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Tanishq ad की तरह बनने वाले विज्ञापनों का एक ट्रेंड रहा है, और उसकी वजह भी साफ है

    • सिद्धार्थ अरोड़ा सहर
    • Updated: 15 अक्टूबर, 2020 09:54 PM
  • 15 अक्टूबर, 2020 09:54 PM
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भले ही विवादों में आने के बाद तनिष्क ने अपना विज्ञापन (Tanishq Controversial Ad) हटा लिया हो मगर ये कोई पहली बार नहीं था जब इस तरह के विज्ञापन बने हों और उससे लोग आहत हुए हों. चूंकि अभी विवाद ख़त्म नहीं हुआ है इसलिए हमारे लिए भी जरूरी हो जाता है कि हम ये समझें कि कंपनियों द्वारा ऐसे विज्ञापन बनाने की जरूरत क्या है?

तनिष्क (Tanishq) का एड ‘लव जिहाद’ (Love Jihad) के चलते #boycottTanishqJewellery की भेंट चढ़ गया. कुछ ही देर में हटा लिया गया. ट्विटर पर आवाहन हुआ कि इस धनतेरस कोई तनिष्क से शौपिंग नहीं करेगा. एड ब्लॉक होने के बाद बवाल और बढ़ा, दूसरे पक्ष ने कहना शुरु कर दिया कि प्यार मुहब्बत पर बनी कोई चीज इस देश में देखी ही नहीं जाती, बताओ! आपसी प्यार को रेपुटेशन ही नहीं देते. 2014 के बाद से बीजेपी (BJP) ने कलह मचा दी है. बात-बात पर नफ़रत बह रही है, देश में रहना मुश्किल हो गया है. हमारा देश शादी प्रधान देश है. हम पैदा होते है, बड़े होते हैं, पढ़ाई करते हैं, नौकरी करते हैं, घर के काम सीखते हैं, किसलिए? शादी करने के लिए. शादी में अच्छा माल-मतंगड़ देने-पाने के लिए. तनिष्क की झोली भरने के लिए. आप एड के सपोर्टर्स की बात एक बार आंख खोलकर पढ़ो तो लॉजिकल लगती है, ये एड इतनी पोज़िटिविटी दिखा रहे हैं, इसका विरोध क्यों हो रहा है?

तनिष्क का वो विज्ञापन जिसपर विवाद गहराता ही जा रहा है

मगर क्या विरोध सिर्फ इस अकेले की वजह से हो रहा है?

इससे पहले सर्फ़ एक्सेल ने हिन्दू बच्ची को होली के गुब्बारे से बचाते हुए एक मुस्लिम बालक को नमाज़ पढ़वाई थी, उससे पहले रेड लेबल ने बताया कि कैसे हिन्दू लोग मुस्लिम पड़ोसी को हिकारत की नज़र से देखते हैं पर मुस्लिम पड़ोसन उन्हें बारम्बार चाय पर बुलाती रहती है, या घड़ी डिटर्जेंट का ईद वाला एड, इन सबपर बवाल तो हुए, बॉयकॉट भी हुआ पर इस स्केल पर हंगामा न उठा. शायद इसलिए कि बाकी शादी से जुड़े नहीं थे. अब एक तो लड़की मुस्लिम घर ब्याही, उपर से प्रेग्नेट, लड़की कहीं और जाती दिखी तो आग लग गयी, पिछली जितनी भड़ास थी सब बाहर आ गयी.

सपोर्टर्स कहते हैं कि अच्छा भी तो हो सकता है, क्या पता इसे देख अब अंतर्धर्मीय...

तनिष्क (Tanishq) का एड ‘लव जिहाद’ (Love Jihad) के चलते #boycottTanishqJewellery की भेंट चढ़ गया. कुछ ही देर में हटा लिया गया. ट्विटर पर आवाहन हुआ कि इस धनतेरस कोई तनिष्क से शौपिंग नहीं करेगा. एड ब्लॉक होने के बाद बवाल और बढ़ा, दूसरे पक्ष ने कहना शुरु कर दिया कि प्यार मुहब्बत पर बनी कोई चीज इस देश में देखी ही नहीं जाती, बताओ! आपसी प्यार को रेपुटेशन ही नहीं देते. 2014 के बाद से बीजेपी (BJP) ने कलह मचा दी है. बात-बात पर नफ़रत बह रही है, देश में रहना मुश्किल हो गया है. हमारा देश शादी प्रधान देश है. हम पैदा होते है, बड़े होते हैं, पढ़ाई करते हैं, नौकरी करते हैं, घर के काम सीखते हैं, किसलिए? शादी करने के लिए. शादी में अच्छा माल-मतंगड़ देने-पाने के लिए. तनिष्क की झोली भरने के लिए. आप एड के सपोर्टर्स की बात एक बार आंख खोलकर पढ़ो तो लॉजिकल लगती है, ये एड इतनी पोज़िटिविटी दिखा रहे हैं, इसका विरोध क्यों हो रहा है?

