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टायलेट..एक क्रूर कथा

    • शरत कुमार
    • Updated: 21 अगस्त, 2017 03:20 PM
  • 21 अगस्त, 2017 03:20 PM
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राजस्थान के फैमिली कोर्ट ने एतिहासिक फैसला देते हुए घर में टायलेट नहीं होने को क्रूरता मानते हुए एक महिला की तलाक की याचिका मंजूर कर ली है. लेकिन यहीं तक सीमित नहीं है...

अब तक खुले में शौच से बिमारियों का डर समझाया जा रहा था, लेकिन अब तो लोगों को खुले में शौच से तलाक का भी खौफ सताने लगा है. भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायलय ने उन सब पतियों की नींद उड़ा रखी है जिनके घर में शौचालय नहीं है और अपनी पत्नी से विवाद चल रहा है. महिलाएं केवल रात के अंधेरे में अनैच्छिक क्रियाओं का निष्पादन करें इसे कोर्ट ने क्रूर करार दिया है.

राजस्थान के फैमिली कोर्ट ने एतिहासिक फैसला देते हुए घर में टायलेट नहीं होने को क्रूरता मानते हुए एक महिला की तलाक की याचिका मंजूर कर ली है. भीलवाड़ा के फैमिली कोर्ट में एक महिला ने याचिका दी कि ससुराल में शौचालय नहीं होने की वजह से वो पीहर में रह रही है. बार-बार कहने पर भी उसके पति और ससुराल वाले घर में शौचालय नहीं बनवा रहे हैं. महिला की याचिका को मंजूर करते हुए जज राजेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि ये तो महिला के प्रति क्रूरता है और सामाजिक कलंक है. कोर्ट ने कहा कि क्या कभी दर्द हुआ कि मां-बहनों को खुले में शौच जाना पड़ता है. ग्रामीण महिलाएं शौच के लिए रात की प्रतिक्षा करती हैं. तब तक वे बाहर नहीं जा सकती हैं. महसूस किया कि कैसी उनकी शारीरिक और मानसिक पीड़ा होती होगी. ऐसे दौर में खुले में शौच की कुप्रथा समाज पर कलंक है. शराब, तंबाकू पर बेहिसाब खर्च करने वालों के घर शौचालय न होना विडंबना है.

दरअसल मामला ये था कि भीलवाड़ा के फैमिली कोर्ट एक महिला ने शिकायत की थी कि उसकी शादी 2011 में हुई थी लेकिन घर में कमरा और शौचालय तक नहीं था. 2015 तक हमने घरवालों को कहा कि आप शौचालय बनवा दें, बाहर जाने में शर्मिदगी होती है मगर किसी ने नहीं सुनी. महिला ने ये शिकायत 2015 में की थी. दो साल से अपने पीहर रह रही है और इसी आधार पर तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट में लगाई थी जिसे कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है.

महिला कहती है कि 'मेरे पिता बचपन में चल बसे थे लेकिन मध्यवर्गीय परिवार के होने के बावजूद मेरे भाईयों ने मेरी परवरिश में कोई कमी नहीं की. घर में एक नहीं तीन-तीन शौचालय बनवाए थे लेकिन...

अब तक खुले में शौच से बिमारियों का डर समझाया जा रहा था, लेकिन अब तो लोगों को खुले में शौच से तलाक का भी खौफ सताने लगा है. भीलवाड़ा के पारिवारिक न्यायलय ने उन सब पतियों की नींद उड़ा रखी है जिनके घर में शौचालय नहीं है और अपनी पत्नी से विवाद चल रहा है. महिलाएं केवल रात के अंधेरे में अनैच्छिक क्रियाओं का निष्पादन करें इसे कोर्ट ने क्रूर करार दिया है.

राजस्थान के फैमिली कोर्ट ने एतिहासिक फैसला देते हुए घर में टायलेट नहीं होने को क्रूरता मानते हुए एक महिला की तलाक की याचिका मंजूर कर ली है. भीलवाड़ा के फैमिली कोर्ट में एक महिला ने याचिका दी कि ससुराल में शौचालय नहीं होने की वजह से वो पीहर में रह रही है. बार-बार कहने पर भी उसके पति और ससुराल वाले घर में शौचालय नहीं बनवा रहे हैं. महिला की याचिका को मंजूर करते हुए जज राजेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि ये तो महिला के प्रति क्रूरता है और सामाजिक कलंक है. कोर्ट ने कहा कि क्या कभी दर्द हुआ कि मां-बहनों को खुले में शौच जाना पड़ता है. ग्रामीण महिलाएं शौच के लिए रात की प्रतिक्षा करती हैं. तब तक वे बाहर नहीं जा सकती हैं. महसूस किया कि कैसी उनकी शारीरिक और मानसिक पीड़ा होती होगी. ऐसे दौर में खुले में शौच की कुप्रथा समाज पर कलंक है. शराब, तंबाकू पर बेहिसाब खर्च करने वालों के घर शौचालय न होना विडंबना है.

