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काश के ऋषिकेश में राफ्टिंग और पैराग्लाइडिंग बहुत पहले ही बंद हो जाती...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 23 जून, 2018 04:21 PM
  • 23 जून, 2018 04:21 PM
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ऋषिकेश में राफ्टिंग और पैराग्लाइडिंग के मद्देनजर जो उत्तराखंड हाई कोर्ट ने फैसला दिया है वो पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से एक अहम खबर है, जिसका सभी को स्वागत करना चाहिए.

चाहे सरकारी हो या फिर प्राइवेट कंपनी में काम करने वाला कर्मचारी. वीकेंड का इंतजार सबको रहता है. लोगों की इच्छा रहती है कि वो वीकेंड में धमाल करें और अपन सारे तनाव को गुड बाय कह दें. तनाव कम करने औ धमाल मचाने के मामले में दिल्ली और हरियाणा के लोगों का अपना स्वैग है. बात भयंकर तरीके से भावना आहत करने वाली है मगर सत्य है. अब जो सत्य है उसे नाकारा नहीं जा सकता.

दिल्ली और हरियाणा के लोगों के लिए वीकेंड में एन्जॉय करने का मतलब है पहाड़ों पर जाना. पहाड़ों की शांति भंग करते लाउड म्यूजिक के बीच वहां जम कर शराब पीना और पीने के बाद गिलास और बोतलें वहीं पहाड़ों पर छोड़ आना. बात जब पहाड़ों की होती है तो जो सबसे पहला नाम दिल्ली वालों का ऑप्शन बनता है या तो वो नैनीताल होता है या फिर ऋषिकेश.

राफ्टिंग के नाम पर आज ऋषिकेश को जमकर प्रदूषित किया जा रहा है

तो खबर ऋषिकेश से है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ऋषिकेश में होने वाले रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग जैसे वॉटर स्पोर्ट्स के लिए सरकार को दो हफ्ते का समय दिया है और उचित नियम और नीति बनाने का निर्देश दिया हैं. दो हफ्ते तक ऋषिकेश में इन खेलों को प्रतिबंधित कर दिया गया है. बताया जा रहा है हाईकोर्ट ने ये कड़े कदम पर्यावरण में फैल रही अशुद्धता को ध्यान में रखते हुए उठाया है.

क्यों लिया गया ये फैसला

बताया जा रहा है कि ऋषिकेश निवासी हरिओम कश्यप ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में इन वॉटर स्पोर्ट्स की वजह से होने वाली गंदगी के खिलाफ पीआईएल दायर की थी. अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने दलील पेश की थी कि सरकार ने 2014 में भगवती काला व वीरेंद्र सिंह गुसाईं को राफ्टिंग कैंप लगाने के लिए कुछ शर्तों के साथ लाइसेंस दिया था. कोर्ट ने राफ्टिंग और अन्य जोखिम के दौरान हो जाने वाली मौतों का हवाला देते हुए,...

चाहे सरकारी हो या फिर प्राइवेट कंपनी में काम करने वाला कर्मचारी. वीकेंड का इंतजार सबको रहता है. लोगों की इच्छा रहती है कि वो वीकेंड में धमाल करें और अपन सारे तनाव को गुड बाय कह दें. तनाव कम करने औ धमाल मचाने के मामले में दिल्ली और हरियाणा के लोगों का अपना स्वैग है. बात भयंकर तरीके से भावना आहत करने वाली है मगर सत्य है. अब जो सत्य है उसे नाकारा नहीं जा सकता.

दिल्ली और हरियाणा के लोगों के लिए वीकेंड में एन्जॉय करने का मतलब है पहाड़ों पर जाना. पहाड़ों की शांति भंग करते लाउड म्यूजिक के बीच वहां जम कर शराब पीना और पीने के बाद गिलास और बोतलें वहीं पहाड़ों पर छोड़ आना. बात जब पहाड़ों की होती है तो जो सबसे पहला नाम दिल्ली वालों का ऑप्शन बनता है या तो वो नैनीताल होता है या फिर ऋषिकेश.

