• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

शाकाहारी अंडा! ये हिप्पोक्रेसी का ताजातरीन नमूना है जनाब

    • मंजीत ठाकुर
    • Updated: 20 सितम्बर, 2019 02:29 PM
  • 20 सितम्बर, 2019 02:29 PM
offline
खुद को शाकाहारी कहने वाले लोगों में भी ऐसे लोगों की हिस्सेदारी काफी है जिनमें मांसाहार की काफी ललक होती है. ऊपर-ऊपर भले ही वे मांस खाने वालों पर लानतें भेजते रहें, पर अंदर से मांस का जायका पाने की हसरत होती ही है.

सोशल मीडिया पर शाकाहार बनाम मांसाहार के बीच गजब की बहस चलती देखी है मैंने. कई लोग शाकाहार को अच्छा बताते हैं और मांसाहार को बुरा. अब कल ही यानी 18 सितंबर को आईआईटी दिल्ली ने शाकाहारी अंडा पेश किया. आईआईटी का तर्क है कि दुनिया भर में 'बीइंग वीगन' यानी शाकाहारी होने का आंदोलन बढ़ रहा है. मांसाहार के शौकीन लोग भी शाकाहार की तरफ रुख कर रहे हैं. ऐसे में अगर शाकाहारी अंडे से बनी भुर्जी मिल जाए तो फिर शाकाहारी बनने के लिए बेताब मांसाहारी लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प होगा. इतना ही नहीं चिकन, मछली, सुअर के मांस (पोर्क) से बनी अलग-अलग डिशेज के स्वाद और गुण दोनों शाकाहारी उत्पाद में ही मिल जाएं तो कम से कम शाकाहारियों के पास मांसाहार के स्वाद को चखने और मांसाहारियों के पास शाकाहार को चुनने का विकल्प मौजूद हो जाएगा.

अंडा शाकाहार में है या फिर मांसाहार में ये लंबे समय से संवाद का विषय है

आईआईटी के साथ इस मसले पर जुड़ी स्टार्ट-अप कंपनी फोर पर्स्यूट के बिजनेस मैनेजर कार्तिकेय का तर्क है कि पर्यावरण के बर्बाद होने में बीफ (गोमांस) या बफ (भैंसे का मांस) की अहम भूमिका है. दुनिया भर में वीगन यानी शाकाहारी होने को लेकर कई आंदोलन चल रहे हैं. ऐसे में अगर मांसाहार का विकल्प पेश किया जाए तो यह पर्यावरण को बचाने की मुहिम में शामिल होने जैसा होगा.

फोर पर्स्यूट कंपनी लगातार इस तरह की खोज में लगी है. और अब वह यह कंपनी साल भर में कई और मांसाहार के उत्पादों का विकल्प पेश करने की तैयारी कर चुकी है.

यह तो खबर हुई पर मुझे हमेशा लगता रहा है कि खुद को शाकाहारी कहने वाले लोगों में भी ऐसे लोगों की हिस्सेदारी काफी है जिनमें मांसाहार की काफी ललक होती है. ऊपर-ऊपर भले ही वे मांस खाने वालों पर लानतें भेजते रहें, पर अंदर से मांस का जायका पाने की हसरत...

सोशल मीडिया पर शाकाहार बनाम मांसाहार के बीच गजब की बहस चलती देखी है मैंने. कई लोग शाकाहार को अच्छा बताते हैं और मांसाहार को बुरा. अब कल ही यानी 18 सितंबर को आईआईटी दिल्ली ने शाकाहारी अंडा पेश किया. आईआईटी का तर्क है कि दुनिया भर में 'बीइंग वीगन' यानी शाकाहारी होने का आंदोलन बढ़ रहा है. मांसाहार के शौकीन लोग भी शाकाहार की तरफ रुख कर रहे हैं. ऐसे में अगर शाकाहारी अंडे से बनी भुर्जी मिल जाए तो फिर शाकाहारी बनने के लिए बेताब मांसाहारी लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प होगा. इतना ही नहीं चिकन, मछली, सुअर के मांस (पोर्क) से बनी अलग-अलग डिशेज के स्वाद और गुण दोनों शाकाहारी उत्पाद में ही मिल जाएं तो कम से कम शाकाहारियों के पास मांसाहार के स्वाद को चखने और मांसाहारियों के पास शाकाहार को चुनने का विकल्प मौजूद हो जाएगा.

