• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

'ग्रीन पटाखे' का मतलब तो यूपी पुलिस के जवान ने समझाया है!

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 27 अक्टूबर, 2018 01:55 PM
  • 27 अक्टूबर, 2018 01:55 PM
offline
ग्रीन पटाखे का क्या मतलब? हरे रंग के पटाखे? या जैसे यूपी पुलिस का जवान मुंह से ठांय-ठांय की आवाज निकाल रहा था, क्या उसी तरह मुंह से ही धड़ाम-धड़ाम की आवाज निकालें? सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कंफ्यूजन का अंबार लगा दिया है.

इस दिवाली लोगों की सांसों में जहर ना घुले, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है. किस तरह के पटाखे बजाए जा सकेंगे? कब बजाए जा सकेंगे? कौन से पटाखे नहीं बजाने हैं? इन सभी सवालों का जवाब दिया है सुप्रीम कोर्ट ने. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनने में जितना आसान लगता है, उसे समझना उतना ही मुश्किल है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस दिवाली लोग ग्रीन पटाखे जला सकते हैं, लेकिन लोगों को ये ही समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ग्रीन पटाखों का मतलब क्या है? कुछ लोग तो ये भी समझ रहे हैं कि इसका मतलब हरे रंग के पटाखे हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तय सीमा से अधिक आवाज वाले पटाखे बनाने, बेचने और फोड़ने पर बैन लगा दिया है, लेकिन ये तय सीमा है क्या? इसे मापा कैसे जाएगा? ऐसे तमाम सवाल है, जिन्हें लेकर सोशल मीडिया पर भी तरह-तरह के जोक्स शेयर किए जा रहे हैं. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि लोगों की सांसों में जहर घुलने से उन्हें बचाने के लिए सुनाया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक मजाक बनकर रह गया है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनने में जितना आसान लगता है, उसे समझना उतना ही मुश्किल है.

ग्रीन पटाखे का मतलब क्या?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल तो ये उठ रहा है कि आखिर ग्रीन पटाखे का मतलब क्या है? हरे रंग के पटाखे? आपको बता दें कि ग्रीन पटाखों का मतलब ऐसे पटाखों से है, जो कम से कम प्रदूषण फैलाएं. लेकिन अगर पटाखा बनाने वालों से बात करें तो उनका कहना है कि ग्रीन पटाखे जैसी कोई चीज नहीं होती है. पटाखे से प्रदूषण तो होगा ही तो फिर ग्रीन पटाखे का क्या मतलब? तो क्या जैसे यूपी पुलिस का जवान मुंह से ठांय-ठांय की आवाज निकाल रहा था, क्या उसी तरह मुंह से ही धड़ाम-धड़ाम की आवाज निकालें? लोग इन सवालों को लेकर कंफ्यूज हैं. तो चलिए आपको बताते...

इस दिवाली लोगों की सांसों में जहर ना घुले, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है. किस तरह के पटाखे बजाए जा सकेंगे? कब बजाए जा सकेंगे? कौन से पटाखे नहीं बजाने हैं? इन सभी सवालों का जवाब दिया है सुप्रीम कोर्ट ने. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनने में जितना आसान लगता है, उसे समझना उतना ही मुश्किल है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस दिवाली लोग ग्रीन पटाखे जला सकते हैं, लेकिन लोगों को ये ही समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ग्रीन पटाखों का मतलब क्या है? कुछ लोग तो ये भी समझ रहे हैं कि इसका मतलब हरे रंग के पटाखे हैं. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तय सीमा से अधिक आवाज वाले पटाखे बनाने, बेचने और फोड़ने पर बैन लगा दिया है, लेकिन ये तय सीमा है क्या? इसे मापा कैसे जाएगा? ऐसे तमाम सवाल है, जिन्हें लेकर सोशल मीडिया पर भी तरह-तरह के जोक्स शेयर किए जा रहे हैं. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि लोगों की सांसों में जहर घुलने से उन्हें बचाने के लिए सुनाया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक मजाक बनकर रह गया है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनने में जितना आसान लगता है, उसे समझना उतना ही मुश्किल है.

ग्रीन पटाखे का मतलब क्या?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल तो ये उठ रहा है कि आखिर ग्रीन पटाखे का मतलब क्या है? हरे रंग के पटाखे? आपको बता दें कि ग्रीन पटाखों का मतलब ऐसे पटाखों से है, जो कम से कम प्रदूषण फैलाएं. लेकिन अगर पटाखा बनाने वालों से बात करें तो उनका कहना है कि ग्रीन पटाखे जैसी कोई चीज नहीं होती है. पटाखे से प्रदूषण तो होगा ही तो फिर ग्रीन पटाखे का क्या मतलब? तो क्या जैसे यूपी पुलिस का जवान मुंह से ठांय-ठांय की आवाज निकाल रहा था, क्या उसी तरह मुंह से ही धड़ाम-धड़ाम की आवाज निकालें? लोग इन सवालों को लेकर कंफ्यूज हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि वाकई में ग्रीन पटाखे कैसे होते हैं.

