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Nizamuddin markaz में हज़ारों का इकट्ठा होना गुनाह नहीं, वो कुछ और है...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 01 अप्रिल, 2020 05:39 PM
  • 01 अप्रिल, 2020 05:39 PM
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कोरोना वायरस के कारण लॉक डाउन (Coronavirus lockdown) है ऐसे में दिल्ली के निज़ामुद्दीन (Nizamuddin) में तब्लीगी जमात के लोग धर्म के नाम पर जिस तरह जमा हुए ये उस रूढ़िवादिता और कट्टरपंथ का नतीजा है जो जमात के मुखिया ने लोगों के बीच प्रचारित और प्रसारित किया.

तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) का निज़ामुद्दीन मरकज़ (Nizamuddin markaz) फिलहाल किसी परिचय का मोजताज नहीं है. एक ऐसे समय में जब कोरोना वायरस (Corona Virus), सरकार और देश के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम न हो, जो कुछ भी तब्लीगी जमात ने धर्म के नाम पर किया, उसने आग में घी डालने का काम किया है. तो क्या ये सब अनजाने में हुआ? क्या नियम कानून को ताख पर रख इस तरह एक धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करना, उसमें लोगों को एकत्र करना जानकारी के आभाव में हुआ? क्या मरकज़ को नहीं पता था कि उनकी एक छोटी सी मूर्खता देश के लाखों करोड़ों लोगों के जी का जंजाल बन जाएगी ? सवाल कई हैं और यदि इन सवालों पर गौर करा जाए तो मिलता है कि मरकज को बीमारी की गंभीरता का पूरा अंदाजा था मगर अपने कठमुल्लेपन और रूढ़िवादिता के चलते उन्होंने जान बूझकर लोगों के प्राणों को संकट में डाला और साथ ही उन्हें इस बात के लिए कोई शर्मिंदगी भी नहीं है.

मौलाना की बातों ने खुद साफ़ कर दिया है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत निज़ामुद्दीन में तब्लीगी जमात का आयोजन किया गया

बात आगे बढ़ाने से पहले हमारे लिए मरकज के मुखिया मौलाना साद की उस स्पीच को सुन लेना भी बहुत जरूरी है जो उन्होंने अभी हाल में ही दी थी.अपनी इस स्पीच में जो बातें मौलाना ने कहीं साफ है कि मौलाना मुसलमानों को बरगलाते और उन्हें गफ़लत में डालते नजर आ रहे हैं. मौलाना साद का कहना है कि कोरोना वायरस एक साजिश के तहत लाया गया है. इस वायरस का उद्देश्य मुसलमानों की मुसलमानों से अलग करना है.

मौलाना साद औरों की जान की परवाह न करते हुए किस हद तक कट्टरता का प्रचार प्रसार कर रहे हैं इसे हम उनकी उज़ बात से भी समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने मस्जिदों को न छोड़ने की बात कही है और साथ ही ये भी कहा है कि अगर मौत आती है तो मरने के लिए मस्जिद...

तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) का निज़ामुद्दीन मरकज़ (Nizamuddin markaz) फिलहाल किसी परिचय का मोजताज नहीं है. एक ऐसे समय में जब कोरोना वायरस (Corona Virus), सरकार और देश के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम न हो, जो कुछ भी तब्लीगी जमात ने धर्म के नाम पर किया, उसने आग में घी डालने का काम किया है. तो क्या ये सब अनजाने में हुआ? क्या नियम कानून को ताख पर रख इस तरह एक धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करना, उसमें लोगों को एकत्र करना जानकारी के आभाव में हुआ? क्या मरकज़ को नहीं पता था कि उनकी एक छोटी सी मूर्खता देश के लाखों करोड़ों लोगों के जी का जंजाल बन जाएगी ? सवाल कई हैं और यदि इन सवालों पर गौर करा जाए तो मिलता है कि मरकज को बीमारी की गंभीरता का पूरा अंदाजा था मगर अपने कठमुल्लेपन और रूढ़िवादिता के चलते उन्होंने जान बूझकर लोगों के प्राणों को संकट में डाला और साथ ही उन्हें इस बात के लिए कोई शर्मिंदगी भी नहीं है.

मौलाना की बातों ने खुद साफ़ कर दिया है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत निज़ामुद्दीन में तब्लीगी जमात का आयोजन किया गया

बात आगे बढ़ाने से पहले हमारे लिए मरकज के मुखिया मौलाना साद की उस स्पीच को सुन लेना भी बहुत जरूरी है जो उन्होंने अभी हाल में ही दी थी.अपनी इस स्पीच में जो बातें मौलाना ने कहीं साफ है कि मौलाना मुसलमानों को बरगलाते और उन्हें गफ़लत में डालते नजर आ रहे हैं. मौलाना साद का कहना है कि कोरोना वायरस एक साजिश के तहत लाया गया है. इस वायरस का उद्देश्य मुसलमानों की मुसलमानों से अलग करना है.

