• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी: श्रद्धा, राजनीति या कारोबार ?

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 31 अक्टूबर, 2018 06:44 PM
  • 31 अक्टूबर, 2018 06:44 PM
offline
इस मूर्ति में कारोबारी तड़का है. जो मूर्ति श्रद्धा का केन्द्र होनी चाहिए वो टूरिज्म के ज़रिए नोट छापने का काम करेगी. सरदार पटेल अक्षरधाम मंदिर की तरह ग्राहकों को आकर्षित करेंगे.

गांधी जयंती के दिन स्वच्छ भारत अभियान चलता है. देश को झाड़ू सेवा में लगा देते हैं ताकि बापू को याद न कर सकें. सरकार का पूरा फोकस स्वच्छ भारत पर होता है. प्रधानमंत्री की पूरी कोशिश होती है कि अटेंशन उनकी तरफ हो. गांधी की तरफ नहीं. देश भर के अखबारों में छपने वाले पीएसयू और सरकारी मंत्रालयों और विभागों के गांधी जयंती के विज्ञापन बंद हो चुके हैं. इक्का दुक्का विज्ञापन आते भी हैं तो उनमें गांधी की नहीं मोदी की फोटो होती है.

गांधी की तरह ही इंदिरा गांधी की शहादत के दिन को रन फॉर यूनिटी के उत्सव में बदल दिया गया है. उस इंदिरा गांधी की शहादत को भुलाने की कोशिश हो रही है जिसने देश में दुनिया के सबसे भयावह खालिस्तान वाले आतंकवाद को खत्म करने की कोशिश की थी. खालिस्तानी आतंकवादी फौज या पुलिस पर हमला नहीं करते थे. वो आम लोगों को निशाना बनाते थे. बसों में ट्रांजिस्टर बम रखना, सिनेमा हॉल में ब्लास्ट कर देना जैसी हरकतें आम थीं.

इंदिरा गांधी की शहादत के दिन को रन फॉर यूनिटी के उत्सव में बदल दिया गया है

इंदिरा गांधी ने उस आतंक से लोहा लिया और आखिर उनके प्राण चले गए. कोई नेता बॉर्डर पर जाकर तो गोली खाता नहीं है लेकिन ये छोटा साहस नहीं था. इंदिरा गांधी के पास सारे खतरों की जानकारी भी रही होगी. उसके बावजूद उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाया, पॉलिटिकल गेम में नहीं पड़ीं. ये बात सही हो सकती है कि भिंडरांवाला की राजनीति उनकी ही देन थी. लेकिन इसके बावजूद वो उन्हें खत्म किए बगैर चैन से रह सकती थीं. लेकिन आज उनकी शहादत के दिन को उत्सवों में गुमा दिया गया है.

कछ लोग कह सकते हैं कि सरदार पटेल की कीमत पर इंदिरा गांधी को याद क्यों करें. लेकिन बलिदान से सर्वोच्च कुछ नहीं होता. सरदार पटेल की मूर्ति वैसे भी राजघाट की तरह का स्मारक नहीं होगा जहां जो जाए...

गांधी जयंती के दिन स्वच्छ भारत अभियान चलता है. देश को झाड़ू सेवा में लगा देते हैं ताकि बापू को याद न कर सकें. सरकार का पूरा फोकस स्वच्छ भारत पर होता है. प्रधानमंत्री की पूरी कोशिश होती है कि अटेंशन उनकी तरफ हो. गांधी की तरफ नहीं. देश भर के अखबारों में छपने वाले पीएसयू और सरकारी मंत्रालयों और विभागों के गांधी जयंती के विज्ञापन बंद हो चुके हैं. इक्का दुक्का विज्ञापन आते भी हैं तो उनमें गांधी की नहीं मोदी की फोटो होती है.

गांधी की तरह ही इंदिरा गांधी की शहादत के दिन को रन फॉर यूनिटी के उत्सव में बदल दिया गया है. उस इंदिरा गांधी की शहादत को भुलाने की कोशिश हो रही है जिसने देश में दुनिया के सबसे भयावह खालिस्तान वाले आतंकवाद को खत्म करने की कोशिश की थी. खालिस्तानी आतंकवादी फौज या पुलिस पर हमला नहीं करते थे. वो आम लोगों को निशाना बनाते थे. बसों में ट्रांजिस्टर बम रखना, सिनेमा हॉल में ब्लास्ट कर देना जैसी हरकतें आम थीं.

