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South Africa: जहां Omicron पकड़ में आया, वहीं दो कौड़ी का हो गया

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 17 जनवरी, 2022 09:21 PM
  • 17 जनवरी, 2022 09:21 PM
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ब्रिटेन के वार्विक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और साइटिफिक पैनडेमिक इन्फ्लुएंजा ग्रुप आन माडलिंग के सदस्य डॉ. माइक टिल्डस्ले का कहना है कि तेजी से फैलने वाले ओमिक्रोन का उभरना दुनिया को कोरोना महामारी से मुक्ति में उम्मीद की पहली किरण साबित हो सकती है.

omicron की खबर मिलते ही मानो हाहाकार मच गया था लेकिन यह कोरोना वायरस (corona virus) अब दम तोड़ता नजर आ रहा है. शुरुआत में विशेषज्ञ अभी इस बारे में जानकारी देते कि खुद को समझदार कहने वाले कुछ लोगों ने पहले ही इसे सबसे ज्यादा खतरनाक वायरस घोषित कर दिया. आधी अधूरी जानकारी की वजह से कोरोना के नए वेरिएंट omicron को डेल्टा वायरस (delta virus) से कई गुना घातक माना गया हालांकि यह संक्रमण फैलने के मामले में था ना कि इंसान को नुकसान पहुंचाने के मामले में.

हुआ यूं कि ओमीक्रोन संक्रमण से पहले ही लोगों में दहशत का माहौल बन गया. पिछली बार कोई लोगों ने कोरोना की दहशत की वजह से खुदकुशी कर ली थी. इस बार कोरोना का हवुआ ऐसे देखने को मिला कि एक कानपुर के डॉक्टर ने यह लिखकर अपने परिवार की हत्या कर दी कि यह ओमिक्रोन सबको मार डालेगा. सोचिए इस खबर का बाकी लोगों के दिमाग पर क्या असर पड़ा होगा? कोरोना काल और लॉकडाउन की वजह से ऐसे कई लोग हैं जो अवसाद में चले गए. शारीरिक बीमारी तो फिर भी इलाज के बाद ठीक हो जाती है लेकिन मानसिक बीमारी को ठीक होने में वक्त लगता है. कोरोना काल में करीब 70 प्रतिशत लोग डिप्रेशन में पहुंच गए थे. ऐसे में ओमीक्रोन की बात सुनते ही लोगों में घबराहट देखने को मिली. इस बीमारी को लोगों ने इतना झेल लिया है कि अब वे किसी बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.

हालांकि भारत के लोग शायद अब कोरोना को सीरियस ले ही नहीं रहे हैं. एक तरफ जहां लोग बाजार में बिना मास्क नजर आ रहे हैं तो कई लोग ऐसे भी हैं जो यह बोलते मिल जाएंगे कि जो होना होगा देखा जाएगा. ऐसा लगता है कि लोग अब इस वायरस चिढ़ चुके हैं. कई लोगों ने पहले ही कह दिया था कि यह को ठंड के मौसम में होने वाली सर्दी-खांसी है. दूसरी लहर को झेलने के बाद कई लोगों ने ओमीक्रोन का मजाक ही बना कर रख दिया. हालांकि भारत में बड़ी आबादी को कोरोना का टीका लग चुका है. वैसे भी जब तक लोग अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए त्राहीमाम न करने लगे हमारे यहां किसी बीमारी को बड़ा माना...

omicron की खबर मिलते ही मानो हाहाकार मच गया था लेकिन यह कोरोना वायरस (corona virus) अब दम तोड़ता नजर आ रहा है. शुरुआत में विशेषज्ञ अभी इस बारे में जानकारी देते कि खुद को समझदार कहने वाले कुछ लोगों ने पहले ही इसे सबसे ज्यादा खतरनाक वायरस घोषित कर दिया. आधी अधूरी जानकारी की वजह से कोरोना के नए वेरिएंट omicron को डेल्टा वायरस (delta virus) से कई गुना घातक माना गया हालांकि यह संक्रमण फैलने के मामले में था ना कि इंसान को नुकसान पहुंचाने के मामले में.

