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बंगाल में दुर्गा-महिषासुर के जितने रूप, उतने विवाद...

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 03 अक्टूबर, 2022 10:54 PM
  • 03 अक्टूबर, 2022 10:54 PM
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पश्चिम बंगाल में हिंदू महासभा के एक दुर्गा पंडाल में महिषासुर (Mahishasur) को गांधी जी (Gandhi) का रूप दे दिया गया है. इससे पहले एक पंडाल में दुर्गा (Durga) को वेश्‍या के रूप में दिखाया गया था. दुर्गा और महिषासुर के रूप को लेकर जितने प्रयोग हो रहे हैं, उतने विवाद जुड़ रहे हैं. हिंदू त्‍योहारों (Hindu Festival) से विवाद जोड़ना अब फैशन सा बन गया है.

बदलते समय के साथ दुर्गा पूजा के पंडाल भी बदल रहे हैं. हर साल नई और अलग-अलग थीम पर दुर्गा पंडाल सजाए जाते हैं. देवी दुर्गा की प्रतिमाओं के साथ किए जाने वाले ये नवीन प्रयोग अब विवादों का कारण बनने लगे हैं. और, पश्चिम बंगाल का कोलकाता इसका मुख्य केंद्र है. यहां के दो दुर्गा पूजा पंडाल इस समय विवादों में घिरे हुए हैं. दरअसल, कोलकाता में हिंदू महासभा के दुर्गा पंडाल में महिषासुर को महात्मा गांधी के तौर पर दिखाने की वजह से सुर्खियों में आ गया. तो, 'परिचय' थीम के तहत कोलकाता के एक दुर्गा पूजा पंडाल में देवी दुर्गा को वेश्या के रूप में दिखाया गया है. कहना गलत नहीं होगा कि हिंदू त्योहारों के साथ विवाद जोड़ना अब फैशन सा बन गया है.

नये प्रयोग और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हिंदू त्योहारों को विवादित बनाने की परंपरा बन चली है. (फोटो साभार:ANI)

फिल्म काली के पोस्टर को लेकर हुए विवाद और उस पर टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा के विवादास्पद बयान की घटनाओं को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. लेकिन, एक बार फिर से वैसी ही एक कोशिश पश्चिम बंगाल में कर दी गई. जिन देवी दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी लाई जाती हो. तो, उन देवी दुर्गा को आखिर कोई वेश्या के रूप में कोई क्यों स्वीकार करेगा? यह सिर्फ दुखद ही नहीं है. बल्कि, तथाकथित अभिव्यक्ति की आजादी जैसी चीजों का बेजा इस्तेमाल दिखाता है. ठीक उसी तरह महिषासुर के रूप में महात्मा गांधी को दिखाना हिंदू महासभा की सुर्खियां बटोरने की कोशिश भर ही नजर आती है. क्योंकि, हिंदू महासभा जैसे संगठन को बस मुट्ठीभर लोग ही जानते और मानते हैं.

हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जितने प्रयोग हिंदू धर्म के देवी-देवताओं, त्योहारों और धार्मिक कर्मकांडों को लेकर किए जाते हैं. शायद ही किसी...

बदलते समय के साथ दुर्गा पूजा के पंडाल भी बदल रहे हैं. हर साल नई और अलग-अलग थीम पर दुर्गा पंडाल सजाए जाते हैं. देवी दुर्गा की प्रतिमाओं के साथ किए जाने वाले ये नवीन प्रयोग अब विवादों का कारण बनने लगे हैं. और, पश्चिम बंगाल का कोलकाता इसका मुख्य केंद्र है. यहां के दो दुर्गा पूजा पंडाल इस समय विवादों में घिरे हुए हैं. दरअसल, कोलकाता में हिंदू महासभा के दुर्गा पंडाल में महिषासुर को महात्मा गांधी के तौर पर दिखाने की वजह से सुर्खियों में आ गया. तो, 'परिचय' थीम के तहत कोलकाता के एक दुर्गा पूजा पंडाल में देवी दुर्गा को वेश्या के रूप में दिखाया गया है. कहना गलत नहीं होगा कि हिंदू त्योहारों के साथ विवाद जोड़ना अब फैशन सा बन गया है.

नये प्रयोग और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हिंदू त्योहारों को विवादित बनाने की परंपरा बन चली है. (फोटो साभार:ANI)

फिल्म काली के पोस्टर को लेकर हुए विवाद और उस पर टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा के विवादास्पद बयान की घटनाओं को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. लेकिन, एक बार फिर से वैसी ही एक कोशिश पश्चिम बंगाल में कर दी गई. जिन देवी दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी लाई जाती हो. तो, उन देवी दुर्गा को आखिर कोई वेश्या के रूप में कोई क्यों स्वीकार करेगा? यह सिर्फ दुखद ही नहीं है. बल्कि, तथाकथित अभिव्यक्ति की आजादी जैसी चीजों का बेजा इस्तेमाल दिखाता है. ठीक उसी तरह महिषासुर के रूप में महात्मा गांधी को दिखाना हिंदू महासभा की सुर्खियां बटोरने की कोशिश भर ही नजर आती है. क्योंकि, हिंदू महासभा जैसे संगठन को बस मुट्ठीभर लोग ही जानते और मानते हैं.

हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जितने प्रयोग हिंदू धर्म के देवी-देवताओं, त्योहारों और धार्मिक कर्मकांडों को लेकर किए जाते हैं. शायद ही किसी अन्य धर्म को लेकर इतनी खुली और प्रयोगधर्मी सोच रखी जाती होगी. हमारे देश में नवरात्रि के व्रत को लेकर ज्ञान दे दिया जाता है कि महिलाओं को नौ दिन के नवरात्र व्रत रखने से अच्छा है. नौ दिन भारतीय संविधान और हिंदू कोड बिल पढ़ लो. जीवन गुलामी और भय से मुक्त हो जाएगा. जबकि, इस्लाम धर्म में तो एक महीने के रोजे रखने का रिवाज है. लेकिन, ऐसे ज्ञानी लोगों की जबान रोजे जैसे व्रतों पर नहीं चलती है. क्योंकि, इससे 'सिर तन से जुदा' होने का खतरा पैदा हो जाता है.

दरअसल, ये तमाम चीजें नई पीढ़ी में हिंदू धर्म से जुड़ी परंपराओं और त्योहारों को लेकर हीनभावना और घृणा भरने के लिए ही की जाती हैं. जिससे हिंदुओं की नई पीढ़ी अपनी जड़ों से दूर हो जाए. आसान शब्दों में कहें, तो भारत में हिंदू त्योहारों से विवाद जोड़ना एक परंपरा बन चली है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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