दरअसल मामला ये था कि भीलवाड़ा के फैमिली कोर्ट एक महिला ने शिकायत की थी कि उसकी शादी 2011 में हुई थी लेकिन घर में कमरा और शौचालय तक नहीं था. 2015 तक हमने घरवालों को कहा कि आप शौचालय बनवा दें, बाहर जाने में शर्मिदगी होती है मगर किसी ने नहीं सुनी. महिला ने ये शिकायत 2015 में की थी. दो साल से अपने पीहर रह रही है और इसी आधार पर तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट में लगाई थी जिसे कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है.

महिला कहती है कि 'मेरे पिता बचपन में चल बसे थे लेकिन मध्यवर्गीय परिवार के होने के बावजूद मेरे भाईयों ने मेरी परवरिश में कोई कमी नहीं की. घर में एक नहीं तीन-तीन शौचालय बनवाए थे लेकिन ससुराल आतुंद गांव में आई तो खेत में जाना पड़ा तो ऐसा लगा कि बाजार में बिना कपड़े के बैठे हैं और ये सब हम बर्दाश्त नहीं कर पाए.'

बात बस इतनी भर नहीं थी. शौचालय अब पति-पत्नी के बीच नाक की लड़ाई बन गई. कोर्ट ने कहा कि तुम एफि़डेविट दे दो कि घर में शौचालय बनवा देंगें. पति ने घर में एक नहीं दो-दो शौचालय बनवाए लेकिन कोर्ट में एफिडेविट लिख कर देने से इंकार कर दिया. अब ये लड़ाई पति-पत्नी की लड़ाई से निकलकर सभ्यताओं की लड़ाई बन गई है. पत्नी ने कहा कि हमारी लड़ाई खुले में शौच करने वाली सभी महिलाओं के लिए है, तो पति ने कहा कि हमारी लड़ाई उन सब पतियों के लिए है जो घर में शौचालय बनवाने में असमर्थ हैं और इसी बहाने पत्नी छोड़ना चाहती है. पति महोदय अब ऊपरी अदालत में फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देने जा रहे हैं. इनका कहना है कि गांव की सभी औरतें बाहर शौच के लिए जाती हैं तो फिर क्रूरता मेरे साथ हीं क्यों हो रही है. यानी टायलेट-एक क्रूर कथा का पार्ट टू अभी बाकी है.

पिछले महीने जयपुर में अपने प्रवास के दौरान जब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बिड़ला सभागार में शहर के प्रबुद्धजनों को ये बता रहे थे कि जयपुर में बैठकर आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार और उड़ीसा में खुले में शौच का दर्द महिलाएं और लड़कियां किस तरह से झेलती हैं. लेकिन अमित शाह को शायद ये पता नहीं है कि राजस्थान में खुले में शौच का खौफ लोगों को किस तरह सता रहा है.

राजस्थान में न जाने कितनी बार भूख से मौतों की खबरें आई है. कई दशकों से गरीबी हटाओ के नारे में कितनों के घर रोशन हो रहे हैं. मगर ये खबर कभी नहीं आई कि सुबह या घुप्प अंधेरे में तो छोड़िए, कोई सरकारी अधिकारी किसी गरीब के घर ये देखने गया हो कि उसकी थाली में भोजन है कि नहीं. मगर शौच करते हुए पकड़ने की फुर्ती इन अधिकारियों की देखते ही बनती है. कम से कम राजस्थान में तो ये मुस्तैदी क्रूर बनती जा रही है.

