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स्टैचू ऑफ यूनिटी: चार देशों को चार तरह की दिखाई दी पटेल की प्रतिमा

    • आईचौक
    • Updated: 01 नवम्बर, 2018 05:03 PM
  • 01 नवम्बर, 2018 04:41 PM
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नरेंद्र मोदी और स्टैचू ऑफ यूनिटी की बातें चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान और अमेरिका चारों ओर हैं. पर आखिर विदेशी इस स्टैचू को कैसे देखते हैं? दुनिया भर के मीडिया ने अलग-अलग तरह से स्टैचू ऑफ यूनिटी, नरेंद्र मोदी और भाजपा को जोड़ा.

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति यानी स्टैचू ऑफ यूनिटी अब आधिकारिक तौर पर एक टूरिस्ट स्पॉट बन चुकी है. ये देश की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति है जिसका साइज स्टैचू ऑफ लिबर्टी से चारगुना है. 182 मीटर की ये स्टैचू दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गई है और क्योंकि दुनिया भर में इसकी बात हो रही है तो विदेशी मीडिया ने इसे अच्छे से कवर भी किया है. नरेंद्र मोदी और स्टैचू ऑफ यूनिटी की बातें चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान और अमेरिका चारों ओर हैं. पर आखिर विदेशी इस स्टैचू को कैसे देखते हैं? दुनिया भर के मीडिया ने अलग-अलग तरह से स्टैचू ऑफ यूनिटी, नरेंद्र मोदी और भाजपा को जोड़ा.

1. पाकिस्तानी मीडिया: कुछ तंज के साथ तारीफ भी

पाकिस्तानी मीडिया ने कुछ अलग तरह से ही स्टैचू ऑफ यूनिटी का कवरेज किया.

पाकिस्तानी ट्रिब्यून ने अपने आर्टिकल में लिखा है कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी का किसी नैशनल फिगर को इस्तेमाल करने का ये अच्छा उदाहरण है. क्योंकि सरदार पटेल कांग्रेसी रहे हैं और अब वो विपक्ष के नेता बन गए हैं.

पाकिस्तान ट्रिब्यून में छपा स्टैचू ऑफ यूनिटी का एक आर्टिकल

जियो न्यूज ने कुछ समय पहले किए अपने कवरेज में साफ लिखा था कि ये सीधे तौर पर राष्ट्रीय जोश का विस्फोट है. साथ ही जियो न्यूज की तरफ से ये भी लिखा गया था कि इस प्रोजेक्ट के साथ राजनीतिक मतलब भी जुड़ा है क्योंकि अगले साल इलेक्शन होने हैं.

जियो न्यूज के आर्टिकल की एक झलक.

पाकिस्तानी डॉन ने सीधे तौर पर मोदी के इस प्रोजेक्ट पर कटाक्ष तो नहीं...

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति यानी स्टैचू ऑफ यूनिटी अब आधिकारिक तौर पर एक टूरिस्ट स्पॉट बन चुकी है. ये देश की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति है जिसका साइज स्टैचू ऑफ लिबर्टी से चारगुना है. 182 मीटर की ये स्टैचू दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गई है और क्योंकि दुनिया भर में इसकी बात हो रही है तो विदेशी मीडिया ने इसे अच्छे से कवर भी किया है. नरेंद्र मोदी और स्टैचू ऑफ यूनिटी की बातें चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान और अमेरिका चारों ओर हैं. पर आखिर विदेशी इस स्टैचू को कैसे देखते हैं? दुनिया भर के मीडिया ने अलग-अलग तरह से स्टैचू ऑफ यूनिटी, नरेंद्र मोदी और भाजपा को जोड़ा.

1. पाकिस्तानी मीडिया: कुछ तंज के साथ तारीफ भी

पाकिस्तानी मीडिया ने कुछ अलग तरह से ही स्टैचू ऑफ यूनिटी का कवरेज किया.

पाकिस्तानी ट्रिब्यून ने अपने आर्टिकल में लिखा है कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी का किसी नैशनल फिगर को इस्तेमाल करने का ये अच्छा उदाहरण है. क्योंकि सरदार पटेल कांग्रेसी रहे हैं और अब वो विपक्ष के नेता बन गए हैं.

