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'सिमरूं मैं पी का नाम'... और नुसरत की आवाज आत्मा में चली गई

    • पल्लवी विनोद
    • Updated: 26 अप्रिल, 2022 02:54 PM
  • 26 अप्रिल, 2022 02:54 PM
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सिमरूं मैं पी का नाम... नुसरत साहब जानते थे मीरा के आंसू समूची धरती को डुबा देंगे और इस तरह उन्होंने इस दुनिया को बचा लिया. लोग कहते हैं मीरा की मृत्यु कभी हुई ही नहीं. वो कृष्ण में ही समा गयीं थीं. आज भी वंशी की धुन में मीरा का प्रेम हर दिशा में फैल रहा है.

सिमरूं मैं पी का नाम... चौदहवीं शताब्दी में जन्मी मीरा बाई ने जब कृष्ण भक्ति में इस गाने को लिखा था तब उन्हें कहां पता था कि उन्नीसवीं शताब्दी में उनके देश की सरहद के उस पार रहने वाला एक कलाकार इस गाने को अमर कर देगा. संगीत से मुहब्बत करने वाला ऐसा कोई शख़्स नहीं है जिसने प्रेम में डूबा ये गीत ना सुना होगा. जीवन की पगडंडियों पर चलते-चलते थके मन को विश्राम देता यह गीत हर किसी के दिल में बस जाता है. इसमें पिरोए प्रेम के भाव इतने निर्मल हैं कि मीरा कहती हैं…

सिमरूं मैं पी का नाम गाते हुए नुसरत की आवाज ऐसी है जो सीधे आत्मा में उतरती है

'जबसे राधा श्याम के नैन हुए हैं चार

श्याम बने हैं राधिका

राधा बन गयी शाम'

इसी अहसास को अपनी रूहानी आवाज़ में उतारते नुसरत जी जब आलाप लेते हैं तो लगता है कि समय रुक गया है और मीरा कृष्ण में समाहित हो रही हैं. ऐसा जादू सिर्फ़ संगीत ही जगा सकता है कि सुनने वाला सुर और लय की संगत में डूबना चाहे और शब्दों के भाव की नैया उसे भव सागर से पार लगा आए. उसके ताल की थाप इतनी मधुर है कि मुहब्बत के गांव में बसे लोग एकतारा लिए कृष्णा को अपने-अपने नामों से पुकार रहे हैं. तुम भूलकर भी उनसे, उनका धर्म मत पूछना वो तुम्हें देख ऐसे मुस्कुराएंगे, जैसे तुम सुदूर ग्रह से उतरे प्राणी हो. इसी गांव की पुजारी मीरा बाई ने हर रस्म, हर बंधन तोड़ कर लिखा था. 

'प्रीतम का कुछ दोष नहीं है

वो तो है निर्मोह

अपने आप से बातें करके

हो गयी मैं बदनाम'

इश्क़ में डूबे लोगों बदनामी से कब डर लगा है. मिर्ज़ा ने तो ये तक कह...

सिमरूं मैं पी का नाम... चौदहवीं शताब्दी में जन्मी मीरा बाई ने जब कृष्ण भक्ति में इस गाने को लिखा था तब उन्हें कहां पता था कि उन्नीसवीं शताब्दी में उनके देश की सरहद के उस पार रहने वाला एक कलाकार इस गाने को अमर कर देगा. संगीत से मुहब्बत करने वाला ऐसा कोई शख़्स नहीं है जिसने प्रेम में डूबा ये गीत ना सुना होगा. जीवन की पगडंडियों पर चलते-चलते थके मन को विश्राम देता यह गीत हर किसी के दिल में बस जाता है. इसमें पिरोए प्रेम के भाव इतने निर्मल हैं कि मीरा कहती हैं…

सिमरूं मैं पी का नाम गाते हुए नुसरत की आवाज ऐसी है जो सीधे आत्मा में उतरती है

'जबसे राधा श्याम के नैन हुए हैं चार

श्याम बने हैं राधिका

राधा बन गयी शाम'

