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दुनिया के टॉप 100 शहरों में भारत का नाम न होने पर मायूस मत होइए, गांव पर गर्व महससू करिए

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 25 जून, 2022 05:41 PM
  • 25 जून, 2022 05:41 PM
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हमें पता है कि भारत की अधिकतर आबादी गावों में रहती है तो क्यों ना हम शहर के टॉप 100 शहरों में शामिल न होने का गम मनाना छोड़कर गावों को बेहतर बनाने पर फोकस करें.

द इकोनॉमिस्ट' (The Economist) के सर्वे से जब लोगों को यह पता चला है कि दुनिया के टॉप 100 रहने लायक शहरों में भारत के किसी भी जगह का नाम नहीं है, वे निराश हो रहे हैं. कई लोग इस सर्वे को नकार रहे हैं वे कह रहे हैं कि, मां के पैरों में जन्नत होती है यह बात विदेशियों को क्या पता.

हमारे देश की अगर 10 प्रतिशत जनता भी उनके यहां जाकर रहती तब समझ आता कि शहर की रौनक क्या होती है? कई लोग कह रहे हैं कि विदेशियों को हमारी संस्कृति के बारे में क्या पता, उनके यहां तो दूर-दूर तक सिर्फ कबूतर ही दिखते हैं, लोग दिखते कहां हैं जो उनका शहर गंदा होता. भारत इतना ही खराब ही तो यहां रहने के लिए हर साल आवेदन क्यों आते हैं?

भारत में अभी सिर्फ 35 प्रतिशत लोग शहर में रहते हैं

भारत में ऐसे ही विदेशी पर्यटकों की भरमार रहती है? और तो और अगर, भारत इतना ही बुरा था तो अंग्रेज यहां 150 सालों तक शासन कैसे कर लिया? अब जब सर्वे विदेशियों का है तो भारत को अपने सामने ऊंचा कैसे दिखाते? असल में सर्वे करने वालों ने भारत के गावों को बारीकी से जाना ही नहीं, क्योंकि जो मजा गांव में रहने में है वो शहर में कहां? भारत इतना ही गंदे शहरों वाला देश है तो भारत की संस्कृति को विदेशी क्यों अपना रहे हैं. विदेशी कंपनियों यहां क्यों निवेश कर रही हैं. खैर, ये सारी बातें लोगों के दिल रखने के लिए सही हैं लेकिन हमें पता है कि यह कोई लॉजिक वाली बात नहीं है. जिन्हें गाकर हम अपने दिल को बहला लेंगे.

सच यह है कि 'ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2022' नाम की इस लिस्ट में टॉप 10 शहरों में से छह यूरोप के हैं. वहीं ऑस्ट्रिया का वियना टॉप पर है. जबकि भारत की राजधानी दिल्ली 140वीं पायदान पर है और 141वीं रैंकिंग मुंबई को मिली है. तो अगर दिल के इस दर्द से उबारना है तो गांवों को बेहतर बनाने की...

द इकोनॉमिस्ट' (The Economist) के सर्वे से जब लोगों को यह पता चला है कि दुनिया के टॉप 100 रहने लायक शहरों में भारत के किसी भी जगह का नाम नहीं है, वे निराश हो रहे हैं. कई लोग इस सर्वे को नकार रहे हैं वे कह रहे हैं कि, मां के पैरों में जन्नत होती है यह बात विदेशियों को क्या पता.

हमारे देश की अगर 10 प्रतिशत जनता भी उनके यहां जाकर रहती तब समझ आता कि शहर की रौनक क्या होती है? कई लोग कह रहे हैं कि विदेशियों को हमारी संस्कृति के बारे में क्या पता, उनके यहां तो दूर-दूर तक सिर्फ कबूतर ही दिखते हैं, लोग दिखते कहां हैं जो उनका शहर गंदा होता. भारत इतना ही खराब ही तो यहां रहने के लिए हर साल आवेदन क्यों आते हैं?

