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Uttarakhand Glacier Burst: प्रकृति ने तो पहाड़ों पर से इंसानी अतिक्रमण ही साफ किया है!

    • सर्वेश त्रिपाठी
    • Updated: 08 फरवरी, 2021 09:15 PM
  • 08 फरवरी, 2021 09:15 PM
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उत्तराखंड के ग्लेशियर का इस तरह से पिघलना और हिमस्खलन और चट्टानों का दबाव को न सह पाना मानव की इस क्षेत्र में अतिशय छेड़खानी का ही परिणाम है. जब-जब ये छेड़खानी अपनी हदें लांघेंघी, प्रकृति अपने हिसाब से अपनी बात रखेगी.

भूगोल की सामान्य जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति यह तो जानता और समझता है कि प्राकृतिक आपदा कोई रोक नहीं सकता. भूकम्प, बाढ़, सूखना अतिवृष्टि, बादल का फटना, ग्लेशियर का टूटना आदि घटनायें और इनकी विभीषिका मानव की सीमाओं को हर दिन स्पष्ट करती है. उत्तराखंड के चमोली में अचानक ग्लेशियर टूटने की घटना और धौलीगंगा समेत अन्य नदियों में बाढ़ की जो तस्वीरें और वीडियो फुटेज आ रही हैं उससे हर व्यक्ति सकते में है और भयभीत भी है. समाचारों में यह भी आ रहा है कि इन नदियों पर बन रहे पॉवर प्रोजेक्ट और डैम की सुरंगों में कई मजदूरों के अभी फंसे होने की उम्मीद है. ईश्वर करे यह सब लोग स्वस्थ और सुरक्षित हो.

डॉक्टरों की टीम यह भी कह रही है कि जिन लोगों ने यह हादसा अपनी आंखों के सामने घटित होते देखा उनमें तमाम लोग अवसाद में है भीषण डरे हुए है. लोगों का आमतौर पर यही मानना होता है कि हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर का टूटना, हिम स्खलन और चट्टानों का खिसकना एक प्राकृतिक भौगोलिक परिघटना है. वैसे भी हिमालय की श्रृंखला भू तात्विक दृष्टि से नवीन संरचनाएं है साथ ही प्लेट टेक्टोनिक के कारण से भू गार्भिक हलचलों से बहुधा प्रभावित रहती है. लेकिन अभी की घटना के बारे जो सूचनाएं आ रही है उसके अनुसार हिमालय के क्षेत्र में तामपान की वृद्धि के कारण ग्लेशियर यानि पहाड़ों पर जमे बर्फ का कोई विशालकाय टुकड़ा टूट गया होगा और उसी के नीचे की ओर खिसकने से मौजूदा आपदा उत्पन्न हुई है.

उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने और बाढ़ के बाद एनडीआरएफ और सेना राहत और बचाव में जुटे हैं

फ़िलहाल अभी और तथ्यों को जुटाया जा रहा है. अभी उत्पन्न आपदा में जान माल की हिफाज़त के लिए एनडीआरएफ, सेना और अर्धसैनिक बलों की कई टीमें जी जान से लगी है. इसी के साथ यह बहस भी फिर शुरू हो गई है कि...

भूगोल की सामान्य जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति यह तो जानता और समझता है कि प्राकृतिक आपदा कोई रोक नहीं सकता. भूकम्प, बाढ़, सूखना अतिवृष्टि, बादल का फटना, ग्लेशियर का टूटना आदि घटनायें और इनकी विभीषिका मानव की सीमाओं को हर दिन स्पष्ट करती है. उत्तराखंड के चमोली में अचानक ग्लेशियर टूटने की घटना और धौलीगंगा समेत अन्य नदियों में बाढ़ की जो तस्वीरें और वीडियो फुटेज आ रही हैं उससे हर व्यक्ति सकते में है और भयभीत भी है. समाचारों में यह भी आ रहा है कि इन नदियों पर बन रहे पॉवर प्रोजेक्ट और डैम की सुरंगों में कई मजदूरों के अभी फंसे होने की उम्मीद है. ईश्वर करे यह सब लोग स्वस्थ और सुरक्षित हो.

