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सोनाली ने कहा लड़कियां आलसी हैं उन्हें अच्छी नौकरी वाला पति चाहिए, इस बात के कितने मायने हैं?

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 01 अप्रिल, 2023 05:26 PM
  • 01 अप्रिल, 2023 05:26 PM
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लड़कियों के दिमाग में भी यही होता है कि जब च्वाइस है तो फिर कंप्रोमाइज क्यों करें? वह भी अपने लिए कंफर्ट का ही चुनाव करती हैं. जब उनके पास ऑप्शन है तो वे शादी के बाद क्यों पूरे खानदान का खाना बनाएं?

क्या आप मानते हैं कि भारत में बहुत सारी लड़कियां आलसी हैं? उन्हें सिर्फ अच्छी नौकरी वाला बॉयफ्रेंड या पति चाहिए? जिसके पास घर हो. गाड़ी हो. जो उन्हें ऐशो आराम की जिंदगी दे सके. अब आप माने या ना माने मगर अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी (Sonali Kulkarni)  का तो यही कहना है. हालांकि उन्होंने आलसी कुछ ज्यादा ही कह दिया. इसकी जगह वे कंफर्ट शब्द का इस्तेमाल कर सकती थीं.

सोनाली कुलकर्णी ने जो कहा है वह पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन इसके बहुत सारे डाइमेंशन हैं. इस दो वाक्य में लड़के औऱ लड़कियों की जिदंगी के कई पहलू शामिल हो जाते हैं. अगर इनकी बात सही है तो फिर उन लड़कियों का क्या जो दोहरी मजदूरी कर रही हैं. वे बाहर जाकर काम भी करती हैं औऱ घर भी संभालती हैं फिर भी उन्हें घर पर ध्यान ना देने के ताने मिलते हैं.

हां ये बात उन्होंने सही है कि अपने घर में ऐसी स्त्री का निर्माण कीजिए जो सेल्फ डिपेंटेंड हो. भारत देश में कुछ महिलाएं आराम चाह सकती हैं लेकिन सब नहीं. हम एक ही तराजू में सभी को तौल नहीं सकते हैं. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि आराम चाहने वाली महिलाओं की संख्या ना के बराबर है. ये दोनों बातें अपनी-अपनी जगह सही हैं.

सोनाली कुलकर्णी ने जो कहा है वह पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन इसके बहुत सारे डाइमेंशन हैं

मैं अपने साथ की ऐसी बहुत सारी लड़कियों को जानती हूं जो पढ़ने में अव्वल थीं. जो क्लास में रैंक लाती थीं. जो कॉलेज टॉप किया करती थीं. मगर शायद उनकी पढ़ाई का एक ही मकसद था अच्छे घर में शादी. कई लड़कियां ऐसी भी थीं जो अपने शहर से दूर जाकर जॉब के लिए कंपटीशन की तैयारी करना चाहती थीं. कई बड़े शाहर जाकर आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती थीं मगर उन्हें घरवालों की परमिशन नहीं मिली. उनमें से कुछ लड़कियों को पता था कि कॉलेज खत्म...

क्या आप मानते हैं कि भारत में बहुत सारी लड़कियां आलसी हैं? उन्हें सिर्फ अच्छी नौकरी वाला बॉयफ्रेंड या पति चाहिए? जिसके पास घर हो. गाड़ी हो. जो उन्हें ऐशो आराम की जिंदगी दे सके. अब आप माने या ना माने मगर अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी (Sonali Kulkarni)  का तो यही कहना है. हालांकि उन्होंने आलसी कुछ ज्यादा ही कह दिया. इसकी जगह वे कंफर्ट शब्द का इस्तेमाल कर सकती थीं.

सोनाली कुलकर्णी ने जो कहा है वह पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन इसके बहुत सारे डाइमेंशन हैं. इस दो वाक्य में लड़के औऱ लड़कियों की जिदंगी के कई पहलू शामिल हो जाते हैं. अगर इनकी बात सही है तो फिर उन लड़कियों का क्या जो दोहरी मजदूरी कर रही हैं. वे बाहर जाकर काम भी करती हैं औऱ घर भी संभालती हैं फिर भी उन्हें घर पर ध्यान ना देने के ताने मिलते हैं.

हां ये बात उन्होंने सही है कि अपने घर में ऐसी स्त्री का निर्माण कीजिए जो सेल्फ डिपेंटेंड हो. भारत देश में कुछ महिलाएं आराम चाह सकती हैं लेकिन सब नहीं. हम एक ही तराजू में सभी को तौल नहीं सकते हैं. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि आराम चाहने वाली महिलाओं की संख्या ना के बराबर है. ये दोनों बातें अपनी-अपनी जगह सही हैं.