इसी साल जून में प्रतापगढ़ में एक बुजुर्ग नेता जफर खान की पिटाई से मौत हो गई. जफर अपनी बहू बेटियों की शौच करते तस्वीर लेने से सरकारी अधिकारियों को रोकने गया था. अब आप इसे क्या कहेंगे. सरकार एक तरफ शौचालय नहीं बनवा रही थी कि गरीब अनाधिकृत कब्जेधारी हैं, इसलिए यहां शौचालय नहीं बन सकता और दूसरी तरफ शौच भी नहीं करने दे रही थी. अगर कोर्ट के फैसले की मानें तो अनैच्छिक क्रियाओं के निष्पादन समय पर होने से रोकना शारीरिक और मानसिक यातना है. ऐसे में राजस्थान सरकार भी वहां की महिलाओं के साथ क्रूरता कर रही थी और उसी सरकारी क्रूरता को रोकने में जफर खान की जान गई.

सरकार द्रारा बनवाए गए टॉयलेट

पहली बार राजस्थान में खुले में शौच करने पर राज्य के जहाजपुर प्रखंड में पीपलूंद और श्रृंगारचवरी के 6 लोगों को गिरफ्तार कर हवालात में बंद किया गया है. बार-बार खुले में शौच की मनाही के बाद खुले में शौच कर रहे लोगों को जहाजपुर के एसडीएम करतार सिंह ने पाबंद कर आदेश दिया था कि वो खुले में शौच के लिए नही जाएं. लेकिन खुले में शौच करने बैठे 6 लोगों को सरकारी आदेश की नाफरमानी मंहगी पड़ गई. ये जैसे हीं शौच कर उठे पुलिस इनका इंतजार कर रही थी. घंटो थाने में बंद करने के बाद जहाजपुर थाने के सब इंस्पेक्टर गुमान सिंह ने इन्हें मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश किया. कोर्ट में 10-10 हजार के निजी मुचलके पर इन्हें इस शर्त पर जमानत मिली कि अगले 15 दिनों में इन्हें अपने-अपने घरों में शौचालय बनवाना होगा. 15 दिन के अंदर अपने-अपने घरों में शौचालय बनवाने के लिए इन्हें कोर्ट में एफिडेविट भर कर देना पड़ा तब जाकर जमानत मिली है.

बात अब इतनी भर नहीं रह गई है. भीलवाड़ा के जहाजपुर उपखंड के गांगीकला गांव में सरकार ने ये मुनादी करवा दी है कि अगर 15 दिन के अंदर सभी घरों में शौचालय नहीं बने तो गांव की बिजली काट दी जाएगी. जयपुर डिस्कम यानी बिजली विभाग के भेजे पत्र में सरकार ने कहा है कि गांगीकलां गांव के महज 20 फीसदी लोगों ने ही शौचालय बनवाए हैं, लिहाजा सभी ने शौचालय नहीं बनवाए तो इनके बिजली काट दिए जाए. यानी अब अंधेरे में बे रोक टोक खूब फारिग हो सकते हैं. बिजली और पानी के मामले में कोर्ट ने कई बार सरकारों को साफ किया है कि ये मनुष्य की मूलभूत जरुरतें हैं जिनका विच्छेद मौलिक अधिकारों का हनन है. सवाल उठता है कि फिर सरकार किसी गांव के खिलाफ क्रूरता कैसे कर सकती है.

सरकारी फरमान

सभी लोग शौचालय में जाएं और सभी घरों में शौच हो मगर पीढ़ियों से जारी परंपरा पर अचनाक पड़े इस धावे से लोगों को एसिडिटी की समस्या होने लगी है. लोगों के पेट में गुड़-गुड़ होते देख अब कांग्रेस अपनी दवाई बेचने खुले में निकल चुकी है. कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि बिना संसाधन उपलब्ध कराए किसी ने दीर्घ शंका में व्यवधान डाला तो कांग्रेस पुरजोर विरोध करेगी.

उधर अनैच्छिक क्रियाओं पर नियंत्रण करनेवाली इंद्रियों को वश में करने के लिए सरकारी अधिकारी जिस तरह के तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक पर उतारु हो गए हैं उसे देखकर सरकार भी घबरा गई है. इन घटनाओं से लोगों में बढ़ रही बेचैनी को भांपते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सीएमओ ने साफ-साफ आदेश निकाले हैं कि टार्गेट पूरा करने के लिए खुले में शौच कर रहे किसी भी व्यक्ति को टार्गेट किया तो सरकारी अधिकारी को सरकार टार्गेट करेगी. सरकार हर महीने अधिकारियों को खुले में शौच से मुक्ति का टार्गेट दे रही है और हिसाब भी मांग रही है. लोग हैं कि मानते नहीं और अधिकारी के पास सबके लिए शौचालय बनवाने के लिए संसाधन नहीं हैं. अब ये भी तो क्रूरता ही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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