तनिष्क का वो विज्ञापन जिसपर विवाद गहराता ही जा रहा है

मगर क्या विरोध सिर्फ इस अकेले की वजह से हो रहा है?

इससे पहले सर्फ़ एक्सेल ने हिन्दू बच्ची को होली के गुब्बारे से बचाते हुए एक मुस्लिम बालक को नमाज़ पढ़वाई थी, उससे पहले रेड लेबल ने बताया कि कैसे हिन्दू लोग मुस्लिम पड़ोसी को हिकारत की नज़र से देखते हैं पर मुस्लिम पड़ोसन उन्हें बारम्बार चाय पर बुलाती रहती है, या घड़ी डिटर्जेंट का ईद वाला एड, इन सबपर बवाल तो हुए, बॉयकॉट भी हुआ पर इस स्केल पर हंगामा न उठा. शायद इसलिए कि बाकी शादी से जुड़े नहीं थे. अब एक तो लड़की मुस्लिम घर ब्याही, उपर से प्रेग्नेट, लड़की कहीं और जाती दिखी तो आग लग गयी, पिछली जितनी भड़ास थी सब बाहर आ गयी.

सपोर्टर्स कहते हैं कि अच्छा भी तो हो सकता है, क्या पता इसे देख अब अंतर्धर्मीय विवाह में लड़की की इज्ज़त होने लगें. लड़की को धर्म बदलने के लिए फोर्स न किया जाए. ‘बेटी को ख़ुश रखने की रस्म’ मनाने लग जाए? ऐसा भी तो हो सकता है? अजी हां! इज्ज़त तो सेम धर्म में कितनी मिल जाती है? उसपर एड नहीं बनते! मगर, मेरा सवाल है कि एड मेकर्स को एक ही तरफ इतनी भलाई करने की क्यों सूझ रही है? ‘दलितों’ पर होते अत्याचार पर कोई एड कहां बनता है? इंटरकास्ट मैरिज पर नहीं बनते.

पॉलिटिक्स में इतनी बुराइयां हैं, ले दे के एक टाटा टी का दस साल पुराना एड याद आता है बस, उसके इलावा क्यों नहीं कुछ क्रिएटिव बनता?

मैं बताता हूं क्यों नहीं बनता.

ख़बर आती है कि लड़की ने धर्म नहीं बदला तो उसके पति ने दोस्त के साथ मिलकर गला काट दिया, सूटकेस में बंद करके दरिया में फेंक दिया, ज़िन्दा जला दिया, ससुर ने रेप कर दिया, शादी करके छोड़ दिया, लड़की की बेकद्री करके ऐसा हाल कर दिया कि उसे सार्वजानिक आत्मदाह करना पड़ा. इन ख़बरों से ‘लव जिहाद’ नामक वायरस इतना वायरल होता है कि ख़बर पढ़ने वाले अपनी बेटियों पर नज़र रखनी शुरु कर देते हैं, लड़कियां अपने मुस्लिम दोस्तों को शक़ की निगाह से देखने लगती हैं, किसी का प्रेमी ‘चिंटू/सोनू टाइप नामों से हो तो वो पूरा नाम पूछने की ज़िद शुरु कर देती है, इस ज़िद से वो मिशन, जिसके लिए फंड डिसाइड होता है. कमज़ोर पड़ने लगता है तो उसका कवर-अप ये एड मेकर्स करते हैं.

मैं आपसी प्रेम का बहुत पक्षधर हूं, मैं आपसे पूछता हूं कि मुझे एक एड दिखा दीजिए जिसमें लड़की कट्टर मुस्लिम हो पर हिन्दू फैमिली के साथ हो. आख़िरी फिल्म गुलाबो-सिताबो देखी थी, जिसमें आयुष्मान हिन्दू थे और उनकी गर्लफ्रेंड मुस्लिम, जिस लव स्टोरी का अंत ये दिखाया जाता है कि लड़का एक नंबर का ‘लूज़र’ है और लड़की ने किसी अमीर आदमी से अरेंज मैरिज कर ली.

आपको अब भी नहीं दिख रहा है कि ‘कुछ’ टीवी-सिनेमा प्रेसेंटेशन के पीछे एक सॉलिड प्रोपेगेंडा चल रहा है तो आप यकीनन सावन के अंधे हैं. एड का पक्ष लेने वाले ख़ुद अपने बच्चों की शादी दूसरे धर्म में न होने दें, न किसी जानकार को करने दें, बाकियों की बात दूर है. लव जिहाद का ज़हर फैलाने वाले कुछ जाहिल ही होते हैं पर पूरे तीस करोड़ उसी नज़र से देखे जाते हैं ये सच है.