हुआ यूं कि ओमीक्रोन संक्रमण से पहले ही लोगों में दहशत का माहौल बन गया. पिछली बार कोई लोगों ने कोरोना की दहशत की वजह से खुदकुशी कर ली थी. इस बार कोरोना का हवुआ ऐसे देखने को मिला कि एक कानपुर के डॉक्टर ने यह लिखकर अपने परिवार की हत्या कर दी कि यह ओमिक्रोन सबको मार डालेगा. सोचिए इस खबर का बाकी लोगों के दिमाग पर क्या असर पड़ा होगा? कोरोना काल और लॉकडाउन की वजह से ऐसे कई लोग हैं जो अवसाद में चले गए. शारीरिक बीमारी तो फिर भी इलाज के बाद ठीक हो जाती है लेकिन मानसिक बीमारी को ठीक होने में वक्त लगता है. कोरोना काल में करीब 70 प्रतिशत लोग डिप्रेशन में पहुंच गए थे. ऐसे में ओमीक्रोन की बात सुनते ही लोगों में घबराहट देखने को मिली. इस बीमारी को लोगों ने इतना झेल लिया है कि अब वे किसी बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.

हालांकि भारत के लोग शायद अब कोरोना को सीरियस ले ही नहीं रहे हैं. एक तरफ जहां लोग बाजार में बिना मास्क नजर आ रहे हैं तो कई लोग ऐसे भी हैं जो यह बोलते मिल जाएंगे कि जो होना होगा देखा जाएगा. ऐसा लगता है कि लोग अब इस वायरस चिढ़ चुके हैं. कई लोगों ने पहले ही कह दिया था कि यह को ठंड के मौसम में होने वाली सर्दी-खांसी है. दूसरी लहर को झेलने के बाद कई लोगों ने ओमीक्रोन का मजाक ही बना कर रख दिया. हालांकि भारत में बड़ी आबादी को कोरोना का टीका लग चुका है. वैसे भी जब तक लोग अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए त्राहीमाम न करने लगे हमारे यहां किसी बीमारी को बड़ा माना नहीं जाता है. सर्दी का तो ऐसा है कि यहां के लोगों को हर 2-3 महीने में हो ही जाती है. खैर, ये को रही मजाक की बात. अब देखिए कि कोरोना वायरस को लेकर दक्षिण अफ्रीका का क्या कहना है?

दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने कहा- न लॉकडाउन न क्वारंटीन

चौथी लहर झेल रहे दक्षिण अफ्रीकी सरकार का कहना है कि वह अब कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. देश में अब न तो लॉकडाउन लगाया जाएगा और न ही किसी को क्वारंटीन किया जाएगा. पीटीआई की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार ने बढ़ते कोरोना मामलों के बीच महामारी के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाने का फैसला किया है. दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार लॉकडाउन लगाने के कारण देश की अर्थव्यवस्था और अजीविका पर नकारात्म प्रभाव पड़ता है. दुनिया की देखादेखी की वजह से बार-बार अनावश्यक कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की जरूरत नहीं है. सरकार को इससे बचने की जरूरत है. हालांकि दक्षिण अफ्रीका में बड़ी संख्या में ओमिक्रॉन संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं. वहीं अब तक 35 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं जिनमें करीब 93,278 लोगों की मौत हो चुकी है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने क्या तर्क दिया

विशेषज्ञों ने सीरो सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि पहले की तीन लहरों के कारण लोगों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हुई है. साथ ही टीकाकरण ने भी प्रतिरोधक क्षमता में सकारात्मक बदलाव किए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ओमिक्रॉन की वजह से गंभीर रूप से से बीमार होने का खतरा भी कम है. हालांकि जिन लोगों को जोखिम ज्यादा है उन्हें बूस्टर डोज लेने की सलाह दी जा रही है. इनका तो यह भी कहना है कि थर्मल स्क्रीनिंग व हैंड सैनिटाइजेशन को भी समाप्त कर देना चाहिए लेकिन बंद जगहों पर मास्क लगना जरूरी है.