खुद वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि कोई भी पटाखा प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता, लेकिन Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा फॉर्मूला बनाने में सफलता पा ली है, जिसे 'ग्रीन पटाखा' कहा जा सकता है. इसमें प्रदूषण बेहद कम होता है और साथ ही यह धूल के कणों को भी सोख लेता है. एक फॉर्मूला तो ऐसा है जो पानी के कण निकालेगा, जो धूल और खतरनाक पर्टिकुलेट मैटर के कणों को भी दबाने का काम करेंगे. यह सभी फॉर्मूले Petroleum and Explosives Safety Organisation (PESO) को भेज दिए गए हैं, ताकि तय किया जा सके कि वह नियमों के अनुरूप हैं या नहीं. CSIR के ग्रीन पटाखे पर्टिकुलेट मैटर में 30-35 फीसदी तक की कमी कर देंगे और साथ ही इनमें से खतरनाक नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड निकलने की मात्रा में भी कमी आएगी. हालांकि, इस दिवाली ये ग्रीन पटाखे बाजार में नहीं मिल पाएंगे क्योंकि अभी तक PESO से अनुमति तक नहीं मिली है. अनुमति मिलने के बाद ये पटाखे बनाए जा सकेंगे.

यानी फिर वही बात, ग्रीन पटाखे जलाने का आदेश तो मिल गया, लेकिन ये ग्रीन पटाखे हैं कहां? जो फॉर्मूला बनाया गया है, उसे तो अभी तक अनुमति मिली नहीं. तो फिर क्या इस दिवाली छोटे पटाखों को ही ग्रीन पटाखे समझा जाए? क्योंकि पटाखा जितना छोटा होगा, उसमें बारूद उतना कम होगा, यानी उससे प्रदूषण भी कम होगा. खैर, सोशल मीडिया पर तो ग्रीन पटाखे का मतलब हरे रंग के पटाखे जलाने की बात कहकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मजाक उड़ाया जा रहा है.

आवाज का स्तर कैसे समझें?

ग्रीन पटाखे की एक क्वालिटी तो कम प्रदूषण करना है, जिसकी हमने ऊपर बात की. इसकी दूसरी क्वालिटी है कम आवाज करना, ताकि ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सके और लोगों के कानों को कोई नुकसान ना हो. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि तय सीमा से अधिक आवाज के पटाखे न तो बनाए जाएं, ना ही बेचे जाएं और ना ही फोड़े जाएं. तो ये तय सीमा क्या है और इसे मापें कैसे? आपको बता दें कि पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) द्वारा बनाए गए Environment (Protection) Rules, 1986 के तहत 4 मीटर की दूरी से पटाखों की आवाज 125 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए. अब फिर एक सवाल ये खड़ा होता है कि पता कैसे करें कौन सा पटाखा कितने डेसिबल का है? पटाखों के पैकेट पर तो लिखा नहीं होता. हर पटाखे को फोड़ कर अगर उसकी आवाज की तीव्रता जांचेंगे तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या मतलब? चलिए मान लेते हैं कि एक पटाखे से पूरे पैकेट के पटाखों का अंदाजा लग जाएगा, लेकिन उसे मापें कैसे? कुछ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास ऐसा कोई उपकरण नहीं है जिससे ध्वनि या धुएं का स्तर पता किया जा सके. वहीं दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने सारी जिम्मेदारी विभिन्न इलाकों के एसएचओ के कंधों पर डाल दी है. जहां भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश और नियमों का उल्लंघन होगा, वहां के एसएचओ को ही तलब किया जाएगा.

ये भी पढ़ें- पटाखों की कितनी आवाज आपको बहरा बना सकती है

सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे जलाने के लिए 2 घंटे (रात 8 से 10 बजे तक) का समय मुकर्रर किया है, लेकिन सोचने वाली बात ये है कि जब पिछली बार पटाखे बैन होने के बावजूद पूरी दिल्ली में आतिशबाजी हुई और सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कर सका, तो इस बार दो घंटे की सीमा लगाकर लोगों को कैसे रोका जा सकेगा? ये सही है कि जिम्मेदारी एसएचओ की होगी, लेकिन हर घर के बाहर तो पुलिस तैनात नहीं हो सकती है. और कौन सा पटाखा किसने फोड़ा, ये कैसे पता चलेगा. दिवाली की रात सबके लिए उत्सव मनाने की होगी, लेकिन पुलिस वालों की नाक में दम होना तय समझिए. सोशल मीडिया पर 2 घंटे पटाखे फोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर मजाक बनाते हुए ये वीडियो खूब शेयर किया जा रहा है.