इसी अहसास को अपनी रूहानी आवाज़ में उतारते नुसरत जी जब आलाप लेते हैं तो लगता है कि समय रुक गया है और मीरा कृष्ण में समाहित हो रही हैं. ऐसा जादू सिर्फ़ संगीत ही जगा सकता है कि सुनने वाला सुर और लय की संगत में डूबना चाहे और शब्दों के भाव की नैया उसे भव सागर से पार लगा आए. उसके ताल की थाप इतनी मधुर है कि मुहब्बत के गांव में बसे लोग एकतारा लिए कृष्णा को अपने-अपने नामों से पुकार रहे हैं. तुम भूलकर भी उनसे, उनका धर्म मत पूछना वो तुम्हें देख ऐसे मुस्कुराएंगे, जैसे तुम सुदूर ग्रह से उतरे प्राणी हो. इसी गांव की पुजारी मीरा बाई ने हर रस्म, हर बंधन तोड़ कर लिखा था. 

'प्रीतम का कुछ दोष नहीं है

वो तो है निर्मोह

अपने आप से बातें करके

हो गयी मैं बदनाम'

इश्क़ में डूबे लोगों बदनामी से कब डर लगा है. मिर्ज़ा ने तो ये तक कह दिया…

'जबकि तुझ बिन नहीं कोई मौजूदफिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है'

कला और संगीत के प्रेमी भी तुम्हारी नफ़रत फैलाती बातों से कहां डरते हैं. वो जानते हैं ऊपर बैठा ख़ुदा हर इंसान के रूप में छिपा है. तो रहीम के भेष में अपने श्याम को नफ़रत की नज़र से कैसे देखें? अगर वो दुश्मन है तो भी उसे अज़ीज़ है. वो जानते हैं जब-जब कोई नुसरत मुहब्बत के सुर लगा कर कहेगा.

'नील गगन से भी परे सावंरिया का गांव'

दर्शन जल की कामना पत रखियो हे राम' तब-तब मीरा की आंखों से आंसू निकल आएंगे. प्रेम में डूबे इन आंसुओं का भार ये धरती कहां उठा पाएगी. वो कभी कबीर को, कभी रूमी को मुहब्बत का संदेश देने भेजती रहेगी.

जिस दुनिया की हर ज़ुबान में संगीत, कला और साहित्य के ज़रिए प्रेम को फैलाया गया है. उसी दुनिया में नफ़रत भरी बातें बहुत परेशान करती हैं. ऐसी स्थिति में जब आस-पास होती बातों से मन घबराने लगे, मानव मन को सुर, लय, ताल में बहती ईश्वर की ख़ुशबू में बहने दो. महसूस करो उस दृश्य को जिसमें कृष्ण मीरा के भजन सुनकर मुस्कुरा रहे हैं. तभी मीरा का गला भर गया और नुसरत आलाप लेने लगे.

मीरा के मन में वात्सल्य उमड़ आया और वो मंत्र मुग्ध होकर मुस्कुराने लगीं. नुसरत साहब जानते थे मीरा के आंसू समूची धरती को डुबा देंगे और इस तरह उन्होंने इस दुनिया को बचा लिया. लोग कहते हैं मीरा की मृत्यु कभी हुई ही नहीं. वो कृष्ण में ही समा गयीं थीं. आज भी वंशी की धुन में मीरा का प्रेम हर दिशा में फैल रहा है.

इस आवाज़ को सुनो, हर पवित्र ध्वनि में मीरा के सुर समाहित हो गए हैं. अज़ान की आवाज़ से सुबह की शुरुआत करते बाशिंदों हर ओर मुहब्बत की दुआएं  फूंको. बारूद और रक्त की गंध से धरती का दम घुट रहा है. तुम भक्ति और प्रेम का लोबान जलाओ, उसकी ख़ुशबू से इस दुनिया को पवित्र कर दो. जब तक मुहब्बत से लबरेज़ सुर, इश्क़ की स्याही में उतरते रहेंगे ये धरती मुस्कुराती रहेगी. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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