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तीन गृहणियों की विचलित करने वाली सच्ची कहानी, जिसे करोड़ो महिलाएं अपना मान सकती हैं

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 26 मार्च, 2021 05:09 PM
  • 26 मार्च, 2021 11:14 AM
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ऐसी तीन महिलाओं (housewife) की सच्ची कहानी आपको बता रहे हैं. जिसे पढ़कर आप कह सकते हैं कि इस जमाने भी ऐसी सोच कौन रखने वाले लोग कौन हैं.

आज भी ज्यादातर हाउसवाइफ (housewife) के हाथों में घड़ी नहीं दिखती. कुछ लोगों के लिए शायद यह कोई बड़ी बात नहीं होगी. हो सकता है कि किसी के लिए घड़ी पहनना बहुत छोटी सी बात हो लेकिन एक हाउस वाइफ के लिए यही बात बड़ी बन जाती है. ऐसे ही पत्नी (wife) अपने पैसे मायके नहीं भेज सकती. अपने माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं उठा सकती, क्योंकि पति (husband) ऐसा करने की परमिशन नहीं देता. घर के सभी सदस्य खुद को रिलैक्स करने बाहर जा सकते हैं, पार्टी करने दूसरे शहर जा सकते हैं, वीकेंड मना सकते हैं लेकिन एक घर की मां (Mother) होती है जो घर छोड़कर कहीं नहीं जाती. आज भी घर संभालने वाली महिला (housewife work) का कोई वीकेंड नहीं होता. क्या हाउस वाइफ घर की जिम्मेदारियों से थकती नहीं? ऐसी ही तीन महिलाओं की सच्ची कहानी आपको बता रहे हैं. जिसे पढ़कर आप कह सकते हैं कि इस जमाने भी ऐसी सोच रखने वाले लोग कौन हैं.

तीन महिलाएं जो एक छोटी सी बात के लिए पति से कबसे विनती कर रही हैं

1- रैना अच्छे परिवार की लड़की है. शादी से पहले मायके में उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. घरवाले उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी करते. बेटी के सुखी जीवन की चाह रखने वाले माता-पिता ने दहेज देकर सरकारी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करवाई. शादी के बाद रैना अपनी ससुराल मुंबई आ गई. रैना के ससुराल में लगभग सभी नौकरी करने वाले लोग हैं और वह हाउस वाइफ है. उसकी ससुराल में कामवाली रखने का चलन नहीं है. घर के सभी काम बहू ही करेगी. रैना को अब समझ आ गया था कि उसके ससुराल के लोग पुराने ख्यालों वाले हैं. रोज सुबह 5 बजे से रात के 11 बजे तक वह काम में ही लगी रहती, लेकिन किसी को उसकी वैल्यू नहीं है.

ससुराल के लोग महिला और पुरुष में भेदभाव करते हैं. उनकी नजरों में हाउसवाइफ मतलब कुछ नहीं. कई बार वे लोग रैना को...

आज भी ज्यादातर हाउसवाइफ (housewife) के हाथों में घड़ी नहीं दिखती. कुछ लोगों के लिए शायद यह कोई बड़ी बात नहीं होगी. हो सकता है कि किसी के लिए घड़ी पहनना बहुत छोटी सी बात हो लेकिन एक हाउस वाइफ के लिए यही बात बड़ी बन जाती है. ऐसे ही पत्नी (wife) अपने पैसे मायके नहीं भेज सकती. अपने माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं उठा सकती, क्योंकि पति (husband) ऐसा करने की परमिशन नहीं देता. घर के सभी सदस्य खुद को रिलैक्स करने बाहर जा सकते हैं, पार्टी करने दूसरे शहर जा सकते हैं, वीकेंड मना सकते हैं लेकिन एक घर की मां (Mother) होती है जो घर छोड़कर कहीं नहीं जाती. आज भी घर संभालने वाली महिला (housewife work) का कोई वीकेंड नहीं होता. क्या हाउस वाइफ घर की जिम्मेदारियों से थकती नहीं? ऐसी ही तीन महिलाओं की सच्ची कहानी आपको बता रहे हैं. जिसे पढ़कर आप कह सकते हैं कि इस जमाने भी ऐसी सोच रखने वाले लोग कौन हैं.

तीन महिलाएं जो एक छोटी सी बात के लिए पति से कबसे विनती कर रही हैं

1- रैना अच्छे परिवार की लड़की है. शादी से पहले मायके में उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. घरवाले उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी करते. बेटी के सुखी जीवन की चाह रखने वाले माता-पिता ने दहेज देकर सरकारी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करवाई. शादी के बाद रैना अपनी ससुराल मुंबई आ गई. रैना के ससुराल में लगभग सभी नौकरी करने वाले लोग हैं और वह हाउस वाइफ है. उसकी ससुराल में कामवाली रखने का चलन नहीं है. घर के सभी काम बहू ही करेगी. रैना को अब समझ आ गया था कि उसके ससुराल के लोग पुराने ख्यालों वाले हैं. रोज सुबह 5 बजे से रात के 11 बजे तक वह काम में ही लगी रहती, लेकिन किसी को उसकी वैल्यू नहीं है.

