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Sushant Singh Rajput की खुदकुशी की खबर पचा लेने के लिए कैसे कैसे बहाने अपनाए गए !

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 15 जून, 2020 09:25 PM
  • 15 जून, 2020 09:25 PM
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एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput ) अब हमारे बीच नहीं हैं. सुशांत की आत्महत्या (Sushant Singh Rajput Commit Suicide) ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है और अब फ़ैन्स द्वारा खबर को पचाए जाने के लिए तरह तरह के बहाने बनाए जा रहे हैं.

Actor Sushant Singh Rajput Suicide news: जी हां, सुशांत सिंह राजपूत नहीं रहे. यह चौंका देने वाली दुखद ख़बर तुरंत ही यक़ीन में नहीं बदल पाती. लगता है जैसे हादसों की एक गहरी खाई है और एक-एक कर सब उसमें डूबते जा रहे हैं. कौन, किसको कब और कैसे बचा पाएगा, ये कोई नहीं जानता. वो शख़्स जो क़िरदारों में जान फूंक देता था वो अपनी जान कैसे ले सकता है? अब ऐसे में ये क़यास कि कुछ दिनों पहले ही सुशांत की सेक्रेटरी ने भी आत्महत्या की और सुशांत की आत्महत्या की कहानी के तार भी इससे कहीं जुड़े हुए हैं, मेरा मन ये मानने को अब भी तैयार नहीं. कहते हैं उनकी सेक्रेटरी की मृत्यु के कारणों का भी कुछ पता नहीं चला. जाने वाले तो चले गए, शेष लोगों के हिस्से कहानी के कुछ टुकड़े भर रह जाते हैं जिन्हें जोड़ कारण ज्ञात हो जाए शायद. पर उससे जाने वाला कहां लौट सकेगा. यूं कहने को जाना तो हम सबको है, एक न एक दिन. लेकिन यूं असमय, अचानक किसी का अलविदा कह देना स्तब्ध कर देता है. इस ख़बर को पचा पाना जरा भी आसान नहीं है.

आख़िर सुशांत की मृत्यु पर कैसे विश्वास कर लिया जाए. जबकि हम ये जानते हैं कि वे इस समय बॉलीवुड के सबसे प्रॉमिसिंग कलाकार थे. इनके कैरियर के ग्राफ़ को सबने ऊपर उठते ही देखा है. अपनी सफ़लताओं से जाने कितने युवाओं की आंखों में सुनहरे सपने के बीज बो दिए होंगे सुशांत ने. फ़ौलादी इरादे, आत्मविश्वास और अपार संभावनाओं से भरा चेहरा था उनका. आप वो इंसान भी थे जिसने जीवन के कठिनतम संघर्षों से जूझकर आगे बढ़ना सीखा. अपनी एक पहचान हासिल की.

सुशांत सिंह राजपूत नहीं रहे और ये खबर ऐसी है जिसे शायद ही कोई पचा पाए

टूटते हौसलों के आगे दम तोड़ते नए कलाकारों के लिए एक जीता-जागता उदाहरण था कि ग़र प्रतिभा हो तो हर हाल में बेहतर मुक़ाम पाया जा सकता है. इन दिनों...

Actor Sushant Singh Rajput Suicide news: जी हां, सुशांत सिंह राजपूत नहीं रहे. यह चौंका देने वाली दुखद ख़बर तुरंत ही यक़ीन में नहीं बदल पाती. लगता है जैसे हादसों की एक गहरी खाई है और एक-एक कर सब उसमें डूबते जा रहे हैं. कौन, किसको कब और कैसे बचा पाएगा, ये कोई नहीं जानता. वो शख़्स जो क़िरदारों में जान फूंक देता था वो अपनी जान कैसे ले सकता है? अब ऐसे में ये क़यास कि कुछ दिनों पहले ही सुशांत की सेक्रेटरी ने भी आत्महत्या की और सुशांत की आत्महत्या की कहानी के तार भी इससे कहीं जुड़े हुए हैं, मेरा मन ये मानने को अब भी तैयार नहीं. कहते हैं उनकी सेक्रेटरी की मृत्यु के कारणों का भी कुछ पता नहीं चला. जाने वाले तो चले गए, शेष लोगों के हिस्से कहानी के कुछ टुकड़े भर रह जाते हैं जिन्हें जोड़ कारण ज्ञात हो जाए शायद. पर उससे जाने वाला कहां लौट सकेगा. यूं कहने को जाना तो हम सबको है, एक न एक दिन. लेकिन यूं असमय, अचानक किसी का अलविदा कह देना स्तब्ध कर देता है. इस ख़बर को पचा पाना जरा भी आसान नहीं है.

