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ओलंपिक में शामिल हुईं महिला खिलाड़ियों के कपड़ों की विवाद, माजरा क्या है?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 10 अगस्त, 2021 01:15 PM
  • 10 अगस्त, 2021 12:29 PM
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अजीब बात है लोगों को महिलाओं के शॉर्ट्स पहनने पर भी परेशानी है और फुल बॉडी शूट पहनने पर भी. आखिर महिला खिलाड़ियों को सेक्शुअल नजरों से क्यों देखा जाता है. चलिए बताते हैं कि क्यों ओलंपिक जैसे बड़े स्पोर्ट इंवेंट में महिला खिलाड़ियों का पहनावा चर्चा का विषय क्यों है…

महिला खिलाड़ी चाहें छोटे कपड़े पहनें या पूरे बदन को ढकने वाले, लोगों को इतनी तिलमिलाहट क्यों हैं. इससे पहले कि आप कुछ सोचें हम बता दें कि इस बार की लड़ाई पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनने को लेकर है. कई महिला खिलाड़ी जांघ से उपर रहने वाले कपड़े नहीं पहनना चाहती थीं. हुआं यूं कि इस बार कुछ महिला खिलाड़ी पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनकर खेल के मैदान में उतरीं जो कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा और इसके लिए उन खिलाड़ियों पर जुर्माना भी लगा दिया गया.

असल में महिलाएं भले देश के लिए खेलती हैं लेकिन लोगों की नजरें खेल के साथ उनके कपड़ों पर जाकर टिक जाती हैं. जब तक लोग अपनी सोच को नहीं बदलेंगे तब तक उनकी नजरें महिला खिलाड़ियों के खेल पर कहां जाएंगी. लोग चाहते हैं कि महिला खिलाड़ी इनके हिसाब से जिंदगी जीएं.

अजीब बात है लोगों को महिलाओं के शॉर्ट्स पहनने पर भी परेशानी है और फुल बॉडी शूट पहनने पर भी. आखिर महिला खिलाड़ियों को सेक्शुअल नजरों से क्यों देखा जाता है. चलिए बताते हैं कि क्यों ओलंपिक जैसे बड़े स्पोर्ट इंवेंट में महिला खिलाड़ियों का पहनावा चर्चा का विषय क्यों है…

महिलाओं के पूरे कपड़े पहनने पर भी लोगों को दिक्कत है

दरअसल, नॉर्वे की बीच हैंडबॉल टीम ने स्पेन के खिलाफ मैच में अपनी सेट यूनिफॉर्म यानी स्पोर्ट्स ब्रा और बिकिनी बॉटम्स की जगह पुरुष खिलाड़ियों की तरह शॉर्ट्स और टीशर्ट्स पहनी. इस वजह से यूरोपीय हैंडबॉल फेडरेशन ने इन महिला खिलाड़ियों पर 1770 डॉलर का जुर्माना लगा दिया.

फेडरेशन का कहना था कि खिलाड़ियों ने यूनिफॉर्म के नियम को तोड़े हैं जिसे इंटरनेशनल हैंडबॉल फेडरेशन ने तय किया है. फेडरेशन सिर्फ यूनिफॉर्म पर ही नहीं बल्कि यह भी तय करती है कि उसका नाप क्या होगा. सोचिए महिला...

महिला खिलाड़ी चाहें छोटे कपड़े पहनें या पूरे बदन को ढकने वाले, लोगों को इतनी तिलमिलाहट क्यों हैं. इससे पहले कि आप कुछ सोचें हम बता दें कि इस बार की लड़ाई पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनने को लेकर है. कई महिला खिलाड़ी जांघ से उपर रहने वाले कपड़े नहीं पहनना चाहती थीं. हुआं यूं कि इस बार कुछ महिला खिलाड़ी पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनकर खेल के मैदान में उतरीं जो कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा और इसके लिए उन खिलाड़ियों पर जुर्माना भी लगा दिया गया.

असल में महिलाएं भले देश के लिए खेलती हैं लेकिन लोगों की नजरें खेल के साथ उनके कपड़ों पर जाकर टिक जाती हैं. जब तक लोग अपनी सोच को नहीं बदलेंगे तब तक उनकी नजरें महिला खिलाड़ियों के खेल पर कहां जाएंगी. लोग चाहते हैं कि महिला खिलाड़ी इनके हिसाब से जिंदगी जीएं.

अजीब बात है लोगों को महिलाओं के शॉर्ट्स पहनने पर भी परेशानी है और फुल बॉडी शूट पहनने पर भी. आखिर महिला खिलाड़ियों को सेक्शुअल नजरों से क्यों देखा जाता है. चलिए बताते हैं कि क्यों ओलंपिक जैसे बड़े स्पोर्ट इंवेंट में महिला खिलाड़ियों का पहनावा चर्चा का विषय क्यों है…

महिलाओं के पूरे कपड़े पहनने पर भी लोगों को दिक्कत है

दरअसल, नॉर्वे की बीच हैंडबॉल टीम ने स्पेन के खिलाफ मैच में अपनी सेट यूनिफॉर्म यानी स्पोर्ट्स ब्रा और बिकिनी बॉटम्स की जगह पुरुष खिलाड़ियों की तरह शॉर्ट्स और टीशर्ट्स पहनी. इस वजह से यूरोपीय हैंडबॉल फेडरेशन ने इन महिला खिलाड़ियों पर 1770 डॉलर का जुर्माना लगा दिया.