ससुराल के लोग महिला और पुरुष में भेदभाव करते हैं. उनकी नजरों में हाउसवाइफ मतलब कुछ नहीं. कई बार वे लोग रैना को टोकते हैं कि घर में काम ही क्या होता है ज्यादा से ज्यादा दो घंटे का. घर की बहू टीवी नहीं देख सकती. उसका टीवी के रिमोट पर भी हक नहीं. कुल मिलाकर उस घर की महिलाओं की आजादी घर के पुरुषों पर निर्भर है. रैना के घर की महिलाएं सिर्फ साड़ी और सूट ही पहन सकती हैं. जबकि रैना के ससुराल वाले काफी पढ़े-लिखे लोग हैं. ऐसे ही एक दिन रैना ने अपने पति जय से घड़ी लेने की बात कही. उस वक्त तो बात को टालने के लिए जय ने कह दिया कि हां देखेंगे, लेकिन जब भी रैना घड़ी की याद दिलाती तो वह कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल देता.

एक दिन रैना ने वजह पूछी कि एक घड़ी ही तो है इसे खरीदने में इतना आनाकानी क्यों. इस पर जय ने कहा कि वह ऑफिस तो जाती नहीं है तो घड़ी पहनकर क्या करेगी. घर में रहने वाली महिलाओं को घड़ी नहीं पहनना चाहिए. घड़ी वो महिला पहनती है जो बाहर काम करने जाती है, तुम हाउसवाइफ हो, घड़ी पहनकर क्या करोगी? टाइम देखकर सब्जी काटोगी क्या? इतना सुनने के बाद रैना ने दोबारा घड़ी के लिए पति को नहीं बोला, क्योंकि अब वह खुद अपने लिए घड़ी खरीदेगी फिर जबाव देगी कि हाउसवाइफ क्या होती है. क्या आपको जय जैसे लोगों की सोच पर तरस और गुस्सा नहीं आता.

2- एक आंटी नेपाल से आकर दिल्ली में लोगों के घरों में काम करती हैं. उनका पति भी सोसाइटी में गार्ड की नौकरी करता है. जितना गार्ड अंकल की सैलरी नहीं है उससे ज्यादा आंटी कमा लेती हैं लेकिन उन पैसों पर उनका कोई हक नहीं. वह रोज 10 घरों में बर्तन-झाड़ू, पोछा करती हैं. काम पर जाने से पहले वे अपने घर के सभी काम खत्म करती हैं. पति को चाय देने से लेकर खाना और कपड़े तक. इसके लिए वह रोज 4 बजे जाग जाती हैं.

एक दिन उन्होंने 500 रूपये एडवांस मांगे और कहा कि अंकल को मत बताना. अगर उन्हें पता चल गया तो पता नहीं क्या होगा. यह पैसे मैं मेरी मां के लिए भेज रही हूं. अंकल नहीं चाहते कि मैं मेरी मां को पैसे दूं. एक लड़का गांव जा रहा है, मैं अंकल से छिपाकर ये पैसे उसे दे दूंगी वो मां के दे देगा. मेरी मां अभी बहुत बीमार है और कोई देखने वाला नहीं है. सोचिए एक महिला का अपने ही कमाए हुए पैसों पर अधिकार नहीं है. वह अपनी मां की देखभाल नहीं कर सकती क्योंकि पति इसकी इजाजत नहीं देता. आखिर परमिशन की जरूरत ही क्यों है. छिपकर पैसे देने की बात पता चल जाए तो मारपीट और लड़ाई.

3- एक धनवान घर की बेटी शांता की शादी एक गरीब परिवार में कर दी गई. मायके वालों को जब असलियत का पता चला तो उन्होंने शांता को घर चलने के लिए भी कहा, लेकिन वह बोली कि जिससे उसकी शादी हुई है वह उसी के साथ रहेगी. उसे इतना काबिल बनाएगी कि किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. यह बात उस लड़की ने 40 साल पहले कही थी. एक वो दिन था और आज का दिन है कि घर की सारी जिम्मेदारियां उसके ऊपर हैं. पति की सरकारी नौकरी लग गई. बच्चे पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी कर रहे हैं. बेटी की शादी हो गई, घर बन गया, कई एकड़ जमीन भी ले ली गई, लेकिन उसकी जिम्मेदारी है जो खत्म नहीं होती. वह आज भी घर से दूर नहीं जा सकती. बेटे-बहू, बेटियां-दामाद सब घूमते फिरते हैं लेकिन वह घर छोड़कर कहीं भी नहीं जा सकती. जब भी वह पति से कहीं जाने का जिक्र करती है उसे उसकी जिम्मेदारी का एहसास करा दिया जाता है. पति ने भले ही पैसे दिए लेकिन जमीन उसने खरीदी और अकेले पूरा घर बनवा दिया.

लोग कहते हैं कि महिला के भेष में वह पुरुष है. ऐसा क्यों भाई, क्या एक महिला घर नहीं बनवा सकती. बेटियों के अच्छा करने पर तारीफ में बोला जाता है कि वाह बेटा बहुत अच्छे, वाह बेटी  क्यों नहीं बोला जाता.

शांता के बीमार पड़ने पर भी लोकल डॉक्टर से ही उसका इलाज करवा दिया जाता है क्योंकि वह अगर दो-तीन के लिए भी दूसरे शहर चली गई तो घर कौन संभालेगा. घर के नाती-पोते को कौन देखेगा. जो मुकदमे चल रहे हैं उन्हें कौन डील करेगा. वह सबके बारे में सोचकर रोती है, सबकी चिंता करती है लेकिन कोई उसके बारे कोई नहीं सोचता कि उसे भी कहीं आने-जाने की जरूरत है. घर छोड़कर सभी चले जाते हैं लेकिन एक मां ही है जो दरवाजे पर सबके लौटने का इंतजार करती है. ये तीनों कहानियां ना जाने कितनी औरतों की जिंदगी से मैच करती होंगी. एक हाउसवाइफ सुबह से लेकर रात तक घर के कितने काम करती है. आपको क्या लगता है, एक मां और पत्नी की सैलरी कितनी होनी चाहिए?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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