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Talaq-E-Hasan की प्रथा क्या है, महिला के पास दो दिन का समय बचा है वरना उसकी जिंदगी नर्क है!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 17 जून, 2022 10:06 PM
  • 17 जून, 2022 10:06 PM
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तलाक-ए-हसन (Talaq-E-Hasan) प्रथा के अनुसार, पति अगर तीन महीने तक हर महीने अपनी पत्नी को तीन बार 'तलाक' बोलता है तो उसकी शादी खत्म हो जाती है.

तीन तलाक (Triple Talaq) का कानून बनाया गया तो मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली कि, चलो अब हमारे शौहर मनमानी तरीके से हमें तलाक नहीं दे पाएंगे. वरना पहले तो फोन पर या व्हाट्सएप भी 'एक साथ तीन बार तलाक' बोलकर रिश्ता तोड़ लेते थे. हालांकि मुस्लिम धर्म में तीन तलाक के कई प्रारूप अभी भी मौजूद हैं, जिसमें 'तलाक-ए-हसन' (Talaq-E-Hasan) प्रथा भी शामिल है, इस प्रथा को शरीयत में इजाजत दी गई है. 

देश में समान नागरिक कानून लागू नहीं हुआ है, इसलिए मुस्लिम पति बिना कोर्ट गए ही 'तलाक-ए-हसन' के तहत अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है.

क्या है तलाक-ए-हसन?

अगर कोई शौहर तीन महीने तक हर महीने अपनी बेगम को तीन बार 'तलाक' बोलता है तो उसकी शादी खत्म हो जाती है. शर्त यह है कि वह हर महीने में एक बार ही तलाक बोल सकता है. इस तरह उसे तीन बार तलाक बोलने के लिए तीन महीने लगते हैं. यानी 90 दिनों में उसे तीन बार तलाक बोलना होगा. तीसरी बार तलाक बोलने से पहले तक उसका निकाह मान्य होगा, लेकिन आखिरी बार तलाक बोलने के बाद दोनों का रिश्ता टूट जाएगा और वे पति-पत्नी नहीं रहेंगे. 

"तलाक-ए-हसन" प्रथा को शरीयत में इजाजत दी गई है

 

तीन तलाक में पति एक ही साथ तीन बार तलाक बोलते थे जबकि तलाक-ए-हसन में तीन महीने में तीन बार तलाक बोलने की प्रथा है. माने तीन तलाक में तुंरत रिश्ता खत्म हो जाता था लेकिन तलाक-ए-हसन में पति को अपनी शादी तोड़ने के लिए कम से कम तीन महीने का समय लगता है. तकलीफ तो महिला को होगी, अब चाहें एक बार में हो या तीन महीने में...उसे इस दर्द को झेलना ही होगा, क्योंकि तलाक-ए-हसन में मर्जी तो पति की ही चलती है.

तलाक-ए-हसन प्रथा, तब चर्चा में आया है जब गाजियाबाद की रहने वाली बेनजीर...

तीन तलाक (Triple Talaq) का कानून बनाया गया तो मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली कि, चलो अब हमारे शौहर मनमानी तरीके से हमें तलाक नहीं दे पाएंगे. वरना पहले तो फोन पर या व्हाट्सएप भी 'एक साथ तीन बार तलाक' बोलकर रिश्ता तोड़ लेते थे. हालांकि मुस्लिम धर्म में तीन तलाक के कई प्रारूप अभी भी मौजूद हैं, जिसमें 'तलाक-ए-हसन' (Talaq-E-Hasan) प्रथा भी शामिल है, इस प्रथा को शरीयत में इजाजत दी गई है. 

देश में समान नागरिक कानून लागू नहीं हुआ है, इसलिए मुस्लिम पति बिना कोर्ट गए ही 'तलाक-ए-हसन' के तहत अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है.

क्या है तलाक-ए-हसन?