आख़िर सुशांत की मृत्यु पर कैसे विश्वास कर लिया जाए. जबकि हम ये जानते हैं कि वे इस समय बॉलीवुड के सबसे प्रॉमिसिंग कलाकार थे. इनके कैरियर के ग्राफ़ को सबने ऊपर उठते ही देखा है. अपनी सफ़लताओं से जाने कितने युवाओं की आंखों में सुनहरे सपने के बीज बो दिए होंगे सुशांत ने. फ़ौलादी इरादे, आत्मविश्वास और अपार संभावनाओं से भरा चेहरा था उनका. आप वो इंसान भी थे जिसने जीवन के कठिनतम संघर्षों से जूझकर आगे बढ़ना सीखा. अपनी एक पहचान हासिल की.

सुशांत सिंह राजपूत नहीं रहे और ये खबर ऐसी है जिसे शायद ही कोई पचा पाए

टूटते हौसलों के आगे दम तोड़ते नए कलाकारों के लिए एक जीता-जागता उदाहरण था कि ग़र प्रतिभा हो तो हर हाल में बेहतर मुक़ाम पाया जा सकता है. इन दिनों कोरोना वायरस के भय और इससे जुड़ी ख़बरों ने यूं भी भीतर से तोड़ ही रखा है. अवसाद भरे इस काल में मन भविष्य को लेकर तमाम अनिश्चितताओं और आशंकाओं से घिरा हुआ है. बुरी ख़बरों की जैसे बाढ़ सी आ गई है और एक अच्छी ख़बर पाने को दिल तरस रहा है. ऐसे में सुशांत के आत्महत्या करने की न्यूज़ तमाम उम्मीदों पर गहरे तुषारापात सी नज़र आती है.

मृत्यु तो वैसे भी नकारात्मकता ही लाती है. बेहद हैरान हूं और दुखी भी कि अपनी तमाम फ़िल्मों से सकारात्मक संदेश देने वाला, ख़ुशदिल इंसान आख़िर किन परिस्थितियों में जीवन को अलविदा कह देने का निर्णय ले लेता होगा. कुछ समय पहले सुशांत ने ट्वीट किया था, 'पुरुषों में भी भावनाएं होती हैं इसलिए रोने में संकोच न करें. इनको अंदर न रख, बाहर उड़ेल देना सही है. यह कमजोरी नहीं बल्कि ताकत का प्रतीक है. मानव हैं तो महसूस करें. अनुभूति मानवीय होती है.'

कितना सही कहा था. इसे पढ़कर लगा था कि ये हम सा ही इंसान है जो हंसता-रोता है और जीवन की ख़ूबसूरती को समझता भी है. उसके बाद अभी जून में ही सुशांत ने अपनी स्वर्गीय मां को याद करते हुए एक भावनात्मक इंस्टाग्राम पोस्ट साझा किया था. उन्होंने लिखा, 'धुंधला अतीत आंसुओं से वाष्पीकृत हो रहा है. कभी न ख़त्म होने वाले सपने मुस्कुराहट और एक क्षणभंगुर जीवन को गढ़ रहे हैं. दोनों के मध्य बातचीत चल रही है, मां.'

यह पोस्ट अवसाद से कहीं अधिक मां के प्रति उनका असीम स्नेह कह रही थी. न जाने इस सितारे के मन में क्या था जो किसी से बांट न सका. मौत से यूं कोई कैसे हार सकता है. सुशांत तुम भी नहीं कर सकते थे ऐसा. सौ परेशानियों के बीच भी जीवन कहां रुकता है. हजारों किलोमीटर पैदल चलते कामगारों का हौसला भी कहां टूटा था.

भूख से रोज़ लड़ते हुए लोग भी जी ही लेते हैं एक नई सुबह की आस में. वे लोग जो आधे-अधूरे हैं, वे स्त्रियां जिनका मन या चेहरा झुलस गया है वे भी जीवन में उजास भरना जानती हैं. जीवन आसान तो किसी का नहीं होता. सब अपने हिस्से की लड़ाई लड़ ही रहे हैं. तुम तो इन सबसे कहीं ऊपर थे फिर यह कमजोर निर्णय क्यों और कैसे? बहुत से प्रश्न हैं जो अब मन को लम्बे समय तक मथते रहेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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