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सोनम कपूर जैसी फिल्मी शादी की ख्वाहिश रखने वालों के लिए ये रियलिटी चेक है

    • सारा खान
    • Updated: 07 मई, 2018 08:02 PM
  • 07 मई, 2018 08:02 PM
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सोनम कपूर और आनंद अहूजा के जैसी धूमधाम और तामझाम वाली शादियों का आकर्षण मेहमानों के घर वापस जाने के साथ ही खत्म हो जाता है. उसके बाद आप और आपका जीवनसाथी रह जाते हैं.

सोनम कपूर और आनंद अहूजा की शादी की खबरें टीवी, अखबार से लेकर सोशल मीडिया पर छाई हुई है. इन खबरों को देखकर 'फिल्मी शादी' का सपना देखना शुरू करने वाले लोगों को पहले इसकी सच्चाई को जान लेना जरूरी है.

जब भी शादियों की बात आती है, तो युवा जोड़े हमेशा ही एक ऐसी जगह का सपना देखते हैं जहां उनकी शादी होगी, मेहमानों को खाने के लिए क्या परोसा जाएगा, सजावट कैसी होगी, शादी के कपड़े क्या होंगे और अधिक भी बहुत कुछ. ठीक वैसे ही जैसा उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों की शादियों में देखा था. और अब इंटरनेट की आसान और दुनिया के हर कोने तक पहुंच होने के साथ युवा जोड़े इस तरह की अवधारणा के और अधिक आसान शिकार बनते हैं.

आप उनसे शादी के बारे में बात करें तो किसी बच्चे की तरह वो जवाब देंगे कि "शादी सिर्फ एक ही बार होती है... इसलिए इसे तो स्पेशल होना ही चाहिए." इसके लिए वो ढेर सारे विज्ञापन और फिल्में जिम्मेदार हैं जिन्होंने इस तरह की सोच से युवाओं को लबरेज कर दिया है. इन अवधारणाओं ने इस 'सोच' को जन्म दे दिया है जो बॉलीवुड स्टाइल की शादियों की तरह शानदार, मस्ती से भरपूर सेट देखते हैं. चकाचौंध वाली सजावट देखते हैं.

सोनम कपूर - आनंद अहूजा.

यहां पर "बच्चे तो बच्चे, बाप रे बाप" वाली कहावत पूरी तरह फिट बैठती है. जब बच्चे एक भव्य शादी की ख्वाहिश जाहिर करते हैं, तो उनके माता-पिता भी इसे अपनी सामाजिक स्थिति और लोगों को दिखाने के गर्व से जोड़ लेते हैं. इस तरह की सोच ने रिश्तों और रिश्तेदारियों में दहेज की मांगों और अपराध को बढ़ाया है.

दुल्हा- दुल्हन के अलावा उनके परिवार वाले भी ये सोचकर अपने बजट को बढ़ाते रहते हैं कि ये जीवन में सिर्फ "एक बार" आने वाला पल है. अगर आप या आपका कोई दोस्त जीवन के दूसरे पड़ाव पर पूरे तामझाम के साथ कदम रखने की तैयारी...

सोनम कपूर और आनंद अहूजा की शादी की खबरें टीवी, अखबार से लेकर सोशल मीडिया पर छाई हुई है. इन खबरों को देखकर 'फिल्मी शादी' का सपना देखना शुरू करने वाले लोगों को पहले इसकी सच्चाई को जान लेना जरूरी है.

जब भी शादियों की बात आती है, तो युवा जोड़े हमेशा ही एक ऐसी जगह का सपना देखते हैं जहां उनकी शादी होगी, मेहमानों को खाने के लिए क्या परोसा जाएगा, सजावट कैसी होगी, शादी के कपड़े क्या होंगे और अधिक भी बहुत कुछ. ठीक वैसे ही जैसा उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों की शादियों में देखा था. और अब इंटरनेट की आसान और दुनिया के हर कोने तक पहुंच होने के साथ युवा जोड़े इस तरह की अवधारणा के और अधिक आसान शिकार बनते हैं.