भारत में अभी सिर्फ 35 प्रतिशत लोग शहर में रहते हैं

भारत में ऐसे ही विदेशी पर्यटकों की भरमार रहती है? और तो और अगर, भारत इतना ही बुरा था तो अंग्रेज यहां 150 सालों तक शासन कैसे कर लिया? अब जब सर्वे विदेशियों का है तो भारत को अपने सामने ऊंचा कैसे दिखाते? असल में सर्वे करने वालों ने भारत के गावों को बारीकी से जाना ही नहीं, क्योंकि जो मजा गांव में रहने में है वो शहर में कहां? भारत इतना ही गंदे शहरों वाला देश है तो भारत की संस्कृति को विदेशी क्यों अपना रहे हैं. विदेशी कंपनियों यहां क्यों निवेश कर रही हैं. खैर, ये सारी बातें लोगों के दिल रखने के लिए सही हैं लेकिन हमें पता है कि यह कोई लॉजिक वाली बात नहीं है. जिन्हें गाकर हम अपने दिल को बहला लेंगे.

सच यह है कि 'ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2022' नाम की इस लिस्ट में टॉप 10 शहरों में से छह यूरोप के हैं. वहीं ऑस्ट्रिया का वियना टॉप पर है. जबकि भारत की राजधानी दिल्ली 140वीं पायदान पर है और 141वीं रैंकिंग मुंबई को मिली है. तो अगर दिल के इस दर्द से उबारना है तो गांवों को बेहतर बनाने की ठान लीजिए. क्योंकि गांव से हमारी जड़ें जुड़ी हुई हैं. इसलिए इस मामले में हमें कोई पछाड़ भी नहीं पाएगा, सिर्फ गांव की हालात पर ध्यान देने की जरूरत है. हमारे यहां गांवों और शहरों में एक ही रगं के घर, एक लाइन में पेड़ और मॉडर्न दुकाने नहीं होतीं. हमारे यहां तो सब अपने हिसाब से आते हैं और बसते जाते हैं. विदेशियों की तरह हमारे यहां कोई ए़डवांस प्लान भी नहीं है कि, किसी शहर को किस हिसाब से बसाया जाए.

इसलिए हमें शहरों के पचड़े में ना पड़कर गांवों को बेहतर बनाने के बारे सोचना चाहिए. गांव ऐसा हो जहां वहीं क्वालिटी ऑफ लाइफ हो जो लोग बाहर जाकर बड़े शहरों में खोजते रहते हैं. प्रकृति के करीब जाने के लिए हजारों पैसे फूंकते हैं. गांव ऐसा हो जो नशे से मुक्त हो, जहां गुटखा, जर्दा और खैनी के चक्कर में बच्चे ना पड़ें. जहां योग करने की सुविधा हो... 

जिन गांवों में अनाज खरा होता हो, जहां खेतों से ताजी सब्जियां निकलती हों वहां इंसान भी कम बीमार पड़ेगा. कैसे लोग कोरोना के पीक लहर में शहर छोड़ गांव की तरफ भागे थे, याद है ना...

शहर के लोग जो 3, 4 रूम वाले फ्लैट में रहते हैं वो अपने गांव के जमीन को फॉर्महाउस बना लेते हैं, वहां जाकर 2, 3 दिन रह लेते हैं, अब इससे थोड़ी गांव का विकास होगा? गांव को पहले रहने फिर उसपर गर्व करने लायक बनाइए...फिर देखिए दुनिया के टॉप गावों में हमारे गांव की हालात क्या है...

