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दिवाली और उल्लू की बलि का कनेक्शन हैरान भी करता है, और परेशान भी

    • आईचौक
    • Updated: 26 अक्टूबर, 2019 04:23 PM
  • 06 नवम्बर, 2018 08:45 PM
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उल्लू तो देवी का वाहन माना जाता है और दिवाली पर उल्लू की बलि से देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. लेकिन जिस सोच के साथ ये सब किया जाता है, उसे जानने के बाद इस बात पर विश्वास और पक्का हो जाता है कि लोग कितने स्वार्थी होते हैं.

रौशनी का पर्व दिवाली, जब लोग मां लक्ष्मी की पूजा कर सुख और समृद्धि की कामना करते हैं. साल भर लोग घर की इतनी सफाई नहीं करते जितनी दिवाली पर करते हैं. रंग-रोगन किया जाता है, घर को सुंदर बनाने और रौशन करने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते. इस पूरी कवायद का मकसद लक्ष्मी पूजा नहीं, बल्कि लक्ष्मी को प्रसन्न करना होता है. माना जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी अगर प्रसन्न हो गईं तो हमेशा कृपा बनाए रखती हैं.

धन की देवी को कोई नाराज नहीं करना चाहता, क्योंकि गरीबी किसी को पसंद नहीं. इसलिए चाहे वो पूजा हो या फिर घर की सजावट, वही चीजें रखी जाती हैं जो देवी को पसंद हों. बस देवी मां घर आएं, घर में ही बसी रहें, और कहीं न जाएं. इसके लिए कई लोग लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते हैं, तो कई लक्ष्मी पूजा करने के बाद लक्ष्मी की आरती भी नहीं करते. क्योंकि आरती के बाद मां चली जाएंगी. ये तो सामान्य लोगों की बातें हैं और सामान्यतः इस त्योहार पर इसी सोच के साथ काम किया जाता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो धन की देवी को अपने घर में रोकने के लिए और भी बहुत कुछ करते हैं. जो सामान्य लोग सोच भी नहीं पाते. इस दिन भी लोग एक जीव की बलि देते हैं. वो है उल्लू.

अमावस्य की रात तांत्रिक क्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है उल्लू

उल्लू की बलि से देवी कैसे प्रसन्न होंगी?

कई लोग मानते हैं कि उल्लू अशुभ होता है लेकिन उल्लू को लक्ष्मी जी का वाहन कहा जाता है, इस लिहाज से उल्लू शुभ माना गया है. इस दिन उल्लू की पूजा की जाती है और पूजा के बाद इसी उल्लू की बलि दे दी जाती है. ये बात समझना थोड़ा अजीब है, क्योंकि उल्लू तो देवी का वाहन होता है और उन्हीं के वाहन की बलि देंगे तो देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. लेकिन जिस सोच के साथ ये सब किया जाता है, उसे जानने के...

रौशनी का पर्व दिवाली, जब लोग मां लक्ष्मी की पूजा कर सुख और समृद्धि की कामना करते हैं. साल भर लोग घर की इतनी सफाई नहीं करते जितनी दिवाली पर करते हैं. रंग-रोगन किया जाता है, घर को सुंदर बनाने और रौशन करने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते. इस पूरी कवायद का मकसद लक्ष्मी पूजा नहीं, बल्कि लक्ष्मी को प्रसन्न करना होता है. माना जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी अगर प्रसन्न हो गईं तो हमेशा कृपा बनाए रखती हैं.

धन की देवी को कोई नाराज नहीं करना चाहता, क्योंकि गरीबी किसी को पसंद नहीं. इसलिए चाहे वो पूजा हो या फिर घर की सजावट, वही चीजें रखी जाती हैं जो देवी को पसंद हों. बस देवी मां घर आएं, घर में ही बसी रहें, और कहीं न जाएं. इसके लिए कई लोग लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते हैं, तो कई लक्ष्मी पूजा करने के बाद लक्ष्मी की आरती भी नहीं करते. क्योंकि आरती के बाद मां चली जाएंगी. ये तो सामान्य लोगों की बातें हैं और सामान्यतः इस त्योहार पर इसी सोच के साथ काम किया जाता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो धन की देवी को अपने घर में रोकने के लिए और भी बहुत कुछ करते हैं. जो सामान्य लोग सोच भी नहीं पाते. इस दिन भी लोग एक जीव की बलि देते हैं. वो है उल्लू.

अमावस्य की रात तांत्रिक क्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है उल्लू

उल्लू की बलि से देवी कैसे प्रसन्न होंगी?