अगर कोई शौहर तीन महीने तक हर महीने अपनी बेगम को तीन बार 'तलाक' बोलता है तो उसकी शादी खत्म हो जाती है. शर्त यह है कि वह हर महीने में एक बार ही तलाक बोल सकता है. इस तरह उसे तीन बार तलाक बोलने के लिए तीन महीने लगते हैं. यानी 90 दिनों में उसे तीन बार तलाक बोलना होगा. तीसरी बार तलाक बोलने से पहले तक उसका निकाह मान्य होगा, लेकिन आखिरी बार तलाक बोलने के बाद दोनों का रिश्ता टूट जाएगा और वे पति-पत्नी नहीं रहेंगे. 

"तलाक-ए-हसन" प्रथा को शरीयत में इजाजत दी गई है

 

तीन तलाक में पति एक ही साथ तीन बार तलाक बोलते थे जबकि तलाक-ए-हसन में तीन महीने में तीन बार तलाक बोलने की प्रथा है. माने तीन तलाक में तुंरत रिश्ता खत्म हो जाता था लेकिन तलाक-ए-हसन में पति को अपनी शादी तोड़ने के लिए कम से कम तीन महीने का समय लगता है. तकलीफ तो महिला को होगी, अब चाहें एक बार में हो या तीन महीने में...उसे इस दर्द को झेलना ही होगा, क्योंकि तलाक-ए-हसन में मर्जी तो पति की ही चलती है.

तलाक-ए-हसन प्रथा, तब चर्चा में आया है जब गाजियाबाद की रहने वाली बेनजीर हिना इंसाफ मांगने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं. हिना के पास सिर्फ दो दिन यानी 48 घंटों का समय है. हिना का पति पहले ही दो महीने में उन्हें दो बार तलाक बोल चुका है. इतने समय में अगर फैसला नहीं आया और पति ने 19 जून तक तीसरी बार तलाक कह दिया तो उनकी शादी खत्म हो जाएगी.

इसी मजबूरी में वे अदालत पहुंची हैं. अब उनकी जिंदगी का फैसला कोर्ट के हाथ में है. अगर यह कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में नहीं आया तो उनका तलाक हो जाएगा. जिसके बाद पति चाहे तो दोबारा निकाह कर लेगा, लेकिन हिना कोे दोबारा शादी करने के लिए 'हलाला' की प्रकिया से गुजरना होगा.

सबके लिए तलाक का कानून हो एक समान हो

इसलिए हिना ने अपने वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय के जरिए तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक करार देने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि 'तलाक-ए-हसन' जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है. अब तलाक-ए-हसन का निर्णय देश की सबसे बड़ी अदालत करेगी. जिस पर देश के लोगों की नजर है, क्योंकि मुस्लिम महिलाओं के अधिकार में यह एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.

हिना के अनुसार, पति ने पहले दहेज के लिए प्रताड़ति किया और विरोध किया तो तलाक देने लगा. मुस्लिम धर्म में एकतरफा तलाक देने का हक सिर्फ पुरुषों को है. इसलिए सरकार तलाक के कानून को सभी धर्मों, महिलाओं और पुरुषों के लिए एक समान बनाए.

भले ही लोग कहें कि तलाक-ए-हसन प्रथा इसलिए बनाई गई थी कि अगर शौहर और बेगम निकाह से खुश नहीं हैं तो वे शादी खत्म कर सकते हैं, लेकिन इसका खामियाजा अधिकतर महिलाओं को भुगतना पड़ता है. पुरुष तो तलाक तीन बार एक बार बोलकर या तीन महीने में बोलकर तलाक ले सकते हैं लेकिन महिलाओं को रिश्ता खत्म करने के लिए 'खुला' के लिए पति भी मर्जी चाहिए होती है.

पति अगर तलाक देना न चाहे तो वह नहीं देता, इसके बाद उस महिला को शहर काज़ी (जज) के पास जाना पड़ता है. काजी चाहें तो पति के साथ उसके रिश्ते को खत्म करने का ऐलान कर सकते हैं अगर न चाहें तो महिला शादी नहीं तोड़ सकती...देखिए अब कोर्ट इस मसले पर क्या फैसला सुनाती है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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