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99% लाने के लिए राज्यों में नकल को वैध करें

    • चंदन कुमार
    • Updated: 18 जून, 2015 10:23 AM
  • 18 जून, 2015 10:23 AM
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दिल्ली युनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में इंग्लिश पढ़ने के लिए चाहिए 99% मार्क्स. बिहार में अंग्रेजी की पढ़ाई छठी कक्षा से होती है. इस असमानता को नकल ही दूर कर सकती है. इसे तो राज्यों में वैध कर दिया जाना चाहिए.

वैधानिक चेतावनी : मैं गलत को सही बताने जा रहा हूं. ऐसी गलती जिसके लिए कानून में सजा का प्रावधान है. समाज में जिसे हेय दृष्टि से देखा जाता है. उसे सही साबित कर रहा हूं. न सिर्फ सही, बल्कि उसे कानूनी जामा पहनाने की वकालत भी कर रहा हूं. अगर आप गलत को गलत ही मानते हैं तो इसे पढ़ कर कृपया अपना वक्त जाया न करें.

12वीं का रिजल्ट आ चुका है. CBSE का भी और लगभग सारे राज्यों में भी. जो पास कर गए हैं, उनके सामने दो-दो परेशानी - (i) किस सबजेक्ट को पकड़ा जाए और (ii) किस कॉलेज में पढ़ा जाए? छात्रों ने अपनी-अपनी क्षमता और मार्क्स को देखते हुए फॉर्म भर दिए. इस बीच कुछ सपने भी पल गए. फलां जगह पढूंगा, पापा से बाइक लूंगा, वहां अपनी मोहब्बत ढूढूंगा, महबूबा को पीछे बिठा डेट पर जाऊंगा...       

धड़ाम! सपना टूट गया. बाइक ट्रैफिक में फंस गई. विलन बनी मार्क्स की रेड लाइट. दिल्ली यूनिवर्सिटी का एक प्रतिष्ठित कॉलेज है. नाम है सेंट स्टीफेंस कॉलेज. ट्रैफिक यहीं पर जाम हुआ है. सपना भी यहीं टूटा है. वैसे यह तो एक शुरुआत भर है. अभी न जाने किन-किन कॉलेजों पर ट्रैफिक जाम होगा, न जाने कितनों के सपने टूटेंगे!  

99%. यही वो आंकड़ा है जो सेंट स्टीफेंस कॉलेज में इंग्लिश पढ़ने वालों के लिए कटऑफ के तौर पर जारी किया गया है. इकॉनमिक्स के लिए 98.5%, कॉमर्स के लिए 97.75% और विज्ञान के विषयों के लिए 97.50%.

मार्स पर रहने वाले इतने-इतने मार्क्स लाते हैं, ऐसा नहीं है. इसी देश के स्टूडेंट्स इतने मार्क्स लाते हैं. सवाल यह है कि क्या इस देश के सभी स्टूडेंट को वह सुविधा और पढ़ाई का माहौल मिल पाता है, जो 99 या 100 फीसदी मार्क्स लाने वालों को मिलता है? मैं सिर्फ अपने राज्य की बात करूंगा. बिहार की. इसलिए क्योंकि दूसरे राज्यों की शिक्षा व्यवस्था को करीब से नहीं जानता हूं. तो मेरा जवाब है - बिल्कुल नहीं.  

कुछ दिन पहले एक खबर आई थी. इंटरनेशनल मीडिया ने भी कवर किया था - एक चार मंजिला बिल्डिंग. उसकी...

वैधानिक चेतावनी : मैं गलत को सही बताने जा रहा हूं. ऐसी गलती जिसके लिए कानून में सजा का प्रावधान है. समाज में जिसे हेय दृष्टि से देखा जाता है. उसे सही साबित कर रहा हूं. न सिर्फ सही, बल्कि उसे कानूनी जामा पहनाने की वकालत भी कर रहा हूं. अगर आप गलत को गलत ही मानते हैं तो इसे पढ़ कर कृपया अपना वक्त जाया न करें.

12वीं का रिजल्ट आ चुका है. CBSE का भी और लगभग सारे राज्यों में भी. जो पास कर गए हैं, उनके सामने दो-दो परेशानी - (i) किस सबजेक्ट को पकड़ा जाए और (ii) किस कॉलेज में पढ़ा जाए? छात्रों ने अपनी-अपनी क्षमता और मार्क्स को देखते हुए फॉर्म भर दिए. इस बीच कुछ सपने भी पल गए. फलां जगह पढूंगा, पापा से बाइक लूंगा, वहां अपनी मोहब्बत ढूढूंगा, महबूबा को पीछे बिठा डेट पर जाऊंगा...       

