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भारतीय अंतरिक्ष मिशन को पहली कामयाबी दिलाने वाले राव को याद रखिएगा

    • राहुल लाल
    • Updated: 26 जुलाई, 2017 05:31 PM
  • 26 जुलाई, 2017 05:31 PM
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भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में प्रोफेसर राव की सांसों का स्पंदन कभी रुक ही नहीं सकता. अपनी अंतरिक्षीय सोच के बल पर ही वे भारत को उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास और सक्षमताओं का संबल प्रदान कर सके.

भारत को अंतरिक्ष जगत में अनंत ऊंचाइयों की ओर ले जाने वाले महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक यू आर राव का सोमवार को निधन हो गया. 1975 में आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से लेकर चंद्रयान और मंगलयान तक भारत के लगभग सभी बड़े अभियानों में राव की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी. भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट की उड़ान की कल्पना को महज 36 माह में साकार करने वाले महान वैज्ञानिक के निधन से संपूर्ण राष्ट्र को अपूरणीय क्षति हुई.

यू आर राव (10 मार्च 1932- 24 जुलाई 2017)

प्रधानमंत्री मोदी जी ने ट्वीट कर कहा कि "महान वैज्ञानिक प्रोफेसर यू आर राव के निधन से दुखी हूं. भारत के अंतरिक्ष अभियानों में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान को बैलगाड़ी व साइकिल युग से आज के आधुनिकतम भारतीय प्रौद्योगिकी के वैश्विक शिखर स्तंभ के रूप में स्थापित करने के यू आर राव प्रमुख शिल्पकार रहे. प्रो राव ने अपने कठोर मेहनत तथा मार्गदर्शन में इसरो के इस संपूर्ण विकासयात्रा को आगे बढ़ाया. भास्कर, एप्पल, रोहिणी, इनसैट-1, इनसैट-2, आईआरएस-1 ए, आईआरएस-1 बी और इस श्रेणी के अन्य उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण प्रोफेसर राव की उपलब्धियों में शामिल रहा. इस तरह भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को यू आर राव ने अपने मार्गदर्शन में उस ऊंचाई तक पहुंचाया, जहां इसरो आज भारतीय प्रोद्योगिकी शक्ति का परिचायक बन गया है.

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में प्रोफेसर राव की सांसों का स्पंदन कभी रुक ही नहीं सकता. अपनी अंतरिक्षीय सोच के बल पर ही वे भारत को उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास और सक्षमताओं का संबल प्रदान कर सके. यू आर राव की देखरेख में 1975 में पहले भारतीय आर्यभट्ट से लेकर 20...

भारत को अंतरिक्ष जगत में अनंत ऊंचाइयों की ओर ले जाने वाले महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक यू आर राव का सोमवार को निधन हो गया. 1975 में आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से लेकर चंद्रयान और मंगलयान तक भारत के लगभग सभी बड़े अभियानों में राव की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी. भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट की उड़ान की कल्पना को महज 36 माह में साकार करने वाले महान वैज्ञानिक के निधन से संपूर्ण राष्ट्र को अपूरणीय क्षति हुई.

यू आर राव (10 मार्च 1932- 24 जुलाई 2017)

प्रधानमंत्री मोदी जी ने ट्वीट कर कहा कि "महान वैज्ञानिक प्रोफेसर यू आर राव के निधन से दुखी हूं. भारत के अंतरिक्ष अभियानों में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान को बैलगाड़ी व साइकिल युग से आज के आधुनिकतम भारतीय प्रौद्योगिकी के वैश्विक शिखर स्तंभ के रूप में स्थापित करने के यू आर राव प्रमुख शिल्पकार रहे. प्रो राव ने अपने कठोर मेहनत तथा मार्गदर्शन में इसरो के इस संपूर्ण विकासयात्रा को आगे बढ़ाया. भास्कर, एप्पल, रोहिणी, इनसैट-1, इनसैट-2, आईआरएस-1 ए, आईआरएस-1 बी और इस श्रेणी के अन्य उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण प्रोफेसर राव की उपलब्धियों में शामिल रहा. इस तरह भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को यू आर राव ने अपने मार्गदर्शन में उस ऊंचाई तक पहुंचाया, जहां इसरो आज भारतीय प्रोद्योगिकी शक्ति का परिचायक बन गया है.

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में प्रोफेसर राव की सांसों का स्पंदन कभी रुक ही नहीं सकता. अपनी अंतरिक्षीय सोच के बल पर ही वे भारत को उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास और सक्षमताओं का संबल प्रदान कर सके. यू आर राव की देखरेख में 1975 में पहले भारतीय आर्यभट्ट से लेकर 20 से अधिक उपग्रहों को डिजाइन किया गया और अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया.

अंतरिक्ष में स्वदेशी उपग्रहों के भारत की भारत की सोच को उन्होंने वास्तविकता में परिवर्तित किया. राव के 1975 के आर्यभट्ट मिशन उस समय युवा देश भारत के लिए लंबी छलांग थी, जो करोड़ों भारतीयों के जीवन को सुधारने के लिए अंतरिक्ष तकनीक पर दांव लगा रहा था. मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर के बाद राव 1960 के दशक के प्रारंभ में अमेरिका गए. प्रोफेसर राव यूनिवर्सिटी ऑफ डलास और इससे पहले एमआईटी बोस्टन में सहायक प्रोफेसर थे. वर्ष 1966 में उन्हें अहमदाबाद स्थित इसरो की प्रयोगशाला फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी(पीआरएल) में प्रोफेसर के रुप में आमंत्रित किया गया.