सोनाली कुलकर्णी ने जो कहा है वह पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन इसके बहुत सारे डाइमेंशन हैं

मैं अपने साथ की ऐसी बहुत सारी लड़कियों को जानती हूं जो पढ़ने में अव्वल थीं. जो क्लास में रैंक लाती थीं. जो कॉलेज टॉप किया करती थीं. मगर शायद उनकी पढ़ाई का एक ही मकसद था अच्छे घर में शादी. कई लड़कियां ऐसी भी थीं जो अपने शहर से दूर जाकर जॉब के लिए कंपटीशन की तैयारी करना चाहती थीं. कई बड़े शाहर जाकर आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती थीं मगर उन्हें घरवालों की परमिशन नहीं मिली. उनमें से कुछ लड़कियों को पता था कि कॉलेज खत्म होते ही उनकी शादी करा दी जाएगी और हुआ भी ऐसा ही.

अब जिन लड़कियों को आगे बढ़ने का मौका मिला आज वे कामयाब हैं. अपनी जिंदगी में कुछ कर रही हैं. वरना उनमें से अधिकतर लड़कियां गुमनाम जिंदगी जी रही हैं. अपना घर संभाल रही हैं. वे टॉप करने वाली लड़कियां आज कहीं गायब सी हो गईं हैं, समझ नहीं आता कि इसमें गलती उनकी है या उनके घऱवालों की? हो सकता है कि उनके माता-पिता को लगा हो कि किसी अच्छे घर में शादी हो जाए यही सही है. अपने ससुराल जाकर राज करेगी तो कुछ लड़कियों को भी लगा हो कि जब शादी की करनी है तो अच्छे घर में क्यों ना की जाए. चलिए अब कुछ पहलुओं पर बात कर लेते हैं.

हो सकता है कि सोनाली कुलकर्णी की बात सुनकर कुछ लड़के गदगद हो गए हैं. उन्हें लगा हो कि चलो कोई तो है जो हमारी पीड़ा को समझता है. सही है. उनका सोचना भी सही है मगर प्रेक्टकली जब वे भी अपनी बहन या बेटी के लिए रिश्ता खोजने जाएंगे तो सबसे पहले लड़के की सैलरी ही पूछेंगे और इसके ही कंफर्ट कहते हैं, खैर जाने दीजिए.

लड़की के पास लाइफ को बेहतर बनाने की च्वाइस होती है

लड़कियों के पास अपनी दूसरी जिंदगी चुनने का ऑप्शन होता है. अरेंज मैरिज में घरवाले चाहते हैं कि अपने से बेहतर घऱ में बेटी को विदा करें. वो हमारे साथ जैसे तैसे जी ली मगर अब जब उसके पास मौका है तो हम उसके लिए बढ़ियां घर का ही चुनाव करें. ताकि उसे अपने ससुराल में किसी भी तरह का कष्ट ना हो. भले कितनी ही दहेज क्यों ना देना पड़ जाए. कई बार तो मोटा लड़का भी सिर्फ इसलिए चल जाता है क्योंकि उसके पास पैसा होता है. जब बेहतर विकल्प (पैसे वाला घर) मिल सकता है तो खऱाब का चुनाव क्यों करें? 

मान लीजिए किसी अमीर परिवार की बेटी की शादी किसी गरीब घऱ के लड़के से होगी नहीं. कम से कम वे अपने बराबरी वाले घर में तो शादी कराएंगे ही. इस हिसाब से जो वर्ग जिस लायक होता है उस घर की बेटी की शादी भी उसी हिसाब से होती है. कई शादियां तो सिर्फ इसलिए कट जाती हैं, क्योंकि लड़के का परिवार बड़ा होता है. लड़कियों के दिमाग में भी यही होता है कि जब च्वाइस है तो फिर कंप्रोमाइज क्यों करें? वह भी अपने लिए कंफर्ट का ही चुनाव करती हैं. जब उसके पास ऑप्शन है तो वह शादी के बाद क्यों पूरे खानदान का खाना बनाए?

एक बात यह भी है कि भले ही लड़कियां अपने हिसाब से पैसे वाला ससुराल चुन सकती हैं, हालांकि वे पति के इमोशन को कंट्रोल नहीं कर सकती हैं. मान लीजिए पैसा होने के बावजूद पति उन पर ध्यान ना दे तो? वह पत्नी से मतलब ही ना रखे तो? पत्नी को जीवनसाथी वाला फील महसूस ना हो तो, सारा पैसा धरा का धरा रह जाएगा औऱ वह खुशी-खुशी लाइफ नहीं जी सकेगी.

लड़कों के पास पैसा कमाने के शिवा कोई ऑप्शन नहीं होता

शादी के बाद लड़की को अपने घर से दूसरे के घर जाना होता है. जबकि लड़का अपने ही घर में रहता है. असल में लड़कों के पास कोई च्वाइस नहीं होती है. वे 18, 19 साल की होते ही यह जिम्मेदारी समझने लगते हैं कि उसे रोजगार के लिए कुछ ना कुछ करना ही होगा औऱ फिर नौकरी के लिए भटकने लगते हैं. उनके पास काम करने के अवाला औऱ कोई च्वाइस नहीं होती है. अगर वे घर में बैठ जाएं तो सब ठप्प हो जाएगा. लोग भी ताने मारेंगे कि करता क्या है? निठल्लू शब्द ऐसे लड़कों के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है जो कुछ नहीं करते हैं. वे नौकरी छोड़ नहीं सकते क्योंकि उनके ऊपर परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी होती है. वे नौकरी से ब्रेक तभी ले सकते हैं जब पत्नी अच्छा कमाती हो? उसमें भी यह ताना मिल जाएगा कि पत्नी की कमाई खाता है, जोरु का गुलाम है. हां तो यह बात सच है कि पुरुषों के पास पैसा कमाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. उनके ऊपर पत्नी की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. महिला अगर जॉब से ब्रेक ले तो वह कह सकती है कि घर संभाल रही थी, बच्चे की परवरिश कर रही थी मगर पुरुष तो यह भी नहीं कह सकता.