फेडरेशन का कहना था कि खिलाड़ियों ने यूनिफॉर्म के नियम को तोड़े हैं जिसे इंटरनेशनल हैंडबॉल फेडरेशन ने तय किया है. फेडरेशन सिर्फ यूनिफॉर्म पर ही नहीं बल्कि यह भी तय करती है कि उसका नाप क्या होगा. सोचिए महिला खिलाड़ियों ने जांघ से कट होने वाले छोटे कपड़े नहीं पहने तो उनके उपर जुर्माना लगा दिया गया.

ये वही लोग हैं जिन्हें सानिया मिर्जा के टेनिस यूनिफॉर्म से परेशानी थी. ये वही लोग हैं जो किसी लड़की के खिलाड़ी बनने पर उसकी प्रेक्टिस करने वाली ड्रेस और पुरुष मित्र खोजते हैं. जरा देर नहीं लगती उसके चरित्र पर उंगली उठाने में. मतलब मसला यह है कि आपके तय किए पयमाने पर चलना ही महिलाओं का धर्म है?

वहीं इस खबर के सामने आने के बाद बड़ी संख्या में लोग नॉर्वे की टीम के समर्थन में उतरे हैं और खेल में महिलाओं के शरीर के प्रदर्शन के लिए उन पर दबाव बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं. इस मामले पर ग्रैमी अवॉर्ड विजेता और मशहूर गायिका पिंक भी नॉर्वे की टीम के समर्थन में उतर आई हैं. उन्होंने टीम की खिलाड़ियों पर लगे जुर्माने की राशि भरने का प्रस्ताव भी दे डाला है.

वहीं जर्मनी की महिला जिमनास्ट्स ने भी क्वालिफिकेशन गेम में फुल बॉडी सूट पहनकर बिन बोले बिकिनी नुमा ड्रेस के खिलाफ अपना विरोध जताया. टीम की सदस्य सारा वोस पहले भी ऐसी ड्रेस की पैरवी कर चुकी हैं. जर्मनी की महिला जिमनास्टिक्स द्वारा उठाए गए इस कदम की हर तरफ चर्चा हो रही है.

जर्मन महिला खिलाड़ियों ने खेल के जरिए 'फ्रीडम ऑफ चॉइस' यानी अपने पसंद के कपड़े पहनने की आजादी को बढ़ावा देने के लिए यह फैसला लिया. खिलाड़ियों ने कहा कि पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनने का मकसद महिलाओं की आजादी को बढ़ावा देने और उन्हें प्रोत्साहित करने के हिसाब से डिजाइन किए गए हैं ताकि खिलाड़ी इसमें सहज महसूस कर सकें. महिलाओं को सेक्सुअल ऑब्जेक्ट ना समझा जाए.

इससे पहले बीच वॉलीबॉल और जिम्नास्टिक जैसे खेलों में महिला खिलाड़ी को बिकनी या मोनोकिनी यूनिफॉर्म पहनना पड़ता है. अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि महिला एथलीट को सेक्सुअल ऑब्जेक्ट के रूप में पेश किया जाता है. वहीं छोटे कपड़े पहनने की मजबूरी के चलते अक्सर खिलाड़ियों को शोषण का शिकार होना पड़ता है जबकि दूसरी तरफ इन खेलों में पुरुष एथलीट पूरे ढके हुए कपड़े पहनते हैं.

भारत के हरियाणा की रहने वाली पहलवान विनेश फोगाट की सबसे पहली लड़ाई अपनी सहूलियत के हिसाब से कपड़े पहनने की थी. जब उन्होंने कुर्ता पजामा छोड़कर टी-शर्ट और ट्रैक-पैंट पहना तो उनके शरीर के उभार दिखने से लोगों को आप्पत्ति थी. उनके घरवालों पर भी उंगली उठाई गई कि कैसे इन्हें टीशर्ट पहनने दिया गया. जबकि कुश्ती ट्रैक पैंट में अच्छे से हो पाती है ना की सूट सलवार और दुप्पटे में.

जो लोग शॉट्स का विरोध करते हैं उन्हें हाथ से लेकर पांव तक ढकी लड़कियों से क्या दिक्कत है...वो भी जिस यूनिफॉर्म में महिला खिलाड़ियों सहज महसूस होता है. लोगों को महिलाओं के खेल प्रदर्शन से मतलब है या फिर उनके पहनावे से, क्यों बार-बार यह मुद्दा सामने आता है, यहां तक की साल 2021 में भी ये हाल है…महिला खिलाड़ी बिकनी पहने तो दिक्कत पूरे बदन ढके हुए कपड़े पहने तो दिक्कत...असल में समस्या लोगों की सोच में है. 

नॉर्वे की बीच हैंडबॉल टीम ने बिकनी की जगह पहना शॉर्ट्स 

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज ने साल 2017 में जब स्वीवलेस टॉप में अपनी एक सेल्फ़ी पोस्ट की थी तो उन्हें पोर्न  स्टार तक कहा गया था. खेल की दुनियां में महिलाओं को आकर्षक भी रहना है और पारंपरिक भी, यै कैसे हो पाएगा भाई?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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