और देशों में क्या हैं हालात?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बहुत से लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं. लोगों का मानना है कि उन पर तमाम तरह की पाबंदियां लगाई जा रही हैं. लेकिन अगर आप कुछ अन्य देशों के बारे में जानेंगे तो और भी हैरान हो सकते हैं. जिनमें से एक हमारा पड़ोसी चीन भी है, जिसने खुद अपने देश में पटाखे बैन किए हुए हैं और भारत में धड़ल्ले से बेच रहा है.

नीदरलैंड्स- सिर्फ नए साल के मौके पर आतिशबाजी की इजाजत होती है. इसके अलावा साल में अन्य किसी भी मौके पर आतिशबाजी के लिए प्रोफेशनल लोगों से ही आतिशबाजी करवाने का नियम है.

सिंगापुर- अथॉरिटीज से इजाजत लेने के बाद ही आतिशबाजी की जा सकती है. चीनी न्यू ईयर के लिए आतिशबाजी करने के लिए इजाजत की जरूरत नहीं होती है.

जर्मनी- आतिशबाजी के बड़े पटाखे सिर्फ 28 दिसंबर से 31 दिसंबर तक ही बेचे जा सकते हैं, वो भी सिर्फ 18 साल से बड़े लोगों को. आतिशबाजी सिर्फ 31 दिसंबर और 1 जनवरी को की जा सकती है.

यूके- नए साल, दिवाली और चीनी न्यू ईयर के अलावा किसी भी दिन रात 11 बजे से सुबह 7 बजे के बीच आतिशबाजी नहीं की जा सकती है. इसके अलावा पटाखे को गैरकानूनी तरीके से बेचना या फिर नियमों का उल्लंघन कर के फोड़ने पर 5000 पाउंड का फाइन देना पड़ सकता है या फिर 6 महीने की जेल भी हो सकती है.

ऑस्ट्रेलिया- पटाखे खरीदने, फोड़ने या फिर उनके ट्रांसपोर्ट के लिए लाइसेंस जरूरी है और लाइसेंस सिर्फ 18 साल से अधिक के शख्स को ही दिया जाता है. किसी भी आतिशबाजी से पहले अधिकारियों को इसकी जानकारी देना जरूरी है.

चीन- बीजिंग समेत चीन के करीब 500 शहरों में आतिशबाजी बैन है. चीनी सरकार प्रदूषण को लेकर काफी सख्त है, जिसकी वजह से आतिशबाजी के उद्योग पर काफी बुरा असर पड़ा है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो अच्छा है, लेकिन इसमें कुछ खामियां भी हैं. पहली बात तो ये कि सुप्रीम कोर्ट को दिवाली से कम से कम 2 महीने पहले फैसला सुनाना चाहिए था, ना कि महज 15 दिन पहले. क्योंकि अब तक तो अधिकतर पटाखा बनाने वालों ने पटाखे बना लिए हैं और बहुत से दुकानवालों ने तो पटाखे खरीद भी लिए होंगे. दूसरी बात ये कि पटाखा बनाने वालों को आदेश देना चाहिए था कि वह पटाखों पर आवाज की सीमा लिखें. साथ ही ग्रीन पटाखों पर किसी तरह का निशान सुनिश्चित करना चाहिए था, ताकि लोग ग्रीन पटाखों की आसानी से पहचान कर सकें. ये सब ना होने की वजह से ही बहुत से लोग ग्रीन पटाखों का मतलब हरे रंग के पटाखे समझ रहे हैं. देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए बहुत ही अच्छा फैसला सुनाया है, लेकिन स्पष्टता नहीं होने और फैसला सुनाने में देर होने की वजह से ये अहम फैसला भी एक मजाक बन कर रह गया है. यानी इस बार भी सुप्रीम कोर्ट लोगों को पटाखे जलाने से नहीं रोक पाएगा. दिवाली की रात पटाखे फोड़ने के लिए कोर्ट की तरफ से 2 घंटों का समय दिया गया है, लेकिन इस बार भी आतिशबाजी से सुप्रीम कोर्ट के फैसले की धज्जियां उड़ना तय है.

ये भी पढ़ें-

Opinion: दि‍वाली पर पटाखे फोड़ने के नियम सबरीमला फैसले जैसे हैं

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI की जांच आखिर हुई कैसे?

राजस्थान से 38 पहाड़ उठा ले जाने वाले हनुमान नहीं 'शैतान' हैं!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