डॉक्टरों की टीम यह भी कह रही है कि जिन लोगों ने यह हादसा अपनी आंखों के सामने घटित होते देखा उनमें तमाम लोग अवसाद में है भीषण डरे हुए है. लोगों का आमतौर पर यही मानना होता है कि हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर का टूटना, हिम स्खलन और चट्टानों का खिसकना एक प्राकृतिक भौगोलिक परिघटना है. वैसे भी हिमालय की श्रृंखला भू तात्विक दृष्टि से नवीन संरचनाएं है साथ ही प्लेट टेक्टोनिक के कारण से भू गार्भिक हलचलों से बहुधा प्रभावित रहती है. लेकिन अभी की घटना के बारे जो सूचनाएं आ रही है उसके अनुसार हिमालय के क्षेत्र में तामपान की वृद्धि के कारण ग्लेशियर यानि पहाड़ों पर जमे बर्फ का कोई विशालकाय टुकड़ा टूट गया होगा और उसी के नीचे की ओर खिसकने से मौजूदा आपदा उत्पन्न हुई है.

उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने और बाढ़ के बाद एनडीआरएफ और सेना राहत और बचाव में जुटे हैं

फ़िलहाल अभी और तथ्यों को जुटाया जा रहा है. अभी उत्पन्न आपदा में जान माल की हिफाज़त के लिए एनडीआरएफ, सेना और अर्धसैनिक बलों की कई टीमें जी जान से लगी है. इसी के साथ यह बहस भी फिर शुरू हो गई है कि ग्लेशियर का इस तरह से पिघलना और हिमस्खलन और चट्टानों का दबाव को न सह पाना मानव की इस क्षेत्र में अतिशय छेड़खानी का ही परिणाम है. ग्लेशियरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के अनुसार हिमालय के इस हिस्से में ही एक हज़ार से अधिक ग्लेशियर हैं.

यह प्रबल संभावना है कि तापमान बढ़ने की वजह से कोई विशाल हिमखंड (ग्लेशियर) टूट गया होगा, जिसकी वजह से भारी मात्रा में पानी निकला है और इसी वजह से हिमस्खलन हुआ होगा जिससे चट्टानें और मिट्टी टूटकर नीचे आई होगी. यानि ग्लोबल वार्मिंग का यह भी दुष्परिणाम है. साथ हिमालय की नदियों पर बन रहे विभिन्न पॉवर प्रोजेक्ट से नदियों के प्राकृतिक बहाव को अवरूद्ध कर उन पर कृत्रिम रूप से झील बनाना और सुरंग में जल को रोकना भी एक कारण है जो ऐसी आपदा को जन्म देता है.

इस आपदा में तपोवन और ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट में भारी तबाही मची है. इन्हीं के कार्यों में लगे कई मजदूरों को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ा है. इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने ट्वीट करते हुए लिखा कि 'जोशीमठ से 24 किलोमीटर पैंग गाव ज़िला चमोली उत्तराखंड के ऊपर का ग्लेशियर फिसलने से ऋषि गंगा पर बना हुआ पावर प्रोजेक्ट ज़ोर से टूटा और एक तबाही लेकर आगे बढ़ रहा है. मैं गंगा मैया से प्रार्थना करती हूं की मां सबकी रक्षा करें तथा प्राणिमात्र की रक्षा करें. कल मैं उत्तरकाशी में थी आज हरिद्वार पहुंची हूं. हरिद्वार में भी अलर्ट जारी हो गया है यानी की तबाही हरिद्वार आ सकती है.'

यह हादसा जो हिमालय में ऋषि गंगा पर हुआ यह चिंता एवं चेतावनी दोनों का विषय है. उमा भारती का यह भी कहना है कि केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने गंगा और सहायक नदियों पर पावर प्रोजेक्ट ना बनाने के लिए आग्रह किया था. फ़िलहाल सरकार को इस मसले पर पुनर्विचार करना ही चाहिए कि हाल के वर्षों में हिमालय क्षेत्र में बढ़ रही आपदाओं की संख्या कहीं प्रकृति की चेतावनी तो नहीं है. वैज्ञानिकों और विभिन्न शोध रिपोर्टें भी स्पष्ट रूप से ऐसे पॉवर प्रोजेक्ट के दुष्प्रभावों पर ध्यान आकृष्ट करती है.

विकास के लिए ऊर्जा के अन्य स्रोत पर ध्यान देने के साथ यह बहुत आवश्यक है कि हिमालय के परिस्थितिक तंत्र के संरक्षण पर तत्काल प्रभाव से ध्यान दिया जाए. अन्यथा इस क्षेत्र पर पड़ने वाला कोई भी दुष्प्रभाव भारत की एक बड़ी आबादी के लिए कभी भी बड़ा खतरा बन जाएगा और निश्चित रूप से इसके जिम्मेदार हम आप ही होंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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