बहुत सारी महिलाएं डबल मेहनत करती हैं

जो महिलाएं घर औऱ बाहर दोनों जगहों पर काम करती हैं उन्हें भी इगनोर नहीं किया जा सकता है. कई सारी लड़कियां शादी से पहले ही अपने घर परिवार से दूर हो जाती हैं, ताकि वे अपनी लाइफ में कुछ बेहतर कर सकें. सारी लड़कियों को आराम नहीं चाहिए होता है. उन्हें अपना नाम चाहिए होता है और भारत में ऐसी लड़कियों की संख्या आलसी लड़कियों से कहीं ज्यादा है. वे मेहनत करती हैं. दो-दो घंटे ट्रेवल करती हैं ताकि 9 घंटे की जॉब कर सकें. सुबह खाना बनाकर आती हैं और फिर घर जाकर रसोई में घुस जाती हैं. उन्हें कहा भी जाता है कि क्या 10-20 हजार के लिए परेशान होती हो छोड़ दो नौकरी, मगर वे लगी रहती हैं खुद को साबित करने में. ऐसी लड़कियों के बारे में भी बात की जानी चाहिए.

उन महिलाओं का क्या जिन्हें काम करने की परमिशन नहीं है

सोनाली कुलकर्णी ने कहा है कि, उस लड़की में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो कह पाए कि मैं क्या करूंगी जब तुम मुझसे शादी करोगे? मगर वे भूल गईं कि ऐसी बहुत सारी लड़कियां हैं जो शादी के बाद नौकरी करना चाहती हैं मगर उनके ससुराल के लोग उसे बाहर जाकर काम करने की परमिशन नहीं देते हैं. कई घरों में लड़की अपना फैसला खुद नहीं ले पाती हैं. उसे वही करना पड़ता है जो पति औऱ सास-ससुर की मर्जी होती है. इसके उलट कई घरों में ऐसा भी होता है कि लड़की नौकरी नहीं करना चाहती मगर ससुराल वाले उसे नौकरी करने के लिए मजबूर करते हैं.

वे चाहते हैं कि वह घर का सारा काम भी करे और 4 पैसे भी कमा ले. अगर वह नौकरी करती है तो क्या बाकी घऱवालों को घर के कामों में उसकी मदद नहीं करानी चाहिए? तो कौन सी बात सही है और कौन सी बात गलत यह हर व्यक्ति के सिचुएशन पर निर्भर करती है. ऐसा भी नहीं है कि लड़कियों की शादी ऐसे घर में हो जाती है जिनके घर में नौकर-चाकर रहते ही हैं. कई घऱवालें पैसे वाले होकर भी घर में कामवाली बाई नहीं लगाते, क्योंकि उन्हें लगता है कि बहू क्या करेगी? भारत देश में हर वर्ग के लोग रहते हैं, औऱ हर वर्ग में काफी अंतर होता है. उनके रहन-सहन में अंतर होता है. सारी लड़कियां शादी के बाद सिर्फ अपने पति के साथ नहीं रहती हैं, जबकि पूरे परिवार का ख्याल रखती हैं. तो सवाल ये है कि क्या बाहर काम करना ही आसली नहीं होने की निशानी है? जो लड़कियां शादी के बाद घऱ में खटती हैं उनका क्या?

ये बात सही है कि देश में ऐसी महिलाओं की संख्या है जो किसी पैसे वाले से शादी करना चाहती हैं, क्योंकि उनके पास इसका विकल्प है. मगर ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है जिन्हें ना शिक्षा की आजादी है ना नौकरी करने की. आजकल बहुत सी महिलाएं अपने 30वें साल में भी इसलिए अकेली हैं क्योंकि उन्होंने शादी से ज्यादा अपने करियर को महत्व दिया है. वे पार्टनर के रूप में किसी पैसे वाले को नहीं बल्कि साथ देने वाले को चाहती हैं. वे सेल्फ डिपेंड होकर अपनी लाइफ अपने शर्तों पर जानी चाहती हैं ना कि किसी की गुलाम बनकर...एक बात और दहेज लेने वाले आज भी शादी का खर्चा, प्री वेडिंग शूट और हनीमून का अधिकतर खर्चा लड़की से वसूलते हैं. दूसरी बात ये कि जिन लड़कियों को उनके पति पाल रहे हैं उन्हें सोनाली की बात चुभ सकती है. इस तरह इस बात के कई पहलू हैं. वैसे, इस बारे में आपकी राय क्या है? 

देखें सोनाली कुलकर्णी ने और क्या कहा?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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