धड़ाम! सपना टूट गया. बाइक ट्रैफिक में फंस गई. विलन बनी मार्क्स की रेड लाइट. दिल्ली यूनिवर्सिटी का एक प्रतिष्ठित कॉलेज है. नाम है सेंट स्टीफेंस कॉलेज. ट्रैफिक यहीं पर जाम हुआ है. सपना भी यहीं टूटा है. वैसे यह तो एक शुरुआत भर है. अभी न जाने किन-किन कॉलेजों पर ट्रैफिक जाम होगा, न जाने कितनों के सपने टूटेंगे!  

99%. यही वो आंकड़ा है जो सेंट स्टीफेंस कॉलेज में इंग्लिश पढ़ने वालों के लिए कटऑफ के तौर पर जारी किया गया है. इकॉनमिक्स के लिए 98.5%, कॉमर्स के लिए 97.75% और विज्ञान के विषयों के लिए 97.50%.

मार्स पर रहने वाले इतने-इतने मार्क्स लाते हैं, ऐसा नहीं है. इसी देश के स्टूडेंट्स इतने मार्क्स लाते हैं. सवाल यह है कि क्या इस देश के सभी स्टूडेंट को वह सुविधा और पढ़ाई का माहौल मिल पाता है, जो 99 या 100 फीसदी मार्क्स लाने वालों को मिलता है? मैं सिर्फ अपने राज्य की बात करूंगा. बिहार की. इसलिए क्योंकि दूसरे राज्यों की शिक्षा व्यवस्था को करीब से नहीं जानता हूं. तो मेरा जवाब है - बिल्कुल नहीं.  

कुछ दिन पहले एक खबर आई थी. इंटरनेशनल मीडिया ने भी कवर किया था - एक चार मंजिला बिल्डिंग. उसकी खिड़कियों से लटके लोग. वह बिल्डिंग एक परीक्षा केंद्र था और ये लोग अंदर बैठे परीक्षार्थियों को चीटिंग करवा रहे थे. यह बिल्डिंग बिहार में थी. लोगों ने चिटिंग होते तो देखा, प्रतिक्रिया भी दी. बिहार को और वहां के प्रशासन को गरियाने के चक्कर में लोग जो नहीं देख पाए, वह थी स्टूडेंट्स की पीड़ा.

बिहार में परीक्षा के दौरान नकल की एक तस्वीर

पारा शिक्षकों के दम पर बिहार में शिक्षा व्यवस्था चल रही है. उन्हें मिड-डे मिल खिलाना है, स्कूल बिल्डिंग बनवानी है, जनगणना भी करना है, चुनाव भी कराना है. इसके बाद अगर समय बच गया तो पढ़ाना भी है. तो क्या बिहार के स्टूडेंट्स को स्टीफेंस में पढ़ने का संवैधानिक अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि वहां तो छठी कक्षा से अंग्रेजी की पढ़ाई ही शुरू होती है? अगर राज्य वो सुविधा मुहैया नहीं करा पा रहा है तो क्या उन्हें चीटिंग करके उस हक को पाने का अधिकार भी नहीं है?  

बिल्कुल होना चाहिए. राज्य की कमी के कारण शिक्षा सुविधा से वंचित रहे स्टूडेंट्स को मार्क्स के आधार पर मत तौलिए. उसे और सुविधा संपन्न स्टूडेंट्स दोनों को एक प्लेटफॉर्म (स्टीफंस या ऐसा ही कोई और कॉलेज) दिया जाए. फिर वहां जिसमें क्षमता होगी, वह बाजी मारेगा.                  

इसलिए 'आम आदमी' के नेता श्री अरविंद केजरीवाल जी, समाज के सबसे आखिरी व्यक्ति के लिए काम करने का दावा कर रहे हमारे पीएम श्री नरेंद्र मोदी जी कृपया ध्यान दें. गाड़ी छूट रही है. उनकी गाड़ी जो समान शिक्षा अधिकार से वंचित रहे हैं. 99 फीसदी अंक से वंचित रहे हैं. उनकी ओर से मैं याचना कर रहा हूं. बिहार या ऐसा कोई भी राज्य जहां की शिक्षा व्यवस्था में लोच है, वहां के लिए चीटिंग को वैध करें. संविधान संशोधन करें. यह देश हित में है. आखिर आरक्षण का आधार भी तो यही है न श्रीमान!!!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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