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अफगानिस्तान में बुर्के का दाम छू रहा आसमान, जींस पहनने पर बंदूक की नोक से पिटाई कर रहे तालिबानी

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 30 अगस्त, 2021 03:58 PM
  • 30 अगस्त, 2021 03:58 PM
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अफगानिस्तान में अब आलम यह है कि बुर्के के दाम कहीं कहीं दो गुना तो कहीं 10 गुना बढ़ गए हैं. वहीं जींस पहनने वाले लोगों को बंदूक की नोक से पीटा जा रहा है. तालिबानी जींस को पश्चिमी पहनावा मानते हैं जबकि वे खुद आंखों पर चश्मा और पैरों में बूट पहने नजर आ रहे हैं.

तालिबान राज के बाद अफगानिस्तान के जो हालात हैं वो बताते समय भी तकलीफ होती है. खासकर अफगानी महिलाओं की जिंदगी के बारे में. अफगानिस्तान अब दो दशक पीछे चला गया है. पिछने 20 सालों में अफगानिस्तान के लोग आधुनिक होने लगे थे. लड़कियां उच्च शिक्षा की तरफ बढ़ रही थीं. ज्यादातर लोग पारंपरिक कपड़ों के बदले अपनी सहूलियत के हिसाब से पहनने लगे थे. लड़कियां बुर्के से स्कार्फ पहनने लगी थीं तो पुरुष जींस में नजर आने लगे थे.

वहीं अब तालिबान राज में सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को ही हो रही है. वे डर के मारे घरों से बाहर नहीं निकल रहीं. असल में तालिबानी लड़ाके जबरदस्ती लड़कियों को घरों से उठा ले जाते हैं और उनके साथ गलत काम करते हैं.

अफगान के लोगों की हालत हुई बदतर

वहीं महिलाओं को पारंपरिक कपड़े पहनने की बात की गई है. वैसे तो तालिबानी प्रवक्ता ने कहा था कि महिलाएं बुर्का नहीं पहनेंगी तो भी चलेगा लेकिन हिजाब ना पहनने पर उन्होंने महिला उसके घरवालों के सामने ही गोली मार दी. आप खुद बताइए महिलाएं कितनी ज्यादा प्रताड़ित हो रही हैं.

अब आलम यह है कि बुर्के के दाम कहीं दो गुना तो कहीं 10 गुना बढ़ गए हैं. वहीं जींस पहनने वाले लोगों को बंदूक की नोक से पीटा जा रहा है. तालिबानी जींस को पश्चिमी पहनावा मानते हैं जबकि वे खुद आंखों पर चश्मा और पैरों में बूट पहने नजर आ रहे हैं. यह दो तरफा रवैया क्यों आपनाया जा रहा है.

दरअसल, तालिबान के पहले शासन के समय महिलाओं को अपने शरीर और चेहरे को बुर्के से ढंकना पड़ता था. इतना ही नहीं, महिलाएं पुरुष रिश्तेदार के बिना घरों से अकेले निकल भी नहीं सकती थीं. जब 2001 में तालिबान राज के खत्म हुआ तो धीरे-धीरे उनकी जिंदगी सुधरनी शुरु हो गई थी. महिलाएं भी पुरुषों की तरह काम करने की लगी थीं, लेकिन तालिबान की वापसी...

तालिबान राज के बाद अफगानिस्तान के जो हालात हैं वो बताते समय भी तकलीफ होती है. खासकर अफगानी महिलाओं की जिंदगी के बारे में. अफगानिस्तान अब दो दशक पीछे चला गया है. पिछने 20 सालों में अफगानिस्तान के लोग आधुनिक होने लगे थे. लड़कियां उच्च शिक्षा की तरफ बढ़ रही थीं. ज्यादातर लोग पारंपरिक कपड़ों के बदले अपनी सहूलियत के हिसाब से पहनने लगे थे. लड़कियां बुर्के से स्कार्फ पहनने लगी थीं तो पुरुष जींस में नजर आने लगे थे.

वहीं अब तालिबान राज में सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को ही हो रही है. वे डर के मारे घरों से बाहर नहीं निकल रहीं. असल में तालिबानी लड़ाके जबरदस्ती लड़कियों को घरों से उठा ले जाते हैं और उनके साथ गलत काम करते हैं.

