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Explainer: भारत में किन वजहों से वापस लौट आया कोरोना

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 08 अप्रिल, 2021 12:48 PM
  • 08 अप्रिल, 2021 12:48 PM
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किसी भी महामारी के लंबे चलने के दौरान जब लोग उससे बचाव के तरीकों को किनारे रखते हुए पहले की तरह ही जीना शुरू कर देते हैं. इसे ही पेंडेमिक फटीग (Pandemic Fatigue) कहा जाता है. पेंडेमिक फटीग में लोगों के अंदर महामारी से संक्रमण का डर खत्म हो जाता है.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने देश में कोविड-19 के मामलों में पिछले सभी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया है. देश भर में कोरोना के बढ़ते मामलों और इससे हो रही मौतों ने सरकार और आम लोगों में फिर से डर भरना शुरू कर दिया है. कई राज्यों में फिर से लॉकडाउन लगने की आहट के बीच प्रवासी अपने घरों की ओर फिर से लौटने लगे हैं. छोटे दुकानदार और व्यापारियों को कारोबार में झटका लगना शुरू हो गया है. कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार हो रही वृद्धि गंभीर से भयावह होने की ओर बढ़ चली है. बीते साल सितंबर के बाद कोरोना के मामलों में काफी गिरावट आई थी. लेकिन, अब संक्रमण फिर से फैलने लगा है. बीती 6 अप्रैल को अब तक के सर्वाधिक 1.15 लाख मामले दर्ज किए गए हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि मामले घटने के बाद अचानक से कैसे और किन वजहों से बढ़ गए?

कोरोनाकाल में लगाए गए लॉकडाउन के बाद 1 जून से अनलॉक की प्रकिया शुरू हुई. केंद्र सरकार ने चरणबद्ध तरीके से हर महीने लॉकडाउन के नियमों में ढील देते हुए जन-जीवन को सामान्य बनाने की ओर कदम बढ़ाए. साल 2020 के अंत तक लगभग सभी चीजों को कुछ शर्तों के साथ खोल दिया गया. जनवरी, 2021 में कोरोनारोधी टीकाकरण भी शुरू कर दिया गया. कहा जा सकता है कि यही वो समय था, जब लोगों के बीच से कोरोना संक्रमण का डर धीरे-धीरे खत्म होने लगा. इससे पहले चुनाव की रैलियों में आ रही भीड़ में नियमों की धज्जियां उड़ाई जाने लगीं. चुनावी राज्यों में से दो राज्य पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में काफी संख्या में कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं. लोगों ने वैक्सीन की खबर से राहत की सांस ली, लेकिन कुछ ज्यादा ही निश्चिंत हो गए. फरवरी, 2021 में आम लोगों ने कोरोना से बचने के लिए जरूरी नियमों ढिलाई करना शुरू कर दिया. मार्च में कुंभ और होली जैसे बड़े आयोजन और त्योहारों में लोगों ने सभी नियमों को ताक पर रख दिया. जिसकी वजह से अचानक से देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर सामने आ गई.

कोविड-एप्रोप्रिएट बिहेवियर में कमी

कोविड-19 के मामले बढ़ने का सबसे बड़ा...

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने देश में कोविड-19 के मामलों में पिछले सभी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया है. देश भर में कोरोना के बढ़ते मामलों और इससे हो रही मौतों ने सरकार और आम लोगों में फिर से डर भरना शुरू कर दिया है. कई राज्यों में फिर से लॉकडाउन लगने की आहट के बीच प्रवासी अपने घरों की ओर फिर से लौटने लगे हैं. छोटे दुकानदार और व्यापारियों को कारोबार में झटका लगना शुरू हो गया है. कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार हो रही वृद्धि गंभीर से भयावह होने की ओर बढ़ चली है. बीते साल सितंबर के बाद कोरोना के मामलों में काफी गिरावट आई थी. लेकिन, अब संक्रमण फिर से फैलने लगा है. बीती 6 अप्रैल को अब तक के सर्वाधिक 1.15 लाख मामले दर्ज किए गए हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि मामले घटने के बाद अचानक से कैसे और किन वजहों से बढ़ गए?

कोरोनाकाल में लगाए गए लॉकडाउन के बाद 1 जून से अनलॉक की प्रकिया शुरू हुई. केंद्र सरकार ने चरणबद्ध तरीके से हर महीने लॉकडाउन के नियमों में ढील देते हुए जन-जीवन को सामान्य बनाने की ओर कदम बढ़ाए. साल 2020 के अंत तक लगभग सभी चीजों को कुछ शर्तों के साथ खोल दिया गया. जनवरी, 2021 में कोरोनारोधी टीकाकरण भी शुरू कर दिया गया. कहा जा सकता है कि यही वो समय था, जब लोगों के बीच से कोरोना संक्रमण का डर धीरे-धीरे खत्म होने लगा. इससे पहले चुनाव की रैलियों में आ रही भीड़ में नियमों की धज्जियां उड़ाई जाने लगीं. चुनावी राज्यों में से दो राज्य पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में काफी संख्या में कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं. लोगों ने वैक्सीन की खबर से राहत की सांस ली, लेकिन कुछ ज्यादा ही निश्चिंत हो गए. फरवरी, 2021 में आम लोगों ने कोरोना से बचने के लिए जरूरी नियमों ढिलाई करना शुरू कर दिया. मार्च में कुंभ और होली जैसे बड़े आयोजन और त्योहारों में लोगों ने सभी नियमों को ताक पर रख दिया. जिसकी वजह से अचानक से देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर सामने आ गई.

