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Valentine Day 2022: प्रतियोगी छात्र का वैलेंटाइन डे!

    • वेदांक सिंह
    • Updated: 14 फरवरी, 2022 08:31 PM
  • 14 फरवरी, 2022 08:31 PM
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वैलेंटाईन डे जब युवाओं के लिए है तो उसे महीने के पहले हफ्ते में होना चाहिए था, तब शायद कुछ रोमांच जरूर होता. फ़िलहाल मुफ़लिसी में भी हम हिम्मत तो नहीं हारते, बात जब करते हैं तो आत्मविश्वास में कमी नहीं आने देते, बस एक दिन आएगा और सब कुछ बदल जाएगा. तब तक हमारी प्रेम कहानी ऑटोपायलट पर है, शायद हम यह कहानी पूरी कर लेंगे.

आधा महीना भी नहीं बीता है, घर से आए 3 हजार रूपये खत्म हो गए हैं. अब अगले कुछ दिन उधारी पर और कुछ अपनों के रहमों करम पर बिताने हैं. बनिए से अब हम छात्रों का पारिवारिक रिश्ता है इसलिए उधार भी स्वाभिमान के साथ मांग लेते हैं, बस घर पर फोन करने में आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है. ये पांचवां साल है, कुछ भर्तियां अटकी हुई हैं, कुछ कोर्ट में हैं और कई में अब हम उम्र अधिक होने के कारण बैठ नहीं सकते. पर हम सभी लाज वालों की लाज आपस में सुरक्षित है, एक दूसरे का दर्द, एक दूसरे की पीड़ा सभी समझते हैं. अब तो बोलने की भी जरूरत नहीं पड़ती, इन पांच सालों में हमने अनूठा रिश्ता बनाया है. चाय के पैन किसने कितनी बार धुले इसका हिसाब है, तो किसके जन्मदिन पर कितना खर्च हुआ उसपर भी नजर रही है. इन्हीं छोटी मोटी प्रतिस्पर्धाओं के बीच हम सब एक उम्मीद लिए जीते हैं.

सफलता मिली तो जीवन स्तर सुधारेंगे, सफलता मिली तो रिश्तेदारों का मुंह बंद कर देंगे, सफलता मिली तो माता-पिता का सम्मान बन जाएंगे और सफलता मिली तो पूरी हो सकेगी हमारी प्रेम कहानी. वैसे तो हम सभी का पहला प्रेम किताबें हैं, पर एक अधपकी प्रेम कहानी करीने से हमारी चुनौतियों से भरे जीवन के साथ कदम ताल करती है.

आज का दौर ऐसा है कि आदमी प्यार तभी कर पाएगा जब उसकी जेब में पैसा हो

हम दोस्तों में आपस में कुछ छिपा तो नहीं, पर कुछ बातें शायद हम सिर्फ उसी से कह पाते हैं जिसके लिए हमारा जीवन कोई घोड़े की दौड़ नहीं है. जो हमारे जीवन को एक आम जीवन मानती है, जो हमारी नीरस सी कहानी में भी खुशियां तलाश लेती है, जो हमारी फीकी चाय में भी मिठास खोज लेती है, जो हमारे ख़ाली सिलेंडर पर खिलखिला के हंस लेती है, जो हमारी फटी जेब पर तंज भी कस लेती है.

बस इसी इंतज़ार में कि एक दिन हम स्वाभिमान के साथ बात...

आधा महीना भी नहीं बीता है, घर से आए 3 हजार रूपये खत्म हो गए हैं. अब अगले कुछ दिन उधारी पर और कुछ अपनों के रहमों करम पर बिताने हैं. बनिए से अब हम छात्रों का पारिवारिक रिश्ता है इसलिए उधार भी स्वाभिमान के साथ मांग लेते हैं, बस घर पर फोन करने में आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है. ये पांचवां साल है, कुछ भर्तियां अटकी हुई हैं, कुछ कोर्ट में हैं और कई में अब हम उम्र अधिक होने के कारण बैठ नहीं सकते. पर हम सभी लाज वालों की लाज आपस में सुरक्षित है, एक दूसरे का दर्द, एक दूसरे की पीड़ा सभी समझते हैं. अब तो बोलने की भी जरूरत नहीं पड़ती, इन पांच सालों में हमने अनूठा रिश्ता बनाया है. चाय के पैन किसने कितनी बार धुले इसका हिसाब है, तो किसके जन्मदिन पर कितना खर्च हुआ उसपर भी नजर रही है. इन्हीं छोटी मोटी प्रतिस्पर्धाओं के बीच हम सब एक उम्मीद लिए जीते हैं.