कई लोग मानते हैं कि उल्लू अशुभ होता है लेकिन उल्लू को लक्ष्मी जी का वाहन कहा जाता है, इस लिहाज से उल्लू शुभ माना गया है. इस दिन उल्लू की पूजा की जाती है और पूजा के बाद इसी उल्लू की बलि दे दी जाती है. ये बात समझना थोड़ा अजीब है, क्योंकि उल्लू तो देवी का वाहन होता है और उन्हीं के वाहन की बलि देंगे तो देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं. लेकिन जिस सोच के साथ ये सब किया जाता है, उसे जानने के बाद इस बात पर विश्वास और पक्का हो जाता है कि लोग कितने स्वार्थी होते हैं. मान्यता है चूंकि उल्लू पर सवाल होकर ही लक्ष्मी विचरण करती हैं इसलिए उल्लू की बलि देने से मां लक्ष्मी कहीं आ-जा सकने से लाचार हो जाती हैं और घर में हमेशा के लिए बस जाती हैं.

मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू है

अब ये बात खुद को बहलाने के लिए तो मानी जा सकती है कि उल्लू के न रहने से लक्ष्मी जी कहीं नहीं जाएंगी, लेकिन लोग ये सोचें कि उल्लू की बलि देकर वो लक्ष्मी को प्रसन्न कर रहे होते हैं, तो ये समझ से परे है, क्योंकि उल्लू कैसा भी सही अगर लक्ष्मी जी का प्रिय होगा तभी तो उनका वाहन होगा, और उसे मारकर लक्ष्मी जी को लाचार बनाना तो लक्ष्मी जी को क्रोध ही देगा.

क्यों दी जाती है उल्लू की बलि-

माना जाता है कि उल्लू एक ऐसा प्राणी है जो जीवित रहे तो भी लाभदायक है और मृत्यु के बाद भी फलदायक होता है. दिवाली में तांत्रिक गतिविधियों में उल्लू का इस्तेमाल होता है. इसके लिए उसे महीनाभर पहले से साथ में रखा जाता है. दिवाली पर बलि के लिए तैयार करने के लिए उसे मांस-मदिरा भी दी जाती है. पूजा के बाद बलि दी जाती है और बलि के बाद शरीर के अलग-अलग अंगों को अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है जिससे समृद्धि हर तरफ से आए. जैसे- माना जाता है कि उसकी आंखों में सम्मोहित करने की ताकत होती है, लिहाजा उल्लू की आंखें ऐसी जगह रखते हैं जहां मिलना-मिलाना होता हो. पैर तिजोरी में रखा जाता है. चोंच का इस्तेमाल दुश्मनों को हराने के लिए होता है. वशीकरण, मारण जैसी कई तांत्रिक क्रियाओं के लिए उल्लुओं का इस्तेमाल होता है. सम्मोहन के लिए उल्लू के नाखून से काजल भी बनाया जाता है. इसे लेकर बहुत सी मान्यताएं हैं जो जगह के हिसाब से बदलती रहती हैं.

दिवाली पर उल्लुओं की शामत

लाखों में है कीमत

अब जब उल्लू इतने काम का है तो इसकी डिमांड भी उतनी ही होगी, खासकर दिवाली के आस-पास उल्लुओं के सिर पर खतरा मंडराने लगता है. पक्षी बेचने वाले इसके अवैध शिकार पर निकल पड़ते हैं. दिवाली पर एक उल्लू 10 हजार से लेकर लाखों में बेचा जाता है. पक्षी के वजन, रंग और दूसरी विशेषताओं को देखकर दाम तय किया जाता है.

ये तब है जबकि भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत उल्लू संरक्षित पक्षियों के तहत आता है. उल्लू को संरक्षित पक्षियों की सूची में प्रथम श्रेणी में शामिल किया गया है, पहले यह चतुर्थ श्रेणी में था. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने उल्लू को लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल किया है. उल्लू को पकड़ने-बेचने पर तीन साल या उससे ज्यादा की सजा का नियम है. लेकिन दिवाली पर इस प्रावधान की खूब धज्जियां उड़ाई जाती हैं. हालांकि वनों में अलर्ट घोषित किया जाता है लेकिन शिकारी बाज नहीं आते, उल्लू शिकार बनते ही हैं.

अब आप खुद सोचिए, एक तरफ लोग लक्ष्मी मां को प्रसन्न करने के लिए जी जान से जुटे रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो अंधविश्वास के चलते खुद लक्ष्मी जी को कैद करने के लिए उनके वाहन की बलि देते हैं. असल में लोग खुद ही कन्फ्यूज़्ड हैं कि उन्हें देवी को खुश करना है या खुद को. देवी को लाचार बनाकर वो असल में खुद को ही खुश करना चाहते हैं, और इसके लिए किसी निरीह जानवर की बलि देने से भी वो बाज नहीं आते. ये कैसी भक्ति? और इस भक्ति से देवी कैसे कृपा करती हैं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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