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मिल मजदूर आदिवासी महिलाओं का मिल मालकिन बन जाना साधारण नहीं है

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 03 फरवरी, 2021 04:59 PM
  • 03 फरवरी, 2021 04:58 PM
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लॉकडाउन (Lockdown) में रोज़गार (Employment) जाने के बाद आदिवासी महिलाएं (Tribal women) अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर उस राइस मिल (Rice mill) की मालकिन बन गईं, जहां वे पहले मजदूरी (as a worker) करती थीं.

लॉकडाउन (Lockdown) में रोज़गार (Employment) जाने के बाद आदिवासी महिलाएं (Tribal women) अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर उस राइस मिल (Rice mill) की मालकिन बन गईं, जहां वे पहले मजदूरी करती थीं. पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इनके साहस की तारीफ की.

ये गाना तो शायद आपने भी सुना होगा, 'जिंदगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है'. यानी जिंदगी में दुख-सुख लगा रहता है. अगर कभी हार होती है तो फिर उसके बाद जीत भी होती है. कुछ लोग परेशानियों का हिम्मत से सामना करते हैं तो वहीं कुछ लोग हार मान लेते हैं. आदिवासी महिलाएं जिस तरह अपनी परेशानियों का सामना करते हुए आगे बढ़ीं, इनके जज्बे को सलाम है. हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. पीएम मोदी ने भी 'मन की बात' में इन महिलाओं के साहस की तारीफ की है.

दरअसल, मध्यप्रदेश के बालाघाट में चीज गांव की कुछ आदिवासी महिलाओं ने राइस मिल का संचालन शुरु किया है. लॉकडाउन में जिस तरह लोगों की नौकरियां गईं उसी तरह इन महिलाओं से भी इनका रोजगार छिन गया. जी हां, लॉकडाउन से पहले महिलाएं इसी राइस मिल में मजदूरी करती थीं, लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद यह राइस मिल बंद हो गई और इस तरह महिलाओं का रोज़गार उनसे छिनता गया.

लॉकडाउन में बड़े-बड़े लोगों ने भले ही हार मान ली, लेकिन इन महिलाओं ने हालात का सामना बड़ी हिम्मत के साथ किया. रोज़गार छिनने के बाद आदिवासी महिलाओं ने मिलकर बंद मिल को दोबारा चालू करने की सोची. मिल का मालिक मशीनों को बेचना चाहता था. महिलाओं ने अपना समूह बनाया और अपनी बचत के पैसे मिलाकर उन मशीनों को खरीद लिया. इस तरह सभी आदिवासी महिलाएं मिलकर दोबारा मिल का सफलता पूर्वक संचालन करने लगी.

महिलाओं ने मिलकर खुद ही धान से चावल बनाने का काम शुरु कर दिया. इसकी शुरुआत पहले छोटे मिल के रूप में हुई. बाद में महिलाओं ने मिलकर अपने बचत की राशि और सरकार से मिलने वाली सहायता के दम पर उसी राइस मिल को खरीद लिया और मालकिन बन गईं. जहां कभी ये महिलाएं मजदूरी करती थीं अब उसकी मालकिन हैं. धीरे-धीरे महिलाओं ने...

लॉकडाउन (Lockdown) में रोज़गार (Employment) जाने के बाद आदिवासी महिलाएं (Tribal women) अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर उस राइस मिल (Rice mill) की मालकिन बन गईं, जहां वे पहले मजदूरी करती थीं. पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इनके साहस की तारीफ की.

ये गाना तो शायद आपने भी सुना होगा, 'जिंदगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है'. यानी जिंदगी में दुख-सुख लगा रहता है. अगर कभी हार होती है तो फिर उसके बाद जीत भी होती है. कुछ लोग परेशानियों का हिम्मत से सामना करते हैं तो वहीं कुछ लोग हार मान लेते हैं. आदिवासी महिलाएं जिस तरह अपनी परेशानियों का सामना करते हुए आगे बढ़ीं, इनके जज्बे को सलाम है. हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. पीएम मोदी ने भी 'मन की बात' में इन महिलाओं के साहस की तारीफ की है.

दरअसल, मध्यप्रदेश के बालाघाट में चीज गांव की कुछ आदिवासी महिलाओं ने राइस मिल का संचालन शुरु किया है. लॉकडाउन में जिस तरह लोगों की नौकरियां गईं उसी तरह इन महिलाओं से भी इनका रोजगार छिन गया. जी हां, लॉकडाउन से पहले महिलाएं इसी राइस मिल में मजदूरी करती थीं, लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद यह राइस मिल बंद हो गई और इस तरह महिलाओं का रोज़गार उनसे छिनता गया.

लॉकडाउन में बड़े-बड़े लोगों ने भले ही हार मान ली, लेकिन इन महिलाओं ने हालात का सामना बड़ी हिम्मत के साथ किया. रोज़गार छिनने के बाद आदिवासी महिलाओं ने मिलकर बंद मिल को दोबारा चालू करने की सोची. मिल का मालिक मशीनों को बेचना चाहता था. महिलाओं ने अपना समूह बनाया और अपनी बचत के पैसे मिलाकर उन मशीनों को खरीद लिया. इस तरह सभी आदिवासी महिलाएं मिलकर दोबारा मिल का सफलता पूर्वक संचालन करने लगी.

महिलाओं ने मिलकर खुद ही धान से चावल बनाने का काम शुरु कर दिया. इसकी शुरुआत पहले छोटे मिल के रूप में हुई. बाद में महिलाओं ने मिलकर अपने बचत की राशि और सरकार से मिलने वाली सहायता के दम पर उसी राइस मिल को खरीद लिया और मालकिन बन गईं. जहां कभी ये महिलाएं मजदूरी करती थीं अब उसकी मालकिन हैं. धीरे-धीरे महिलाओं ने बड़ी मिल चालू करने की सोची और अब यही इनके आजीविका का साधन है.

महिलाओं के लिए मजदूर से मालिक बनने का सफर क्या आसान था?

महिलाओं ने दिखा दिया कि अगर कुछ करने की ठान लें तो वह पूरा जरूर होता है. बस जरूरत होती है मेहनत और धैर्य की. स्वंय सहायता के रूप में 2017 से काम करने वाली मीना रहांगडाले का कहना है कि हमारे समूह की कुछ महिलाएं राइस मिल में काम करती थीं. लॉकडाउन में उनका रोज़गार छिन गया. तभी हम सबने मिलकर मिल को दोबारा चालू करने का फैसला लिया और अब हम सभी एक बेहतर जिंदगी जी रहे हैं.

आसान नहीं थी राह

महिलाओं के लिए इस आपदा को अवसर में बदलना आसान नहीं था. जगह की कमी, पैसे की कमी उपर से बेरोज़गारी. इस बारे में कलेक्टर दीपक आर्य का कहना है कि महिलाओं ने हिम्मत दिखाई. उन्होंने आजीविका मिशन से कुछ सहायता लेकर, कुछ गांव से कर्जा और अपनी बचत राशि मिलाकर मशीनों को खरीद लिया.

इसके बाद महिलाओं ने पशु कोठे में राइस मिल का संचालन शुरु कर दिया. अब वे बड़े मिल की मालकिन हैं. यह अवसर उन्होंने अपनी मेहनत और हिम्मत के दम पर बनाया है. बालाघाट के सभी लोगों को इन महिलाओं पर गर्व है. आपको नहीं लगता कि यह हम सभी के लिए गौरव की बात है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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