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समाज

दीपावली में 'लक्ष्मी जी' आती हैं या जाती हैं?

    • सरोज कुमार
    • Updated: 06 नवम्बर, 2018 02:29 PM
  • 31 अक्टूबर, 2016 01:24 PM
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जैसे बकरीद में जो जितना ज्यादा अमीर उसका 'बकरा' उतना ही बड़ा वैसे ही दीपावली में जो जितना समृद्ध उसका उतना ही खर्च...

इस साल आपने दीपावली मना लिया. आपने खूब आतिशबाजी की होगी, दीप जलाए होंगे, झालर लगाया होगा. यानी पूरा चकमक. लेकिन एक बात पूछनी थी-आपके यहां 'लक्ष्मी जी' आईं या गईं? जी हां, आप ही लोग कहते हैं न कि दीपावली में 'लक्ष्मी जी' यानि आपके मुताबिक धन की देवी की पूजा करने से धन की वर्षा होती है माने धन का आगमन होता है, सुख-समृद्धि आती है. फिर ये बताइए कि 'लक्ष्मी जी' आपके यहां आईं?  मेरे एक वरिष्ठ सहकर्मी ने पूछने पर बताया कि उनके यहां दीपावली में अमूमन एक से डेढ़ लाख रु. खर्च हो जाते हैं. मैंने पूछा तो आपके यहां 'लक्ष्मी जी' आईं या चली गईं, तो उनका जवाब था- "चली ही जाती हैं यार."

हां, यह जरूर है कि इस त्योहार के बहाने एक-दो दिन के लिए छोटे-छोटे व्यवसाय करने वालों की आमदनी अच्छी हो जाती है. एक और तर्क यह दिया जाता है कि त्योहारों के दिन लोग थोड़ी मस्ती, थोड़ा मेल-मिलाप, थोड़ा अच्छा खा-पी लेते हैं, इसमें क्या बुराई है. जी हां, इसमें कोई बुराई नहीं है. लेकिन यही जब दिखावा बन जाए तो अनावश्यक और बेकार हो जाता है. दीपावली जैसे त्योहारों को अब ऐसा बना दिया गया है कि जिसके पास जितना ज्यादा पैसा वह उतना ही दिखावा, उतना ही ज्यादा बर्बाद करता है. जो जितना ज्यादा अमीर वह उतना ही ज्यादा और भयानक आतिशबाजी करता है, उतना ही ज्यादा दूसरों को दिखाने की कोशिश करता है. जैस बकरीद में जो जितना ही ज्यादा अमीर उतना ही बड़ा 'बकरा' काटता है.

 लक्ष्मी को खुश कर घर आने का न्यौता

दीपावली में एक और चीज आती है- वह है भारी प्रदूषण. इस बार दीपावली से फैले प्रदूषण के पिछले तीन साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया. इस बार हवा में अल्ट्राफाइन पार्टिकुलेट मैटर यानी...

इस साल आपने दीपावली मना लिया. आपने खूब आतिशबाजी की होगी, दीप जलाए होंगे, झालर लगाया होगा. यानी पूरा चकमक. लेकिन एक बात पूछनी थी-आपके यहां 'लक्ष्मी जी' आईं या गईं? जी हां, आप ही लोग कहते हैं न कि दीपावली में 'लक्ष्मी जी' यानि आपके मुताबिक धन की देवी की पूजा करने से धन की वर्षा होती है माने धन का आगमन होता है, सुख-समृद्धि आती है. फिर ये बताइए कि 'लक्ष्मी जी' आपके यहां आईं?  मेरे एक वरिष्ठ सहकर्मी ने पूछने पर बताया कि उनके यहां दीपावली में अमूमन एक से डेढ़ लाख रु. खर्च हो जाते हैं. मैंने पूछा तो आपके यहां 'लक्ष्मी जी' आईं या चली गईं, तो उनका जवाब था- "चली ही जाती हैं यार."

हां, यह जरूर है कि इस त्योहार के बहाने एक-दो दिन के लिए छोटे-छोटे व्यवसाय करने वालों की आमदनी अच्छी हो जाती है. एक और तर्क यह दिया जाता है कि त्योहारों के दिन लोग थोड़ी मस्ती, थोड़ा मेल-मिलाप, थोड़ा अच्छा खा-पी लेते हैं, इसमें क्या बुराई है. जी हां, इसमें कोई बुराई नहीं है. लेकिन यही जब दिखावा बन जाए तो अनावश्यक और बेकार हो जाता है. दीपावली जैसे त्योहारों को अब ऐसा बना दिया गया है कि जिसके पास जितना ज्यादा पैसा वह उतना ही दिखावा, उतना ही ज्यादा बर्बाद करता है. जो जितना ज्यादा अमीर वह उतना ही ज्यादा और भयानक आतिशबाजी करता है, उतना ही ज्यादा दूसरों को दिखाने की कोशिश करता है. जैस बकरीद में जो जितना ही ज्यादा अमीर उतना ही बड़ा 'बकरा' काटता है.

 लक्ष्मी को खुश कर घर आने का न्यौता

दीपावली में एक और चीज आती है- वह है भारी प्रदूषण. इस बार दीपावली से फैले प्रदूषण के पिछले तीन साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया. इस बार हवा में अल्ट्राफाइन पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5 का स्तर 400 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पहुंच गई जबकि यह 60 तक ही स्वीकार्य माना जाता है. इसी तरह (बड़े कण) पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 10 का स्तर भी बहुत ही ज्यादा बढ़ गया. यह जहरीली हवा दो-तीन दिनों तो ऐसे ही बनी रहेगी. जाहिर है, दीवापली के नाम पर हवा को जहरीला बनाना उचित तो नहीं है. इससे बीमारियां बढ़ेंगी और 'लक्ष्मी जी' या धन आने के बजाए जाएंगी ही.

एक बात और मुझे समझ में नहीं आती कि देश में कई वर्षों से लोग लक्ष्मी जी की पूजा करते आ रहे हैं, फिर यहां बहुत बड़ी आबादी बेहद गरीब क्यों है? 2011-12 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं. सोचिए वास्तविक स्थिति कितनी भयावह होगी. तो क्या 'लक्ष्मी जी' बस अमीरों के यहां आती हैं. मैंने अपने गांव के एक मजदूर श्यामबिहारी से पूछा तो उनका जवाब था, ''हम त बड़ा मुश्किल से मना लेनी दीवाली. पर सौ-दो सौ रुपया खरच होइए गेल. ई जादा बा हमरे ला. अब कल खातिर कमा के जुगाड़ करेके होइ. हमरा यहां लक्ष्मी जी कहां आव लन, बस जा लन." यानी श्यामबिहारी के लिए तो लक्ष्मी जी आती नहीं हैं, जाती हैं. और आपके लिए?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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