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Ripped Jeans पहन लेना किसी के संस्कार के चीड़-फाड़ से तो बेहतर है!

    • अनु रॉय
    • Updated: 18 मार्च, 2021 09:29 PM
  • 18 मार्च, 2021 09:29 PM
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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जींस के मद्देनजर जो बयान दिया है वो इसलिए भी बेतुका है क्यों कि कोई भी व्यक्ति किसी के पहनावे से किसी के संस्कार तय नहीं कर सकता. बाकी जो बात एक मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत ने कही है वो उन की संकीर्ण मानसिकता का परिचय देती है.

अव्वल तो मैं आपको पुरुष क्या इंसान भी नहीं समझती हूं क्योंकि आप किसी स्त्री के मां होने की क़ाबिलियत और संस्कार को उसके कपड़ों से तय करने निकले हैं, रावत साहेब. क्या आपको पता है जब कोई लड़की, लड़की से मां बनती है तो उस वक़्त उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं होता है. मां बनने के बाद जब उसका शरीर बदल रहा होता है, उसके ब्रेस्ट से दूध बहता रहता है और कितने ही तहों के बाद भी उसका कपड़ा दूध से भीगता है तो एक वक़्त के बाद वो ब्रा पहनना भी छोड़ देती है. जब उसका बच्चा भूख से रोने लग जाता है तो वो भरे बाज़ार अपने बच्चे को दूध पीलाने लग जाती है. उस वक़्त उसे होश नहीं रहता है कि कहीं उसकी छातियां तो नहीं दिख रही, कहीं कोई उसे अपनी गंदी नज़रों से तो घूर नहीं रहा, कहीं कोई उसे आप सा जज करके संस्कारहीन तो नहीं कह रहा है. वो उस वक़्त सिर्फ़ अपने बच्चे के भूख के लिए सोच रही होती है.

सवाल ये है कि कैसे कोई तय कर सकता है कि जिसने जींस पहनी है उसमें संस्कार नहीं हैं

आपने कैसे तय कर लिया कि वो औरत जो आपकी को-पैसेंजर थी और अपने दो बच्चों के साथ ट्रैवल कर रही थी उसमें संस्कार नहीं था. हो सकता है कि घर से निकलते वक़्त उसे कुछ और न मिला हो और सामने उसे उसकी वही फटी जींस दिख गयी हो और वो उसे ही पहन कर निकल गयी हो. आपको पता भी है जब कोई मां बच्चों को लेकर अकेले ट्रैवल कर रही होती है, उसे अपना ख़्याल और अपनी पैकिंग करने का समय मिलता ही नहीं है.

बच्चों का कुछ रह न जाए इस चक्कर में वो भागती ही रहती है. या फिर होने को ये भी हो सकता है कि उसने जान-बूझ कर वो जींस स्टाइल के लिए पहनी हो. ये कौन सी रूल-बुक में लिखा है कि जो NGO चलाते हैं वो फटी जींस नहीं पहन सकते हैं. समाज सेवा के लिए दिल में करुणा और दया भाव का होना ज़रूरी है न कि साड़ी और घूंघट में होना...

अव्वल तो मैं आपको पुरुष क्या इंसान भी नहीं समझती हूं क्योंकि आप किसी स्त्री के मां होने की क़ाबिलियत और संस्कार को उसके कपड़ों से तय करने निकले हैं, रावत साहेब. क्या आपको पता है जब कोई लड़की, लड़की से मां बनती है तो उस वक़्त उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं होता है. मां बनने के बाद जब उसका शरीर बदल रहा होता है, उसके ब्रेस्ट से दूध बहता रहता है और कितने ही तहों के बाद भी उसका कपड़ा दूध से भीगता है तो एक वक़्त के बाद वो ब्रा पहनना भी छोड़ देती है. जब उसका बच्चा भूख से रोने लग जाता है तो वो भरे बाज़ार अपने बच्चे को दूध पीलाने लग जाती है. उस वक़्त उसे होश नहीं रहता है कि कहीं उसकी छातियां तो नहीं दिख रही, कहीं कोई उसे अपनी गंदी नज़रों से तो घूर नहीं रहा, कहीं कोई उसे आप सा जज करके संस्कारहीन तो नहीं कह रहा है. वो उस वक़्त सिर्फ़ अपने बच्चे के भूख के लिए सोच रही होती है.

सवाल ये है कि कैसे कोई तय कर सकता है कि जिसने जींस पहनी है उसमें संस्कार नहीं हैं

आपने कैसे तय कर लिया कि वो औरत जो आपकी को-पैसेंजर थी और अपने दो बच्चों के साथ ट्रैवल कर रही थी उसमें संस्कार नहीं था. हो सकता है कि घर से निकलते वक़्त उसे कुछ और न मिला हो और सामने उसे उसकी वही फटी जींस दिख गयी हो और वो उसे ही पहन कर निकल गयी हो. आपको पता भी है जब कोई मां बच्चों को लेकर अकेले ट्रैवल कर रही होती है, उसे अपना ख़्याल और अपनी पैकिंग करने का समय मिलता ही नहीं है.

बच्चों का कुछ रह न जाए इस चक्कर में वो भागती ही रहती है. या फिर होने को ये भी हो सकता है कि उसने जान-बूझ कर वो जींस स्टाइल के लिए पहनी हो. ये कौन सी रूल-बुक में लिखा है कि जो NGO चलाते हैं वो फटी जींस नहीं पहन सकते हैं. समाज सेवा के लिए दिल में करुणा और दया भाव का होना ज़रूरी है न कि साड़ी और घूंघट में होना बॉस.

आप जिसे कैंची वाला संस्कार कह कर नकार रहें हैं वो शायद किसी की आज़ादी, किसी की अपनी पसंद है. अब देखिए पुरुष बालों से भरी एकदम बेयर-चेस्ट घूमते रहते हैं, आप खुद ही RSS में हाफ़-पैंट पहन कर देशभक्ति की शिक्षा ले रहे थे, तब क्या किसी ने आपकी योग्यता या शिक्षा पर सवाल उठाया? फिर आपने कैसे किसी मां के संस्कार और उसकी NGO चलाने वाली क्षमता पर शक किया.

ये आपके बौद्धिक दीवालियपन को दर्शाता है. न कि किसी स्त्री के संस्कार को. कपड़े से जब तक संस्कार तय किए जाते रहेंगे, हम उसी सालों पहले वाले कीचड़ में अटके रहेंगे. मैंने देखा है साड़ी में भी स्त्रियों को बदसलूकी करते हुए और जींस में अदब से पेश आते हुए. ये आपकी सोच और आपको मिले आपके अपने संस्कार हैं जो किसी और को ऊपर से नीचे तक पहले निहारते हैं और फिर ऐसे कॉमेंट पास करते हैं. ईश्वर आपको सदबुद्धि दे, यही प्रार्थना है आपके लिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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