• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

'फूल तुम्हें भेजा है ख़त में!' यानी...

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 07 फरवरी, 2018 06:00 PM
  • 07 फरवरी, 2018 05:03 PM
offline
बेरोज़गार इंसान को किसी रोज, कोई रोज़ मिल जाने से वह रोज़गार वाला नहीं बन जाता है. उसे हर रोज इतना तो दे ए ख़ुदा! कि वो खुदै एक रोज किसी को रोज़ दे सके! आमीन!

आज इस साप्ताहिक महायज्ञ में आहुति का प्रथम दिवस है -मंत्र जाप - बेरोज़गार इंसान को किसी रोज, कोई रोज़ (rose) मिल जाने से वह रोज़गार वाला नहीं बन जाता है. उसे हर रोज इतना तो दे ए ख़ुदा! कि वो खुदै एक रोज किसी को रोज़ दे सके! आमीन!

कथा - हड़प्पा की खुदाई जितना पुराना एक बहुत ही प्यारा गीत है जो आज भी प्रेमियों के हृदय के तार झनझना देता है. यद्यपि तकनीकी ज्ञान के युग में इसके बोल प्रासंगिक तो नहीं, लेकिन हम तो अस्सी के दशक में भी इसका क्रियाकर्म करने से नहीं चूके थे. आइए अब आपको इसके मुखड़े तक लिए चलते हैं. "फूल तुम्हें भेजा हैं खत में, फूल नहीं मेरा दिल है. प्रियतम मेरे, मुझको लिखना, क्या ये तुम्हारे काबिल है?" इन दो पंक्तियों ने ही हमारे वैज्ञानिक मस्तिष्क की आपत्तिशाला से बाहर निकल दो महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर पुनर्विचार की मांग की है- प्रेमिका को यह स्वयं तय कर लेना चाहिए कि वह फूल भेज रही है या दिल? क्योंकि यदि यह पुष्प ही है तब तो ठीक पर यदि दिल है तो हे बहारों की देवी! आप जीवित कैसे हैं? और आपका प्रेमी दूसरे दिल को क्या अपने फेफड़े पर लगाएगा?

"प्यार छुपा है खत में इतना, जितने सागर में मोती. चूम ही लेता हाथ तुम्हारा, पास जो तुम मेरे होती" यह प्रत्युत्तर प्रेमी के भावुक और आतुर हृदय की पुष्टि करता है और यह भी कि उसका अपनी भावनाओं पर सम्पूर्ण नियन्त्रण है. लेकिन यहां उसकी प्रेमिका उन मोतियों के बारे में प्रश्न कर उसे असहज कर सकती है.

"नींद तुम्हें तो आती होगी क्या देखा तुमने सपना आँख खुली तो तन्हाई थी सपना हो न सका अपना तन्हाई हम दूर करेंगे ले आओ तुम शहनाई प्रीत बड़ा कर भूल न जाना प्रीत तुम्हीं ने सिखलाई"पुनः यहां प्रेमिका सीधे-सीधे ताने मार रही है कि तुम तो सोते ही रहते होगे बस! कामधाम तो करने से रहे! इतने फ़ालतू ही बैठे हो तो शादी क्यों नहीं कर...

आज इस साप्ताहिक महायज्ञ में आहुति का प्रथम दिवस है -मंत्र जाप - बेरोज़गार इंसान को किसी रोज, कोई रोज़ (rose) मिल जाने से वह रोज़गार वाला नहीं बन जाता है. उसे हर रोज इतना तो दे ए ख़ुदा! कि वो खुदै एक रोज किसी को रोज़ दे सके! आमीन!

कथा - हड़प्पा की खुदाई जितना पुराना एक बहुत ही प्यारा गीत है जो आज भी प्रेमियों के हृदय के तार झनझना देता है. यद्यपि तकनीकी ज्ञान के युग में इसके बोल प्रासंगिक तो नहीं, लेकिन हम तो अस्सी के दशक में भी इसका क्रियाकर्म करने से नहीं चूके थे. आइए अब आपको इसके मुखड़े तक लिए चलते हैं. "फूल तुम्हें भेजा हैं खत में, फूल नहीं मेरा दिल है. प्रियतम मेरे, मुझको लिखना, क्या ये तुम्हारे काबिल है?" इन दो पंक्तियों ने ही हमारे वैज्ञानिक मस्तिष्क की आपत्तिशाला से बाहर निकल दो महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर पुनर्विचार की मांग की है- प्रेमिका को यह स्वयं तय कर लेना चाहिए कि वह फूल भेज रही है या दिल? क्योंकि यदि यह पुष्प ही है तब तो ठीक पर यदि दिल है तो हे बहारों की देवी! आप जीवित कैसे हैं? और आपका प्रेमी दूसरे दिल को क्या अपने फेफड़े पर लगाएगा?

