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Social Media का तो जनता ने खुद मजाक बना दिया है...

    • vinaya.singh.77
    • Updated: 08 अप्रिल, 2020 07:49 PM
  • 08 अप्रिल, 2020 07:49 PM
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लॉक डाउन (Lockdown)के दौरान जो रुख जनता का है वो विचलित करने वाला है. हम कई ऐसी तस्वीरें देख चुके हैं जिनको देखने पर साफ़ पता चल रहा है कि जनता खुद सेल्फ डिस्टेंसिंग (Self Distancing) का मखौल उड़ा रही है. हाल यही रहा तो शायद ही हम कभी कोरोना वायरस (Coronavirus) को मात दे पाएं.

देश क्या पूरी दुनिया ही इस समय कोरोना के प्रकोप (Coronavirus) से जूझ रही है और इसमें बचाव और बेहतरी के लिए बहुत सी संस्थाएं अपनी तरफ से सब कुछ झोंक रही हैं. वैसे तो हर आपदा में सबसे पहले जो लोग दिन रात लग जाते हैं वह पुलिस और अन्य शसत्र बालों के लोग ही होते हैं. इस समय वो लोग भी अपना सब कुछ दांव पर लगाकर लोगों की जिंदगी बचा रहे हैं. इस आपदा में उनसे जरा भी कम जिम्मेदारी डॉक्टर (Doctor) और अन्य नर्सिंग स्टाफ (Nursing Staff) की नहीं है, वे लोग भी अपना सब कुछ लगा रहे हैं. पूरा देश 3 हफ्ते के लिए लॉकडाउन (Lockdown) में है और सिर्फ जरुरी सरकारी और गैर सरकारी विभाग ही खुले हैं. इन्हीं में बैंक वाले भी हैं जो अमूमन रोज अपने ऑफिस जा रहे हैं और संक्रमण का खतरा उठाकर यथासंभव जनता की सेवा कर रहे हैं.

बैंको के बाहर सेल्फ डिस्टेंसिंग का मखौल उड़ाती जनता की लम्बी लम्बी कतार

अब पुलिस वालों को तो कहीं आने जाने में कोई दिक्कत नहीं होती है लेकिन बैंक के कर्मचारी तो कई जगह पिट भी जा रहे हैं, भले ही वह अपनी शाखा के लिए ही क्यों न निकले हों. इस महामारी से बचने के लिए सबसे जरुरी चीज है सोशल डिस्टेंसिंग, मतलब एक दूसरे से दूरी. सामान्य स्थितियों में भी जब बैंक खुलते हैं, खासकर ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में, तो काफी भीड़ होती है.

लेकिन उसमें अगर किसी सप्ताह में छुट्टी भी पड़ जाए तो भीड़ और बढ़ जाती है. अब जबकि पूरा देश महामारी से जूझ रहा है और लोगों को दूरी बनाये रखने की सलाह दी जा रही है तो ऐसे में सरकार ने जन धन खाते में हर महीने 500 रु डालने की घोषणा करके जैसे सोशल डिस्टेंसिंग को खुद ही ख़त्म करने का इरादा कर लिया है. जिस दिन से यह घोषणा हुई है, लोगों की भीड़ बैंकों की तरफ बढ़ गयी है.

अब एक शाखा में अगर 500 से 600 व्यक्ति आएंगे तो...

देश क्या पूरी दुनिया ही इस समय कोरोना के प्रकोप (Coronavirus) से जूझ रही है और इसमें बचाव और बेहतरी के लिए बहुत सी संस्थाएं अपनी तरफ से सब कुछ झोंक रही हैं. वैसे तो हर आपदा में सबसे पहले जो लोग दिन रात लग जाते हैं वह पुलिस और अन्य शसत्र बालों के लोग ही होते हैं. इस समय वो लोग भी अपना सब कुछ दांव पर लगाकर लोगों की जिंदगी बचा रहे हैं. इस आपदा में उनसे जरा भी कम जिम्मेदारी डॉक्टर (Doctor) और अन्य नर्सिंग स्टाफ (Nursing Staff) की नहीं है, वे लोग भी अपना सब कुछ लगा रहे हैं. पूरा देश 3 हफ्ते के लिए लॉकडाउन (Lockdown) में है और सिर्फ जरुरी सरकारी और गैर सरकारी विभाग ही खुले हैं. इन्हीं में बैंक वाले भी हैं जो अमूमन रोज अपने ऑफिस जा रहे हैं और संक्रमण का खतरा उठाकर यथासंभव जनता की सेवा कर रहे हैं.

बैंको के बाहर सेल्फ डिस्टेंसिंग का मखौल उड़ाती जनता की लम्बी लम्बी कतार

अब पुलिस वालों को तो कहीं आने जाने में कोई दिक्कत नहीं होती है लेकिन बैंक के कर्मचारी तो कई जगह पिट भी जा रहे हैं, भले ही वह अपनी शाखा के लिए ही क्यों न निकले हों. इस महामारी से बचने के लिए सबसे जरुरी चीज है सोशल डिस्टेंसिंग, मतलब एक दूसरे से दूरी. सामान्य स्थितियों में भी जब बैंक खुलते हैं, खासकर ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में, तो काफी भीड़ होती है.

लेकिन उसमें अगर किसी सप्ताह में छुट्टी भी पड़ जाए तो भीड़ और बढ़ जाती है. अब जबकि पूरा देश महामारी से जूझ रहा है और लोगों को दूरी बनाये रखने की सलाह दी जा रही है तो ऐसे में सरकार ने जन धन खाते में हर महीने 500 रु डालने की घोषणा करके जैसे सोशल डिस्टेंसिंग को खुद ही ख़त्म करने का इरादा कर लिया है. जिस दिन से यह घोषणा हुई है, लोगों की भीड़ बैंकों की तरफ बढ़ गयी है.

अब एक शाखा में अगर 500 से 600 व्यक्ति आएंगे तो किस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग बरकरार रहेगी, कोई भी सोच सकता है. अब ये लोग न सिर्फ संक्रमण बढ़ाएंगे बल्कि उन बैंक कर्मचारिओं को भी संक्रमण देंगे जो किसी तरह बचते हुए लोगों को सेवा दे रहे हैं.

होना तो यह चाहिए था कि इस 500 रु के बदले गरीब बस्तियों में उतने का सामान जैसे चावल, दाल, सब्जी इत्यादि बांटना चाहिए था. हर मोहल्ले में जाकर कुछ लोग, जो आज भी लोगों के घर अपने पैसे से खाना और अन्य जरुरी सामान पहुंचा रहे हैं, यह कार्य करते और लोगों का हुजूम बाहर सडकों और बैंकों में नहीं आता. अभी भी समय है की मई और जून के पैसे के बदले सामान मुहैया करा दिया जाए जिससे लोग घर से बाहर निकलने के लिए मजबूर नहीं हो.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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