इंदिरा गांधी की शहादत के दिन को रन फॉर यूनिटी के उत्सव में बदल दिया गया है

इंदिरा गांधी ने उस आतंक से लोहा लिया और आखिर उनके प्राण चले गए. कोई नेता बॉर्डर पर जाकर तो गोली खाता नहीं है लेकिन ये छोटा साहस नहीं था. इंदिरा गांधी के पास सारे खतरों की जानकारी भी रही होगी. उसके बावजूद उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाया, पॉलिटिकल गेम में नहीं पड़ीं. ये बात सही हो सकती है कि भिंडरांवाला की राजनीति उनकी ही देन थी. लेकिन इसके बावजूद वो उन्हें खत्म किए बगैर चैन से रह सकती थीं. लेकिन आज उनकी शहादत के दिन को उत्सवों में गुमा दिया गया है.

कछ लोग कह सकते हैं कि सरदार पटेल की कीमत पर इंदिरा गांधी को याद क्यों करें. लेकिन बलिदान से सर्वोच्च कुछ नहीं होता. सरदार पटेल की मूर्ति वैसे भी राजघाट की तरह का स्मारक नहीं होगा जहां जो जाए श्रद्धा सुमन अर्पित करके चला आए. सरदार पटेल गुजराती कारोबारी मिजाज़ की एक प्रतिकृति हैं. इस मूर्ति में कारोबारी तड़का है. जो मूर्ति श्रद्धा का केन्द्र होनी चाहिए वो टूरिज्म के ज़रिए नोट छापने का काम करेगी. पटेल अक्षरधाम मंदिर के भगवान की तरह ग्राहकों को आकर्षित करेंगे. मूर्ति के दर्शन का टिकट लगेगा. और टिकट खरीदने वाले लाइट एंड साउंड शो भी देखेंगे.

जो मूर्ति श्रद्धा का केन्द्र होनी चाहिए वो टूरिज्म के ज़रिए नोट छापने का काम करेगी

इसके लिए मूर्ति के 3 किलोमीटर की दूरी पर एक टेंट सिटी भी बनाई गई है. जो 52 कमरों का 3 स्टार होटल है. जहां आप रात भर रुक भी सकते हैं. वहीं स्टैच्यू के नीचे एक म्यूजियम भी तैयार किया गया है, जहां पर सरदार पटेल की स्मृति से जुड़ी कई चीजें रखी जाएंगी. लेकिन पैसे हर जगह खर्च करने होंगे.

5700 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18,500 मीट्रिक टन रिइनफोर्समेंट बार्स से बनी इस मूर्ति में लेजर लाइटिंग लगेगी, जो इसकी रौनक हमेशा बनाए रखेगी. इस मूर्ति में ऊपर जाने का भी इंतजाम है बाकायदा एक लिफ्ट लगाई गई है. इस मूर्ति तक आपको नाव के जरिए पहुंचना होगा. जाहिर है हर चीज़ की कीमत है.

पैसा जनता ने खर्च किया है. जानते हैं कितना पैसा. हर चीज़ में पैसा, सरदार पटेल की मूर्ति के ऊपर ब्रॉन्ज की क्लियरिंग है. इस प्रोजेक्ट में एक लाख 70 हजार क्यूबिक मीटर कॉन्क्रीट लगा है. साथ ही दो हजार मीट्रिक टन ब्रॉन्ज लगाया गया है. ब्रान्ज़ मतलब कांसा. इसके अलावा 5700 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18500 मीट्रिक टन रिइनफोर्समेंट बार्स भी इसमें लगाए गए हैं.

सरदार पटेल अब नुमाइश की चीज़ होंगे

यह मूर्ति 22500 मीट्रिक टन सीमेंट से बनी है. इस विशाल प्रतिमा की ऊंचाई 182 मीटर है. इस मूर्ति को बनाने में करीब 44 महीनों का वक्त लगा है. यहां अगर ये बताएंगे कि इतने सीमेंट से एक शहर बस सकता था तो गुस्ताखी होगी.

इस लौह पुरुष की मूर्ति के निर्माण में लाखों टन लोहा और तांबा लगा है और कुछ लोहा लोगों से मांगकर लगाया है. यानी जनता का पैसा. किसान की जमीन और करोड़ों का कोराबार. सरदार पटेल अब नुमाइश की चीज़ होंगे. नुमाइश की राजनीति का दौर जो है. जो दिखता है वही तो बिकता है. इसलिए पटेल भी दिखाऊ और बिकाऊ बनाए गए हैं. श्रद्धा नहीं होगी, प्रेम नहीं होगा. टूरिज्म होगा. चमत्कार होंगे. लेज़र शो होगा. नाव की सवारी होगी, होटल होंगे कमाई होगी. देश भक्ति आप ढूंढ सकते हैं तो ढूंढ लें.

ये भी पढ़ें-

सरदार पटेल की विशालकाय प्रतिमा में शामिल है संघ और भाजपा का सपना

स्टैचू ऑफ यूनिटी गुजरात को बनाएगी और खास


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