असल में धर्म बुरे नहीं, अलग होते हैं. ठीक वैसे ही अलग जैसे चार दोस्त अलग होते हैं. मैं आपको बताऊं, मेरी लम्बी दोस्ती हमेशा किसी न किसी मुस्लिम दोस्त से ही रही, उस लम्बी दोस्ती का राज़ ये रहा कि न मैं कभी उसके घर गया और न कोई मेरे घर आया (अपवाद छोड़). दोस्त को हमने दोस्त की तरह रखा, रिश्तेदारी नहीं जोड़ी, ये बात देश पर भी लागू होती है. नो डाउट आपसी दोस्ती बहुत है हिन्दुओं-मुसलमानों में, न होती तो रोज़ 100 दंगे होते, लेकिन दोनों के तौर-तरीके, निति-नियम बिलकुल अलग हैं, अलग-अलग दोनों का सम्मान है, फिर एक दूसरे के पेट में घुसने की ज़रुरत ही क्यों है?

सब ख़ुशी शांति से रह तो रहे हैं पर नहीं, अगर अजेंडा अपना धर्म बढ़ाना है, कन्वर्शन फैलाना है तो यकीनन घुसने की ज़रुरत है, एक दूसरे के पेट में अंडे देने की ज़रुरत है, जैसा मुल्क में दिखाया, आने वाले बच्चे का धर्म तय करने की ज़रुरत है वर्ना कोई ज़रुरत नहीं.

कोई पूछे कि हिन्दू भी मुस्लिमों की तरह उग्र हो जाएं तो दोनों में फ़र्क क्या रहा फिर?

तो शालीनता से बताइए कि एक फेसबुक पोस्ट अच्छी न लगने पर घर जला दिए जाते हैं, दुकाने लूट ली जाती हैं. सड़कें जाम कर ली जाती हैं, इस एड में कुछ मुस्लिम्स आपत्तिजनक होता तो अबतक तनिष्क के 100 शोरूम्स टूट-लुट चुके होते। इधर ये ‘असहिष्णु लोग’ ट्वीट कर रहे हैं, खरीददारी करने से मना कर रहे हैं ये फ़र्क है. एक बात बड़ी अफ़सोसजनक पढ़ी कि अगर एक एड देखकर हिन्दू लड़कियों का दिमाग लव जिहाद की तरफ मुड़ जाए, इतना कमज़ोर क्यों है? बात ये सही है. 

मैं 14 साल की उम्र में नई बाइक या 17 साल में कार देखता हूं तो मन ललचाता है, भले ही मुझे उसकी ज़रुरत नहीं, भले ही मैं इतना परिपक्व नहीं कि संभाल सकूं. अब यहां मैं ज़िद करता हूं या मांगकर चलाता हूं तो मेरे बाप का फ़र्ज़ बनता है कि मुझे समझाए, मेरे आवारा दोस्त जो रात को 120 की स्पीड से गाड़ी चलाने के लिए मुझे देते हैं उनसे मिलने जुलने पर लगाम लगाए. लेकिन वही बाप बाद में कोई हादसा होने पर हॉस्पिटल में आकर कहे कि तुझे अक्ल नहीं थी? इतना तो ख़ुद दिमाग लगाना था तो सुनकर शायद अजीब लगे.

एक एड, दो फिल्में, चार सीरियल और साथी दोस्तों का माहौल, सामने वाले विकी (बदला हुआ नाम) की पटाने के लिए होती पुरजोर कोशिश एक लड़की को इंटरकास्ट लव-अफेयर या मैरिज के लिए धकेलती है जो शायद, कुछ ही परसेंट चांस है कि ‘लव जिहाद’ हो सकता है. अब एक बाप, जिसकी 14-15 साल की बेटी है, जो ग़लती से अख़बार भी पढ़ता है और बेटी की ज़िन्दगी में तरक्की भी चाहता है, उसे ताले में रखने के पक्ष में नहीं है.वो इन मिनिमम परसेंटेज के चक्कर में दांव तो नहीं खेलेगा न?

कहीं उसकी बेटी किसी शाहिद के छुरे की धार चेक करने के काम आई तो ये नहीं कहेगा न कि 'ओह नो. पूरी गली में बस मेरी ही लड़की लव जिहाद की बली चढ़ी, बैडलक यार, वैसे डार्लिंग तनिष्क का एड अच्छा है, तेहरवीं में जो चेन देनी है न पंडी जी को, वो यहीं से लेंगे' बताइए ऐसा तो नहीं कहेगा न? बस! नहीं कह रहा है. वो बॉयकाट कर रहा है. आगे भी करता दिखेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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