आप उनसे शादी के बारे में बात करें तो किसी बच्चे की तरह वो जवाब देंगे कि "शादी सिर्फ एक ही बार होती है... इसलिए इसे तो स्पेशल होना ही चाहिए." इसके लिए वो ढेर सारे विज्ञापन और फिल्में जिम्मेदार हैं जिन्होंने इस तरह की सोच से युवाओं को लबरेज कर दिया है. इन अवधारणाओं ने इस 'सोच' को जन्म दे दिया है जो बॉलीवुड स्टाइल की शादियों की तरह शानदार, मस्ती से भरपूर सेट देखते हैं. चकाचौंध वाली सजावट देखते हैं.

सोनम कपूर - आनंद अहूजा.

यहां पर "बच्चे तो बच्चे, बाप रे बाप" वाली कहावत पूरी तरह फिट बैठती है. जब बच्चे एक भव्य शादी की ख्वाहिश जाहिर करते हैं, तो उनके माता-पिता भी इसे अपनी सामाजिक स्थिति और लोगों को दिखाने के गर्व से जोड़ लेते हैं. इस तरह की सोच ने रिश्तों और रिश्तेदारियों में दहेज की मांगों और अपराध को बढ़ाया है.

दुल्हा- दुल्हन के अलावा उनके परिवार वाले भी ये सोचकर अपने बजट को बढ़ाते रहते हैं कि ये जीवन में सिर्फ "एक बार" आने वाला पल है. अगर आप या आपका कोई दोस्त जीवन के दूसरे पड़ाव पर पूरे तामझाम के साथ कदम रखने की तैयारी कर रहे हैं, तो थोड़ी देर के लिए रुकें, बैठें और सोचें. मुझे पता है कि ये समय दुनिया को बदलने और सामाजिक सेवा करने के बारे में बात करने का नहीं है. लेकिन फिर भी थोड़ा विराम लें. मैं आपको अपनी शादी में कम खर्च करके दुनिया को बदलने के लिए नहीं कह रही हूं. इसके बदले खर्च पर फिर से सोचें. अगर आप अपर क्लास या अमीर घर से नहीं आते हैं तो यकीन मानिए आपका भविष्य खतरे में है.

जैसे बॉलीवुड की कई फिल्में आपको बड़े बड़े सपने दिखाते हैं वैसे ही वो वास्तविकता से भी आपका परिचय कराते हैं. आप फिल्मों में दिखाए बाद वाले हिस्से को अनदेखा कर देते हैं. आप केवल उसके चमक-दमक वाले हिस्से को देखते हैं. ऐसी कई लड़कियां और लड़के हो सकते हैं जो अपने स्टाइल आइकन- सोनम कपूर और आनंद अहुजा, दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. शादी में उनके द्वारा पहने गए कपड़ों और जूतों की नकल करने पर फिर वो एक अच्छी खासी रकम खर्च करेंगे. जो कुछ आप भी अपनी शादी में पहनने जा रहे हैं उस पर काफी अनुचित राशि खर्च करने से आपकी जेब पर तो फर्क पड़ेगा ही साथ ही आगे के जीवन में भी आर्थिक मुश्किलें खड़ी कर सकता है. वैसे भी सिर्फ "एक" ही बार पहने जाने वाले उन कपड़ो पर बेहिसाब खर्च करना कहीं से भी समझदारी नहीं है.

दिखावा चाहिए या फिर सुखी जीवन फैसला आपका है

अब आप पूछेंगे कि कैसे? तो इसके लिए आप अपने आप से कुछ सवालों के जवाब मांगे. मैं तो सुझाव देती हूं कि अपने सवालों और जवाबों को आप कहीं लिख लें. इससे आपके लिए उनका विश्लेषण करना बेहतर होगा. तो वो प्रश्न हैं:

1- आप उस व्यक्ति से शादी एक सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए करना चाहते हैं?

