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बच्चियों के साथ बलात्कार क्यों?

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 21 अप्रिल, 2018 05:57 PM
  • 21 अप्रिल, 2018 05:44 PM
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यौन हिंसा करने वाले हर व्यक्ति का अतीत किसी न किसी रूप में हिंसक रहा है. या तो वो खुद यौन शोषण का शिकार हुआ है यै फिर उसने किसी और को शिकार होते देखा है.

रोजाना खबरें पढ़िए, और शर्मसार हो जाइए, क्योंकि अब आपके पास कोई चारा ही नहीं बचा है, सिवाए शर्मिंदगी के. हर आधे घंटे में एक 'बच्ची' का बलात्कार हो रहा है और हर घंटे इंसानियत शर्मसार. वो बात और है कि इसपर स्वाति मालिवाल पिछले एक सप्ताह से भूख हड़ताल पर बैठी हैं, और प्रधानमंत्री मोदी लंदन में ‘भारत की बात, सबके साथ' करते हुए ये कह रहे हैं कि 'किसी बेटी से बलात्कार, देश के लिये शर्म की बात है'. और देखिए कि उनके पास भी सिवाए शर्मिंदगी के कुछ और नहीं है.

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में एक 6 साल की बच्ची जो बारात देखने घर से बाहर गई थी, बलात्कार की शिकार हो गई. और इसी के साथ ये एक मामला भी उस फेहरिस्त में शामिल हो गया जो पिछले कई दिनों से बढ़ती जा रही है. कठुआ गैंगरेप, उन्नाव रेप, सासाराम रेप, सूरत रेप...ये मामले भयावह हैं, क्योंकि इनमें जिनका रेप किया गया वो मासूम बच्चियां थीं. और ये मामले हम सभी के सामने ये सवाल छोड़ जाते हैं कि 'बच्चियों के साथ कोई रेप करने की सोच भी कैसे सकता है?', तो आज जवाब इसी बात का, कि आखिर क्यों कोई मासूम बच्चियों से अपनी हवस मिटाता है.

हर आधे घंटे में एक बच्ची के साथ बलात्कार हो रहा है

पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा रेप के मामले में दक्षिण अफ्रीका 2012 में पहले नंबर पर था. यहीं की सोशल वर्कर डॉ.अमीलिया क्लेजन(Amelia Kleijn) ने बच्चों के साथ रेप करने वाले रेपिस्ट के साथ कुछ वक्त गुजारा और उनके जीवन में झांकने का प्रयास किया कि आखिर वो क्या वजह थीं, जिसकी वजह से उन्होंने बच्चों का बलात्कार किया.

अमीलिया का मानना है कि हम सब एक खाली पन्ने के साथ पैदा हुए हैं, जो धीरे-धीरे जीवन के अनुभवों से भरता जाता है, यही अनुभव हमें आकार देते हैं कि हम क्या बनना चाहते हैं. हम सब अपनी-अपनी परवरिश से प्रभावित...

रोजाना खबरें पढ़िए, और शर्मसार हो जाइए, क्योंकि अब आपके पास कोई चारा ही नहीं बचा है, सिवाए शर्मिंदगी के. हर आधे घंटे में एक 'बच्ची' का बलात्कार हो रहा है और हर घंटे इंसानियत शर्मसार. वो बात और है कि इसपर स्वाति मालिवाल पिछले एक सप्ताह से भूख हड़ताल पर बैठी हैं, और प्रधानमंत्री मोदी लंदन में ‘भारत की बात, सबके साथ' करते हुए ये कह रहे हैं कि 'किसी बेटी से बलात्कार, देश के लिये शर्म की बात है'. और देखिए कि उनके पास भी सिवाए शर्मिंदगी के कुछ और नहीं है.

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में एक 6 साल की बच्ची जो बारात देखने घर से बाहर गई थी, बलात्कार की शिकार हो गई. और इसी के साथ ये एक मामला भी उस फेहरिस्त में शामिल हो गया जो पिछले कई दिनों से बढ़ती जा रही है. कठुआ गैंगरेप, उन्नाव रेप, सासाराम रेप, सूरत रेप...ये मामले भयावह हैं, क्योंकि इनमें जिनका रेप किया गया वो मासूम बच्चियां थीं. और ये मामले हम सभी के सामने ये सवाल छोड़ जाते हैं कि 'बच्चियों के साथ कोई रेप करने की सोच भी कैसे सकता है?', तो आज जवाब इसी बात का, कि आखिर क्यों कोई मासूम बच्चियों से अपनी हवस मिटाता है.

