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अपराधी कौन है ? राधे मां, SHO या वो तस्‍वीर...

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 05 अक्टूबर, 2017 07:23 PM
  • 05 अक्टूबर, 2017 07:23 PM
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राधे मां को थानेदार की कुर्सी पर बैठाने वाले SHO संजय शर्मा को सस्‍पेंड कर दिया गया है. लेकिन,गणमान्‍य लोगों द्वारा बाबाओं की चाकरी कोई नई और अनूठी बात तो नहीं है ?

कुर्सी की मर्यादा का उल्लेख नौकरशाही के कायदों में है. दिल्ली पुलिस के एक SHO संजय शर्मा इसी मर्यादा के उल्लंघन के आरोपी हैं. उन्होंने थानेदार की कुर्सी पर सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां जैसी विवादास्पद महिला को बैठा दिया. राधे मां के बगल में हाथ जोड़े खड़े SHO की तस्वीर जब मीडिया में आई तो बवाल मच गया. लेकिन, क्या वाकई SHO दोषी है ?

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बलात्कार के आरोप में जेल में डाले गए गुरमीत राम रहीम का मामला यदि इतना ताजा नहीं होता तो शायद विवेक विहार थाने के SHO संजय शर्मा पर इतना बवाल न कट रहा होता. क्योंकि आमतौर पर तो नेता, अफसर, साधारण कर्मचारी से लेकर देश के आम रहवासी तक सभी इन बाबाओं या स्वघोषित धर्मगुरुओं के आसपास मंडराते दिख जाएंगे. सबके अपने-अपने कारण होते हैं. कोई इस उम्मीद में आता है कि ये 'गुरु' लोग उनके दुख दूर कर देंगे. किसी को लगता है कि इनकी वजह से ही उनका कल्याण हुआ है. कोई मानता है कि ये चमत्कारी हैं और इनकी छत्रछाया में रहने से ही उनका जीवन महफूज रहेगा.

संजय शर्मा कोई अकेला भक्त तो नहीं?

मैंने कई लोगों को देखा है जो अपने दिन की शुरुआत किसी देवी-देवता के दर्शन के बाद ही करते हैं. दफ्तरों में देवी-देवताओं के साथ किसी मॉडर्न बाबा या गुरु मां की तस्वीर आप टेबल या दीवारों पर लगी पाएंगे. यदि इस सबका कारण पूछेंगे तो आपको चमत्कार के एक से बढ़कर एक किस्से भी सुनने को मिलेंगे. मेरे एक दोस्त बताते हैं कि एक बार उनकी मोटरसाईकिल चोरी हो गई थी. पुलिस खोजती रही, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. आखिर उनके आराध्यक बाबा ने बताया कि गाड़ी किस दिशा में और किस इलाके में खड़ी है. ये किस्सा बताते-बताते उनकी आंख बंद हो जाती है. वे हाथ जोड़ लेते हैं. और मन ही मन अपने आराध्यक को धन्यावाद देते हैं. यदि मेरे दोस्त की बात मानूं तो ये उस बाबा की ही 'कृपा' है कि आज उसकी मोटरसाइकिल उसके घर में खड़ी है. तो सांप-बिच्छु के काटने से लेकर दुख-आपदा से निपटने तक का इलाज इन्हीं बाबाओं के पास है.

कुर्सी की मर्यादा का उल्लेख नौकरशाही के कायदों में है. दिल्ली पुलिस के एक SHO संजय शर्मा इसी मर्यादा के उल्लंघन के आरोपी हैं. उन्होंने थानेदार की कुर्सी पर सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां जैसी विवादास्पद महिला को बैठा दिया. राधे मां के बगल में हाथ जोड़े खड़े SHO की तस्वीर जब मीडिया में आई तो बवाल मच गया. लेकिन, क्या वाकई SHO दोषी है ?

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बलात्कार के आरोप में जेल में डाले गए गुरमीत राम रहीम का मामला यदि इतना ताजा नहीं होता तो शायद विवेक विहार थाने के SHO संजय शर्मा पर इतना बवाल न कट रहा होता. क्योंकि आमतौर पर तो नेता, अफसर, साधारण कर्मचारी से लेकर देश के आम रहवासी तक सभी इन बाबाओं या स्वघोषित धर्मगुरुओं के आसपास मंडराते दिख जाएंगे. सबके अपने-अपने कारण होते हैं. कोई इस उम्मीद में आता है कि ये 'गुरु' लोग उनके दुख दूर कर देंगे. किसी को लगता है कि इनकी वजह से ही उनका कल्याण हुआ है. कोई मानता है कि ये चमत्कारी हैं और इनकी छत्रछाया में रहने से ही उनका जीवन महफूज रहेगा.