पाकिस्तान ट्रिब्यून में छपा स्टैचू ऑफ यूनिटी का एक आर्टिकल

जियो न्यूज ने कुछ समय पहले किए अपने कवरेज में साफ लिखा था कि ये सीधे तौर पर राष्ट्रीय जोश का विस्फोट है. साथ ही जियो न्यूज की तरफ से ये भी लिखा गया था कि इस प्रोजेक्ट के साथ राजनीतिक मतलब भी जुड़ा है क्योंकि अगले साल इलेक्शन होने हैं.

जियो न्यूज के आर्टिकल की एक झलक.

पाकिस्तानी डॉन ने सीधे तौर पर मोदी के इस प्रोजेक्ट पर कटाक्ष तो नहीं किया, लेकिन स्टैचू ऑफ यूनिटी के लिए हो रहे पॉलिटिकल और सामाजिक विरोध की कवरेज की और साथ ही साथ इस बात को भी लिख दिया कि स्टैचू ऑफ यूनिटी भारत के एक कोने में है जहां पहुंचना थोड़ा मुश्किल है.

डॉन द्वारा लिखे गए आर्टिकल की एक झलक

2. चीनी मीडिया: मूर्ति के कद को मोदी के ईगो से नापा

चीनी मीडिया द्वारा मामले की रिपोर्टिंग तो की गई, लेकिन कहीं कहीं नरेंद्र मोदी के ईगो की बात भी हुई.

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) के एक आर्टिकल में लिखा गया कि स्टैचू ऑफ यूनिटी को बनाया ही मोदी के पॉलिटिकल ईगो को शांत करने के लिए गया है. इसी के साथ, ये भी लिखा गया कि स्टैचू ऑफ यूनिटी तो बड़ा है, लेकिन मोदी का पॉलिटिकल ईगो उससे भी बड़ा है. हालांकि, ये आर्टिकल लिखा एक इंडियन वासुदेवन श्रीधरन ने ही है.

SCMP में छपे आर्टिकल की झलक

साथ ही एक अन्य आर्टिकल में ये भी लिखा गया कि सरदार पटेल का स्टैचू जल्द ही दुनिया का दूसरा बड़ा स्टैचू बनेगा क्योंकि पहले नंबर पर मुंबई में एक हिंदू योद्धा का स्टैचू होगा. यहां शिवाजी के स्टैचू की बात हो रही थी जिसपर अभी काम चल रहा है.

3. अमेरिकी मीडिया: स्‍टैचू ऑफ लिबर्टी से तुलना होती रही

अमेरिकी मीडिया ने इसे सिर्फ स्टैचू ऑफ लिबर्टी से जोड़ कर देखा और लगभग हर आर्टिकल में स्टैचू ऑफ लिबर्टी का जिक्र था. अमेरिकी मीडिया ने इसे दिखाया ही इस तरह से, जैसे स्टैचू ऑफ यूनिटी और स्टैचू ऑफ लिबर्टी में तुलना की जा रही हो.

शिकागो ट्रिब्यून ने भी शुरुआत ही स्टैचू ऑफ लिबर्टी से की और इस पूरे लेख में सरदार पटेल के बारे में जानकारी भी दी.

शिकागो ट्रिब्यून द्वारा लिखे गए लेख की झलक

इसके अलावा, न्यूयॉर्क टाइम्स और गार्डियन के आर्टिकल्स में भी कुछ इसी तरह की तुलना देखने को मिली.

न्यूयॉर्क टाइम्स के आर्टिकल की झलक

4. ब्रिटिश मीडिया: मूर्ति की छाया में किसानों का दर्द दिखा 

बीबीसी की तरफ से जो कवरेज किया गया उसमें स्टैचू ऑफ यूनिटी से ज्यादा उन किसानों की बात की गई जो इससे नाराज हैं और इसे पैसे की बर्बादी ही बता रहे हैं.

बीबीसी द्वारा किया गया आर्टिकल

बीबीसी ने अपने आर्टिकल में किसानों से बातचीत के बारे में बताया और लिखा कि किसानों के हिसाब से इतना पैसा उनके कामकाज में लगाए जा सकते थे, लेकिन ये सारे पैसे लगा दिए गए हैं एक मूर्ति पर.

ये भी पढ़ें-

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी: श्रद्धा, राजनीति या कारोबार ?

5 वजहें: स्टैच्यू ऑफ यूनिटी उतनी भी खास नहीं, जितना सरकार बता रही है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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