अफगान के लोगों की हालत हुई बदतर

वहीं महिलाओं को पारंपरिक कपड़े पहनने की बात की गई है. वैसे तो तालिबानी प्रवक्ता ने कहा था कि महिलाएं बुर्का नहीं पहनेंगी तो भी चलेगा लेकिन हिजाब ना पहनने पर उन्होंने महिला उसके घरवालों के सामने ही गोली मार दी. आप खुद बताइए महिलाएं कितनी ज्यादा प्रताड़ित हो रही हैं.

अब आलम यह है कि बुर्के के दाम कहीं दो गुना तो कहीं 10 गुना बढ़ गए हैं. वहीं जींस पहनने वाले लोगों को बंदूक की नोक से पीटा जा रहा है. तालिबानी जींस को पश्चिमी पहनावा मानते हैं जबकि वे खुद आंखों पर चश्मा और पैरों में बूट पहने नजर आ रहे हैं. यह दो तरफा रवैया क्यों आपनाया जा रहा है.

दरअसल, तालिबान के पहले शासन के समय महिलाओं को अपने शरीर और चेहरे को बुर्के से ढंकना पड़ता था. इतना ही नहीं, महिलाएं पुरुष रिश्तेदार के बिना घरों से अकेले निकल भी नहीं सकती थीं. जब 2001 में तालिबान राज के खत्म हुआ तो धीरे-धीरे उनकी जिंदगी सुधरनी शुरु हो गई थी. महिलाएं भी पुरुषों की तरह काम करने की लगी थीं, लेकिन तालिबान की वापसी ने फिर से 20 साल पीछे धकेल दिया है. कुछ दिनों पहले ही तालिबान ने न्यूज एंकर, रेडियो प्रजेंटर को काम करने से मना कर दिया है. वहां तो महिला मॉडल के पोस्टर तक हटा दिए गए, इनकी सोच का पता तो इसी बात से चल जाता है.

वहां की महिलाओं के न्यूज एजेंसी को बताया कि उनके पास सिर्फ एक या दो बुर्का है, जिसे घर की सभी महिलाओं के साथ शेयर करना पड़ेगा. बिना बुर्के के घर से बाहर निकल कर उन लड़ाकों से सामना करने की हिम्मत नहीं है, क्योंकि वे कभी बदल नहीं सकते. उनके इरादे ठीक नहीं हैं. यहां वैसे भी सड़कों पर सिर्फ कुछ ही महिलाएं नजर आती हैं.

कई महिलाओं ने कहा कि हम बुर्का पहनने के लिए तैयार नहीं है, इससे अच्छा हम घर पर रहें. एक का कहना था कि, 'मुझे नहीं लगता कि मैं बुर्का पहनने के लिए तैयार हो पाऊंगी. मैं इसे नहीं मान सकती. मैं अपने अधिकारों के लिए लड़ूंगी चाहे कुछ भी हो.' उपर से बुर्के की बाध्यता के चलते इसके दाम आसमान छू रहे हैं, इन हालात में इतने पैसे खर्च करने का कोई मतलब ही नहीं है. पता नहीं कल को हमारे साथ क्यो हो...

एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ दिनों पहले एक पत्रकार की पिटाई सिर्फ इसलिए की गई थी क्योंकि उसने अफगानी कपड़े नहीं पहने थे. कई अफगानी अपना दर्द सोशल मीडिया पर बयां कर रहे हैं कि किस तरह जींस पहनने के कारण उन्हें पीटा जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि कहीं फिर से 20 साल पहले वाला तालिबानी शासन पूरी तरह लागू ना हो जाए, जब 8 साल की लड़कियों को भी बुर्का पहनकर रहना पड़ता था. जब महिलाओं को सजा के रूप में कोड़े से मारा जाता था.

मतलब साफ है कि भले ही तालिबानी आजादी की बातें कर रहे हैं लेकिन उनकी असलियत क्या है, यह अब सभी को धीरे-धीरे समझ आ रहा है...हालात यह है कि लोग अफगानिस्तान छोड़कर भाग रहे हैं. समझ नहीं आता कि यह कौन सी आजादी है जो लड़कों के जींस पहनने पर उन्हें कोड़े से मारा जा रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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