संजय शर्मा कोई अकेला भक्त तो नहीं?

मैंने कई लोगों को देखा है जो अपने दिन की शुरुआत किसी देवी-देवता के दर्शन के बाद ही करते हैं. दफ्तरों में देवी-देवताओं के साथ किसी मॉडर्न बाबा या गुरु मां की तस्वीर आप टेबल या दीवारों पर लगी पाएंगे. यदि इस सबका कारण पूछेंगे तो आपको चमत्कार के एक से बढ़कर एक किस्से भी सुनने को मिलेंगे. मेरे एक दोस्त बताते हैं कि एक बार उनकी मोटरसाईकिल चोरी हो गई थी. पुलिस खोजती रही, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. आखिर उनके आराध्यक बाबा ने बताया कि गाड़ी किस दिशा में और किस इलाके में खड़ी है. ये किस्सा बताते-बताते उनकी आंख बंद हो जाती है. वे हाथ जोड़ लेते हैं. और मन ही मन अपने आराध्यक को धन्यावाद देते हैं. यदि मेरे दोस्त की बात मानूं तो ये उस बाबा की ही 'कृपा' है कि आज उसकी मोटरसाइकिल उसके घर में खड़ी है. तो सांप-बिच्छु के काटने से लेकर दुख-आपदा से निपटने तक का इलाज इन्हीं बाबाओं के पास है.

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SHO संजय शर्मा के बारे में कोई राय कायम करने से पहले हमें यह सोच लेना चाहिए कि देश के नामी-गिरामी लोग बाबाओं के फेर में फंस चुके हैं. इंदिरा गांधी को धीरेंद्र ब्रह्मचारी से क्या हासिल हुआ, ये राज ही है. नरसिंहा राव और चंद्रास्वामी के किस्से भी कम नहीं हैं. गुरमीत राम रहीम से लेकर बाबा रामदेव, श्रीश्री रविशंकर आदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निकटता पा चुके हैं. अलग-अलग दौर के ये सभी बाबा यदि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठे, लेकिन कम से कम इतना रुतबा तो पा ही चुके कि संजय शर्मा जैसा कोई इन्हें देख ले तो सिर-माथे पर बैठा ले. बाबाओं का ये आभामंडल ही कमजोर दिल वालों पर काम कर जाता है. 

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बाबाओं का ये मायाजाल कुछ बारीक रेखाओं से बना होता है. वे धर्म का चोला ओढ़कर मैदान में निकलते हैं. फिर प्रवचन देते-देते अलग-अलग दिशा में निकल जाते हैं. कोई फिलॉसफी झाड़ने लगता है. कोई जिंदगी जीने के तरीके सिखाता है. कोई योग सिखाता है. किसी के लिए धर्म का प्रचार ही उसके कारोबार का आधार होता है. लेकिन इस सबके बीच पैसा कॉमन है. अथाह पैसा. लेकिन मैं इन सबके बीच संजय शर्मा जैसों को 'Benifit of doubt' दूंगा. ये हो सकता है कि बाबाओं के पैसे वाले खेल में ये हिस्सेदार न हों. ये हो सकता है कि संजय शर्मा भी भीड़ में शुमार लोगों की तरह हों जो गुरमीत राम रहीम जैसों को सजा मिलने पर पथराव करती है, गाड़ियां जलाती है. और बाद में पुलिस के डंडे खाती है. संजय शर्मा को अलग तरह का डंडा पड़ा है.

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खैर, यह लेख लिखते-लिखते अपडेट मिला है कि SHO संजय शर्मा को सस्‍पेंड कर दिया गया है. थानेदार का रुतबा छिन जाना ही बुरा माना जाता है. फिर सस्‍पेंशन तो बड़ा सिरदर्द है. लेकिन, ये इस बात की गारंटी नहीं है कि संजय शर्मा के सिर से राधे मां का भूत उतर जाएगा. क्योंकि, आसाराम, रामपाल या गुरमीत राम रहीम के जेल चले जाने के बावजूद उनके भक्तों के मन से भक्ति का भाव कोई कहां निकाल पाया है. सोशल मीडिया पर अपने आराध्य के लिए मर मिटने को तैयार रहने वाले ये भक्त गाहे बगाहे सड़क पर भी आ जाते हैं. जब ऐसी भक्ति देश के कानून में अपराध नहीं है, तो वह भक्त कैसे हुआ. तो उम्मीद रखिए, इस बात की पूरी गारंटी है कि अपने मन में राधे मां को बसाए संजय शर्मा का जल्‍द ही बहाल कर दिया जाएगा. और जल्द‍ ही कोई थाना उन्‍हें फिर सौंप दिया जाएगा.

बोलो राधे मां की जय !!!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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