे ममता

बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष का आरोप है, 'बंगाल को विपक्ष-मुक्त बनाने का मिशन इस कदर चल रहा है कि सत्ताधारी पार्टी ने हाल में संपन्न हुए स्थानीय निकाय चके चुनावों में विपक्षी काउंसलर्स को लुभाने या डराने धमकाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.'

आखिर क्यों

कुल सात नगर निगमों के लिए चुनाव हुए थे जिनमें से चार में तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की. इनमें सबसे खास बात रही मिरिक में टीएमसी को मिली जीत जिस पर पहले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का कब्जा था. पिछले तीन दशक में ये पहला मौका रहा जब किसी गैर पहाड़ी पार्टी ने मिरिक पर फतह हासिल की हो.

तीन नगर निगमों की कुल 64 सीटों में से तृणमूल ने 56 सीटों पर कब्जा जमा लिया. यानी सिर्फ 8 विपक्ष के खाते में जा पाईं. बताते हैं कि इनमें से भी चार अब तृणमूल कांग्रेस में शिफ्ट होने वाले हैं.

अब वो दौर भी गुजर चुका है जब तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के सामने सबसे बड़ा खतरा वाम मोर्चा हुआ करता था. कांग्रेस को तो उन्होंने कहीं का नहीं छोड़ा है. कांग्रेस और टीमसी का तो दिल्ली में राम और बंगाल में छुरी वाला रिश्ता बना हुआ है. ऐसे में ताजा खतरा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी है. निकाय चुनावों में बीजेपी की पोजीशन इस बात का सबूत है.

बीजेपी यानी बड़ा खतरा

जरा नगर निकाय चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें - ऐसी 14 सीटें रहीं जहां बीजेपी दूसरे नंबर पर रही. इसी तरह छह सीटें ऐसी रहीं जहां बीजेपी उम्मीदवारों को 40-50 हजार वोट मिले. बीजेपी को 16 सीटों पर 30-40 हजार और 65 सीटों पर मिले वोटों की संख्या 20 से 30 हजार रही. इतना ही नहीं 60 से ज्यादा ऐसी सीटें रहीं जहां बीजेपी सीधे सीधे बाकी दोनों पार्टियों की हार की वजह बनी.

ये आंकड़े बताते हैं कि पश्चिम बंगाल के लोग तृणमूल कांग्रेस को जिता रहे हैं और वाम मोर्चा से अब उन्हें कोई मतलब नहीं, न ही कांग्रेस से है. तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि तृणमूल के बाद दूसरे नंबर पर लोगों को बीजेपी ही पसंद है. संभव है उन्होंने तृणमूल से मन भर जाने पर बीजेपी को आजमाने का मन बना लिया हो.

ये डाल डाल, वो पात पात

ममता की टीएमसी का कांग्रेस के साथ दिल्ली और कोलकाता में अलग अलग रिश्ता है. कोलकाता में कांग्रेस नेता वाम मोर्चा के साथ मिल कर ममता सरकार के खिलाफ अगले सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं. दिल्ली में तो आलम ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अस्पताल से ममता को फोन कर रही हैं और मुलाकात का न्योता दे रही हैं. वैसे खबर है कि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर ममता दोबारा सोनिया से मुलाकात कर सकती हैं. असल में उम्मीदवार को लेकर आम राय नहीं बन पा रही है. बाकियों की पसंद तो अपनी जगह है, सोनिया पूर्व स्पीकर मीरा कुमारी के पक्ष में हैं तो ममता पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी के नाम पर टस से मस होने तो तैयार नहीं है.

शारदा से लेकर नारदा स्टिंग तक की शिकार अपने नेताओं को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहीं ममता बीजेपी के खिलाफ भी लगातार हमलावर बनी हुई हैं. निकाय चुनाव की रैलियों में बीजेपी नेताओं के खिलाफ ममता का गुस्सा देखते ही बनता था. रैलियों में ममता कहती भी रहीं कि बीजेपी को जवाब देने की हिम्मत अगर किसी में है तो वो सिर्फ टीएमसी ही है - और नक्सलबाड़ी वाले महाली दंपती अगर अपनी मर्जी से ममतामय नहीं हुए हैं तो वास्तव में बीजेपी डाल डाल और ममता बनर्जी पात पात हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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