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आखिर क्यों छिपाई जाए बलात्कार पीड़िता की पहचान?

    • महेंद्र गुप्ता
    • Updated: 16 अप्रिल, 2018 07:45 PM
  • 16 अप्रिल, 2018 07:45 PM
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मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक जिस तरह कठुआ मामले में बच्ची की पहचान जाहिर की गयी उससे न सिर्फ इंसानियत शर्मसार हुई बल्कि इस बात का भी एहसास हुआ कि आज हमें कानून का जरा भी खौफ नहीं है.

जब बलात्कार की खबर जाती है तो सबसे पहले यही अहतियात बरती जाती है कि कहीं पीड़िता का नाम और फोटो खबर में न चला जाए. हमेशा से खटकती रही है ये बात. भारतीय दंड संहिता के अनुसार, बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करना दंडनीय अपराध है. अपराधी को 228-ए के तहत दो साल तक की सजा हो सकती है. आखिर क्यों? इस कानून के पीछे यही मंशा रही होगी कि कहीं पीड़िता की पहचान उजागर न हो जाए. ऐसा होने से उसे लोग हेय दृष्टि से देखने लगेंगे.

लोग कहेंगे "देखो, ये वही लड़की है जिसके साथ बलात्कार हुआ." "देखो, इसी लड़की के साथ हुआ था गैंगरेप." उस लड़की को जिंदगी भर रेप पीड़िता बनकर रहना होगा. उससे कोई शादी नहीं करेगा. कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा. उसकी शहर में, रिश्तेदारों में बदनामी होगी. 'उसकी बदनामी?' क्या ऐसा समाज बनाया है हमने?

कठुआ रेप केस में लगातार मीडिया द्वारा बच्ची की तस्वीरें दिखाई जा रही हैं जो कि सरासर गलत है

यदि ऐसा है तो कितना संकीर्ण, विकृत और निकृष्ट समाज है हमारा, जो बलात्कारियों को सजा दिलाने और उनसे घृणा करने के बजाय पीड़िता को ही अपराधी बना देता है. यह कानून इसी सोच का समर्थन करता है. होना यह चाहिए कि ये है वो लड़की जिसकी अस्मिता पर किसी ने हाथ डालने की कोशिश की थी और आज वो सलाखों के पीछे अपने किए की कड़ी सजा भुगत रहा है.

आखिर क्या हासिल होगा पीड़िता का नाम छिपाकर? जो समाज उसका नाम लेने और उसकी तस्वीर आगे करने का साहस नहीं दिखा सकता, वो उसके न्याय के लिए क्या लड़ेगा? क्या दोष है आखिर उसका कि उसे गुमनाम रहना पड़े. अमेरिका की टीवी क्वीन ओप्रा विन्फ्रे के साथ सालों तक दुष्कर्म होता रहा, यदि वे अवसाद में जाकर अपनी पहचान छिपाए रखतीं तो कभी इस मुकाम पर नहीं पहुंच पातीं.

बदनामी के डर से लाखों महिलाएं अपने साथ हुए दुष्कर्म को जाहिर नहीं कर...

जब बलात्कार की खबर जाती है तो सबसे पहले यही अहतियात बरती जाती है कि कहीं पीड़िता का नाम और फोटो खबर में न चला जाए. हमेशा से खटकती रही है ये बात. भारतीय दंड संहिता के अनुसार, बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करना दंडनीय अपराध है. अपराधी को 228-ए के तहत दो साल तक की सजा हो सकती है. आखिर क्यों? इस कानून के पीछे यही मंशा रही होगी कि कहीं पीड़िता की पहचान उजागर न हो जाए. ऐसा होने से उसे लोग हेय दृष्टि से देखने लगेंगे.

लोग कहेंगे "देखो, ये वही लड़की है जिसके साथ बलात्कार हुआ." "देखो, इसी लड़की के साथ हुआ था गैंगरेप." उस लड़की को जिंदगी भर रेप पीड़िता बनकर रहना होगा. उससे कोई शादी नहीं करेगा. कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा. उसकी शहर में, रिश्तेदारों में बदनामी होगी. 'उसकी बदनामी?' क्या ऐसा समाज बनाया है हमने?

कठुआ रेप केस में लगातार मीडिया द्वारा बच्ची की तस्वीरें दिखाई जा रही हैं जो कि सरासर गलत है

यदि ऐसा है तो कितना संकीर्ण, विकृत और निकृष्ट समाज है हमारा, जो बलात्कारियों को सजा दिलाने और उनसे घृणा करने के बजाय पीड़िता को ही अपराधी बना देता है. यह कानून इसी सोच का समर्थन करता है. होना यह चाहिए कि ये है वो लड़की जिसकी अस्मिता पर किसी ने हाथ डालने की कोशिश की थी और आज वो सलाखों के पीछे अपने किए की कड़ी सजा भुगत रहा है.

आखिर क्या हासिल होगा पीड़िता का नाम छिपाकर? जो समाज उसका नाम लेने और उसकी तस्वीर आगे करने का साहस नहीं दिखा सकता, वो उसके न्याय के लिए क्या लड़ेगा? क्या दोष है आखिर उसका कि उसे गुमनाम रहना पड़े. अमेरिका की टीवी क्वीन ओप्रा विन्फ्रे के साथ सालों तक दुष्कर्म होता रहा, यदि वे अवसाद में जाकर अपनी पहचान छिपाए रखतीं तो कभी इस मुकाम पर नहीं पहुंच पातीं.

बदनामी के डर से लाखों महिलाएं अपने साथ हुए दुष्कर्म को जाहिर नहीं कर पातीं. कई बार उनके अपने ही उनके शरीर के प्यासे हो जाते हैं. ऐसे में वे न्याय के लिए कैसे उठ खड़े होने का साहस जुटा पाएंगी. पीड़िता को "बेचारा" और "दयनीय" बनाकर नहीं, उसे एक जीती जागती गरिमामयी स्वछंद और निर्भीक औरत की तरह न्याय दिलाने की पहल कीजिए. उसमें इतना आत्मविश्वास जगाइये कि वह खुद न्याय के लिए हुंकार लगा सके.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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