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एक वो दौर था जब यूपी में नकल कराने के पैकेज उपलब्ध कराए जाते थे

    • मनीष दीक्षित
    • Updated: 10 फरवरी, 2018 11:21 AM
  • 10 फरवरी, 2018 11:21 AM
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नक़ल को लेकर जिस तरह की खबर उत्तर प्रदेश से आ रही है वो ये बताने के लिए काफी है कि योगी के प्रदेश में शिक्षा और उसका स्तर कैसा है. साथ ही प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था किस दिशा में जा रही है.

यूपी बोर्ड की भी लीला न्यारी है, कभी इतना उदार हो गया कि नकल कराने वालों ने पैकेज जारी कर दिए यानी बोलकर लिखाने का रेट अलग, अपने आप लिखने का रेट अलग, आपके बदले दूसरा लिखे इसका रेट अलग. अब इतनी सख्ती हो रही है कि छात्र परीक्षा देने से भी कतरा रहे हैं. शुरुआती 4 दिनों में यानी 9 फरवरी 2018 तक 10.4 लाख से ज्यादा छात्र परीक्षा छोड़ चुके हैं. इरादा बिल्कुल साफ है कि नकल नहीं होगी तो परीक्षा भी नहीं देंगे. पढ़ाई करना इनके वश में नहीं है.

अलीगढ़ में एक कस्बा है अतरौली. यहां ऐसी बंपर नकल होती है कि इसे अतरौलिया बोर्ड के नाम से भी जाना जाता रहा है. अतरौली जैसे छोटे से कस्बे के स्कूलों से दूसरे राज्यों के फौज में भर्ती चाहने वाले लड़के नकल करके परीक्षा पास करने के लिए आते रहे हैं. ये खुद फिजिकल की तैयारी करते रहते हैं और यहां से मैट्रिक-इंटर कुछ पैसे देकर पास कर लेते हैं. यही हाल लड़कियों के मामले में होता था कि उनके लिए मैट्रिक-इंटर के बाद आशा वर्कर या शिक्षा मित्र तक का पैकेज नकल माफिया के पास होता था. आलम ये होता है कि चित्रकला के पेपर में भी शहर के पेंटर बुलाकर उनसे चित्र बनवा दिए जाते हैं. कुछेक दलाल तो आगरा यूनिवर्सिटी से डिग्री तक का सौदा कर बैठते हैं.

उत्तर प्रदेश में जिस तरह नक़ल माफियाओं का पोषण किया जा रहा है वो एक गहरी चिंता का विषय है

लेकिन इस साल यानी 2018 में हालात बदल चुके हैं. अब नकल पर सख्ती बहुत ज्यादा बढ़ गई है. पूरे प्रदेश में नकलचियों की जमकर धरपकड़ चल रही है. अलीगढ़ में में 1.88 लाख छात्रों का रजिस्ट्रेशन हुआ है लेकिन इनमें से अतरौली के स्कूलों के 40 हजार छात्रों के परीक्षा छोड़ देने की खबर है. यूपी में दो दशकों से ज्यादा समय के बाद स्कूली शिक्षा से नकल को उखाड़ फेंकने का जमीनी प्रयास शुरू हुआ है. हालांकि...

यूपी बोर्ड की भी लीला न्यारी है, कभी इतना उदार हो गया कि नकल कराने वालों ने पैकेज जारी कर दिए यानी बोलकर लिखाने का रेट अलग, अपने आप लिखने का रेट अलग, आपके बदले दूसरा लिखे इसका रेट अलग. अब इतनी सख्ती हो रही है कि छात्र परीक्षा देने से भी कतरा रहे हैं. शुरुआती 4 दिनों में यानी 9 फरवरी 2018 तक 10.4 लाख से ज्यादा छात्र परीक्षा छोड़ चुके हैं. इरादा बिल्कुल साफ है कि नकल नहीं होगी तो परीक्षा भी नहीं देंगे. पढ़ाई करना इनके वश में नहीं है.