हर आधे घंटे में एक बच्ची के साथ बलात्कार हो रहा है

पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा रेप के मामले में दक्षिण अफ्रीका 2012 में पहले नंबर पर था. यहीं की सोशल वर्कर डॉ.अमीलिया क्लेजन(Amelia Kleijn) ने बच्चों के साथ रेप करने वाले रेपिस्ट के साथ कुछ वक्त गुजारा और उनके जीवन में झांकने का प्रयास किया कि आखिर वो क्या वजह थीं, जिसकी वजह से उन्होंने बच्चों का बलात्कार किया.

अमीलिया का मानना है कि हम सब एक खाली पन्ने के साथ पैदा हुए हैं, जो धीरे-धीरे जीवन के अनुभवों से भरता जाता है, यही अनुभव हमें आकार देते हैं कि हम क्या बनना चाहते हैं. हम सब अपनी-अपनी परवरिश से प्रभावित होते हैं, जो हमारी जीवन की कहानी के पन्नों के लिए नींव का काम करती है. यानी हम सभी अपनी परवरिश के हिसाब से ही व्यवहार करते हैं. तो अगर आपने अपनी परवरिश में गुस्सा, नकारात्मकता, पिटाई या फिर अस्वीकृति झेली है, तो फिर आप हिंसा के दुष्चक्र में फंस जाते हैं. आप यही सोचते सोचते बड़े होते हैं कि आपको ऐसे ही होना चाहिए, जब तक कोई कोई शुभचिंतक आपको रोक नहीं देता.

अमीलिया ने 3 साल दक्षिण अफ्रीका की जेलों में कैद 10 बलात्कारियों का इंटरव्यू किया जिन्होंने 3 साल से भी कम उम्र की बच्चियों का रेप किया था. उन्होंने पाया कि सभी पुरुष गंभीर रूप से बिगड़े हुए इंसान थे. और यही कारण था कि उन्होंने ऐसा किया था. उन्हें कोई सहानुभूति या पछतावा नहीं होता क्योंकि वे जानते ही नहीं जानते कि ये करें कैसे.

'इंटरव्यू के आखिर में उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया कि उनके जीवन में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी ने बिना किसी निर्णय के, सहानुभूति और सम्मान के साथ उनकी बात सुनी. और इसी बात ने ये बता दिया कि गलती कहां हुई थी.

'ये समझना भी जरूरी है कि रेप का मतलब सेक्स नहीं है. रेप का आशय शक्ति से है. इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि विक्टिम गलत समय पर गलत जगह पर थी'. उन्होंने जितने भी पुरुषों से बात की उनमें उन्होंने बेतहाशा गुस्से का अनुभव किया.

देखिए वीडियो-

बच्चों के साथ रेप करने वाले ये लोग होते कौन हैं-

भारत में मेंटल हेल्थ और चाइल्ड एब्यू़ज के क्षेत्र में काम कर रहे एक्सपर्ट्स का मानना है कि अपराधी हम में से कोई भी हो सकता है और वे हमारे घरों में ही रहते हैं. बच्चों के साथ रेप या यौन शोषण करने वाले ज्यादातर लोग घर के ही होते हैं. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक-

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट मोनिका कुमार का कहना है कि 'यौन हिंसा और क्रूरता जैसे खतरनाक व्यवहार जो हम देखते हैं, ऐसा लगता है कि हर दूसरा व्यक्ति एक मनोरोगी है. जबकि उसे मदद की जरूरत है, अपराधी को समझने की जरूरत है. कि वो कहां से आ रहे हैं?'

इस तरह के घिनौने अपराधों को अंजाम देने वाले लोगों का बैकग्राउंड देखें तो अधिकांश में एक बात कॉमन पाई जाती है कि इनके अतीत में हिंसा का एक इतिहास रहा होता है- छोटे-छोटे कां जो समय के साथ विचलित व्यवहार में दबदील होते चले गए.

अपराधी को समझने की जरूरत है

काउंसलर अनुजा गुप्ता का कहना है कि 'बच्चों का यौन उत्पीड़न बलपूर्वक किया जाने वाला कार्य है. अगर एक अपराधी एक बच्चे का यौन शोषण करता है, तो ये संभावनाएं और बढ़ जाती हैं कि वो और बच्चों के साथ भी ये सब करे. इसलिए अगर हम यौन शोषण को रोकना चाहते हैं, तो हमें वास्तव में इसे रोकना होगा. जेल में बंद करने के बजाए हमें उनका इलाज कराना चाहिए.'