2- शादी समारोहों के बाद आपके पास कितना पैसा बचेगा? क्या ये रकम खर्चे के लिए पर्याप्त होगी?

3- क्या आप अपने साथी के साथ सिर्फ रोजमर्रा के जीवन के खर्चे और उन्हें पूरा करने में व्यस्त रहना चाहते हैं या फिर दोनों साथ मिलकर तरक्की करना चाहते हैं?

4- क्या आप हमेशा पैसों की तंगी में रहना चाहते हैं या फिर आर्थिक रूप से स्थिर होना चाहते हैं?

5- क्या आप अपनी शादी को शाही बनाकर सारे पैसे खर्च कर देना चाहते हैं या फिर सामान्य तरीके से शादी करने के बाद बचे हुए पैसों को अपने वर्ल्ड टूर या कहीं घूमने के सपने को पूरा करना चाहेंगे?

6- क्या आप लोगों को सिर्फ दिखाना चाहते हैं या फिर थोड़ी सी बुद्धिमानी से काम करना चाहते हैं?

7- क्या आप 'जिंदगी में एक बार' आने वाले इस अवसर के लिए खरीदारी करना चाहते हैं या फिर जीवन के बाद के हिस्से में कुछ आवश्यक खरीदारी के लिए भी कुछ बचाना चाहते हैं?

8- एक ऐसे देश में जहां भूख से हर साल 25 लाख से अधिक लोग मर जाते हैं, क्या आप चाहते हैं कि आपके माता-पिता ये दिखावा करें कि आपकी शादी में प्रति प्लेट खाना 3000 रुपए का था? और यहां आपको अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से भी जुड़ना चाहिए. अगर आपके पास इतना पैसा है, तो फूड बैंकों में इसे निवेश करें या फिर कुछ परिवारों का खर्च उठाएं. दोनों में बेहतर क्या है? जीवन में मिलने वाले अनगिनत आशीर्वाद या फिर जीवन को तबाह करना?

असल जीवन के इन कुछ दंपतियों की वास्तविक कहानियां आपको एक बार सोचने पर जरुर मजबूर कर देंगी.

- 2017 में हिमांशु सक्सेना और पंखुड़ी सक्सेना एक सादे समारोह में शादी के बंधन में बंध गए. उन्होंने जहां तक हो सके अपने खर्चों को कम करने की कोशिश की. उन्होंने मेहमानों से भी उपहार में कुछ भी नहीं देने के लिए कहा. लेकिन फिर भी, मेहमानों ने उन्हें शगुन दिया. नवविवाहितों ने शगुन राशि का 50 प्रतिशत एक एनजीओ को दान कर दिया.

- अभय देवारे और प्रीति कुंभारे की शादी को याद दिलाना भी जरुरी है. इस दंपति ने आत्महत्या करने वाले किसानों के दस परिवार को 20,000 रुपए दान में दिए. 2016 में उनकी शादी हुई थी. तब इन दोनों अमरावती के पांच पुस्तकालयों में 52,000 किताबें दान की थीं.

बॉलीवुड स्टाइल की शादियां भले ही फोटो या वीडियो में अच्छी लग सकती हैं, और कुछ लोगों के लिए कोई बड़ी बात भी नहीं हो सकती है. लेकिन कई लोगों के सफल भविष्य के लिए यह बिल्कुल अच्छा नहीं है. अपनी सामाजिक स्थिति और 'लोग क्या कहेंगे' की चिंता से बाहर आइए.

धूमधाम और तामझाम वाली शादियों का आकर्षण मेहमानों के घर वापस जाने के साथ ही खत्म हो जाता है. उसके बाद आप और आपका जीवनसाथी रह जाते हैं. समाज में व्याप्त बुराई को समझने और उन्हें नकारने की जरूरत है. यह फैसला पूरी तरह से उन जोड़ों के फैसले पर निर्भर करता है जिनकी शादी होने वाली है कि अपना बाकी जीवन वो कैसे व्यतीत करें. लेकिन उन्हें दिखावे से दूर होना होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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