सफलता मिली तो जीवन स्तर सुधारेंगे, सफलता मिली तो रिश्तेदारों का मुंह बंद कर देंगे, सफलता मिली तो माता-पिता का सम्मान बन जाएंगे और सफलता मिली तो पूरी हो सकेगी हमारी प्रेम कहानी. वैसे तो हम सभी का पहला प्रेम किताबें हैं, पर एक अधपकी प्रेम कहानी करीने से हमारी चुनौतियों से भरे जीवन के साथ कदम ताल करती है.

आज का दौर ऐसा है कि आदमी प्यार तभी कर पाएगा जब उसकी जेब में पैसा हो

हम दोस्तों में आपस में कुछ छिपा तो नहीं, पर कुछ बातें शायद हम सिर्फ उसी से कह पाते हैं जिसके लिए हमारा जीवन कोई घोड़े की दौड़ नहीं है. जो हमारे जीवन को एक आम जीवन मानती है, जो हमारी नीरस सी कहानी में भी खुशियां तलाश लेती है, जो हमारी फीकी चाय में भी मिठास खोज लेती है, जो हमारे ख़ाली सिलेंडर पर खिलखिला के हंस लेती है, जो हमारी फटी जेब पर तंज भी कस लेती है.

बस इसी इंतज़ार में कि एक दिन हम स्वाभिमान के साथ बात करने की हिम्मत जुटा पाएंगे, एक दिन हम मजबूरियों के बंधन को तोड़ेंगे, एक दिन जरूर हम बेरोजगारी का कलंक मिटा पाएंगे..एक दिन जरूर. किसी ने बताया वैलेंटाईन डे है, पर यहां अधिकतर लोगों की प्रेम कहानी में इजहार की कोई साईत ही नहीं है.

यहां एक दूसरे के आत्मसम्मान और परिवार की प्रतिष्ठा के बीच सामाजिक तराज़ू समन्वय बिठाता है. प्रेम है पर उसपर उम्मीदों का बोझ भारी है, प्रेम हैपर आकांक्षाओं की नांव को ज़िम्मेदारियों की लहरों से लड़ना पड़ता है, प्रेम जरूर है पर जिद नहीं है. अब हमारा प्रेम परिपक्वता के उस मोड़ पर है कि 20 रूपये  का गुलाब लेने की बात करें तो आधा किलो चीनी लेने का सुझाव आता है.

जिससे दर्जनों चाय बनेंगी और अनगिनत बातें हो सकेंगी. सही मायने में चाय पर चर्चा तो हम छात्र ही करते हैं. कमरे में कैलेंडर 2018 वाला ही लगा है, तभी शायद आख़िरी जींस ख़रीदी थी तो दुकान वाले ने पकड़ा दिया था. हां ठीक ठाक हालत में दो शर्टें जरूर हैं जिसे पहन कर हम 12 लोग इंटरव्यू दे चुके हैं और कुछ भाग्यशाली लोग डेट पर भी.

वैलेंटाईन डे जब युवाओं के लिए है तो उसे महीने के पहले हफ्ते में होना चाहिए था, तब शायद कुछ रोमांच जरूर होता. फ़िलहाल मुफ़लिसी में भी हम हिम्मत तो नहीं हारते, बात जब करते हैं तो आत्मविश्वास में कमी नहीं आने देते, बस एक दिन आएगा और सब कुछ बदल जाएगा. तब तक हमारी प्रेम कहानी ऑटोपायलट पर है, शायद हम यह कहानी पूरी कर लेंगे, और नहीं भी कर सके तो बस इतना चाहेंगे कि हमारा भविष्य जो हो, जैसा हो, बस आज से बेहतर हो.

शाम हो रही है, चाय की दुकान और राजनीतिक बहस हमारा इंतज़ार कर रही है और इंतज़ार कर रहे हैं वो भी जिन्हें हम कल से फोन नहीं कर पाए हैं. आप सभी को वैलेंटाईन डे और एक उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं, बस वोट देना मत भूल जाना, लोकतंत्र का पर्व इस प्रेमपर्व के आगे छोटा ना पड़ने पाए. आपका स्वप्नदर्शी और आदर्शवादी.

एक प्रतियोगी छात्र

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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