अंडा शाकाहार में है या फिर मांसाहार में ये लंबे समय से संवाद का विषय है

आईआईटी के साथ इस मसले पर जुड़ी स्टार्ट-अप कंपनी फोर पर्स्यूट के बिजनेस मैनेजर कार्तिकेय का तर्क है कि पर्यावरण के बर्बाद होने में बीफ (गोमांस) या बफ (भैंसे का मांस) की अहम भूमिका है. दुनिया भर में वीगन यानी शाकाहारी होने को लेकर कई आंदोलन चल रहे हैं. ऐसे में अगर मांसाहार का विकल्प पेश किया जाए तो यह पर्यावरण को बचाने की मुहिम में शामिल होने जैसा होगा.

फोर पर्स्यूट कंपनी लगातार इस तरह की खोज में लगी है. और अब वह यह कंपनी साल भर में कई और मांसाहार के उत्पादों का विकल्प पेश करने की तैयारी कर चुकी है.

यह तो खबर हुई पर मुझे हमेशा लगता रहा है कि खुद को शाकाहारी कहने वाले लोगों में भी ऐसे लोगों की हिस्सेदारी काफी है जिनमें मांसाहार की काफी ललक होती है. ऊपर-ऊपर भले ही वे मांस खाने वालों पर लानतें भेजते रहें, पर अंदर से मांस का जायका पाने की हसरत होती ही है. यह बात मैं कुछ खास तथ्यों के आधार पर कह रहा हूं. सोचिए जरा. आपका भी कोई दोस्त ऐसा होगा जरूर जो कहता होगा कि वह शाकाहारी है और अंडा खाता होगा. अंडा करी या ऑमलेट खाने में उसे कत्तई मांसाहार नहीं लगता होगा. कई लोगों ने एगिटेरियन नाम से नया नामकरण ही कर डाला है.

कुछ लोग ऐसे भी हैं, मांस नहीं खाएंगे पर उसका सालन खाने में परहेज नहीं उनको. ऐसे में मुझे लगता है कि मांसाहारियों से अधिक ललक इन कथित शाकाहारियों में होती है मांस खाने की. वरना, शाकाहारी अंडा, लेग पीस की शक्ल वाला सोया चाप और वेज बिरयानी जैसी खोजें नहीं होतीं. सवाल यही है कि आखिर शाकाहारी अंडे की जरूरत ही क्यों है? खाने की कुछ नई चीज है तो उसको नया नाम दो. अंडा क्यों?  मांसाहार बनाम शाकाहार की बहस में अमूमन धर्म का कोण भी घुस ही आता है. कई लोग इसमें मानवीयता और इंसानियत भी जोड़ते हैं.

कारोबार, रोजगार और भोजन के चयन की स्वतंत्रता के तर्क तो खैर हैं ही, पर यह मानिए कि मांसाहार मनुष्य के लिए कुछ नई चीज नहीं है. कॉग्नीटिव रिवोल्यूशन से पहले भी और उसके बाद कृषि का काम सीखने से पहले भी, इंसान खाद्य संग्राहक और शिकारी ही था. इंसान अपने क्रम विकास में पशुपालक भी रहा है. फिर भी, यह लंबी बहस है. फिलहाल तो यही लगता है आईआईटी को जन-कल्याण से जुड़े शोधों पर अधिक ध्यान देना चाहिए. जिनको अंडे और चिकन का जायका चाहिए होगा, वह इनको खाने का प्रयोग खुद कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें -

नकली चॉकलेट, चीनी, दूध के बाद अब चाइनीज अंडे का फंडा समझिए...

बटर नान संग 50 ग्राम एक्स्ट्रा बटर लेने वाले क्या ले पाएंगे विराट से प्रेरणा?

क्या शाकाहार इकोनॉमी क्लास का और मांसाहार बिजनेस क्लास का ही खाना है?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