यही राय तो आम लोगों की कब से है. लोग को पहले से ही कह रहे हैं कि ओमीक्रोन कुछ नहीं है ये सब सरकार की चाल है. ऐसा कुछ नहीं है. इसका सबूत आप दूसरी लहर में देख चुके हैं. इसलिए कह रहे हैं चुनावी चक्कलस तो एक तरफ रखिए लेकिन कोरोना वायरस को इस लेपेटे में मत लीजिए. ओमिक्रोन वैरिएंट में नया क्या है?

असल में कोरोना के ओमिक्रोन वैरिएंट ने पूरे विश्व में डर का माहौल अधिक पैदा किया और नुकसान कम हुआ. यह वैरिएंट इतनी तेजी से फैल रहा है जिसकी हम और आप कल्पना नहीं कर सकते. माने एक से दो दिन में मामले दोगुना हो जा रहे हैं. अब राहत वाली बात यह है कि काफी लोग घर पर ही ठीक हो गए. वो भी दो से तीनों में. इसलिए स्वास्थ्य विज्ञानियों का यह मानना है कि यह वैरिएंट विश्व को कोरोना से मुक्ति दिला सकता है.

भविष्य में कोरोना मतलब सामान्य सर्दी-जुकाम

जब से यह लाइन सुनने को मिली है मां कसम बहुत राहत महसूस कर रहे हैं. वरना ओमीक्रोन तो सिर दर्द बन गया था. वैसे भी अपने यहां सर्दी-जुकाम को कोई बीमारी नहीं मानता है. असल में ब्रिटेन के वार्विक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और साइटिफिक पैनडेमिक इन्फ्लुएंजा ग्रुप आन माडलिंग के सदस्य डॉ. माइक टिल्डस्ले का कहना है कि तेजी से फैलने वाले ओमिक्रोन का उभरना दुनिया को कोरोना महामारी से मुक्ति में उम्मीद की पहली किरण साबित हो सकती है. हो सकता है किभविष्य कोरोना का और हल्का वैरिएंट सामने आए. अब लोगों को कोरोना के साथ ही रहने की आदत डालनी होगी क्योंकि यह बीमारी अब सामान्य सर्दी-जुकाम बनकर रह जाएगी. अस्पतालों में मरीज जरूर बढ़ रहे हैं लेकिन वह जल्द ठीक भी हो जा रहे हैं.

मैंने एक डॉक्टर को कहते हुए सुना कि ओमीक्रोन हो जाए तो बेहतर है इससे आपकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाएगी. वैसे इस बात में कितनी सच्चाई है हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं. हालांकि यह बात जरूर कह सकते हैं कि जैसे-जैसे ओमीक्रोन की परते खुलती गईं, इसके बारे में पता लगता गया वैसे ही यह हमारे लिए दो कौड़ी का होता गया. ना-ना इसके दो कोड़ी का होने से हमें बहुत ही खुशी है. अब किसी को कोरोना से प्यार तो नहीं हो सकता.

डॉ. माइक टिल्डस्ले का कहना है कि भविष्य में एक ऐसा समय भी आएगा जब कोरोना वैश्विक महामारी की जगह सामान्य सर्दी जुकाम की तरह स्थानिक बीमारी बनकर रह जाएगी. सर्दी-जुकाम के साथ तो हम सालों से रह रहे हैं. राहत की बात यह है कि ओमिक्रोन के चलते भेल ही अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन डेल्टा की तुलना में इसके लक्षण कम गंभीर नजर आ रहे हैं. मरीज जल्दी ही ठीक होकर अपने घर जा रहे हैं और यह राहत की बात है.

देखिए कोरोना को लेकर विशेषज्ञ कभी कुछ कहते हैं और कभी कुछ...हमें यह जानकर खुश जरूर होना चाहिए कि ओमीक्रोन ने विकराल रूप नहीं लिया लेकिन लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. क्या पता आने वाले दिनों में यह कौन सा नया रूप बना लें. याद रखिए जान है तो जहान है इसलिए अपना और अपनों का ध्यान रखिए. बाकी ओमीक्रोन हो या डेमीक्रोन घबराने की और डरने की जरूरत नहीं है हमने इतनी जंग जीत ली है तो आगे भी जीत ही लेंगे. चाहें पक्ष हो या विपक्ष कोई कोरोना वायरस के पक्ष में तो नहीं ही होगा...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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