यह हमें पता है कि भारत की अधिकतर आबादी गावों में रहती है तो क्यों ना हम शहर के टॉप 100 शहरों में शामिल न होने का गम मनाना छोड़कर गावों को बेहतर बनाने पर फोकस करें. सोचिए गांव की हवा कितनी साफ होती है. वहां का आसमान एकदम चटख नीला दिखता है. बारिश के मौसम में इंद्रधनुष बनता है. चारों तरफ हरे-भरे खेत और पेड़ दिखते हैं. रात को सितारे आपस में जगलबंदी करते हैं. भारत के कई गांव तो इतने सुंदर है कि उनके आगे विदेशों के पर्यटन स्थल फेल हैं. बात तो यही है ना कि, जो हमारे पास होती है हमें उसकी कद्र नहीं होता है.

गांवों में चारों तरफ हरे-भरे खेत दिखते हैं

हम गावों को छोड़कर शहरों की तरफ भागते हैं और फिर शहरों को छोड़कर बड़े शहरों की तरफ रूख कर लेते हैं. गांव वैसा का वैसा पड़ा रहता है कि इस इंतजार में जो उन्हें छोड़कर चला गया उसे कभी तो अपनी मिट्टी, अपनी जमीन याद आएगी. और वह लौटेगा एक बार फिर उस पेड़ के पास जहां उसने बचपन में गर्मी की दोपहरी बिताई थी. वो बगल वाली काकी जो उसके गाल खींचा करती थी अब वो सफेद बालों में बूढ़ी हो चली है. वो दादा जिसकी साइकिल पर वो हर हफ्ते बाजार जाया करता था...

असल में भारत में अभी सिर्फ 35 प्रतिशत लोग शहर में रहते हैं. वहीं साल 1960 में 18 प्रतिशत और 1993 में 19 प्रतिशत लोग ही शहरों में रहना पसंद करते थे. भारत ग्रामीण देश है तो इसकी तुलना शहरों वालों देशों से कैसे की जा सकती है. करनी है तो भारत के गावं की तुलना दूसरे देशों के गावों से करो. हालांकि उसके लिए पहले हमें अपने गांवों की हालत सुधारनी होनी. जिस मिट्टी ने हमें जीवन दिया उसके लिए कुछ करना चाहिए की नहीं?

गांव वैसा का वैसा पड़ा रहता है कि इस इंतजार में जो उन्हें छोड़कर चला गया उसे कभी तो अपनी मिट्टी की याद आएगी

भारत के हर शहर अपने साथ कई गावों साथ लिए हैं. दिल्ली, मुंबई, तेलंगाना, तमिलनाडू, केरला, बंगलौर, उड़ीसा, कोलकाता, इंदौर, लखनऊ, हैदराबाद, नोएडा, पुणे...के आस-पास सेकड़ों गांव बसे हैं. अगर गांव की हालत एकदम सुधर जाए तो लोग शहर की तरफ भागते ही नहीं. गांव में अच्छे स्कूल, बिजली, कॉलेज, शुद्ध पानी, बैंक, शौचालय, अस्पताल, रोजगार और अच्छी सड़कें तो मूल जरूरते हैं, जिसके बना इंसान रह नहीं सकता. जब ये सारी सुविधाएं मिलने लगेंगी तो गांव शहरी क्षेत्रों से कहीं अधिक अच्छे हो जाएंगे. जिनका मुकाबला कोई विदेशी देश नहीं कर पाएंगे. हालांकि जो बदहाली अभी गांवों में देखने को मिलती है वह मन तो कचोटने वाला ही होता है.

इसलिए 'द इकोनॉमिस्ट' ने दुनिया के सबसे अच्छे और खराब शहरों की लिस्ट निकाली है. 'ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2022' नाम की इस लिस्ट में टॉप 10 शहरों में से छह यूरोप के हैं. ऑस्ट्रिया का वियना टॉप पर है.

भारत की राजधानी दिल्ली 140वीं पायदान पर है और 141वीं रैंकिंग मुंबई को मिली है. भारत का हर गांव भी शहरी क्षेत्रों से कहीं अधिक अच्छा है. बस थोड़ा है और हमें थोड़ा करने की जरुरत है...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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