मौलाना साद औरों की जान की परवाह न करते हुए किस हद तक कट्टरता का प्रचार प्रसार कर रहे हैं इसे हम उनकी उज़ बात से भी समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने मस्जिदों को न छोड़ने की बात कही है और साथ ही ये भी कहा है कि अगर मौत आती है तो मरने के लिए मस्जिद से पवित्र कोई स्थान हो ही नहीं सकता.

धर्म की आड़ में दिल्ली के निजामुददीन में जो हुआ उससे इतना तो साफ हो गया है कि यहां न सिर्फ कई मौकों पर झूठ का सहारा लिया गया बल्कि नियमों/ कानून की अनदेखी हुई. बुराई या ये कहें कि समस्या किसी को जमात से नहीं है बल्कि उस अड़ियल रवैये से है जिसके कारण एक अनचाही मुसीबत का सामना आज देश और देश की जनता कर रही है.

विषय बहुत सीधा है. इसमें इधर उधर निकलने की कोई गुंजाइश ही नहीं है. दिल्ली के निजामुददीन स्थित तब्लीगी जमात के मरकज में जो हुआ वो धर्म विशेष की सुविधा और सुचिता के लिहाज से हुआ. धर्म को ढाल बनाकर लोग अपनी मर्ज़ी से यहां आए और जब स्थिति बिगड़ने लगी तो अपनी मर्जी से यहां से गए.

इस पूरे विषय में एक दिलचस्प पहलू सरकारी आदेश भी है. एक बड़ा वर्ग है जो इस मामले में मरकज में आए जमातियों को सही ठहरा रहा है और कह रहा है कि जब आयोजन हुआ तब सरकार की तरफ से ऐसे कोई आदेश नहीं आए थे जिनमें कहा गया हो कि भारत में हालात इमरजेंसी के होने वाले हैं. इस स्थिति में हमारे लिए भी लोगों को ये बताना जरूरी हो जाता है कि दिल्ली सरकार पहले ही मामले को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुकी थी. बात दें कि 13 मार्च को ही दिल्ली सरकार इस बात को साफ कर चजकी थी 200 से ज्यादा लोग यदि एक स्थान पर एकत्र हुए तो उनके विरुद्ध सख्त से सख्त एक्शन लिया जाएगा.

इसके बाद फिर आदेश आया कि दिल्ली में 50 लोग से ज्यादा एक जगह पर खड़े नहीं होंगे. फिर दिल्ली में धारा 144 और जनता कर्फ्यू लग इस बीच निजामुददीन में तब्लीग का खेल बदस्तूर जारी रहा और लोग लोगों से भरी जगह पर आते रहे. यानी इन्होंने किसी और की सुरक्षा को दरकिनार कर सिर्फ अपने धर्म के बारे में सोचा और पढ़े लिखे होने के बावजूद एक ऐसी जाहिलियत की जो आज देश के लाखों लोगों की जान की मुसीबत बन गयी है.

जैसा इनका रवैया था कि ये लोग जगह छोड़ने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं दिखाते. बता दें कि यहां आए हुए कुछ जमाती बीमार पड़े जिसके बाद आयोजन कर्ताओं के हाथ पैर फूल गए और इन्होंने मौके का फायदा उठाते हुए इन्हें इनके घरों की तरफ रवाना कर दिया. जमातियों को घर भेजते हुए आयोजनकर्ता इस बात को भूल गए कि इनके द्वारा की गई मूर्खता पूरे देश के जी का जंजाल बनेगी.

क्या है तब्लीगी जमात ? कैसे हुआ तब्लीगी जमात का गठन 

माना जाता है कि तब्लीगी जमात के लोगों के ऊपर पैगम्बर मोहम्मद की बताई शिक्षाओं को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है. तबलीगी जमात से जुड़े लोग पूरी दुनिया में इस्लाम के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं.

10, 20, 30 या इससे ज्यादा लोगों की जमातें देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से यहां पहुंचते हैं और फिर यहां से उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में रवाना किया जाता है. जहां मस्जिदों में ये लोग ठहरते हैं और वहां के लोकल मुसलमानों से नमाज पढ़ने और इस्लाम की दूसरी शिक्षाओं पर अमल करने की गुजारिश करते हैं.

खैर,लोग अपने अपने घर पहुंच चुके थे मगर हुआ वही जिस बात का अंदाजा बहुत पहले लगा लिया गया था मौतें भी हुईं और हमने लोगों को बीमार पड़ते भी देखा. बहरहाल अब जबकि मरकज से 2361 लोगों को निकाला जा चुका है और मरकज का मुखिया मौलाना साद फरार चल रहा है देखना दिलचस्प रहेगा कि इनकी ये नादानी देश को कहां लाकर छोड़ती है. 

अब मौलाना की गिरफ़्तारी के बाद ही इस बात का फैसला होगा कि ये सब अंजाने में हुआ या फिर देश और देश के लोगों को दुविधा में डालने की ये मूर्खता अनजाने में हुई. सवाल तमाम है जवाब परत दर परत  संगठन के मुखिया मौलाना साद की गिरफ़्तारी के बाद ही पता चलेंगे।     

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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