अलीगढ़ में एक कस्बा है अतरौली. यहां ऐसी बंपर नकल होती है कि इसे अतरौलिया बोर्ड के नाम से भी जाना जाता रहा है. अतरौली जैसे छोटे से कस्बे के स्कूलों से दूसरे राज्यों के फौज में भर्ती चाहने वाले लड़के नकल करके परीक्षा पास करने के लिए आते रहे हैं. ये खुद फिजिकल की तैयारी करते रहते हैं और यहां से मैट्रिक-इंटर कुछ पैसे देकर पास कर लेते हैं. यही हाल लड़कियों के मामले में होता था कि उनके लिए मैट्रिक-इंटर के बाद आशा वर्कर या शिक्षा मित्र तक का पैकेज नकल माफिया के पास होता था. आलम ये होता है कि चित्रकला के पेपर में भी शहर के पेंटर बुलाकर उनसे चित्र बनवा दिए जाते हैं. कुछेक दलाल तो आगरा यूनिवर्सिटी से डिग्री तक का सौदा कर बैठते हैं.

उत्तर प्रदेश में जिस तरह नक़ल माफियाओं का पोषण किया जा रहा है वो एक गहरी चिंता का विषय है

लेकिन इस साल यानी 2018 में हालात बदल चुके हैं. अब नकल पर सख्ती बहुत ज्यादा बढ़ गई है. पूरे प्रदेश में नकलचियों की जमकर धरपकड़ चल रही है. अलीगढ़ में में 1.88 लाख छात्रों का रजिस्ट्रेशन हुआ है लेकिन इनमें से अतरौली के स्कूलों के 40 हजार छात्रों के परीक्षा छोड़ देने की खबर है. यूपी में दो दशकों से ज्यादा समय के बाद स्कूली शिक्षा से नकल को उखाड़ फेंकने का जमीनी प्रयास शुरू हुआ है. हालांकि मंत्री संदीप सिंह और उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा खुद केंद्रों पर जाकर नकलचियों की धरपकड़ देख रहे हैं. इस सबके बावजूद अलीगढ़ औऱ गाजीपुर जैसी नकल की मंडियों में नकलचियों के पकड़े जाने की लगातार सूचनाएं आ रही हैं.

अलीगढ़ में तो 45 साल का एक शख्स 17 साल के लड़के की जगह पेपर देते पकड़ा गया है. नकल माफिया अब भी बाज नहीं आ रहा है. कुछ स्कूलों में सीसीटीवी का मुंह मोड़ने और हार्डडिस्क गायब करने जैसे वाकये सामने आ रहे हैं. कुछ जगहों पर बिजली जाने और जेनरेटर का डीजल खत्म होने से सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग न होने की बात कही जा रही है. नकल माफिया के हौसले एकदम पस्त हो गए हैं ऐसा भी नहीं है. माफिया अब परीक्षा कॉपियों में खेल करने की जुगत में है और इसे रोकना यूपी बोर्ड के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.

एक साथ इतने बच्चों का परीक्षा छोड़ना ये बताता है कि उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था कैसी है

लेकिन यूपी बोर्ड में नकल लीला से एक सवाल सबसे बड़ा उठता है कि आखिर अब छात्र पढ़ना क्यों नहीं चाहते. पढ़ना नहीं चाहते लेकिन आगे बढ़ना चाहते हैं और इसलिए वे नकल का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि शॉर्टकट से मैट्रिक-इंटर करने की तमन्ना पालने वालों का औसत 10 फीसदी है. इनमें से नाममात्र के छात्र किसी अन्य मजबूरी में परीक्षा में नहीं बैठे होंगे लेकिन ज्यादातर नकल की सख्ती के चलते पीछे हट गए.

दूसरी ओर गुजरात है जहां राज्य के शिक्षा बोर्ड ने इसी हफ्ते आदेश दिया है कि कक्षा के भीतर इशारे से वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर बताने पर भी छात्र को दंडित किया जाएगा. इशारों पर रोक लगाने वाला शायद ये पहला राज्य होगा. काश ऐसी ही चुस्ती यूपी-बिहार जैसे बोर्ड भी दिखाते तो न जाने कितने नाकाबिल लोग इंटर होने से बच जाते और प्रदेशों की प्रतिष्ठा भी बच जाती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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