पीआरएल बाहरी अंतरिक्ष से संबंधित कामकाज देखती है. जब भारत पहले उपग्रह आर्यभट्ट को बनाने और प्रक्षेपित करने के लिए रुस की तरफ देख रहा था, तब युवा वैज्ञानिक राव ने भारत में उपग्रह बनाने का बीड़ा उठाया. जटिल मशीनें बनाने के लिए भारत में औद्योगिक बुनियादी ढांचे की कमी होने के बावजूद राव ने आर्यभट्ट बनाकर आलोचकों को गलत साबित कर दिया. राव और उनकी टीम ने ऐसे उपकरण बनाने के लिए छोटी औद्योगिक इकाइयों के साथ काम किया, जो आर्यभट्ट के निर्माण में काफी मददगार रहे. इस प्रोद्योगिकी उपग्रह को रुस के रॉकेट की मदद से प्रक्षेपित किया गया. उनके पूर्ववर्तियों प्रोफेसर सतीश धवन और विक्रम साराभाई ने भारत का महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम बनाने के लिए बीज बोए थे, लेकिन प्रोफेसर राव ने ही उस बीज को वट वृक्ष में परिवर्तित किया, जो आज एक साथ 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर संपूर्ण विश्व को स्तब्ध कर देता है.

इस तस्वीर में 'इसरो' के उस समय को देखा जा सकता है, जब बैलगाड़ी व साइकिल से रॉकेट ले जाए जाते थे. इस स्टेज से प्रोफेसर राव ने इसरो को आज के आधुनिकतम रुप में बदला.

पिछले कुछ वर्षों से मुझे भी उनका निरंतर सान्निध्य प्राप्त हुआ. अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर बचपन से मेरी अभिरुचि रही है. बचपन में जहां 'विज्ञान प्रगति' से ज्ञान प्राप्ति होती थी, वहीं बाद में स्वयं प्रोफेसर यू आर राव से कई बार प्रत्यक्षत: अंतरिक्ष विज्ञान के सामान्य अवधारणा को समझने का मौका मिला. वैश्विक स्तर पर अति सुप्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक होने के बावजूद उनका स्वभाव काफी शांत एवं सरल था. वे युवाओं को सदैव राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करते थे. यही कारण है कि प्रोफेसर राव न केवल मेरे अपितु करोड़ों भारतीय युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं.

अंतरिक्ष विज्ञान का प्रचार-प्रसार प्रोफेसर राव दिल से करते थे. वे तब तक पढ़ाते रहते, जब तक हम जैसे जिज्ञासुओं की जिज्ञासा शांत न हो जाए. एक बार तो संध्या से मध्य रात्रि तक उनके ज्ञान प्रवाह में डुबकी लगाने का मौका मिला. मुझे काफी दुख है कि अब उन पलों की पुनरावृत्ति कभी नहीं हो सकेगी. उनसे न केवल मैंने ज्ञान की प्राप्ति की है, बल्कि पितातुल्य प्रेम की भी प्राप्ति की है. सच में, अपने अति व्यस्त जीवन में भी प्रोफेसर राव जिज्ञासुओं की जिज्ञासा को अपने ज्ञान द्वारा सदैव मिटाने का प्रयास करते थे.

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान के लिए प्रोफेसर राव को 1976 में पद्म भूषण और 2017 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. अमेरिका के सम्मानित "सैटेलाइट हॉल ऑफ फेम" में जगह पाने वाले यू आर राव पहले अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे. 1984 से 1994 तक उन्होंने इसरो चैयरमेन पद की कमान संभाली और उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष जगत को अप्रत्याशित गति प्रदान की.

भारत को स्वदेशी उपग्रह निर्माण करने योग्य बनाने में जहां यू आर राव का महत्वपूर्ण योगदान रहा, वहीं उन्होंने पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) के विकास एवं परिचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पीएसएलवी आज देश का सफलतम रॉकेट है. राव सर ने  देश में क्रायोजेनिक तकनीक विकसित करने पर जोर दिया. इस तरह प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी में उनका महत्वपूर्ण योगदान है.

महान वैज्ञानिक यू आर राव ने प्रसारण, शिक्षा, मौसम, विज्ञान, सुदूर संवेदी तंत्र और आपदा चेतावनी के क्षेत्रों में अंतरिक्ष तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का भी कार्य किया. प्रो राव अहमदाबाद में भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला की गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष और तिरुवनंतपुरम में भारतीय विज्ञान और प्रोद्योगिकी संस्थान के कुलाधिपति के रुप में अपनी सेवाएं दे रहे थे.

वर्ष 1984 में अंतरिक्ष विभाग के सचिव और अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने रॉकेट प्रौद्योगिकी के विकास में तेजी लाई, जिसके चलते एएसएलवी रॉकेट का सफल प्रक्षेपण हुआ और साथ ही 2 टन तक के उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में स्थापित कर सकने वाले पीएसएलवी का भी सफल प्रक्षेपण संभव हो सका.

महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक यू आर राव के कार्य के असर को भारत केवल अंतरिक्ष शक्ति के रुप में महसूस नहीं कर रहा है, अपितु देश के आर्थिक विकास से लेकर जीवनशैली पर इसके वृहत प्रभाव को देखा जा सकता है. इस कारण देश के संपूर्ण दूरसंचार क्षेत्र सहित इंटरनेट टेक्नोलॉजी, रिमोट सेसिंग, टेली मेडिसिन और टेली एजुकेशन क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति स्पष्टत: देखी जा सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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