राफ्टिंग के नाम पर आज ऋषिकेश को जमकर प्रदूषित किया जा रहा है

तो खबर ऋषिकेश से है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ऋषिकेश में होने वाले रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग जैसे वॉटर स्पोर्ट्स के लिए सरकार को दो हफ्ते का समय दिया है और उचित नियम और नीति बनाने का निर्देश दिया हैं. दो हफ्ते तक ऋषिकेश में इन खेलों को प्रतिबंधित कर दिया गया है. बताया जा रहा है हाईकोर्ट ने ये कड़े कदम पर्यावरण में फैल रही अशुद्धता को ध्यान में रखते हुए उठाया है.

क्यों लिया गया ये फैसला

बताया जा रहा है कि ऋषिकेश निवासी हरिओम कश्यप ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में इन वॉटर स्पोर्ट्स की वजह से होने वाली गंदगी के खिलाफ पीआईएल दायर की थी. अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने दलील पेश की थी कि सरकार ने 2014 में भगवती काला व वीरेंद्र सिंह गुसाईं को राफ्टिंग कैंप लगाने के लिए कुछ शर्तों के साथ लाइसेंस दिया था. कोर्ट ने राफ्टिंग और अन्य जोखिम के दौरान हो जाने वाली मौतों का हवाला देते हुए, मामले की गंभीरता को समझाया और सरकार को जल्द से जल्द एक पारदर्शी पॉलिसी बनाने का निर्देश दिया है.

कोर्ट का मत है कि राफ्टिंग कराने का लाइसेंस केवल औ केवल अनुभवी प्रोफशनल्स को ही दिया जाए. वहीं कोर्ट द्वारा इस बात पर भी जोर दिया गया कि राज्य के लिए टूरिज्म जरूरी है मगर प्रकृति को दांव पर लगाकर इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. गौरतलब है कि आज ऋषिकेष एक परफेक्ट वीकेंड डेस्टिनेशन के रूप में लोकप्रिय हुआ है. इस कारण गंदगी का होना लाजमी है और बात जब रिवर राफ्टिंग और पैराग्लाइडिंग के मद्देनजर हो तो भले ही आज इन वॉटर स्पोर्ट्स के नाम पर तकरीबन 7000 लोगों को रोजगार और राज्य को राजस्व मिल रहा हो, मगर गंगा नदी के तट पर लगने वाले कैम्पों के कारण जिस तरह लगातार गंदगी बढ़ रही है वो एक गहरी चिंता का विषय है.

कहना गलत नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सही समय पर सही फैसला दिया है

इस बात को ध्यान में रखकर कोर्ट ने सरकार की जमकर क्लास लगाई है. कोर्ट का कहना है कि सरकार कैसे नदी किनारे कैंप लगाने की अनुमति दे सकती है? गंगा की पवित्रता को बरकरार रखना सरकार की जिम्मेदारी है. बहरहाल कहना गलत नहीं है कि आज इस मामले पर राज्य सरकार को फटकार लगाने वाली कोर्ट को बहुत पहले ही इस समस्या का संज्ञान लेना था.

यदि कोर्ट पहले ही इस मुद्दे पर अपनी बात रख देती तो आज हालात काफी हद तक सुधरे हुए और गंगा का ये हिस्सा साफ होता. खैर पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से ये एक बड़ी खबर है और कहना ये भी गलत नहीं है कि वो लोग जो पर्यावरण के लिए गंभीर हैं उन्हें ये खबर सुनने के बाद एक दूसरे को मिठाई बांटनी चाहिए और बधाई देनी चाहिए कि कम से कम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही लोग अपने पर्यावरण के प्रति गंभीर होंगे और उसके संरक्षण की दिशा में काम करेंगे. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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