कोविड-एप्रोप्रिएट बिहेवियर में कमी

कोविड-19 के मामले बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है कोविड-एप्रोप्रिएट बिहेवियर (कोरोना महामारी से बचाव के उपयुक्त उपाय) में कमी. कोरोनाकाल में साबुन से कई बार हाथ धोना, बाहर या भीड़-भाड़ वाले इलाकों में मास्क और सोशल डिस्टेंसिग का पालन करने जैसी आदतें लोगों के बीच आम हो गई थीं. लेकिन, बीते कुछ महीनों में लोगों में यह आदत कम होती चली गई. वैक्सीन आने की खबर ने इसे बढ़ाने में कुछ हद तक सहयोग किया. चुनावी राज्यों की रैलियों में आई भीड़ ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं. बाजारों, शॉपिंग मॉल्स आदि में लोगों की भीड़ बढ़ने लगी. लोगों ने मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को केवल उन्हीं जगहों तक सीमित कर दिया, जहां मजबूरन उनका पालन करना जरूरी था. होली और कुंभ के दौरान लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस दौरान लोगों में कोरोना टेस्ट और कोविड-एप्रोप्रिएट बिहेवियर को लेकर उदासीनता साफ नजर आई.

पेंडेमिक फटीग में लोगों के अंदर महामारी से संक्रमण का डर खत्म हो जाता है.

पेंडेमिक फटीग

किसी भी महामारी के लंबे चलने के दौरान जब लोग उससे बचाव के तरीकों को किनारे रखते हुए पहले की तरह ही जीना शुरू कर देते हैं. इसे ही पेंडेमिक फटीग (Pandemic Fatigue) कहा जाता है. पेंडेमिक फटीग में लोगों के अंदर महामारी से संक्रमण का डर खत्म हो जाता है. लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की परवाह किए बिना कहीं भी आसानी से आने-जाने और बाजारों आदि में पहुंचने लगते हैं. एक तरह से लॉकडाउन की थकावट को मिटाने के लिए जिम, स्वीमिंग पूल, सिनेमा, एंटरटेनमेंट पार्क आदि में बिना किसी डर के बड़ी संख्या में पहुंचने लगते हैं. भारत में भी अब लोग कोरोना संक्रमण को लेकर बेपरवाह होते नजर आ रहे हैं. पेंडेमिक फटीग की वजह से लोगों में गुस्सा बढ़ जाता है, चिड़चिड़ापन महसूस होता है, आत्मविश्वास में कमी आ जाती है, अनिद्रा, काम में मन न लगना आदि लक्षण सामने आते हैं.

स्थानीय स्तर पर लापरवाही

कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और कंटेनमेंट जोन जैसे शब्द लॉकडाउन के खत्म होने के साथ ही कमजोर पड़ते गए. राज्यों में रैपिड टेस्ट किए जाने लगे और आंकड़ों में कमी आने लगी. राज्य सरकारों के आदेशों के बावजूद स्थानीय स्तर पर प्रशासन ने घोर लापरवाही बरती. पेंडेमिक फटीग ने इसे और बढ़ावा दिया. इस दौरान अगर कुछ लोग संक्रमित भी हुए, तो उन्होंने इसे आम सर्दी मानकर किसी को जानकारी भी नहीं दी. हालांकि, राज्य सरकारों ने कोरोना की दूसरी लहर सामने आने के साथ ही फिर से कमर कस ली है और कॉनटैक्ट ट्रेसिंग के साथ कंटेनमेंट जोन बनाने के फैसले कर दिए गए हैं.

कोरोना वायरस के वेरिएंट

भारत में कोरोना वायरस के कई प्रकार सामने आए हैं. पंजाब में कोरोना संक्रमण की जांच में यूके वेरिएंट सामने आने से लोगों में दहशत है. दक्षिण अफ्रीकी, ब्राजील, अम अमेरिका के वेरिएंट भी भारत में पाए गए हैं. देश में कोरोना वायरस का एक नया 'डबल म्यूटेंट' वेरिएंट सामने आया है. हालांकि, इससे संक्रमित लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नही है. लेकिन, भारत में कोरोना के इतने वेरिएंट होना चिंताजनक है. इन सभी वेरिएंट की संक्रमण दर काफी ज्यादा है.

कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों को देखते हुए लोगों को महामारी से बचने के लिए सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देशों को मानना चाहिए. मास्क, बार-बार हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग (दो गज की दूरी) का पालन करना चाहिए. कोरोना संक्रमण के बढ़ने का कारण लोगों की इसे लेकर बढ़ी बेफिक्री है. इस पर फिर से नियंत्रण पाया जा सकता है, बस हमें कोरोना से बचाने वाले उपायों को हर जगह अपनाना होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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