हम ऐसी संस्कृति में रह रहे हैं जहां महिलाओं और लड़कियों को सेक्शुअलाइज किया जाता है. यौन हिंसा या यौन उत्पीड़न के मामले में हम अब तक बहुत ज्यादा सहिष्णु रहे हैं. और यही इसकी वजह भी है. उसी को आप रेप कल्चर कहते हैं जो असल में लड़कियों से बलात्कार करने की अनुमति देता है. बच्चों के साथ यौन संबंध रखने वाले फिर बच्चों को देखकर ही उत्तेजित हो जाते हैं.'

आर्ट ड्रामा थेरेपिस्ट और डेपलपमेंट वर्कर विक्रमजीत सिन्हा का कहना है कि - 'हर अपराधी किसी न किसी तरह से खुद शिकार रह चुका होता है. जरूरी नहीं कि वो यौन शोषित ही हुआ हो. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हर बलात्कारी के साथ बलात्कार किया गया है. लेकिन मैं कह सकता हूं कि यौन हिंसा करने वाले हर व्यक्ति का अतीत किसी न किसी रूप में हिंसक रहा है. या तो वो खुद यौन शोषण का शिकार हुआ है यै फिर उसने किसी और को शिकार होते देखा है. यह सिर्फ पुरुष बनाम महिला नहीं है. घर से भाग जाने वाले लड़कों का अतीत देखें तो पाएंगे कि उनमें से सभी के घर पर किसी न किसी तरह की हिंसा हुई है. मां पीटती हैं, क्योंकि मांओं को पति उनको पीटते हैं. इसलिए ये व्यवहार तो खुद ब खुद आ जाता है. इसलिए शक्ति या हिंसा की प्रकृति संक्रमित होती है. और इसलिए ये कहना मुश्किल है कि दोष किसे दें- उस विकृत व्यक्ति को या उस संरचना को जो विकृत है.'

यौन हिंसा करने वाले हर व्यक्ति का अतीत किसी न किसी रूप में हिंसक रहा है.

अगर लड़का अपनी मां को पिटते देखता है तो उसके मन में अचानक एक खालीपन आ जाता है और ये खालीपन एक ब्लैक होल की तरह है. लड़का फिर खुद को संतुष्ट करने ते तरीके खोजता है. किशोरावस्था में जब हार्मोन में बदलाव होता है, काम का तरफ आकर्षण बढ़ता है तो उस वक्त उसे किसा का जरूरत होती है. ऐसे कई लड़के हैं जो एक दूसरे के साथ यौन संबंध बनाते हैं, चाहे वो छोटे हों या बड़े. और फिर शिकार कौन? ये शिकार या तो जीवन भर शिकार बने रहेंगे या फिर किसी और का शिकार करेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि यही सही है. इसलिए वो उन महिलाओं का शिकार करता है जिन्हें वो  कमजोर समझता है, या कम उम्र के लड़के. इन संदर्भों में सेक्स को वासना नहीं बल्कि पॉवर या शक्ति की तरह माना जाता है.'

मानस फाउंडेशन के एक मनोवैज्ञानिक नवीन कुमार का कहना है कि- 'ये किसी शिक्षा प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं. वे किसी भी व्यावसायिक प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं. उनके परिवार ज्यादातर या तो निष्क्रिय हैं या टूटे हुए परिवार हैं. भारतीय समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं रिश्तेदार, जो इनके जीवन में नहीं हैं. अगर यह बच्चा या यह किशोर चार दिन या चार घंटे के लिए भी गायब है, तो कोई भी इससे सवाल नहीं पूछने वाला.'

छोटी बच्चियां हो या छोटे बच्चे, दोनों ही यौन शोषण का शिकार होते हैं. बहुत से लोग यौन शोषमण के पीछे परवरिश को दोष देते हैं. हां वो भी महत्वपूर्ण है, लेकिन इन बातों से जो बात सबसे अहम मालूम देती है वो ये कि अपने बच्चों को हम दिखा क्या रहे हैं, कैसा माहौल दे रहे हैं. बच्चों को बचाना है तो बच्चों को बचपन से ही सही और गलत का ज्ञान देना जरूरी है....लेकिन उससे पहले हमारे समाज को सही और गलत का ज्ञान होना चाहिए. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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