"प्यार छुपा है खत में इतना, जितने सागर में मोती. चूम ही लेता हाथ तुम्हारा, पास जो तुम मेरे होती" यह प्रत्युत्तर प्रेमी के भावुक और आतुर हृदय की पुष्टि करता है और यह भी कि उसका अपनी भावनाओं पर सम्पूर्ण नियन्त्रण है. लेकिन यहां उसकी प्रेमिका उन मोतियों के बारे में प्रश्न कर उसे असहज कर सकती है.

"नींद तुम्हें तो आती होगी क्या देखा तुमने सपना आँख खुली तो तन्हाई थी सपना हो न सका अपना तन्हाई हम दूर करेंगे ले आओ तुम शहनाई प्रीत बड़ा कर भूल न जाना प्रीत तुम्हीं ने सिखलाई"पुनः यहां प्रेमिका सीधे-सीधे ताने मार रही है कि तुम तो सोते ही रहते होगे बस! कामधाम तो करने से रहे! इतने फ़ालतू ही बैठे हो तो शादी क्यों नहीं कर लेते! फिर देखो, कैसे नींद ले पाओगे! अंततः प्रेमी घबराकर यह स्वीकार कर ही लेता है कि हाँ, मेरी प्रियतमा! मुझे नींद लग गई थी पर सपना पूछ, क्या बच्चे की जान ही ले लेगी अब? देखो, परेशान न करो तुमने मुझे प्रेम में रहने की लत दे दी है.

"ख़त से जी भरता ही नहीं अब नैन मिले तो चैन मिले चांद हमारे अंगना उतरे कोई तो ऐसी रैन मिले मिलना हो तो कैसे मिले हम, मिलने की सूरत लिख दो मिलने की सूरत लिख दो नैन बिछाए बैठे हैं हम, कब आओगे खत लिख दो!"इस अंतरे की प्रथम पंक्ति से प्रेमिका की लोलुप-प्रवृत्ति का दुखद ज्ञान मिलता है साथ ही इस तथ्य की भी पुष्टि होती है कि उसका प्रेमी से मुलाक़ात का एकमात्र उद्देश्य उस चैन को ही प्राप्त करना है जो वह मोतियों से बनवा सकती है. साथ ही वह चांद की जगमगाती रोशनी में प्रदीप्तमान श्वेतमोती के दिव्य-दर्शन को भी लालायित है. इधर मासूम प्रेमी मिलने की बात को दोहरा रहा है कि लालची औरत शायद दूसरी बार में ही उसके प्रेम-निवेदन को समझ जाए!

पर हाय री फूटी, चक़नाचूर क़िस्मत कि देवी जी एक तरफ तो नयनों को दरी की तरह बिछा चुकी हैं उस पर पत्र का आग्रह भी कर रहीं हैं! बिना आंखों के वह उसके पत्र को कैसे पढ़ सकेगी? कैसे मुलाक़ात होगी? क्या वह अब प्रपोज़ कर सकेगा? इसी चिंता में घुल-घुलकर वह खर्राटे लेने लगा और प्रेमिका मोतियों के हार के स्वप्न में झूलकर ख़ुद ही मोटी हो गई!प्रसाद - कृपया ताजा गुलाब की पंखुड़ियों को निहारें. हप्प, तोडना नहीं!सार - कृपया प्रसाद पुनः ग्रहण करें. मोरल - डाक द्वारा गुलाब भेजने से उसके सूख जाने की आशंका बनी रहती है. कृपया ऑनलाइन ऑर्डर कर बुक़े भेजो जी!

ये भी पढ़ें-

Valentine week : पुरुषोत्तम का Rose day बराबर 1675 रुपए

ये वीडियो देख लेंगे तो फिर कभी नहीं करेंगे प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल

पकौड़े की आत्मकथा....



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